Wednesday, March 30, 2011

जगदीप दाँगी जी ने जारी किया प्रखर देवनागरी फ़ाँट परिवर्तक का नया वर्जन

इंजी॰ जगदीप सिंह दाँगी जी ने प्रखर देवनागरी फ़ॉन्ट परिवर्तक का नवीन वर्जन 1.1.5.0 जारी किया है, जोकि
उनके द्वारा दी गई सूचना के अनुसार लगभग 254 तरह के विभिन्न ट्रू टाइप एवम् टाइप-१ अस्की/इस्की (8 बिट कोड)
फ़ॉन्ट्स (जैसे कि अर्जुन, अमर उजाला, भास्कर, बराहा देवनागरी, चाणक्य,
डेवलिस, कृतिदेव, नई-दुनिया, शुषा, डीवीटीटी यागेश, श्रीलिपि, योगेश,
युवराज आदि) आधारित देवनागरी पाठ को यूनिकोड आधारित पाठ में बदलने में
पूर्ण सक्षम है।
DEMO Link:-
http://www.4shared.com/file/zXERndaY/PrakharParivartak.html


जगदीप सिंह दाँगी जी द्वारा विकसित अन्य हिन्दी सॉफ़्टवेयर को आप दी जा रही लिंक से
डाउनलोड कर सकते हैं।
http://www.4shared.com/u/5IPlotQZ/DangiSoft_India.html
UniDev:- DangiSoft UniDev (Mangal to Kruti Dev Font Converter for
Devanagari Script) is a latest new UNICODE CONVERTER FOR HINDI,
SANSKRIT, MARATHI, NEPALI and Other DEVNAGRI SCRIPTS. It can easily
convert Mangal Unicode font to Kruti Dev with 100% accuracy.
http://www.4shared.com/file/qs8-bXyl/UniDev.html
Prakhar Devanagari Lipik:- प्रखर देवनागरी लिपिक : (Version 1.0.4.0) -
Remington Based Unicode Typing Tool with 100% accuracy....
http://www.4shared.com/file/NlV7Z_y7/DangiSoft_Prakhar_Devanagari_L.html
DangiSoft Pralekh Devanagari Lipik:- प्रलेख देवनागरी लिपिक (फ़ॉनेटिक
इंगलिश टंकण प्रणाली आधारित) Phonetic English Based Unicode Typing Tool
with 100% accuracy.... Version 1.0.4.0
http://www.4shared.com/file/Ycf9LpP1/DangiSoft_Pralekh_Devanagari_L.html
DangiSoft ShabdaGyaan.zip:- DangiSoft - ShabdaGyaan (Eng.-Hindi-Eng.)
UNICODE BASED A DUPLEX DICTIONARY (OFFLINE TOOL) शब्द-ज्ञान यूनिकोड
आधारित 'अंग्रेज़ी-हिन्दी' डिक्शनरी (ऑफ़लाइन) Version : 1.0.4.0
http://www.4shared.com/file/gUAGYIVO/DangiSoft_ShabdaGyaan.html
अधिक जानकारी के लिए संपर्कसूत्र -
जगदीप सिंह दाँगी
मोबा॰ :- 09826343498
http://www.youtube.com/watch?v=aBLnEwg7UEo&feature=mfu_in_order&list=UL
http://www.katonda.com/interviews/interview-jagdeep-dangi-creator-prakhar/839/2010

Tuesday, March 29, 2011

प्रमोद वर्मा संस्थान का पुनर्गठन

प्रमोद वर्मा संस्थान का हुआ पुनर्गठन



रायपुर । राज्य की साहित्यिक और सांस्कृतिक परंपरा को अखिल भारतीय स्तर पर प्रतिष्ठित करने के संस्थान को पुनर्गठित करते हुए उसे राज्य भर में विस्तारित किया जा रहा है। पुनर्गठित समिति में श्री विश्वरंजन को फिर से अध्यक्ष और डॉ. सुशील त्रिवेदी को वरिष्ठ उपाध्यक्ष चुना गया है। इसी तरह अलावा डॉ. सुधीर सक्सेना, डॉ. बलदेव, अनिल विभाकर, श्री अशोक सिंघई रवि श्रीवास्तव, एच. एस. ठाकुर को उपाध्यक्ष बनाया गया है । मुमताज, डॉ. सुधीर शर्मा व विनोद मिश्र को महासचिव, सुरेंद्र वर्मा सचिव, राजेश सोंथालिया को कोषाध्यक्ष, श्री नासिर अहमद सिंकदर, बी. एल. पाल श्री कमलेश्वर साहू, जी. एस. अहलूवालिया, संजीव ठाकुर को संगठन सचिव, डॉ. जे. आर. सोनी व दीपांशु पाल को संयुक्त सचिव, राम पटवा कार्यालय सचिव, तपेश जैन व नगेंद्र दुबे प्रचार सचिव व जयप्रकाश मानस को पूर्व की तरह कार्यकारी निदेशक बनाया गया है । इसके अलावा नंदकिशोर तिवारी, रमेश अनुपम, डॉ. चित्तरंजन कर, डॉ. वंदना केंगरानी, सुरेश पंडा, डॉ. चेतन भारती, सुशील अग्रवाल, रीना अधिकारी, प्रभा सरस, विद्या गुप्ता, अरुणा चौहान, आर. के. सिंह, अरुणा चौहान, संदीप शर्मा आदि सदस्य बनाये गये हैं ।

टैगोर, फ़ैज़, केदारनाथ अग्रवाल व नेपाली पर राष्ट्रीय आयोजन

प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान इस वर्ष राज्य भर में कई महत्वपूर्ण और राष्ट्रीय आयोजन करेगा । जिसमें फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, केदार नाथ अग्रवाल, नेपाली की जन्म शताब्दी सहित विश्वकवि रवीन्द्र नाथ टैगोर की 150 जन्म वर्ष के अवसर पर क्रमशः भिलाई, कोरबा, रायगढ़ में राष्ट्रीय स्तर का आयोजन करेगा । विगत दिनों संस्थान की साधारण सभा और कार्यकारिणी की हुई बैठक में निर्णय लिया गया है कि 14-15 मई, 2011 को भिलाई में फ़ैज़ और केदारनाथ अग्रवाल की जन्म-शताब्दी अवसर पर अंतरराष्ट्रीय आयोजन होगा जिसमें पाकिस्तान से फ़ैज साहब की बेटी के अलावा कई पाकिस्तान और देश भर के वरिष्ठ बुद्धिजीवी भाग लेंगे । उक्त अवसर पर शायर मुमताज का ग़ज़ल संग्रह, कथाकार विनोद मिश्र द्वारा संपादित छत्तीसगढ़ के कथाकारों का संकलन, कवि रवि श्रीवास्तव की कविता संग्रह, चित्रकार सुनीता वर्मा का रेखाचित्र संग्रह, जयप्रकाश मानस द्वारा संपादित कविता संग्रह विहंग, छतीसगढ़ के समकालीन हिन्दी कवियों का कविता संग्रह, आलोचनात्मक कृति साहित्य की सदाशयता, विश्वरंजन द्वारा संपादित फ़ैज़ और केदारनाथ अग्रवाल एकाग्र, मधुरेश तथा श्रीभगवान सिंह पर केंदित दो एकाग्र डॉ. बलदेव द्वारा संपादित छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह आदि सहित पत्रिका पाण्डुलिपि के चौंथे अंक विमोचन भी होगा । बैठक में यह भी निर्णय लिया गया है कि छत्तीसगढ़ी भाषा के विद्वान लेखक दयाशंकर शुक्ल की कृति का पुनर्प्रकाशन भी किया जायेगा ।

