Friday, December 31, 2010

अलविदा 2010

शुभाकांक्षा :

- आचार्य संजीव वर्मा सलिल


विनय यही है आपसे सुनिए हे सलिलेश!

रहें आपके द्वार पर खुशियाँ अगिन हमेश..

नये वर्ष में कट सकें भव-बाधा के पाश.

अँगना में फूलें 'सलिल' यश के पुष्प पलाश..

बिदाई गीत:

अलविदा दो हजार दस...

संजीव 'सलिल'
*
अलविदा दो हजार दस
स्थितियों पर
कभी चला बस
कभी हुए बेबस.
अलविदा दो हजार दस...

तंत्र ने लोक को कुचल
लोभ को आराधा.
गण पर गन का
आतंक रहा अबाधा.
सियासत ने सिर्फ
स्वार्थ को साधा.
होकर भी आउट न हुआ
भ्रष्टाचार पगबाधा.
बहुत कस लिया
अब और न कस.
अलविदा दो हजार दस...

लगता ही नहीं, यही है
वीर शहीदों और
सत्याग्रहियों की नसल.
आम्र के बीज से
बबूल की फसल.
मंहगाई-चीटी ने दिया
आवश्यकता-हाथी को मसल.
आतंकी-तिनका रहा है
सुरक्षा-पर्वत को कुचल.
कितना धंसेगा?
अब और न धंस.
अलविदा दो हजार दस...

***

Wednesday, December 15, 2010

कविता - साहित्य सेवा

साहित्य सेवा


- राकेश ‘नवीन’, पुदुच्चेरी ।


तुम्हें साहित्य की सेवा करनी है, करो !
मुझे नहीं करनी ।
मुझे तो साहित्य से धन अर्जित करना है ।
मुझे तो भावनाओं का भ्रम पैदाकर
लोगों के हृदय में जगह पानी है
और जेब के पैसे ।
अरे ! तुम समझते नहीं
आज के चर्चित वादों में
खूब बोलता हूँ ।
मुँह बदल बदलकर ।
क्या पता कब किसका पुरोहित बन जाऊँ
उसके कर्मकांडों के तरण-तारण के लिए ।
अरे ये वाद, विमर्श तो
समयानुसार बहते हुए बयार हैं
पीठ करोगे तो धक्का खाओगे
मुँह करोगे तो हवा पाओगे ।
साहित्य तो बरगद के वृक्ष की तरह है
आए दिन नए सोर उपजते हैं
अब दो-चार मैंने काट ही लिये ।
तो क्या बुरा ।
तुम करो, खूब करो
भैया, मुझे नहीं करनी है
साहित्य सेवा ।

Sunday, December 12, 2010

विधि का विधान : प्रो. सत्य सहाय दिवंगत.....



वयोवृद्ध शिक्षाविद-अर्थशास्त्री प्रो. सत्यसहाय श्रीवास्तव दिवंगत

- संजीव वर्मा 'सलिल'


बिलासपुर, छत्तीसगढ़ २८.११.२०१०. स्थानीय अपोलो चिकित्सालय में आज देर रात्रि विख्यात अर्थशास्त्री, छत्तीसगढ़ राज्य में महाविद्यालायीन शिक्षा के सुदृढ़ स्तम्भ रहे अर्थशास्त्र की ३ उच्चस्तरीय पुस्तकों के लेखक, प्रादेशिक कायस्थ महासभा मध्यप्रदेश के पूर्व प्रांतीय अध्यक्ष रोटेरियन, लायन प्रो. सत्य सहाय का लम्बी बीमारी के पश्चात् देहावसान हो गया. खेद है कि छत्तीसगढ़ की राज्य सरकार आपने प्रदेश के इस गौरव पुरुष के प्रति पूरी तरह अनभिज्ञ तथा असावधान रही. वर्ष १९९४ से पक्षाघात (लकवे) से पीड़ित प्रो. सहाय शारीरिक पीड़ा को चुनौती देते हुए भी सतत सृजन कर्म में संलग्न रहे. शासन सजग रहकर उन्हें राजकीय अतिथि के नाते एम्स दिल्ली या अन्य उन्नत चिकित्सालय में भेजकर श्रेष्ठ विशेषज्ञों की सेवा उपलब्ध कराता तो वे रोग-मुक्त हो सकते थे.

