Wednesday, October 29, 2008

कविता

दीवाली का शुभ संदेश





- सुश्री अर्चना, चेन्नई ।



मेरी प्यारी बहना, न्यारी बहना
तेरी सूरत व सीरत का क्या कहना
तू है हमारे लिए अनमोल गहना
किन अल्फ़ाज– ज़बान से तेरी तारीफ़ करना
किस तूलिका से, तेरी तस्वीर सज़ाना


रे बिना घर आँगन सूना
तू ही थी हमारे मन मंदिर का सपना
तेरी बातों में प्यार ममता का झरना
तेरी सूरत में देवताओं का बसना
दिव्यालोक का प्रतिदिन दर्शन करना

विवाह रचके तू हम से जुदा हुई
दिल से हमेशा याद आती रहीं
तेरे बिना, इस दीवाली की शुभवेला में
दीपों के जलने में
फूलों के खिलने में कोकिल के गानों में
फटाकों के जलाने में

ओ..........आवाज़ नहीं
ओ..........साज़ नहीं
उस राग में, अनुराग नहीं
इस बार दीवाली मनाने में
उतना मज़ा भी नहीं
अब हम बेशुमार प्यार को
गुलदस्तों में सज़ाकर
दिल से..........दीवाली के
शुभ संदेश देते हैं
सौभाग्य की कामना करते हैं।

Muskaan ke liye do kshan..



Smile please...


(Jokes)


- Dr. S. Basheer, Chennai.


In America Marriages by email
In India only with female


***
Husband – I have banglow, car and locker
What you have? Aha…..ha
Wife - I have the keys for all


***


In game of life
Some gets prizes
Others only Surprises


***

Tuesday, October 28, 2008

ग़ज़ल

ग़ज़ल

-कमलप्रीत सिंह

न बात कोई हवा से की


न गुफ़्तगू खिजां से की


सुबहु को हम खामोश थे


शाम ऐ ग़ज़ल जुबां से की


कई और भी हम ख़याल थे


पर बात मेहरबां से की


है मिली हकीकत ऐ ज़िंदगी


शुरुआत दास्ताँ से की


वहां रौशनी की कमीं न थी


पर बात कहकशां से की


ज़िक्र ऐ शिकायत क्या किए


जब बात राजदान से की


न बात कोई हवा से की


न गुफ़्तगू खिजां से की


सुबहु को हम खामोश थे

शाम ऐ ग़ज़ल जुबां से की

कविता

दिव्या माथुर जी की तीन कविताएँ

ज़ुबान

सिर पर चढ़ के
बोलता है झूठ यही सोच के
ख़ामोश हूँ मैं
इसका क़तई ये अर्थ न लो
कि मेरे मुँह में
ज़ुबान नहीं!

बचाव

कचहरी में बड़े बड़े झूठ
एक छोटे से
सच के सामने
सिर झुकाए खड़े थे

बाहर सबसे नज़रें चुराता

सच छिपता छिपाता
अपने बचने का

रस्ता ढूँढ रहा था ।

जंगल

शक और झूठ
बो दिये उसने मेरे मन में
खर पतवार से लगे वे बढ़ने
अब तो बस जंगल ही जंगल है
बाहर जंगलजंगल मन में!

Monday, October 27, 2008

तेलुगु भाषा एवं साहित्य

तेलुगु भाषा एवं साहित्य


अंतरजाल पर तेलुगु भाषा एवं साहित्य पर हिंदी में अपेक्षित मात्रा में सामग्री उपलब्ध न होने के कारण अपने पाठकों के लिए युग मानस की ओर से तेलुगु भाषा एवं साहित्य पर धारावाहिक लेखमाला का प्रकाशन आरंभ किया जा रहा है । तेलुगु के युवा कवि उप्पलधडियम वेंकटेश्वरा अपने लेखों के माध्यम से तेलुगु भाषा एवं साहित्य के विविध आयामों पर प्रकाश डाल रहे हैं । इस क्रम में तीसरा लेख यहाँ प्रस्तुत है । - सं.


तेलुगु भाषा की प्राचीनता


- उप्पलधडियम वेंकटेश्वरा



तेलुगु विश्व की अत्यंत प्राचीन भाषाओं में से एक है। तेलुगु भाषा की प्राचीनता के अनेक प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष प्रमाण मिलते हैं।


आंध्र-प्रांत में प्रचलित एक दंत-कथा के अनुसार तेलुगु भाषा का प्रथम व्याकरण ग्रंथ तेत्रायुग में रावण द्वारा रचा गया। हालांकि यह मात्र दंत-कथा है, फिर भी इससे तेलुगु भाषा की प्राचीनता का आभास मिलता हे।


1. नई खोजों के अनुसार, आंध्र प्रदेश के कर्नूल जिले में स्थित 'ज्वालापुरम्' नामक गाँव को भारत में मानव-जाति का प्रथम आवास-स्थल माना जाता है। वैज्ञानिकों की राय है कि करीब अस्सी हजार वर्ष पूर्व अफ्रीका से एक मानव समूह द्वारा निर्मित एक कुआ प्रकाश में आया है, जो 77,000 वर्ष पुराना है। जाहिर है कि यहां की प्रजा और उनकी भाषा अत्यंत प्राचीन हो।