इसके अलावा रायपुर में ख्यात कवि, संपादक-समावर्तन, निरंजन श्रोत्रिय, उज्जैन का कविता पर केंद्रित व्याख्यान 15 अप्रैल, कोरबा में 28-29 मई, 2011 को कविता पर अभिकेंद्रित दो दिवसीय राष्ट्रीय विमर्श और युवा रचना शिविर, 23-24 जुलाई 2011 को संस्थान का वार्षिक आयोजन, रायपुर में 2 अक्टूबर, गांधी जयंती-अहिंसा दिवस पर ‘गांधी की रचनात्मकता’ विषय पर व्याख्यान, रायगढ़ में 29-30 अक्टूबर 2011 को टैगौर की 150 वीं जन्म वर्ष व नेपाली की जन्मशती वर्ष पर दो दिवसीय राष्ट्रीय विमर्श, विश्वप्रसिद्ध शायर फ़िराक़ गोरखपुरी पर दो दिवसीय राष्ट्रीय स्मरण आयोजन 17-18 दिसंबर को किया जायेगा ।

युवा कविता को प्रोत्साहित करने राष्ट्रीय पुरस्कार

अब तक संस्थान द्वारा आलोचना के क्षेत्र में 2 राष्ट्रीय पुरस्कार एवं एक राज्य स्तरीय प्रतिभा सम्मान दिया जा रहा था । नये निर्णायानुसार प्रत्येक वर्ष 40 साल के कम उम्र के एक ऐसे युवा कवि को राष्ट्रीय स्तर पर प्रमोद वर्मा स्मृति सम्मान दिया जायेगा जिसने वर्ष भर की कविताओं में अपने नवाचारी प्रयोग से हिन्दी कविता संसार को नयी दृष्टि देने का प्रयास किया हो । चयनित युवा कवि को 5001 रुपये का नगद पुरस्कार सहित उनकी किसी काव्य-कृति का प्रकाशन भी संस्थान के सहयोग से किया जायेगा ।

अनाथ बच्चों के हॉस्टल निर्माण के लिए राहत फतेह अली का चैरिटी शो

संस्थान द्वारा से अक्टूबर माह में सामाजिक भूमिका के तहत गरीब, अनाथ, नक्सली हिंसा में मारे गये पिता के आश्रित बच्चों (कुल 50 विद्यार्थियों) की उच्च शिक्षा और सांस्कृतिक उन्नयन के लिए रायपुर में एक होस्टल निर्माण में के लिए चैरिटी शो का आयोजन किया जायेगा जिसमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित गायक राहत फतेह अली (पाकिस्तान), सुप्रसिद्ध शायर जावेद अख्तर(मुंबई), छोटे उस्ताद जयंत सिंह (पूना) जैसे कलाकारों द्वारा सांगीतिक प्रस्तुति दी जायेगी । इसके अलावा राज्य भर के रचनाकारों के रायपुर प्रवास पर रात्रि विश्राम सहित साहित्यिक गतिविधियों के संचालन के लिए प्रमोद वर्मा स्मृति हिन्दी भवन भी बनाया जायेगा ।

बैठक के अंत में देश के ख्यात आलोचक, प्रगतिशील वसुधा के संपादक व शिक्षाविद् डॉ. कमला प्रसाद को भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई।

रायपुर से राम पटवा की रपट

Tuesday, March 22, 2011

प्रमोद वर्मा आलोचना सम्मान कमला प्रसाद को



3 रा प्रमोद वर्मा आलोचना सम्मान

कमला प्रसाद को



रायपुर । प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था ‘प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान’ द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर आलोचना के लिए दिया जानेवाला महत्वपूर्ण सम्मान जाने-माने आलोचक डॉ. कमला प्रसाद, भोपाल को दिये जाने का निर्णय लिया गया है । आज रायपुर में इसकी घोषणा की गई । चयन समिति में केदार नाथ सिंह, दिल्ली, श्री गंगाप्रसाद विमल, दिल्ली, डॉ. धनंजय वर्मा, भोपाल, श्री विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, गोरखपुर व संस्थान के चैयरमैन विश्वरंजन और संयोजक जयप्रकाश मानस थे । यह सम्मान उन्हें आगामी 14-15 मई को भिलाई में फ़ैज़ अहमद फ़ैज और केदारनाथ अग्रवाल पर होनेवाले राष्ट्रीय विमर्श के अवसर पर प्रदान किया जायेगा । ज्ञातव्य हो कि वरिष्ठ वर्ग में यह सम्मान अब तक श्रीभगवान सिंह, भागलपुर और श्री मधुरेश, बरेली तथा युवा वर्ग में यह सम्मान श्री कृष्णमोहन, वाराणासी तथा ज्योतिष जोशी, दिल्ली को प्राप्त हो चुका है । इस सम्मान के तहत 21 हज़ार की नगद राशि, प्रतीक चिन्ह, शाल, श्रीफल तथा प्रमोद वर्मा समग्र भेंट किया जाता है ।

14/02/1938, सतना (म.प्र.) में जन्मे श्री कमला प्रसाद एम.ए., पीएच. डी.व सागर विश्वविद्यालय से डी. लिट हैं । उनकी अन्य प्रकाशित कृतियाँ हैं - साक्षात्‍कार- वार्तालाप, बच्चों की पुस्तक- जंगल बाबा, विनिबंध- यशपाल, अवधेश प्रताप सिंह । उन्हें इसके पूर्व म. प्र. सा‍हित्य अकादमी का नंददुलारे वाजपेयी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है । वे वर्तमान में एल-31, निर्मला नगर, मौसम कॉलोनी के पास भदभदा रोड, भोपाल, म. प्र. में रहकर सृजनरत हैं । उनका टेलीफोन है :91-755-2772249, 91-9425013789 और ईमेल है : vasudha.hindi@gmail.com

अनुशंसा
प्रमोद वर्मा आलोचना सम्मान की चयन समिति द्वारा सर्वसम्मति ने निर्णय लिया गया कि इस वर्ष का आलोचना सम्मान (वरिष्ठ)डॉ. कमला प्रसाद को दिया जाये -

डॉ. कमला प्रसाद आधुनिक हिन्दी की प्रगतिशील परंपरा के महत्वपूर्ण और सुप्रसिद्ध आलोचक हैं। जिनकी साहित्यिक उपस्थिति पूरे हिंदी क्षेत्र में जानी-पहचानी जाती है । श्री कमला प्रसाद ने आलोचना के अलावा साहित्य के जिन तीन प्रमुख क्षेत्रों – अकादमिक दक्षता, संपादन और संगठनात्मक कौशल में जिस तरह अपना योगदान दिया है वह विशेष रूप उल्लेखनीय और उनके व्यक्तित्व का असाधारण पहलू है ।
साहित्य-शास्त्र, छायावाद-प्रकृति और प्रयोग, छायावादोत्तर काव्य की सामाजिक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, दरअसल, साहित्य और विचारधारा, रचना और आलोचना की द्वंद्वात्मकता, आधुनिक हिंदी कविता और आलोचना की द्वंद्वात्‍मकता, समकालीन हिंदी निबंध, मध्ययुगीन रचना और मूल्य, कविता तीरे, आलोचक और आलोचना जैसी कृतियों से उनकी प्रतिबद्ध दृष्टि और मानवीय मूल्यों के प्रति निष्टा, गहरी निर्णय क्षमता व व्यापकता चरितार्थ होती है ।
उन्होंने अवधेश प्रताप विश्वविद्यालय, रीवां में पहले प्राध्यापकय और तत्पश्चात अध्यक्ष के रूप बहुमूल्य अकादमिक भूमिका का निर्वाह कर नयी पीढ़ी का सशक्त मार्गदर्शन किया है ।
उनके कुशल संयोजन एवं संपादन में निकलने वाली पत्रिका वसुधा भारतीय मनीषा के लिए एक ज़रूरी पत्रिका के रूप में सिद्ध हुई है । इन सारे और बहुकोणीय क्षेत्रों में सतत् संलग्न रहने के अलावा रचनात्मक लेखन कार्यों में भी वे निरंतर सक्रिय हैं ।
चयन समिति ने सर्वसम्मति निर्णय लिया गया हैं कि प्रमोद वर्मा संस्थान द्वारा स्थापित अखिल भारतीय स्तर का तीसरा और वर्ष 2010-2011 का ‘प्रमोद वर्मा स्मृति आलोचना सम्मान’ ख्यात आलोचक डॉ. कमला प्रसाद, भोपाल को प्रदान किया जाये ।