१६ वर्षों से लगातार पक्षाघात (लकवा) ग्रस्त तथा शैयाशाई होने पर भी उनके मन-मष्तिष्क न केवल स्वस्थ्य-सक्रिय रहा अपितु उनमें सर्व-हितार्थ कुछ न कुछ करते रहने की अनुकरणीय वृत्ति भी बनी रही. वे लगातार न केवल अव्यवसायिक सामाजिक पत्रिका 'संपर्क' का संपादन-प्रकाशन करते रहे अपितु इसी वर्ष उन्होंने 'राम रामायण' शीर्षक लघु पुस्तक का लेखन-प्रकाशन किया था. इसमें रामायण का महत्त्व, रामायण सर्वप्रथम किसने लिखी, शंकर जी द्वारा तुलसी को रामकथा साधारण बोल-चाल की भाषा में लिखने की सलाह, जब तुलसी को हनुमानजी ने श्रीराम के दर्शन करवाये, रामकथा में हनुमानजी की उपस्थिति, सीताजी का पृथ्वी से पैदा होना, रामायण कविता नहीं मंत्र, दशरथ द्वारा कैकेयी को २ वरदान, श्री राम द्वारा श्रीभरत को अयोध्या की गद्दी सौपना, श्री भारत द्वारा कौशल्या को सती होने से रोकना, रामायण में सर्वाधिक उपेक्षित पात्र उर्मिला, सीता जी का दूसरा वनवास, रामायण में सुंदरकाण्ड, हनुमानजी द्वारा शनिदेव को रावण की कैद से मुक्त कराना, परशुराम प्रसंग की सचाई, रावण के अंतिम क्षण, लव-कुश काण्ड, सीताजी का पृथ्वी की गोद में समाना, श्री राम द्वारा बाली-वध, शूर्पनखा-प्रसंग में श्री राम द्वारा लक्ष्मण को कुँवारा कहा जाना, श्री रामेश्वरम की स्थापना, सीताजी की स्वर्ण-प्रतिमा, रावण के वंशज, राम के बंदर, कैकेई का पूर्वजन्म, मंथरा को अयोध्या में रखेजाने का उद्देश्य, मनीराम की छावनी, पशुओं के प्रति शबरी की करुणा, सीताजी का राजयोग न होना, सीताजी का रावण की पुत्री होना, विभीषण-प्रसंग, श्री राम द्वारा भाइयों में राज्य-विभाजन आदि जनरूचि के रोचक प्रसंगों का उल्लेख किया है. गागर में सागर की तरह विविध प्रसंगों को समेटे यह कृति प्रो. सहाय की जिजीविषा का पुष्ट-प्रमाण है.

प्रो. सत्यसहाय जीवंत व्यक्तित्व, कर्मठ कृतित्व तथा मौलिक मतित्व की त्रिविभूति-संपन्न ऐसे व्यक्तित्व थे जिन पर कोई भी राज्य-सत्ता गर्व कर सकती है. ग्राम रनेह (राजा नल से समबन्धित ऐतिहासिक नलेह), तहसील हटा (राजा हट्टेशाह की नगरी), जिला दमोह (रानी दमयन्ती की नगरी) में जन्में, बांदकपुर स्थित उपज्योतिर्लिंग जागेश्वरनाथ पुण्य भूमि के निवासी संपन्न-प्रतिष्ठित समाजसेवी स्व. सी.एल. श्रीवास्तव तथा धर्मपरायण स्व. महारानी देवी के कनिष्ठ पुत्र सत्यसहाय की प्राथमिक शिक्षा रनेह, ग्राम, उच्चतर माध्यमिक शिक्षा दमोह तथा महाविद्यालयीन शिक्षा इलाहाबाद में अग्रज स्व. पन्नालाल श्रीवास्तव (आपने समय के प्रखर पत्रकार, दैनिक लीडर तथा अमृत बाज़ार पत्रिका के उपसंपादक, पत्रकारिता पर महत्वपूर्ण पुस्तक के लेखक) के सानिंध्य में पूर्ण हुई. अग्रज के पद-चिन्हों पर चलते हुए पत्रकारिता के प्रति लगाव स्वाभाविक था. उनके कई लेख, रिपोर्ताज, साक्षात्कार आदि प्रकाशित हुए. वे लीडर पत्रिका के फ़िल्मी स्तम्भ के संपादक रहे. उनके द्वारा फ़िल्मी गीत-गायक स्व. मुकेश व गीता राय का साक्षात्कार बहुचर्चित हुआ.