2. 'गोंड' प्रजाति की उद्भव-गाथा में 'तेलिंग' नामक देव का उल्लेख है। कुछ विद्वान 'तेलिंग' को तेलुगु प्रजाति का मूलपुरुष मानते हैं। तेलुगु प्रजाति की प्राचीनता के आकलन में गोंड प्रजाति की उद्भव-गाथा उपयोगी है।


3. प्रख्यात इतिहासकार डी.डी. कोशांबी ने अपनी पुस्तक ‘Combined methods in Indology and other writings’ (Oxford University Press, 2002, P. 391) में लिखा है कि ”The puranas inform us that Krishna’s father was Vasudeva, mother Devaki, Sister to a tyrant of Madhura named Kamsa. The people were the Andhaka – Vrishni branch of the Yadavs”. इससे स्पष्ट होता है कि श्रीकृष्ण 'अंधक वृष्णी' शाखा के थे। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व निदेशक डॉ. वी.वी. कृष्ण शास्त्री का मानना है कि चूंकि प्राचीन ग्रंथों में 'अंधक' शब्द से आंध्र-प्रजाति अभिप्रेत है । श्रीकृष्ण की प्रतिमा आंध्र-प्रदेश के गुंटूरु जिले के 'कोंडमोटु' गाँव में जो प्राप्त हुई, वह ई.200 की मानी जाती है। यहां इस तथ्य को भी ध्यान में रखना समीचीन होगा कि श्रीकृष्ण से लड़ने वाले चाणूर और मुष्टिक भी आंध्र-प्रजाति के थे, जिसका स्पष्ट उल्लेख महाभारत में किया गया। यह भी तेलुगु प्रजाति की प्राचीनता का द्योतक है।


4. अनेक विद्वानों का मत है कि सुमेरी सभ्यता के साथ तेलुगु प्रजाति का घनिष्ठ संबंध है।


5. इतिहासकार एच.आर. हॉल के अनुसार प्राचीन सुमेरी मानव आकार में दक्कन के मानव-सा था।


6. सुमेरी लोगों ने पूर्वी दिशा में स्थित 'तेलमन' क्षेत्र को अपनी उद्भव-भूमि कहा था। तेलुगु के प्रकांड पंडित डॉ. संगनभट्ल नरसय्या मानते हैं कि यह 'तेलमन' शब्द तेलि (याने सफेद) और मन्नु (मिट्टी), इन तेलुगु शब्दों का स्रोत है। वे यह भी मानते हैं कि उपरोक्त 'तेलमन क्षेत्र' से तेलुगु भाषा-क्षेत्र अभिप्रेत है।


7. सुमेरी सभ्यता के प्रख्यात शहर 'निप्पूर' के नाम में 'निप्पु' (याने आग) और 'ऊरु' (याने स्थल) नामक तेलुगु शब्द पाए जाते हैं।


8. सुमेरी लोगों की प्रधान देवता 'अंकि' थी। आंध्र-प्रांत में व्यक्तिवाचक संज्ञा के रूप में अंकय्य, अंकिनीडु, अंकम्म, अंकालम्म आदि शब्दों का प्रचलित होना तेलुगु और सुमेरी सभ्यताओं के संबंध का द्योतक है।


9. सुमेरी जनता ने आकाश देव को 'अनु' तथा पृथ्वी देव को 'एंकि' की संज्ञा दी थी । आंध्र-प्रांत में अन्नय्या, अन्नमय्या, अन्नम्मा, अन्नंभट्टु आदि नाम पाए जाते हैं, जो संभवत: 'अनु' देव के नाम पर रखे गए हैं। 'एंकि' नाम भी आंध्र-प्रांत में काफी प्रचलित है और कुछ विद्वानों का मत है कि एंकि से वेंकि और वेंकि से वेंकटेश्वर (याने बालाजी) रूप विकसित हुए हैं।


10. सुमेरी जनता ने चांद्रमान को अपनाया और तेलुगु जनता भी चांद्रमान का अनुसरण करती है।


11. प्राचीन सुमेरी भाषा में चांद के लिए 'नन्न' शब्द का प्रयोग मिलता है। तेलुगु के नन्नय्य, नन्नेचोडुडु जैसे प्राचीन कवियों के नाम में भी यह शब्द मिलता है। साथ ही, आंध्र-प्रदेश के तेलंगाणा इलाके के लोग 'नल्लपोचम्मा' नामक देवता की पूजा करते हैं। तेलुगु में यदा-कदा 'न' और 'ल' वर्णों का अभेद होता है। अत: यह शब्द वस्तुत: 'नन्नपोचम्मा' है, जिससे चंद्रकला अभिप्रेत है।


12. सुमेरी सभ्यता के 'निप्पूर' शहर में 'एकूरु' नामक मंदिर था। आंध्र-प्रांत में व्यक्तिवाचक संज्ञ के रूप में 'एकूरय्या' (जिसका अर्थ-बनता है, एकूरु में रहने वाला आदमी) शब्द पाया जाता है। 'निप्पूर' शहर में 'तुम्मल' नामक देवता का मंदिर था, तो आंध्र-प्रदेश में इस नाम से एक गाँव है।