निर्णायक मंडल-
सर्वश्री केदार नाथ सिंह, श्री गंगाप्रसाद विमल, डॉ. धनंजय वर्मा, विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, विश्वरंजन
संयोजक –
जयप्रकाश मानस

Thursday, March 17, 2011

होली को बदरंग होने से बचाएं




होली को बदरंग होने से बचाएं


-लोकेन्द्र सिंह राजपूत




इंदौर की होली भा रत एक उत्सवप्रिय देश है। यहां उत्सव मनाने के लिए दिन कम पड़ जाते हैं, अब तो और भी मुसीबत है। बाजारवाद के प्रभाव से कुछ विदेशी त्योहार भी इस देश में घुस आए हैं। खैर अपन ने तो इनका विरोध करने का शौक नहीं पाला है, अपन राम तो पहले अपनी ही चिंता कर लें तो ज्यादा बेहतर होगा। अक्सर लोगों के श्रीमुख से सुनता हूं कि अरे यार अब त्योहारों में वो मजा नहीं रहा। लगता ही नहीं दीपावली है, होली है। बहुत दु:ख होता है यह सुनकर। अब तो कुछेक मीडिया संस्थान और सामाजिक संगठन भी भारतीय त्योहारों का मजा खराब करने पर तुल गए हैं। पता नहीं इन्हें क्या मजा आता है। नवदुर्गा और गणेशजी नहीं बिठाओ, क्योंकि इन्हें विसर्जित करने पर नदी-तालाब गंदे हो जाते हैं। दीपावली न मनाओ, क्योंकि कई तरह का प्रदूषण फैलता है। तेल और घी खाने की जगह , जला दिया जाता है। अब फागुन आ गया है, होली नजदीक है। मन फागुनी रंग में सराबोर होता, लोग रंग और पिचकारी तैयार करते कि इससे पहले कुछेक मीडिया घरानों और संगठनों ने मोर्चा संभाल लिया है, लोगों को बरगलाना शुरू कर दिया। सिर्फ टीका लगाकर होली खेलना है, जल बचाना है। पर्यावरण को संवारना है। जैसे होली खेलने वाले तो प्रकृति के दुश्मन हैं। जबकि लोग सब नफा-नुकसान जानते हैं। उनके पुरखे वर्षों से होलिका जला रहे हैं और होली खेल रहे हैं। उन्हें पता है कि होली में बुराई जलाना है और होली खेल कर आपसी बैर भुलाना है। वैसे भी हमारे बुजुर्गों ने त्योहारों की व्यवस्था बहुत ही सोच-समझकर और वैज्ञानिक तरीके से की है। जाड़े में घर में बहुत कुछ फालतू सामान जमा हो जाता है। सूखी और खराब लकड़ी जो अलाव के लिए एकत्र की थी वह भी घर में पड़ी होती है। इन सबकी साफ-सफाई की दृष्टि से फागुन में होलिका दहन की व्यवस्था की गई है। होलिका दहन से सात-आठ दिन पहले डाड़ी लगाई जाती है। उस दिन से गांववासी या नगरवासी उस स्थान पर अपने घर का कचरा डालना शुरू करते हैं, बाद में उसी कचरे की होलिका जलाई जाती है। हमारे पुरखों ने हमसे ये कभी नहीं कहा कि होली जलाने के लिए हरे-भरे पेड़ काटो। लाल-पीले गाल किए बिना भी भला होली का कोई मजा है। जरा सोचो तिलक लगाकर भी भला होली खेली जा सकती है, तिलक तो हम रोज ही लगाते हैं। फाग और होली का असली मजा तो रंग से सराबोर होने के बाद ही है। जब तक पिचकारी की धार आके न छू जाए होली का आनंद ही नहीं। वैसे भी हमारे मध्यप्रदेश और सीमा से लगे ब्रज व वृन्दावन की ख्याति तो होली से ही है। ब्रज में जब तक कान्हा की पिचकारी न चले गोपियों को चैन कहां, वहीं वृन्दावन में राधा की बाल्टी भर रंग से तर होने को सांवरिया वर्ष भर इंतजार करता है। ब्रज और वृन्दावन में होली खेलने के लिए देशभर से ही नहीं सुदूर मुल्कों से भी लोग आते हैं। उन्हें खींचकर लाता है हवा में उड़ता गुलाल और इधर-उधर से पिचकारियों से निकली रंगीन धार। सूखी होली उन्हें क्या लुभाएगी। इधर, मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर की होली भी लाजवाब होती है। इंदौर की होली भी ब्रज और बरसाने से उन्नीस नहीं पड़ती। राजवाड़ा में खूब हुजूम उमड़ता है। इंदौर की होली की खास बात है गुलाल की तोप। गुलाल की तोप जब चलती है तो नीला अंबर इंद्रधनुषी हो जाता है। बड़े-बड़े पानी के टैंकरों में रंग भरा रहता है। जिसे पाइप से होली के मस्तानों की टोली पर छोड़ा जाता है। इस होली के आनंद की अनुभूति इस आलेख को पढ़कर नहीं की जा सकती, इसके लिए तो मैदान में आना ही पड़ेगा। दोस्तों त्योहार को बदरंग होने से बचाना है तो फिर किसी के बरगलाने में न आना। धूम से होली खेलना। और हां पानी बचाने के कई उपाय हैं हमें उन पर ध्यान देना होगा, क्योंकि जल ही जीवन है और यह संकट में है। लेकिन, हम अपने त्योहारों को बदरंग नहीं होने देंगे यह संकल्प करना होगा।

Sunday, March 13, 2011

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर पोर्टब्लेयर में संगोष्ठी आयोजित


‘अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ (8 मार्च) पर पोर्टब्लेयर में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का शुभारम्भ अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवाए एवं चर्चित साहित्यकार कृष्ण कुमार यादव ने दीप जलाकर किया। श्री यादव ने अपने उदबोधन में कहा कि - ‘‘नारी ही सृजन का आधार है और इसके विभिन्न रूपों को पहचानने की जरूरत है। अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस इस तथ्य को उजागर करता है कि विश्व शान्ति और सामाजिक प्रगति को कायम रखने तथा मानवाधिकार और मूलभूत स्वतंत्रता को पूर्णरूप से हासिल करने के लिए महिलाओं की सक्रिय भागीदारी, समानता और उनके विकास के साथ-साथ महिलाओं के योगदान को मान्यता प्रदान करना भी अपेक्षित है।‘‘ संगोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि एवं युवा लेखिका सुश्री आकांक्षा यादव ने महिला सशक्तीकरण को सिर्फ उपमान नहीं बल्कि एक धारदार हथियार बताया। बदलते परिवेश में समाज में महिलाओं की भूमिका को महत्वपूर्ण बताते हुए उन्होंने कहा कि महिलाएं आज राजनीति, प्रशासन, समाज, संगीत, खेल-कूद, मीडिया, कला, फिल्म, साहित्य, शिक्षा, ब्लागिंग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, अन्तरिक्ष सभी क्षेत्रों में श्रेष्ठ प्रदर्शन कर रही है. सदियों से समाज ने नारी को पूज्या बनाकर उसकी देह को आभूषणों से लाद कर एवं आदर्शों की परंपरागत घुट्टी पिलाकर उसके दिमाग को कुंद करने का कार्य किया, पर नारी की शिक्षा-दीक्षा और व्यक्तित्व विकास के क्षितिज दिनों-ब-दिन खुलते जा रहे हैं, जिससे तमाम नए-नए क्षेत्रों का विस्तार हो रहा हैं।