उन्हीं दिनों महात्मा गाँधी के निजी सचिव स्व. महेशदत्त मिश्र पन्नालाल जी के साथ रहकर राजनीति शास्त्र में एम.ए. कर रहे थे. तरुण सत्यसहाय को गाँधी जी की रेलयात्रा के समय बकरीका ताज़ा दूध पहुँचाने का दायित्व मिला. गाँधी जी की रेलगाड़ी इलाहाबाद पहुँची तो भरी भीड़ के बीच छोटे कद के सत्यसहाय जी नजर नहीं आये, रेलगाड़ी रवाना होने का समय हो गया तो मिश्रजी चिंतित हुए, उन्होंने आवाज़ लगाई 'सत्य सहाय कहाँ हो? दूध लाओ.' भीड़ में घिरे सत्यसहाय जी जोर से चिल्लाये 'यहाँ हूँ' और उन्होंने दूध का डिब्बा ऊपर उठाया, लोगों ने देखा मिश्र जी डब्बा पकड़ नहीं पा रहे और रेलगाड़ी रेंगने लगी तो कुछ लम्बे लोगों ने सहाय जी को ऊपर उठाया, मिश्र जी ने लपककर डब्बा पकड़ा. बापू ने खिड़की से यह दृश्य देखा तो खिड़कीसे हाथ निकालकर उन्हें आशीर्वाद दिया. मिश्रा जी के सानिंध्य में वे अनेक नेताओं से मिले. सन १९४८ में अर्थशास्त्र में एम.ए. करने के पश्चात् नव स्वतंत्र देश का भविष्य गढ़ने और अनजाने क्षेत्रों को जानने-समझने की ललक उन्हें बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ले आयी.

पन्नालाल जी अमृत बाज़ार पत्रिका और लीडर जैसे राष्ट्रीय अंग्रेजी अख़बारों में संवाददाता और उपसंपादक रहे थे. वे मध्य प्रान्त और विदर्भ के नेताओं को राष्ट्री क्षितिज में उभारने में ही सक्रिय नहीं रहे अपितु मध्य अंचल के तरुणों को अध्ययन और आजीविका जुटने में भी मार्गदर्शक रहे. विख्यात पुरातत्वविद राजेश्वर गुरु उनके निकट थे, जबलपुर के प्रसिद्द पत्रकार रामेश्वर गुरु को अपना सहायक बनाकर पन्नालाल जी ने संवाददाता बनाया था. कम लोग जानते हैं मध्य-प्रदेश उच्च न्यायालय के विद्वान् अधिवक्ता श्री राजेंद्र तिवारी भी प्रारंभ में प्रारंभ में पत्रकार ही थे. उन्होंने बताया कि वे स्थानीय पत्रों में लिखते थे. गुरु जी का जामाता होने के बाद वे पन्नालाल जी के संपर्क में आये तो पन्नालाल जी ने अपना टाइपराइटर उन्हें दिया तथा राष्ट्रीय अख़बारों से रिपोर्टर के रूप में जोड़ा. अपने अग्रज के घर में अंचल के युवकों को सदा आत्मीयता मिलते देख सत्य सहाय जी को भी यही विरासत मिली.

आदर्श शिक्षक तथा प्रशासनविद:

बुंदेलखंड में कहावत है 'जैसा पियो पानी, वैसी बोलो बनी, जैसा खाओ अन्न, वैसा होए मन'- सत्यसहाय जी के व्यक्तित्व में सुनार नदी के पानी साफगोई, नर्मदाजल की सी निर्मलता व गति तथा गंगाजल की पवित्रता तो थी ही बिलासपुर छत्तीसगढ़ में बसनेपर अरपा नदीकी देशजता और शिवनाथ नदीकी मिलनसारिता सोने में सुहागा की तरह मिल गई. वे स्थानीय एस.बी.आर. महाविद्यालय में अर्थशास्त्र के व्याख्याता हो गये. उनका प्रभावशाली व्यक्तित्व, सरस-सटीक शिक्षण शैली, सामयिक उदाहरणों से विषय को समझाने तथा विद्यार्थी की कठिनाई को समझकर सुलझाने की प्रवृत्ति ने उन्हें सर्व-प्रिय बना दिया. जहाँ पहले छात्र अर्थशास्त्र विषय से दूर भागते थे, अब आकर्षित होने लगे. सन १९६४ तक उनका नाम स्थापित तथा प्रसिद्ध हो चुका था. इस मध्य १९५८ से १९६० तक उन्होंने नव-स्थापित 'ठाकुर छेदीलाल महाविद्यालय जांजगीर' के प्राचार्य का चुनौतीपूर्ण दायित्व सफलतापूर्वक निभाया और महाविद्यालय को सफलता की राह पर आगे बढ़ाया. उस समय शैक्षणिक दृष्टि से सर्वाधिक पिछड़े राज्य छत्तीसगढ़ में उच्च शिक्षा की दीपशिखा प्रज्वलित करनेवालों में अग्रगण्य स्व. सत्य सहाय अपनी मिसाल आप थे.जांजगीर महाविद्यालय सफलतापूर्वक चलने पर वे वापिस बिलासपुर आये तथा योजना बनाकर एक अन्य ग्रामीण कसबे खरसिया के विख्यात राजनेता-व्यवसायी स्व. लखीराम अग्रवाल प्रेरित कर महाविद्यालय स्थापित करने में जुट गये. लम्बे २५ वर्षों तक प्रांतीय सरकार से अनुदान प्राप्तकर यह महाविद्यालय शासकीय महाविद्यालय बन गया. इस मध्य प्रदेश में विविध दलों की सरकारें बनीं... लखीराम जी तत्कालीन जनसंघ से जुड़े थे किन्तु सत्यसहाय जी की समर्पणवृत्ति, सरलता, स्पष्टता तथा कुशलता के कारण यह एकमात्र महाविद्यालय था जिसे हमेशा अनुदान मिलता रहा.

उन्होंने रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर में अधिष्ठाता छात्र-कल्याण परिषद्, अधिष्ठाता महाविद्यालयीन विकास परिषद् तथा निदेशक जनजाति प्रशासनिक सेवा प्रशिक्षण के रूप में भी अपनी कर्म-कुशलता की छाप छोड़ी.

आपके विद्यार्थियों में स्व. बी.आर. यादव, स्व. राजेंद्र शुक्ल. श्री अशोक राव, श्री सत्यनारायण शर्मा आदि अविभाजित मध्यप्रदेश / छतीसगढ़ के कैबिनेट मंत्री, पुरुषोत्तम कौशिक केन्द्रीय मंत्री तथा स्व. श्रीकांत वर्मा सांसद और राष्ट्रीय राजनीति के निर्धारक रहे. अविभाजित म.प्र. के वरिष्ठ नेता स्वास्थ्य मंत्री स्व. डॉ. रामाचरण राय, शिक्षामंत्री स्व. चित्रकांत जायसवाल से उनके पारिवारिक सम्बन्ध थे. उनके अनेक विद्यार्थी उच्चतम प्रशासनिक पदों पर तथा कई कुलपति, प्राचार्य, निदेशक आदि भी हुए किन्तु सहाय जी ने कभी किसीसे नियम के विपरीत कोई कार्य नहीं कराया. अतः उन्होंने सभी से सद्भावना तथा सम्मान पाया.
सक्रिय समाज सेवी:
प्रो. सत्यसहाय समर्पित समाज सुधारक भी थे. उन्होंने छतीसगढ़ अंचल में लड़कियों को शिक्षा से दूर रखने की कुप्रथा से आगे बढ़कर संघर्ष किया. ग्रामीण अंचल में रहकर तथा सामाजिक विरोध सहकर भी उन्होंने न केवल अपनी ४ पुत्रियों को स्नातकोत्तर शिक्षा दिलाई अपितु २ पुत्रियों को महाविद्यालयीन प्राध्यापक बनने हेतु प्रोत्साहित तथा विवाहोपरांत शोधकार्य हेतु सतत प्रेरित किया. इतना ही नहीं उन्होंने अपने संपर्क के सैंकड़ों परिवारों को भी लड़कियों को पढ़ाने की प्रेरणा दी.