13. सुमेरी सभ्यता के जलप्रलय की गाथा में 'एंकिडु' नामक पात्र आता है। तेलुगु जनता में 'एंकि' शब्द नामवाचक संज्ञा के रूप में काफी प्रचलित है और 'डु' प्रत्यय के साथ दर्जनों नाम मिलते हैं, जैसे रामुडु, कृष्णडु, रंगडु, वेंकडु इत्यादि।


14. प्रख्यात इतिहासकार डी.डी. कोशांबी के अनुसार प्राचीन काल में दक्षिण भारत और सुमेरु के बीच व्यापारिक संबंध थे और दक्षिण भारत से कुछ व्यापारी जाकर सुमेरु में बस गए। सुमेरी सभ्यता के सैकड़ों मिट्टी के फलक (Clay Tablets) प्राप्त हुए हैं और कुछ विद्वानों का मानना है कि इनमें प्राचीन तेलुगु भाषा का प्रयोग हुआ था। डॉ. संगनभट्ल नरसय्य ने नान्नि और इया नाज़िरा नामक दो व्यापारियों के बीच के पत्राचार का उल्लेख किया है। उन्होंने इन पत्रों में से - अनु (याने), चेरि (ठीक), इस्कुंटि (आधुनिक रूप है 'इच्चुकुंटि', जिसका मतलब है मैंने दिया था), 'अय्या' (जी) 'अदि' (वह), 'तूसि इम्मनि माकि' (आधुनिक रूप है 'तूचि इम्मनि माकु', जिसका मतलब है, तोलकर हमें देने के लिए), 'मरि आ वेलकि इम्मनेदि' (तो उस दर पर देने के लिए कहना) आदि तेलुगु शब्दों तथा वाक्यों का उदाहरण देकर सुमेरी भाषा को तेलुगु भाषा का पूर्वरूप् माना है। यहां यह कहना समीचीन होगा कि 'बहराइन थ्रू द एजेस' नामक ग्रंथ में 'अलिक दिलमुन पाठ' का उल्लेख है, जो उपरोक्त कथन को बल देता है। यह भी ध्यान देने का विषय है कि आज भी तेलुगु जनता में नामवाचक संज्ञा के रूप् में 'नानि' शब्द का प्रचलन है।


15. डॉ. संगनभट्ल नरसय्य की धारणा है कि बलूचिस्तान में बोली जाने वाली द्रविड भाषा 'ब्राहुई' अन्य द्रविड भाषाओं की अपेक्षा तेलुगु के निकट है। उनका मानना है कि व्यापार हेतु तिलमुन याने तेलुगु-प्रांत से सुमेरु जाते-जाते बीच में जो व्यापारी रह गए थे, उनकी भाषा 'ब्राहुई' है और इसी कारण तेलुगु एवं ब्राहुई में निकटता पाई जाती है।


16. डॉ. जी.वी. पूर्णचंद ने सुमेरी और तेलुगु भाषाओं के ऐसे शब्दों का विश्लेषण किया, जो समानार्थी और समान रूपी हैं। कुछेक उदाहरण निम्नप्रकार हैं-

सुमेरी शब्द तेलुगु शब्द हिंदी में अर्थ
अबा अवतला के बाद
अका अकटा अय्यो!
अला एल्ल सभी
अर अरक हल
बाद बादु पीटना
बिर विरुचु तोड़ना
बुर पुरुगु कीडा
दिब दिब्ब कूड़ा-ख़ाना
दार दारमु धागा
दिरिग तिरुगु फिरना
फिरिक पिरिकि डरपोक

17. उपरोक्त प्रमाणों से सुमेरी सभ्यता और तेलुगु प्रजाति के बीच का घनिष्ट संबंध स्पष्ट हो जाता है और इससे तेलुगु प्रजाति की प्राचीनता का अनुमान लगाया जा सकता है।

(शेष अगले अंक में)

Saturday, October 25, 2008

दीवाली की शुभकामनाओं सहित...

हाइकु गीत



दीया



- नलिनीकांत, अंडाल ।


अँधेरा हुआ
तो क्या हुआ, जलाओ
आशा का दीया ।

कूबत भर
लड़ेगा तिमिर से
छोटा सा दीया ।

वर्तिका नन्हीं
तेल नहीं पर्याप्त
उसने पीया ।

फिर भी वह
जन्म और जाति से
ज्योति का दीया ।

रग रग में
उसकी प्रकाश औ
दीप्ति है सीया

सूर्यवंशी है
टिमटिमाता लघु
माटी का दीया ।

वह तो झुग्गी
झोपड़ी का जाग्रत
प्रहरी दीया ।

Saturday, October 18, 2008

कविता



बेटियाँ
- डॉ. बशीर, चेन्नै

ये गुल नहीं, गुलज़ार हैं
हर घर में बेटियाँ
ख़ुदा का उपहार हैं
महकती बसंत बहार हैं
परिवार का दुलार हैं
मोहब्बत का इज़हार हैं