पोर्टब्लेयर प्रधान डाकघर की पोस्टमास्टर श्रीमती एम. मरियाकुट्टी ने कहा कि-'' संविधान में महिला सशक्तीकरण के अनेक प्रावधान हैं पर दूरदराज और ग्रामीण स्तर तक भी लोगों को उनके बारे में जागरुक करने की जरूरत है। सुश्री सुप्रभा ने इस अवसर पर नारी की भूमिका के अवमूल्यन के लिए विज्ञापनों और चन्द फिल्मों को दोषी ठहराया जो नारी को एक उत्पाद के रूप में प्रस्तुत करते हैं। सुश्री शांता देब ने कहा कि जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ भगवान वास करते हैं, फिर भी नारी के प्रति समाज का रवैया दोयम है। सुश्री जयरानी ने उन महिलाओं पर प्रकाश डाला जो उपेक्षा के बावजूद समाज में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाने में सफल हुईं। इसके अलावा अन्य तमाम लोगों ने भी इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का संचालन जयरानी ने किया और आभार शांता देब ने व्यक्त किया। कार्यक्रम में तमाम महिलाएं और प्रबुद्ध-जन उपस्थिति रहे।

आकांक्षा यादव
टाइप v बंगला, हार्टीकल्चर रोड, हैडो,
पोर्टब्लेयर, अंडमान व निकोबार द्वीप समूह -७४४१०२

Saturday, March 12, 2011

बाबा पर दो दिवसीय राष्ट्रीय विमर्श सम्पन्न






बाबा नागार्जुन गिरोहों में नहीं, जनता में क्रांति चाहते थे – अजय तिवारी

बाबा पर दो दिवसीय राष्ट्रीय विमर्श सम्पन्न

बिलासपुर । प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान द्वारा बाबा नागार्जुन की जन्मशताब्दी वर्ष के अवसर पर राष्ट्रीय संगोष्ठी विमर्श ‘फिर फिर नागार्जुन’ का दो दिवसीय का आयोजन अपने समय के महत्वपूर्ण कवि श्रीकांत वर्मा और आलोचक प्रमोद वर्मा की नगरी बिलासपुर के राघवेन्द्र सभागार में 27-28 फरवरी को ऐतिहासिक सफलता के साथ संपन्न हुआ ।

संस्थान वाद, गुट, आग्रहों से परे - विश्वरंजन

अपने स्वागत भाषण में संस्थान के अध्यक्ष श्री विश्वरंजन ने बाबा नागार्जुन की रचनाओं के बहाने उनकी वास्तविक जनतांत्रिक मूल्यों की चिंता दृष्टि एवं सृष्टि, शिल्प, भाषा का ज़िक्र करते हुए कहा कि नागार्जुन की कविता के समक्ष लगभग सारी काव्य-सिद्वियाँ बौनी प्रतीत होती है। उन्होंने यह भी कहा कि हमारा संस्थान प्रजातांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्व है किन्तु उसे न किसी से परहेज़ है, न ही गुरेज़ । संस्थान के कार्यक्रम किसी भी वाद, गुट, संगठन से परे है। संस्थान हर तरह के विचारधारों पर विश्वास करनेवाले साहित्यकारों को सम्मान व सम्यक अवसर देता है। उन्होंने बहुत ज़ल्द फ़ैज अहमद ‘फ़ैज़’ व केदारनाथ अग्रवाल पर भी राष्ट्रीय आयोजन करने की जानकारी भी दी ।

प्रो. जगमोहन मिश्र का सम्मान

उद्धाटन के पश्चात वयोवृद्ध शिक्षाविद्, लेखक और निबंधकार श्री जगमोहन मिश्र को उनके विशिष्ट योगदान के लिए प्रमोद वर्मा स्मृति सम्मान से साल, श्रीफल व स्मृति चिन्ह भेंटकर सम्मानित किया गया।

8 कविता संग्रहों का पहला सैट लोकार्पित

इस अवसर पर बाबा नागार्जुन पर केंद्रित एकाग्र ‘फिर फिर नागार्जुन’ (संपादक-विश्वरंजन) जारी किया गया साथ ही संस्थान द्वारा प्रकाशित समकालीन हिंदी कविता के महत्वपूर्ण कवियों के कविता संग्रह का पहला सेट जारी किया गया। ये कविता संग्रह है- ‘बेतरतीब’ कवि (प्रभात त्रिपाठी, रायगढ़), ‘सीढ़ी उतरती है अँधेरे गर्भ गृह में’ (विश्वजीत सेन, पटना), ‘भूलवश और जानबूझकर’ (नासिर अहमद सिकंदर, भिलाई), ‘अबोले के विरूद्ध’ (जयप्रकाश मानस, रायपुर), ‘राजा की दुनिया’ (बी.एल.पाल, दुर्ग), ‘किताब से निकलकर प्रेम कहानी’ (कमलेश्वर साहू, दुर्ग), ‘चाँदनी थी द्वार पर’ (सुरेश पंडा,रायपुर)।

इसके अलावा संस्थान द्वारा ही प्रकाशित आलोचनात्मक कृतियों ‘युग की नब्ज़’ (श्रीप्रकाश मिश्र, इलाहाबाद), ‘हिंदी के श्रेष्ठ आख्यानक प्रगीत’ (डॉ. बलदेव, रायगढ़), ‘साहित्य और सहभागिता’ (वारीन्द्र वर्मा, बिलासपुर), ‘समय का सूरज’ (चेतन भारती, रायपुर), इस मौक़े पर संस्थान की त्रैमासिक पत्रिका ‘पाण्डुलिपि’ के तीसरे अंक के साथ-साथ लघुपत्रिका ‘देशज’ (संपादक-अरुण शीतांश) के आलोचना अंक (अतिथि संपादक-जयप्रकाश मानस) व ‘साहित्य वैभव’ (संपादक डॉ. सुधीर शर्मा) का भी विमोचन हुआ ।

विकास के विरोध में हिंसा कहाँ तक वैध है? – अजय तिवारी

उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कर रहे प्रसिद्ध आलोचक अजय तिवारी ने कहा कि नागार्जुन ने विरोध करना सिखाया है। अविवेक, अनीति, अत्याचार जहाँ है वहाँ विरोध है। सरकार और सत्ता का विरोध कभी-कभी सुविधा भी देता है। हिंसा के जवाब में प्रतिहिंसा ज़रूरी है लेकिन विकास के विरोध में हिंसा कहाँ तक वैध है? नागार्जुन ने यही विवेक दिया है कि गिरोहों में नहीं विशाल जनता में क्रांति का बिगुल बजाया जाता है। बाबा ने कहा है कि मैं जनकवि हूँ, हकलाता नहीं, सत्य कहता हूँ। प्रतिहिंसा है स्थायी भाव। हमें जानना चाहिए कि नागार्जुन का देश एवं काल बहुत विस्तृत है। उन्होंने प्रजातंत्र के स्थान पर जनतंत्र शब्द का उपलोग लेखकों को करना चाहिए । प्रजातंत्र में शासन और तंत्र की बू आती है ।

विशिष्ट अतिथि प्रो. गंगा प्रसाद विमल ने कहा कि हम नए विमर्श का सामना करेंगे। लोक की व्यक्ति पर मुहर लगाई है-लोक-अविश्वास बराबर नागार्जुन होता है। उन्होंने बाबा के विभिन्न भाषाओं पर में दीप्त विचार व दर्शन पर विस्तृत चर्चा की।

प्रथम दिवस के तृतीय सत्र (‘बाबा को याद करते हुए’) में आमंत्रित साहित्यकार सर्वश्री श्रीभगवान सिंह, श्रीप्रकाश मिश्र, डॉ. रघुवंशमणि, परितोष चक्रवर्ती, भारत भारद्वाज, रमेश खत्री, अमित झा, डॉ. सी. जय शंकर बाबु, शिवदत्त बाघवेल, श्री आनंद मदोही, डॉ. शैलेन्द्र कुमार त्रिपाठी आदि ने बाबा से जुड़े रोचक और मार्मिक संस्मरण सुनाया । इन संस्मरणों में बाबा के व्यक्तित्व के विभिन्न और महत्वपूर्ण पहलू उजागर हुए।

नागार्जुन करुणा और मानवीय संवेदना के कवि – विजय बहादुर सिंह

अध्यक्ष मंडल से भी रमेश दवे ने कहा कि शब्द पुरूष का शताब्दी वर्ष मनाते हुए भावावेश में आये और तटस्थ हुए बग़ैर जनकवि को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनकी तरह जीने का माद्दा रखें । बाबा के लिए संवेदना को जन की अनुभूतियों में उतार देना ही शर्त है। बाबा आलोचकों की परवाह नहीं करते थे वे जानते थे कि कविता के सही मूल्यांकन का स्त्रोत आखिर जन ही होता है। नागार्जुन की कविता आत्मबोध नहीं संबोध की कविता है। डॉ. अजय तिवारी ने कहा कि उतने अच्छे ढंग से विश्वविद्यालयों जैसी जगहो में भी बातें नहीं की जाती है। कोरा उपदेश पाखंड होता है। नागार्जुन ने विषमता पर ताउम्र कविता लिखीं । वे विषमता का निष्क्रिय विरोध नहीं करते थे। विचार रचना में जितने छिपे हुए आते हैं उतना ही सौदर्य बोध होता है। बिना आत्मसंघर्ष के विवेक जागृत नहीं होता। नागार्जुन विवेक जगाने वाले कवि थे। डॉ. विजय बहादुर सिंह ने अपने उदबोधन में कहा कि भारत की सबसे बड़ी कविता करूण से लिखी गईं है । नागार्जुन करूणा और गहरी मानवीय संवेदना के लेखक है। सत्र के समापन पर स्व. प्रमोद वर्मा की पत्नी डॉ. कल्याणी वर्मा द्वारा धन्यवाद ज्ञापन किया गया।

प्रथम दिवस के अंतिम सत्र ‘वाणी’ में आमंत्रित कवयित्रियों में जया जादवानी, किरण अग्रवाल, मीता दास, प्रभा सरस, विद्या गुप्ता, जया द्विवेदी, रानू नाग, आभा श्रीवास्तव, गीता विश्वकर्मा, सुषमा श्रीवास्तव आदि द्वारा काव्य-पाठ किया गया। संचालन युवा कवि नासिर अहमद सिकंदर ने किया।

भारतीयता का मतलब सिर्फ़ न्याय नहीं होता

दूसरे दिन प्रथम सत्र ‘बाबा का गद्य’ सत्र में द्वारा बाबा की कहानी, उपन्यास, निबंधपत्र आदि गद्यात्मक विधाओं को केंद्र में रखकर आमंत्रित रचनाकारों, आलोचकों द्वारा बातचीत की गई। आलोचक डॉ. प्रफुल्ल कोलख्यान (कोलकाता) ने कहा कि रचनाकार के निर्माण में संपूर्ण समाज का योगदान होता है। कविता के पीछे (गद्य) आख्यान होता है। नागार्जुन के हर कविता में एक गद्य (आख्यान) विचार रहा है। छत्तीसगढ़ी का लेखक संवेदना से छत्तीसगढ़ी ही होता है चाहे वह अन्य किसी भी भाषा में लिखता हो। इसलिए नागार्जुन हिंदी में मैथिली ही लिखते थे। गीतकार डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र (देहरादून) ने बाबा के गद्य के स्त्रोतों पर चर्चा की, राहुल सांस्कृत्यायन से जुड़े होने के कारण उनके गद्य के स्वभाव में आये बदलाव का ज़िक्र भी किया। उन्होंने कहा कि अपनी रचना में नागार्जुन रेणु से एक क़दम भाषा प्रसार में आगे हैं। आलोचक डॉ. देवराज ने कहा कि जन विरोधों को सीधे-सीधे अस्वीकार मत करो, नागार्जुन की कविता एवं गद्य यही सिखाता है। प्रतिरोध को समझदारी से विकसित और विस्तारित करना बाबा सिखाते थे।

आलोचक-कवि श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि रतिनाथ की चाची, कुंभीपाक अपने मूल स्वर में स्त्रीवादी उपन्यास है। युवा आलोचक डॉ. रघुवंश मणि ने अपने उद्बोधन में कहा कि परंपरा का एक तरह से चुनाव होता है भारतीयता का मतलब न्याय नहीं होता है नागार्जुन ने अपने लेखन में भिन्न चुनाव किया। निराला से प्रेरणा ली, निराला को क्रिएट करने का प्रयास किया। यहाँ से नागार्जुन की विचारधारा को समझा जा सकता है। सुपरिचित कवि श्री उद्भ्रांत(दिल्ली) ने कहा कि बाबा की भाषा जन सामान्य की भाषा है अज्ञेय की भाषा नहीं है । युवा आलोचक पंकज पराशर (अलीगढ़) ने अपने वक्तव्य में बाबा की हिंदी गद्य रचनाओं के अन्य भाषा में लिखी गई रचनाओं की महत्ता को विद्यापति, ग़ालिब लेखक के बहाने आँकने का प्रयास किया।

इस सत्र में समीक्षक राजेन्द्र उपाध्याय(दिल्ली), आलोचक डॉ. बल्देव(रायगढ़), युवा कवि अरूण शीतांश(आरा) भी ने अपने विचार रखे। अजय तिवारी ने कहा कि उनकी गद्य रचना नि:संग है और कुछ बिंदुओं को छोडक़र रामविलास शर्मा से निकट है। नागार्जुन मैथिली को अलग भाषा मानते हैं लेकिन शर्मा हिंदी की भाषा । नागार्जुन अपनी रचना में काल्पनिक समाधान की ओर नहीं जाते इसलिए नागार्जुन के उपन्यास प्रासंगिक रहेंगे। नागार्जुन आधुनिक हैं, कबीर प्रगतिशील थे परंतु आधुनिक नहीं है। विजय बहादुर सिंह ने हिंदी कथा साहित्य के मूर्धन्य साहित्यकारों के बहाने से बाबा के उपन्यासों पर बात की। वे बाबा के गद्य पर बात करते हुए देश के प्रतिष्ठित रचनाकारों की रचनात्मकता का भी स्मरण कराते रहे। उन्होंने कहा कि बाबा का उपन्यास ‘जमनिया का बाबा’ गढ़ाधीशों के ख़िलाफ़ है तो ‘दुख:मोचन’ में राजनीति व आदर्शवाद सब कुछ है। उन्होंने ‘बलचनमा’ व ‘उग्रतारा’ पर भी विस्तार से अपनी बात रखी। इस सत्र का संचालन आलोचक और कवि डॉ. प्रेम दुबे ने किया आभार प्रदर्शन नवभारत बिलासपुर के वरिष्ठ पत्रकार श्री सईद खान द्वारा किया गया।

द्वितीय सत्र प्रारंभ करने के पूर्व दिवंगत हुए देश और राज्य भर के उपस्थित प्रमुख साहित्यकारों द्वारा भवदेव पांडेय, सत्येंद्र सिंह नूर, विनोद तिवारी को मौन श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

स्मरण सत्र (बाबा को याद करते हुए) में उनके सानिध्य में बिताए क्षणों को उपस्थित साहित्यकारों ने याद किया। डॉ. पालेश्वर शर्मा, प्रभात त्रिपाठी, विजय बहादुर सिंह, रमेश दबे, मुमताज, रवि श्रीवास्तव, नंद किशोर तिवारी, महावीर अग्रवाल, रघुवंश मणि, श्रीप्रकाश मिश्र, उदभ्रांत, डॉ.देवराज के संस्मरणों में बाबा पुन: जीवित हो उठे।

50 कवियों ने किया कविता पाठ

रात्रि ‘वाणी’ के अंतर्गत आमंत्रित कवियों- डॉ. बुद्विनाथ मिश्र, उदभ्रांत, रमेश खत्री, डॉ. देवराज, विश्वरंजन, परितोष चक्रवर्ती, श्रीप्रकाश मिश्र, डॉ.शैलेंद्र कुमार त्रिपाठी, रघुवंश मणि, प्रफुल्ल कोलख्यान, प्रभात त्रिपाठी, भारत भरद्वाज, डॉ. सुधीर सक्सेना, विमलेश त्रिपाठी, अरूण शीतांश, शिवदत्त बावलकर, डॉ.चितरंजन कर, डॉ.बलदेव, डॉ.अजय पाठक, मुमताज, सतीश जायसवाल, डॉ. राजेन्द्र सोनी, रामकुमार तिवारी, वंदना केंगरानी , अब्दुल सलाम कौसर, बी.एल.पाल, जयप्रकाश मानस, कमलेश्वर साहू, चेतन भारती, आदि ने विभिन्न रंगों और शिल्पों वाली कविताओं का पाठ किया ।