ये ममता का पारावार हैं
सेवा का अवतार हैं
सुख-दुःख में भागीदार हैं
बेटियाँ हो तो...
हर घर में, हर दिन त्यौहार है
खेलती-कूदती, मचलती-महकती
ख़ुशबू की बयार हैं

हमारी संपत्ति और प्यार की
हमेशा हकदार हैं
बेटियाँ...
घर घर का सुख-सागर हैं

बेटियाँ कहीं लक्ष्मी बनकर
दौलत लाती हैं
कहीं सरस्वती बनकर
विद्या फैलाती हैं
कहीं मीरा बनकर
विष पाती हैं
कहीं हीरा बनकर
मुकुट धारण करती हैं

बेटियाँ देश की लाज़ हैं
इतिहास का साज़ हैं
गरिमामय वक़्त का राज़ हैं
गौरवशाली देश की आवाज़ हैं ।

कविता

हर बच्‍चा हो मेरे देश का सम्‍मान


- डी. अर्चना, चेन्नै

मेरा भारत महान
जहाँ जन्मे हर बच्चे को
मिले माता-पिता का भरपूर प्यार
मानवाधिकार की छत्र-छाया में आज़ाद ज़िंदगी
जीने का हक बच्चों का जन्‍मसिद्व अधिकार है।

मनोविकास करने
जीवन में प्रगति पाने
आज़ादी से ज़िंदगी बिताने केलिए
हिंदुस्‍तान का बच्‍चा-बच्‍चा हकदार है।

भारत का संविधान
सामाजिक – राजनीतिक - आर्थिक स्थितियाँ
धर्म के रीति रिवाज, जन कल्‍याण संस्‍थाएं
बच्‍चों के जीने के अधिकार को
और भी करें मज़बूत।
कोई भी इसके खिलाफ़
न करे करतूत ।

पूरे विश्‍व में इसका प्रचार हो
बच्‍चों के कल्‍याण में ही
विश्‍व का कल्‍याण निहित है
मानवता का यह संदेश, दस दिशाओं में गूजता रहें।

जब स्‍वास्‍थ पालन-पोषण
नैतिक शिक्षा, सुखद जीवन
रोटी, कपड़ा और मकान
सभी को मिले इसका वरदान।

बच्‍चों की सुरक्षा पर हो अभियान
हम सबको इन सब पर हो अभिमान
कड़ी निगरानी रखें...कानून व संविधान
तब ही होगा इन बच्‍चों का कल्‍याण ।

प्राथमिक शिक्षा हो अनिवार्य
बाल-मज़दूरी का हो निर्मूलन
जो भी इसका करते हैं अवहेलन
दंड नीति का हो पालन हो अनिवार्य
क्‍यों कि आज के बालक ही “भविष्‍य के नागरिक”।

मेरे देश का विकास
इन नन्‍ने-मुन्‍ने बच्‍चों की आंखों में है
इनकी आशाओं से ही
मेरा भारत बने महान
विश्‍व में स्‍थापित हों, नए नए कीर्तिमान।
हर बच्‍चा हो मेरे देश का सम्‍मान
भारत माता की जान-आन और शान ।

कविता

मैं मजदूर


- मनीष जैन

मैं मजदूर, मजदूर ही मुझको रहना है
श्रम से जी दुनिया लाख चुराएं, श्रम मुझको करते रहना है, श्रम ही मेरा गहना है
मैं ही अन्न उपजाता हूँ, सत्ता का भाग्य विधाता हूँ
श्रम नियोजन ही ध्येय मेरा, सुख साधन एक सपना है, श्रम ही मेरा गहना है
वज्र से मेरे ये हाथ बने, श्रम से मेरे कुछ नाथ बने
पर निर्धनता ही मेरी नियति, चुपचाप ही सहते रहना है, श्रम ही मेरा गहना है
मिट्टी से मैं महल बनाऊं, सृजन में जी जान लगाऊं
श्रम ही है मेरा ईश्वर, श्रम की पूजा करना है, श्रम ही मेरा गहना है
सबको सुख साधन उपलब्ध कराऊँ, दरिद्रता में जीता जाऊं
श्रम ही है मेरी पूँजी, श्रम साधन संजोये रखना है, श्रम ही मेरा गहना है
वन और पशु हैं मेरे मीत, सृजन में ही मेरी जीत
मिटाकर तृष्णा और लालसा, संतोषी बनकर रहना है, श्रम ही मेरा गहना है
श्रम से मुझको कष्ट नहीं, कल की मुझको फिक्र नहीं
छोड़ भूत, छोड़ भविष्य, वर्तमान की चिंता करना है, श्रम ही मेरा गहना है
मैं राष्ट्र का कल संवारू, राष्ट्र विकास की राह बुहारु
मरते दम तक श्रम पूर्वक, राष्ट्र की सेवा करना है, श्रम ही मेरा गहना है
वर दो प्रभु! भव भव में मजदूर बनूँ,
करूं सेवा जग भर की, छोड़ विलास श्रम को चुनूँ,
श्रम संग पलना बढ़ना है, श्रम ही मेरा गहना है
मैं मजदूर, मजदूर ही मुझको रहना है ।

कविता

नया व्याकरण


- राजीव सारस्वत, मुंबई


अब चलो नया व्याकरण लिखें हम
विच्छेदों को संधि लिखें हम
मतभेदों को मैत्री लिखें हम
बहुत कर चुके आप टिप्पणी
अपना अंतःकरण लिखें अब
चलो नया व्याकरण लिखें अब..