देश भर से पधारे लगभग 300 साहित्यकारों एवं साहित्य प्रेमियों की निंरतर और सफलता उपस्थिति वाले इस दो दिवसीय आयोजन में संस्थान के कार्यकारी निदेशक जयप्रकाश मानस, सचिव सुरेंद्र वर्मा, कोषाध्यक्ष राजेश सोंथलिया, राम पटवा, बेणुधर देवांगन, हरि नायक, विनय सिंह ठाकुर, लीलाधर पटेल, आदि का उल्लेखनीय सहयोग रहा ।

राम पटवा की रपट

Wednesday, March 9, 2011

फ़ैज़ और केदारनाथ अग्रवाल पर आलेख आमंत्रित






रायपुर । यह वर्ष देश के महत्वपूर्ण कवियों की जन्मशताब्दी वर्ष है । इसी परिप्रेक्ष्य में प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान, रायपुर, छ.ग. द्वारा स.ही. वात्स्यायन ‘अज्ञेय’, शमशेर बहादुर सिंह, बाबा नागार्जुन पर केंद्रित
राष्ट्रीय एवं सफलतम आयोजन के पश्चात अब फ़ैज़ अहमद ‘फ़ैज़’ और केदारनाथ अग्रवाल के समग्र योगदान को याद करने के लिए लौह नगरी भिलाई, दुर्ग में आगामी 14-15 मई को दो दिवसीय राष्ट्रीय आयोजन सुनिश्चित किया जा रहा है । प्रथम दिवस फ़ैज़ और दिव्तीय दिवस केदार पर समर्पित होगा । प्रत्येक दिन दो-दो सत्रों में देश और विदेश के वरिष्ठ रचनाकार क्रमशः फ़ैज़ और केदारजी के समग्र लेखन, उनके लेखन की मूल चिंताओं सहित व्यक्तित्व पर भी विशेष विमर्श कर सकेंगे । यदि प्रतिभागी लेखक उक्त संगोष्ठी में उनके किसी ख़ास पहलू (विषय)पर विमर्श करना चाहते हैं तो उसकी जानकारी दे सकते हैं ।

संस्थान द्वारा इन दोनों विभूतियों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केंद्रित एक-एक ‘एकाग्र’ का प्रकाशन/विमोचन भी उक्त मौक़े पर किया जायेगा । इन दोनों ‘एकाग्रों’ के लिए भी मित्र/अमित्र लेखक हमें फ़ैज़ और केदारजी से जुड़े संस्मरण, पत्राचार, आलेख, समीक्षा, विमर्शात्मक आलेख 15 अप्रैल, 2011 के पूर्व जयप्रकाश मानस (कार्यकारी निदेशक), प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान, एफ-3, छगमाशिम, आवासीय परिसर, पेंशनवा़ड़ा, रायपुर, छत्तीसगढ़-492001, मो. - 94241-82664,
ई-मेल-pandulipipatrika@gmail.com फैक्स- 0771-4240077 पर उपलब्ध करा सकते हैं ।

इस ख़ास मौक़े पर संस्थान द्वारा प्रकाशित उक्त दोनों एकाग्रों के विमोचन के साथ संस्थान की त्रैमासिक पत्रिका पाण्डुलिपि-4, ‘वाणी’ के अंतर्गत रात्रिकालीन आयोजन में फ़ैज़ एवं केदार नाथ अग्रवाल तथा हिन्दी के प्रतिष्ठित कवियों का कविता पाठ भी देश भर के चुनिंदे लेखकों-कवियों-आलोचकों के विशेष सोहबत में संपन्न होगा।

प्रतिभागियों की प्रतिबद्धता एवं पक्षधरता पर संस्थान को कोई संदेह नहीं है । संस्थान अपने मंच से रचनाकारों की जनतांत्रिक बातों उन तक पहुँचाना चाहता है जिन तक प्रतिबद्ध लेखकों की बात पहुँचनी चाहिए, क्योंकि संस्थान का विश्वास है कि फ़ैज़ और केदार जी दोनों ही किसी खाँचे से मुक्त और
साहित्य के समृद्ध रचनाकारों में सर्वोपरि रहे हैं ।

नरसिंहगढ़ का फुन्सुक वांगडू 'हर्ष गुप्ता'

हर्ष गुप्ता


नरसिंहगढ़ का फुन्सुक वांगडू 'हर्ष गुप्ता'

- लोकेन्द्र सिंह राजपूत, ग्वालियर

खूबसूरत और व्यवस्थित खेती का उदाहरण है नरसिंहगढ़ के हर्ष गुप्ता का फार्म। वह खेती के लिए अत्याधुनिक, लेकिन कम लागत की तकनीक का उपयोग करता है। जैविक खाद इस्तेमाल करता है। इसे तैयार करने की व्यवस्था उसने अपने फार्म पर ही कर रखी है। किस पौधे को किस मौसम में लगाना है। पौधों के बीच कितना अंतर होना चाहिए। किस पेड़ से कम समय में अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है। किस पौधे को कितना और किस पद्धति से पानी देना है। इस तरह की हर छोटी-बड़ी, लेकिन महत्वपूर्ण जानकारी उसके दिमाग में है। जब वह पौधों के पास खड़ा होकर सारी जानकारी देता है तो लगता है कि उसने जरूर एग्रीकल्चर में पढ़ाई की होगी, लेकिन नहीं। हर्ष गुप्ता इंदौर के एक प्राइवेट कॉलेज से फस्र्ट क्लास टैक्सटाइल इंजीनियर है। उसने इंजीनियरिंग जरूर की थी, लेकिन रुझान बिल्कुल भी न था। सन् २००४ में वह पढ़ाई खत्म करके घर वापस आया। उसने फावड़ा-तसल्ल उठाए और पहुंच गया अपने खेतों पर। यह देख स्थानीय लोग उसका उपहास उड़ाने लगे। लो भैया अब इंजीनियर भी खेती करेंगे। नौकरी नहीं मिल रही इसलिए बैल हाकेंगे। वहीं इससे बेफिक्र हर्ष ने अपने खेतों को व्यवस्थित करना शुरू कर दिया। इसमें उसके पिता का भरपूर सहयोग मिला। पिता के सहयोग ने हर्ष के उत्साह को सातवें आसमान पर पहुंचा दिया। बेटे की लगन देख पिता का जोश भी जागा। खेतीबाड़ी से संबंधित जरूरी ज्ञान इंटरनेट, पुराने किसानों और कृषि वैज्ञानिकों के सहयोग से जुटाया। नतीजा थोड़ी-बहुत मुश्किलों के बाद सफलता के रूप में सामने आया। उसके फार्म पर आंवला, आम, करौंदा, शहतूत, गुलाब सहित शीशम, सागौन, बांस और भी विभिन्न किस्म के पेड़-पौधे २१ बीघा जमीन पर लगे हैं। हर्ष की कड़ी मेहनत ने उन सबके सुर बदल दिए जो कभी उसका उपहास उड़ाते थे। उसके फार्म को जिले में जैव विविधता संवर्धन के लिए पुरस्कार भी मिल चुका है। इतना ही नहीं कृषि पर शोध और

अध्ययन कर रहे विद्यार्थियों को फार्म से सीखने के लिए संबंधित संस्थान भेजते हैं।
हर्ष का कहना है कि मेहनत तो सभी किसान करते हैं, लेकिन कई छोटी-छोटी बातों का ध्यान न रखने से उनकी मेहनत बेकार चली जाती है। मेहनत व्यवस्थित और सही दिशा में हो तो सफलता सौ फीसदी तय है। मैं इंजीनियर की अपेक्षा किसान कहलाने में अधिक गर्व महसूस करता हूं। हर्ष कहते हैं कि खेती के जिस मॉडल को मैं समाज के सामने रखना चाहता हूं उस तक पहुंचने में कुछ वक्त लगेगा....... हर्ष गुप्ता और उसके फार्म के बारे में बात करने का मेरा उद्देश्य सिर्फ इतना सा ही है कि कामयाबी के लिए जरूरी नहीं कि अच्छी पढ़ाई कर बड़ी कंपनी में मोटी तनख्वा पर काम करना है। लगन हो तो कामयाबी तो साला झक मारके आपके पीछे आएगी। यह कर दिखाया छोटे-से कस्बे नरसिंहगढ़ के फुन्सुक वांगडू 'हर्ष गुप्ता' ने।

Wednesday, March 2, 2011

: रावण रचित शिवताण्डवस्तोत्रम् : हिन्दी काव्यानुवाद तथा अर्थ - संजीव 'सलिल'



:: शिवरात्रि महापर्व पर शिव स्तुति माहात्म्य ::

श्री गणेश विघ्नेश शिवा-शव नंदन-वंदन.
लिपि-लेखनि, अक्षरदाता कर्मेश शत नमन..
नाद-ताल,स्वर-गान अधिष्ठात्री माँ शारद-
करें कृपा नित मातु नर्मदा जन-मन-भावन..
*

प्रात स्नान कर, श्वेत वसन धरें कुश-आसन.
मौन करें शिवलिंग, यंत्र, विग्रह का पूजन..
'
ॐ नमः शिवाय' जपें रुद्राक्ष माल ले-
बार एक सौ आठ करें, स्तोत्र का पठन..
भाँग, धतूरा, धूप, दीप, फल, अक्षत, चंदन,
बेलपत्र, कुंकुम, कपूर से हो शिव-अर्चन..
उमा-उमेश करें पूरी हर मनोकामना-
'
सलिल'-साधन सफल करें प्रभु, निर्मल कर मन..

*
: रावण रचित शिवताण्डवस्तोत्रम् :
हिन्दी काव्यानुवाद तथा अर्थ - संजीव 'सलिल'

श्रीगणेशाय नमः

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् |

डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकार चण्ड्ताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् || ||

सघन जटा-वन-प्रवहित गंग-सलिल प्रक्षालित.
पावन कंठ कराल काल नागों से रक्षित..
डम-डम, डिम-डिम, डम-डम, डमरू का निनादकर-
तांडवरत शिव वर दें, हों प्रसन्न, कर मम हित..१..

सघन जटामंडलरूपी वनसे प्रवहित हो रही गंगाजल की धाराएँ जिन शिवजी के पवित्र कंठ को प्रक्षालित करती (धोती) हैं, जिनके गले में लंबे-लंबे, विक्राक सर्पों की मालाएँ सुशोभित हैं, जो डमरू को डम-डम बजाकर प्रचंड तांडव नृत्य कर रहे हैं-वे शिवजी मेरा कल्याण करें.१.
*

जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी- विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि |

धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम || ||

सुर-सलिला की चंचल लहरें, हहर-हहरकर,
करें विलास जटा में शिव की भटक-घहरकर.
प्रलय-अग्नि सी ज्वाल प्रचंड धधक मस्तक में,
हो शिशु शशि-भूषित शशीश से प्रेम अनश्वर.. २..

जटाओं के गहन कटावों में भटककर अति वेग से विलासपूर्वक भ्रमण करती हुई देवनदी गंगाजी की लहरें जिन शिवजी के मस्तक पा र्लाहरा रहे एहेन, जिनके मस्तक में अग्नि की प्रचंड ज्वालायें धधक-धधककर प्रज्वलित हो रही हैं, ऐसे- बाल-चन्द्रमा से विभूषित मस्तकवाले शिवजी में मेरा अनुराग प्रतिपल बढ़ता रहे.२.

धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुरस्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे |

कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्दिगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि || ||

पर्वतेश-तनया-विलास से परमानन्दित,
संकट हर भक्तों को मुक्त करें जग-वन्दित!
वसन दिशाओं के धारे हे देव दिगंबर!!
तव आराधन कर मम चित्त रहे आनंदित..३..

पर्वतराज-सुता पार्वती के विलासमय रमणीय कटाक्षों से परमानन्दित (शिव), जिनकी कृपादृष्टि से भक्तजनों की बड़ी से बड़ी विपत्तियाँ दूर हो जाती हैं, दिशाएँ ही जिनके वस्त्र हैं, उन शिवजी की आराधना में मेरा चित्त कब आनंदित होगा?.३.

*

लताभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे |

मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदमद्भुतं बिभर्तुभूतभर्तरि || ||

केशालिंगित सर्पफणों के मणि-प्रकाश की,
पीताभा केसरी सुशोभा दिग्वधु-मुख की.
लख मतवाले सिन्धु सदृश मदांध गज दानव-
चरम-विभूषित प्रभु पूजे, मन हो आनंदी..४..

जटाओं से लिपटे विषधरों के फण की मणियों के पीले प्रकाशमंडल की केसर-सदृश्य कांति (प्रकाश) से चमकते दिशारूपी वधुओं के मुखमंडल की शोभा निरखकर मतवाले हुए सागर की तरह मदांध गजासुर के चरमरूपी वस्त्र से सुशोभित, जगरक्षक शिवजी में रामकर मेरे मन को अद्भुत आनंद (सुख) प्राप्त हो.४.

*

ललाटचत्वरज्वलद्धनंजस्फुल्लिंगया, निपीतपंचसायकं नमन्निलिम्पनायकं |
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं, महाकलपालिसंपदे सरिज्जटालमस्तुनः ||
||


ज्वाला से ललाट की, काम भस्मकर पलमें,
इन्द्रादिक देवों का गर्व चूर्णकर क्षण में.
अमियकिरण-शशिकांति, गंग-भूषित शिवशंकर,
तेजरूप नरमुंडसिंगारी प्रभु संपत्ति दें..५..

अपने विशाल मस्तक की प्रचंड अग्नि की ज्वाला से कामदेव को भस्मकर इंद्र आदि देवताओं का गर्व चूर करनेवाले, अमृत-किरणमय चन्द्र-कांति तथा गंगाजी से सुशोभित जटावाले नरमुंडधारी तेजस्वी शिवजी हमें अक्षय संपत्ति प्रदान करें.५.

*

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः |

भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ||||

सहसनयन देवेश-देव-मस्तक पर शोभित,
सुमनराशि की धूलि सुगन्धित दिव्य धूसरित.
पादपृष्ठमयनाग, जटाहार बन भूषित-
अक्षय-अटल सम्पदा दें प्रभु शेखर-सोहित..६..

इंद्र आदि समस्त देवताओं के शीश पर सुसज्जित पुष्पों की धूलि (पराग) से धूसरित पाद-पृष्ठवाले सर्पराजों की मालाओं से अलंकृत जटावाले भगवान चन्द्रशेखर हमें चिरकाल तक स्थाई रहनेवाली सम्पदा प्रदान करें.६.

*

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वलद्ध नञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके |

धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक-प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचनेरतिर्मम || ||

धक-धक धधके अग्नि सदा मस्तक में जिनके,
किया पंचशर काम-क्षार बस एक निमिष में.
जो अतिदक्ष नगेश-सुता कुचाग्र-चित्रण में-
प्रीत अटल हो मेरी उन्हीं त्रिलोचन-पद में..७..

*

अपने मस्तक की धक-धक करती जलती हुई प्रचंड ज्वाला से कामदेव को भस्म करनेवाले, पर्वतराजसुता (पार्वती) के स्तन के अग्र भाग पर विविध चित्रकारी करने में अतिप्रवीण त्रिलोचन में मेरी प्रीत अटल हो.७.

नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत् - कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः |

निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः || ||

नूतन मेघछटा-परिपूर्ण अमा-तम जैसे,
कृष्णकंठमय गूढ़ देव भगवती उमा के.
चन्द्रकला, सुरसरि, गजचर्म सुशोभित सुंदर-
जगदाधार महेश कृपाकर सुख-संपद दें..८..