Friday, October 17, 2008

कविता

बारहवाँ खिलाड़ी

- संजीव जैन, हैदराबाद


खुशनुमा मौसम में
अनगिनत तमाशायी
आते हैं अपने ग्यारह की
टीम का हौसला बढ़ाने को
दिलों जान से चाहते हैं जिसको
उन सब से अलग मैं धतकारा लगाता हूँ
बारहवें खिलाड़ी को
क्या अजब खिलाड़ी है
क्या गजब खिलाड़ी है
दो ओवरो के बीच
जब इसका मौका आता है
हाथ में पानी की बोतल
कंधे पर तौलिया लिये
वो दौड पड़ता है
टीवी का कैमरा तक इससे मुहँ मोड़ लेता है
तेज हुडदंग के बीच औरों से अलग
ये उस लम्हे का इंतजार करता रहता है
जब कोई बलवा हो जाए
काई गर्मी से गश खा जाए
उसे खेलने का बस एक मौका मिल जाए
उसे भी तमाशायियों की तालियाँ मिल जाए
उसका नाम भी कहीं टी वी पर दिख जाए
जब टीम जश्न बनाती है
बारहवाँ खिलाड़ी भी नाचता है, गाता है
मन कौंधता है उसका
तौलिया उठा कर
तू क्यों खुश है इतना
काश
कोई हादसा हो जाए
मुझे अगले मैच में एक मौका मिल जाए
मेरा भी फोटो अखबार में छप जाए
मुझे भी टीम में शामिल कर लिया जाए
मैच दर मैच
बारहवा खिलाड़ी
ऐसा ही खेल दिखाता है
कभी मौका मिले तो कैच लपक जाता है
संजीव तू अपना जश्न
दूसरों के गम से ही क्यों बना

कविता

दर्द

- संजीव जैन, हैदराबाद ।

मेहता जी ने गर्भपात के ​लिए दरवाजा तो खटखटाया
माननीय जजों ने भी अपना फैसला सुनाया।
ले​किन इस बार जल्‍द ​निणर्य तो आया
२० हफ्ते का गर्भ कोर्ट ने बचाया ।

जब बच्‍चा गर्भ से बाहर आएगा
माँ से क्‍या ​अपना दर्द ​​​​​​छिपाएगा ?
जीवन उसको प्‍यारा नज़र आएगा ?
माँ को माफ़ क्‍या कर पाएगा ?
अनचाही औलाद का सपना मन में सजाएगा ?

बीमारी से ज्‍यादा अनचाहे होने का दर्द उसे सताएगा।

Flood Relief work from PURNEA



Dear Sir,
Our flood relief work is going on in Murliganj Block of Madhepuradistrict. Today I have got a digital still camera here. Friday is myoff day so I will go to Purnea and will also visit to Mruliganj Block.Our volunteers are making arrangement for distribution in Murliganjbecause we have lack of materials and the demand is in bulk. Anywaywith the support of some local youth we are managing everything. Wehave distributed 260 kits (5kg Rice, 2kg pulse, 500 gm Biscuits, 1pack candle, two piece match box, 1 kg salt) on 4tha and 5th october2008 very successfully.
Now we are distributing another kit in 500 family. This kit is made of1 torch with battery, 1 blanket, 1 new saree, 1 Aluminium Handi, 1Steel Thali and 1 plastic glass. All these things will be provided byGOONJ.
In coming days, we will distribute 500 piece TENT with the support of GOONJ.
We are also collecting waste cloth for winter. we are trying toprovide needle and thik thread (Sui-dhaga) to women for preparingbed with wastage cloths. You know in coming 15 days, they will shiverfrom cold. So we are trying to save them from this cold with our bestpossible.
We are very grateful to GOONJ founder director Mr. Anshu Gupta and AMPgen. sec. Mr KN Jha. GOONJ is providing us material continuously. SriKN Jha has also given us material watever AMP collected. Ms. PinkyKumari and Mr. Alok Kumar is conduction relief work here verysuccessfully.
I hope we will get some winter cloths especially for baby and baby food also..

With best regards,

Vinay Tarun

Copy Editor, Hindustan Daily, Bhagalpur - 09234702353

Wednesday, October 15, 2008

साक्षात्कार


गृह राज्य मंत्री डॉ. शकील अहमद से श्री प्रकाश जैन का साक्षात्कार



भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा दी गई जिम्मेदारियों को बकूबी निभाते हुए तेज तर्रार व युवा गृह राज्य मंत्री डॉ. शकील अहमद ने आज ऊटी में हो रही तेज बारिश में भी उनके अधीन राजभाषा विभाग द्वारा आयोजित संयुक्त क्षेत्रीय राजभाषा सम्मेलन में बकौल मुख्य अतिथि अपनी उपस्थिति दर्ज कराई । अपने ओजस्वी भाषाण से सभागार में उपस्थित सभी प्रतिभागियों का राजभाषा कार्यान्वयन के प्रति मनोबल बढ़ाते हुए सबका दिल जीत लिया । कार्याक्रम के पश्चात मिलाप संवाददाता प्रकाश जैन के साथ हुई एक विशेष भेंट वार्ता के प्रमुख अंश –


देश में राजभाषा कार्यान्वयन की वर्तमान स्थिति से क्या आप संतुष्ट हैं ?