नयी मेघ घटाओं से परिपूर्ण अमावस्या की रात्रि के सघन अन्धकार की तरह अति श्यामल कंठवाले, देवनदी गंगा को धारण करनेवाले शिवजी हमें सब प्रकार की संपत्ति दें.८.

*

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा-वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् |

स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकछिदं तमंतकच्छिदं भजे || ||

पुष्पित नीलकमल की श्यामल छटा समाहित,
नीलकंठ सुंदर धारे कंधे उद्भासित.
गज, अन्धक, त्रिपुरासुर भव-दुःख काल विनाशक-
दक्षयज्ञ-रतिनाथ-ध्वंसकर्ता हों प्रमुदित..

खिले हुए नीलकमल की सुंदर श्याम-प्रभा से विभूषित कंठ की शोभा से उद्भासित कन्धोंवाले, गज, अन्धक, कामदेव तथा त्रिपुरासुर के विनाशक, संसार के दुखों को मिटानेवाले, दक्ष के यज्ञ का विध्वंस करनेवाले श्री शिवजी का मैं भजन करता हूँ.९.

*

अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदंबमञ्जरी रसप्रवाहमाधुरी विजृंभणामधुव्रतम् |

स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे || १०||

शुभ अविनाशी कला-कली प्रवहित रस-मधुकर,
दक्ष-यज्ञ-विध्वंसक, भव-दुःख-काम क्षारकर.
गज-अन्धक असुरों के हंता, यम के भी यम-
भजूँ महेश-उमेश हरो बाधा-संकट हर..१०..

नष्ट न होनेवाली, सबका कल्याण करनेवाली, समस्त कलारूपी कलियों से नि:सृत, रस का रसास्वादन करने में भ्रमर रूप, कामदेव को भस्म करनेवाले, त्रिपुर नामक राक्षस का वध करनेवाले, संसार के समस्त दु:खों के हर्ता, प्रजापति दक्ष के यज्ञ का ध्वंस करनेवाले, गजासुर व अंधकासुर को मारनेवाले,, यमराज के भी यमराज शिवजी का मैं भजन करता हूँ.१०.

*

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वसद्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् |

धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः || ११||

वेगवान विकराल विषधरों की फुफकारें,
दह्काएं गरलाग्नि भाल में जब हुंकारें.
डिम-डिम डिम-डिम ध्वनि मृदंग की, सुन मनमोहक.
मस्त सुशोभित तांडवरत शिवजी उपकारें..११..

अत्यंत वेगपूर्वक भ्रमण करते हुए सर्पों के फुफकार छोड़ने से ललाट में बढ़ी हुई प्रचंड अग्निवाले, मृदंग की मंगलमय डिम-डिम ध्वनि के उच्च आरोह-अवरोह से तांडव नृत्य में तल्लीन होनेवाले शिवजी सब प्रकार से सुशोभित हो रहे हैं.११.

*

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः |

तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहत || १२||

कड़ी-कठोर शिला या कोमलतम शैया को,
मृदा-रत्न या सर्प-मोतियों की माला को.
शत्रु-मित्र, तृण-नीरजनयना, नर-नरेश को-
मान समान भजूँगा कब त्रिपुरारि-उमा को..१२..

कड़े पत्थर और कोमल विचित्र शैया, सर्प और मोतियों की माला, मिट्टी के ढेलों और बहुमूल्य रत्नों, शत्रु और मित्र, तिनके और कमललोचनी सुंदरियों, प्रजा और महाराजाधिराजों के प्रति समान दृष्टि रखते हुए कब मैं सदाशिव का भजन करूँगा?

*

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरस्थमञ्जलिं वहन् |

विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् || १३||

कुञ्ज-कछारों में गंगा सम निर्मल मन हो,

सिर पर अंजलि धारणकर कब भक्तिलीन हो?
चंचलनयना ललनाओं में परमसुंदरी,

उमा-भाल-अंकित शिव-मन्त्र गुंजाऊँ सुखी हो?१३..

मैं कब गंगाजी कछार-कुंजों में निवास करता हुआ, निष्कपट होकर सिर पर अंजलि धारण किये हुए, चंचल नेत्रोंवाली ललनाओं में परमसुंदरी पार्वती जी के मस्तक पर अंकित शिवमन्त्र का उच्चारण करते हुए अक्षय सुख प्राप्त करूँगा.१३.

*

निलिम्पनाथनागरी कदंबमौलिमल्लिका, निगुम्फ़ निर्भरक्षन्म धूष्णीका मनोहरः.
तनोतु नो मनोमुदं, विनोदिनीं महर्नीशं, परश्रियं परं पदं तदंगजत्विषां चय: || १४
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सुरबाला-सिर-गुंथे पुष्पहारों से झड़ते,
परिमलमय पराग-कण से शिव-अंग महकते.

शोभाधाम, मनोहर, परमानन्दप्रदाता,

शिवदर्शनकर सफल साधन सुमन महकते..१४..


देवांगनाओं के सिर में गुंथे पुष्पों की मालाओं से झड़ते सुगंधमय पराग से मनोहर परम शोभा के धाम श्री शिवजी के अंगों की सुंदरताएँ परमानन्दयुक्त हमारे मनकी प्रसन्नता को सर्वदा बढ़ाती रहें.१४.

प्रचंडवाडवानल प्रभाशुभप्रचारिणी, महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूतजल्पना.
विमुक्तवामलोचनों विवाहकालिकध्वनि:, शिवेतिमन्त्रभूषणों जगज्जयाम जायतां|| १५||

पापभस्मकारी प्रचंड बडवानल शुभदा,
अष्टसिद्धि अणिमादिक मंगलमयी नर्मदा.
शिव-विवाह-बेला में सुरबाला-गुंजारित,
परमश्रेष्ठ शिवमंत्र पाठ ध्वनि भव-भयहर्ता..१५..

प्रचंड बड़वानल की भाँति पापकर्मों को भस्मकर कल्याणकारी आभा बिखेरनेवाली शक्ति (नारी) स्वरूपिणीअणिमादिक अष्ट महासिद्धियों तथा चंचल नेत्रोंवाली देवकन्याओं द्वारा शिव-विवाह के समय की गयी परमश्रेष्ठ शिवमंत्र से पूरित, मंगलध्वनि सांसारिक दुखों को नष्टकर विजयी हो.१५.

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इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् |

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् || १६||

शिवतांडवस्तोत्र उत्तमोत्तम फलदायक,
मुक्तकंठ से पाठ करें नित प्रति जो गायक.
हो सन्ततिमय भक्ति अखंड रखेंहरि-गुरु में.
गति न दूसरी, शिव-गुणगान करे सब लायक..१६..

इस सर्वोत्तम शिवतांडव स्तोत्र का नित्य प्रति मुक्त कंठ से पाठ करने से भरपूर सन्तति-सुख, हरि एवं गुरु के प्रति भक्ति अविचल रहती है, दूसरी गति नहीं होती तथा हमेशा शिव जी की शरण प्राप्त होती है.१६.

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पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः शंभुपूजनपरं पठति प्रदोषे |

तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः || १७||

करें प्रदोषकाल में शिव-पूजन रह अविचल,
पढ़ दशमुखकृत शिवतांडवस्तोत्र यह अविकल.

रमा रमी रह दे समृद्धि, धन, वाहन, परिचर. करें कृपा शिव-शिवा 'सलिल'-साधना सफलकर..१७..

परम पावन, भूत भवन भगवन सदाशिव के पूजन के नत में रावण द्वारा रचित इस शिवतांडव स्तोत्र का प्रदोष काल में पाठ (गायन) करने से शिवजी की कृपा से रथ, गज, वाहन, अश्व आदि से संपन्न होकर लक्ष्मी सदा स्थिर रहती है.१७.

|| इतिश्री रावण विरचितं शिवतांडवस्तोत्रं सम्पूर्णं||

|| रावणलिखित(सलिलपद्यानुवादित)शिवतांडवस्तोत्र संपूर्ण||

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