हम जिस दिन संतुष्ट हो जाएंगे उस दिन हमारा विकास कार्य रुक जाएगा । हमें अभी बहुत काम करना है । यह बात सच है कि राजभाषा हिंदी देश को जोड़ने वाली भाषा है । हम सबमें अपनी मातृभाषा के प्रति स्वाभाविक प्रेम है । उसी प्रकार देश की भाषा के प्रति भी हमारी जिम्मेदारी होती है । अच्छी बात तो यह है कि अहिंदी भाषी राज्यों में भी हिंदी कार्य के प्रति लोगों की रूचि बढ़ी है ।


राजभाषा के प्रगामी प्रयोग को प्रोत्साहित करने के लिए जो व्यवस्था चल रही है, वह वर्तमान परिदृश्य में कितनी प्रभावशाली है ?


समय के साथ-साथ परिवर्वतन आवश्यक है । राजभाषा कार्यान्वयन के प्रति निष्ठा से जुड़े लोगों को और ज्यादा प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है । इस पर राजभाषा विभाग बड़ी ही गंभीरता से विचार कर रहा है । साथ ही हिंदी को बढ़ावा देने के लिए सूचना प्रोद्योगिकी के व्यापक एवं सुचारू इस्तेमाल को भी बढ़ावा दिया जा रहा है ।


राजभाषा कार्यान्वयन के प्रति कई उच्च अधिकारियों की उदासीनता को दूर करने के लिए विभाग क्या करता है ?


ऊपर से दबाव डालकर मानसिकता में परिवर्तन नहीं किया जा सकता । प्रेम, प्रोत्साहन व सद्भावना से ही मानसिकता बदली जा सकती है । अगर कोई जिम्मेदार व्यक्ति अपना कार्य ठीक ढंग से नहीं करता है और समीक्षा रिपोर्ट के माध्यम से यह पता लगता है कि जानबूझकर कार्य में उदासीनता बरती गई है तो सरकार अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करेगी ।


राजभाषा विभाग प्रसार-प्रचार के क्षेत्र में पिछड़ा क्यों हैं ? क्यों केवल प्रचार सामग्री के रूप में पोस्टर, बैनर इत्यादि बनाकर आंतरिक वितरण किया जाता है और क्यों उपलब्ध मीडिया संसाधनों का खुलकर इस्तेमाल नहीं किया जाता?


इस वर्ष पहली बार हिंदी दिवस के अवसर पर देश के प्रमुख समाचारपत्रों में विज्ञापन प्रकाशित किए गए हैं । आपका कहना सही है हमें और प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है । आपकी बात पर ध्यान देते हुए मीडिया के माध्यम से राजभाषा कार्यान्वयन के प्रति चेतना जागृत करने का प्रयास अवश्य करेंगे ।


छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को राजभाषा कर्मियों उचित तरीके से लागू न किए जाने पर वेतनामान की विसंगतियों को लेकर देश भर में राजभाषा अधिकारियों में गहरा असंतोष दिखाई दे रहा है, क्या आपने इसके लिए कोई कार्रवाई की?


मुझे इस बात की कोई जानकारी नहीं है । और न ही मुझे इस संबंध में कोई शिकायत या प्रतिवेदन प्राप्त नहीं हुआ । यदि ऐसी कोई बात हमारी जानकारी में आएगी तो उचित कार्रवाई अवश्य की जाएगी ।

संयुक्त क्षेत्रीय राजभाषा सम्मेलन का शुभारंभ


हिंदी की स्वीकार्यता बढ़ रही है : डॉ. शकील अहमद


(प्रकाश जैन, हैदराबाद)


भाषा एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा नहीं करती, बल्कि एक दूसरे की पूरक होती है । प्रेम, प्रोत्साहन एवं सद्भावना से राजभाषा हिंदी के प्रगामी प्रयोग को कार्यान्वित करना हमारा कर्तव्य है । धीरे-धीरे देश भर में हिंदी भाषा की स्वीकार्यता बढ़ रही है । राजभाषा विभाग ने तमिलनाडु में सम्मेलन का आयोजन कर हमारे देश की एकता की कड़ी को मज़बूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । उपरोक्त उद्गार गृह राज्य मंत्री डॉ. शकील अहमद ने राजभाषा विभाग के दक्षिण व दक्षिण पश्चिम क्षेत्रीय कार्यन्वयन कार्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयुध निर्माणी, अरुवंकाडु (ऊटी) में आयोजित क्षेत्रीय राजभाषा सम्मेलन एवं शील्ड वितरण समारोह में बकौल मुख्य अतिथि व्यक्त की है ।
पहाड़ों की रानी ऊटी में हरी भरी वादियों के बीच स्थित अरुवंकाडु स्थित आयुध निर्माणी के सांस्कृतिक भवन में आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन में आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, पांडिच्चेरी व लक्ष्यद्वीप में स्थित सरकारी विभागों, बैंकों व सार्वजनिक उपक्रमों के वरिष्ठ अधिकारियों तथा राजभाषा अधिकारियों ने इस सम्मेलन में अपनी सहभागिता दर्ज कराई ।
राजभाषा के उत्कृष्ट कार्यान्वयन हेतु दिए जानेवाले पुरस्कारों में दक्षिण क्षेत्र के अंतर्गत मुर्गीपालन परियोजन, हैदराबाद, प्रतिभूति मुद्रणालय, हैदराबाद, राष्ट्रीय कैडेट कोर, पावरग्रिड कार्पोरेशन आफ इंडिया, हैदराबाद, भारतीय कपास निगम लिमिटेड, अदिलावाद, भारत संचार निगम लिमिटेड, विजयवाडा, यूनियन बैंक आफ इंडिया, विशाखपट्णम, बैंक आफ इंडिया, हैदराबाद, सिड्बी, हैदराबाद, बैंक नराकास मंगलूर, बैंगलूर व हैदराबाद को शील्ड प्रदान किए गए ।
इस अवसर पर राजभाषा विभाग की संयुक्त सचिव पी.वी. वल्सला जी. कुट्टी ने कहा कि जो कार्यालय एवं संस्थान राजभाषा कार्यान्वयन में अभिरुचि दिखाते हैं उन्हें प्रोत्साहन देने के लिए राजभाषा विभाग शील्ड प्रदान करता है । साथ ही ऐसे सम्मेलन के आयोजन के माध्यम से राजभाषा कार्यान्वयन से जुड़े पूरे परिवार के सभी सदस्यों को एक दूसरे से मिलने का अवसर भी मिलता है । हिंदी प्रदेश के लोग अक्सर यह कहते हैं कि हिंदीतर (अहिंदी) प्रदेशों में हिंदी में कार्य करने में बहुत कठिनाई है लेकिन मैं इसे हिंदी प्रदेश के लोगों द्वारा हिंदी में काम न करने का बहाना मानती हूँ । मैंने दो साल में यह देखा है कि अहिंदी प्रदेश में ही राजभाषा कार्यान्वयन का काम सुचारू रूप से हो रहा है । जिस प्रकार पानी में उतरे बिना तैरना सीख नहीं सकते उसी प्रकार भाषा के प्रयोग किए बगैर उसे नहीं सीख सकते हैं । उन्होंने अपने उद्बोधन में स्पष्ट किया कि एक विदेश भाषा (अंग्रेजी) के जरिए हमारी सभ्यता, संस्कृति व विरासत को बचाना, उसे विकसित करना हम पर भारी पड़ सकता है । श्रीमती वल्सला कुट्टी ने यह भी कहा कि पिछले आठ सम्मेलन में से छः सम्मेलनों में गृह राज्य मंत्री अपनी उपस्थित होकर राजभाषा की गरिमा बढ़ाई है । उन्होंने यह भी कहा कि डॉ. शकील अहमद भी इसी प्रकार राजभाषा कार्यान्वयन में अपनी दिलचस्पी दिखाते रहे हैं ।
इस अवसर पर आयुध निर्माणी के महाप्रबंधक वाई.आर. जयसिम्हा, अपर महाप्रबंधक लियो ए. जेराल्ड, राजभाषा विभाग के निदेशक (कार्यान्वयन) बी. आर. शर्मा, निदेशक (तकनीक) केवल कृष्ण भी उपस्थित थे । उद्घाटन सत्र के दौरान राजभाषा विभाग के तकनीकी प्रकोष्ठ, सी-डैक, अक्षर नवीन, एच.सी.एल, मांटेग कम्यूनिकेशन्स द्वारा हिंदी में कार्य करने हेतु विकसित विभिन्न साफ्टवेयरों की जानकारी दी गई । धन्यवाद ज्ञापन विश्वनाथ झा, उप निदेशक (कार्यान्वयन) द्वारा दिया गया ।

Thursday, October 9, 2008

विजयदशमी की शुभकामनाएँ


विजयदशमी पर्व के शुभ अवसर पर
युग मानस के समस्त पाठकों, लेखकों एवं हितैशियों को
हार्दिक शुभकामनाएँ ।

Wednesday, October 1, 2008

छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के आलोक में ...

राजभाषा-कर्मी त्रिशंकु में...
छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के लाभ पाने से सैकडों राजभाषा कर्मी वंचित
- डॉ. सी. जय शंकर बाबु

“राष्ट्र की पहचान मानी जानी वाली हिंदी, जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ की अधिकारिक भाषा भी बनाने की कोशिशों भी जारी हैं, ऐसी भाषा को भारत सरकार के कार्यालयों में सरकारी कामकाज में प्रयोग को बढ़ावा देने एवं प्रचार-प्रसार कार्य में पूरी निष्ठा के साथ संलग्न हिंदी कर्मियों को न्याय नहीं मिलना तथा बराबर उपेक्षा के शिकार होना पड़ना निश्चय चिंताजनक है । उपेक्षा, अवहेलना के शिकार इन हिंदी कर्मियों के हित में सोचकर न्यायमूर्ति श्री कृष्ण की अध्यक्षता वाला छठा वेतन आयोग ने इस भांति इस वर्ग का हित करने की कोशिश की है जैसे द्रौपदी के चीर हरण के समय श्रीकृष्ण ने उनकी रक्षा की थी । आयोग ने सचिवालयों तथा अधीनस्थ कार्यालयों के हिंदी कर्मियों को समान वेतना की सिफारिश की है । इससे वेतनमानों में बराबरी की संभावना का रास्ता खुल गया है । पदोन्नतियों के संबंध में या मंत्रालयों, विभागों में अलग हिंदी कैडर के गठन के संबंध में अभी कार्यवाही शेष रह गई है । सरकार की नीतियाँ सदा अपने कर्मचारियों को समानता का अवसर देने की ही रही हैं । हिंदी कर्मियों को पदोन्नतियों के अवसर उपलब्ध कराने के संबंध में प्रधान मंत्री की अध्यक्षता वाली केंद्रीय हिंदी समिति तथा गृह मंत्री की अध्यक्षता वाली संसदीय राजभाषा समिति की सिफारिशों के आधार माननीय राष्ट्रपति महोदय की स्वीकृति के बाद भी इतने समय से कोई उचित कार्रवाही नहीं होना अफ़सोस की की बात है ।

लंबी अवधि से हो रही इस उपेक्षा को समाप्त करने की दिशा में सचिवालय के हिंदी कर्मियों तथा अधीनस्थ कार्यालयों के हिंदी कर्मियों के वेतनमानों में बराबरी की तरफ़दारी करने की सिफारिशों के द्वारा छठे वेतन आयोग ने तो शरुआती पहल की है । इस अनुकूल परिणाम का स्वागत करने के साथ-साथ अब होना यह चाहिए कि इन सिफ़ारिशों को लागू करने का प्रयास करने के साथ-साथ लंबी अवधि की इस समस्या को हल करने के लिए समन्वित उपाय भी ढूंढ़ने की आवश्यकता है । अखिल भारतीय स्तर पर राजभाषा संवर्ग बनाने का प्रयास अवश्य किया जाना चाहिए । इस कार्रवाई को अलग-अलग मंत्रालयों एवं विभागों के भरोसे छोड़ने से यों तो यथास्थिति बनी रहने का अथवा किन्हीं एकाध मंत्रालयों में ही ऐसा कैडर का गठन होकर अन्य मंत्रालयों, विभागों में नहीं होने से पुनः विसंगतियों खतरा उत्पन्न होगा । इस समस्या का समाधान इस संवर्ग के गठन के लिए एक अलग स्वतंत्र मंत्रालय या विभाग के नियंत्रण में समूचे काडर को संरक्षण देना की योजना बनाना समय की मांग है । हिंदी की श्रीवृद्ध हेतु किए जाने वाले प्रयासों के अंतर्गत हिंदी से जुड़े अधिकारियों तथा कर्मचारियों के हितों को भी ध्यान में रखना परम आवश्यक है । आज सूचना-क्रांति की उपस्थिति में कोई भी कार्य असंभव या असाध्य नहीं रह गया है । अतः अखिल भारत स्तर पर हिदी कर्मियों के लिए एक संवर्ग का गठन करके इनकी पदोन्नतियों के समुचित अवसर सुनिश्चित करना तथा राजभाषा कार्यान्वयन कार्य को प्रभावी बनाने हेतु अपेक्षित सुविधाएँ एवं साधन उपलब्ध कराने के प्रयास तुरंत किया जाना भी अपेक्षित है । ऐसे प्रयासों के बाद ही संयुक्त राष्ट्र संघ की अधिकारिक भाषाओं की सूची में हिंदी को प्रतिष्ठित करने के सपने साकार होने के रास्ते साफ नज़र आ पाएंगे ।”

इन पंक्तियों को युग मानस में यहाँ प्रकाशित लेख में आप सब पढ़ चुके हैं । इस बीच छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को सरकार द्वारा स्वीकृत किए जाने के परिणाम स्वरूप केंद्र सरकार के कर्मियों के वेतनमानों में वृद्धि हुई है । मगर हिंदी कर्मियों को तो त्रिशंकु में ही रहना पड़ा है । छठे वेतन आयोग द्वारा संस्तुत वेतनमान अधिकांश विभागों में हिंदी कर्मियों को अभी तक नहीं दिए गए हैं । विगत 21 वर्षों से अन्याय एवं असंतोष के शिकार राजभाषा हिंदी कर्मियों का उद्धार छठे वेतन आयोग ने अपनी सिफारिशों के अंतर्गत किसी रूप में किया था । मगर उन सिफारिशों को लागू करते समय उपेक्षित वर्ग के रूप में पुनः राजभाषा संवर्ग उभर आया है । हिंदी कर्मियों के असंतोष को दूर करने तथा उनके न्यायोचित वेतन से उन्हें और अधिक समय तक वंचित न रखने के लिए तुरंत कदम उठाने की आवश्यकता है । आशा है, शीघ्र ही राजभाषा हिंदी कर्मियों की आवाज सही जगह तक पहुँचकर उन्हें उचित न्याय मिल पाएगा ।