स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति के पश्चात् वे सामाजिक ऋण-की अदायगी करने में जुट गये. प्रादेशिक चित्रगुप्त महासभा मध्य प्रदेश के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने जबलपुर, बरमान (नरसिंहपुर), उज्जैन, दमोह, बालाघाट, बिलासपुर आदि अनेक स्थानों पर युवक-युवती, परिचय सम्मलेन, मितव्ययी दहेज़रहित सामूहिक आदर्श विवाह सम्मलेन आदि आयोजित कराये. वैवाहिक जानकारियाँ एकत्रित कर चित्राशीष जबलपुर तथा संपर्क बिलासपुर पत्रिकाओं के माध्यम से उन्होंने अभिभावकों को उपलब्ध कराईं.

विविध काल खण्डों में सत्यसहाय जी ने लायन तथा रोटरी क्लबों के माध्यम से भी सामाजिक सेवा की अनेक योजनाओं को क्रियान्वित कर अपूर्व सदस्यतावृद्धि हेतु श्रेष्ठ गवर्नर पदक प्राप्त किये. वे जो भी कार्य करते थे दत्तचित्त होकर लक्ष्य पाने तक करते थे.

छतीसगढ़ शासन जागे :

बिलासपुर तथा छत्तीसगढ़ के विविध अंचलों में प्रो. असत्य सहाय के निधन का समाचार पाते ही शोक व्याप्त हो गया. छतीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश के अनेक महाविद्यालयों ने उनकी स्मृति में शोक प्रस्ताव पारित किये. अभियान सांस्कृतिक-साहित्यिक संस्था जबलपुर, रोटरी क्राउन जबलपुर, रोटरी क्लब बिलासपुर, रोटरी क्लब खरसिया, लायंस क्लब खरसिया, अखिल भारतीय कायस्थ महासभा, सनातन कायस्थ महापरिवार मुम्बई, विक्रम महाविद्यालय उज्जैन, शासकीय महाकौशल महाविद्यालय जबलपुर, कायस्थ समाज बिलासपुर, कायस्थ कल्याण परिषद् बिलासपुर, कायस्थ सेना जबलपुर आदि ने प्रो. सत्यसहाय के निधन पर श्रैद्धांजलि व्यक्त करते हुए उन्हें युग निर्माता निरूपित किया है. छत्तीसगढ़ शासन से अपेक्षा है कि खरसिया महाविद्यालय में उनकी प्रतिमा स्थापित की जाये तथा रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर एवं गुरु घासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर में अर्थशास्त्र विषयक उच्च शोध कार्यों हेतु प्रो. सत्यसहाय शोधपीठ की स्थापना की जाए.

दिव्यनर्मदा परिवार प्रो. सत्यसहाय के ब्रम्हलीन होने को शोक का कारण न मानते हुए इसे देह-धर्म के रूप में विधि के विधान के रूप में नत शिर स्वीकारते हुए संकल्प लेता है कि दिवंगत के आदर्शों के क्रियान्वयन हेतु सतत सक्रिय रहेगा. हिन्दी को विश्व भाषा के रूप में विकसित करने की प्रो. सत्यसहाय की मनोकामना को मूर्तरूप देने के लिये सतत प्रयास जारी रहेंगे. आप सब इस पुनी कार्य में सहयोगी हों, यही सच्ची कर्मांजलि होगी.

प्रो. सत्यसहाय के प्रति :
स्मृति गीत:
न मानता...
- संजीव 'सलिल'
*
मन न मानता
चले गये हो...
*
अभी-अभी तो यहीं कहीं थे.
आँख खुली तो कहीं नहीं थे..
अंतर्मन कहता है खुदसे-
साँस-आस से
छले गये हो...
*
नेह-नर्मदा की धारा थे.
श्रम-संयम का जयकारा थे..
भावी पीढ़ी के नयनों में-
स्वप्न सदृश तुम
पले गये हो...
*
दुर्बल तन में स्वस्थ-सुदृढ़ मन.
तुम दृढ़ संकल्पों के गुंजन..
जीवन उपवन में भ्रमरों संग-
सूर्य अस्त लख
ढले गये हो...
***

Tuesday, November 16, 2010

पत्रकारिता विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय प्रेस दिवस का आयोजन


पत्रकारिता में संवेदना जरूरीः रमेश शर्मा


भोपाल, 16 नवंबर,2010। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में 16 नवम्बर को राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के मुख्यअतिथि मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के अध्यक्ष कैलाशचंद्र पंत तथा मुख्यवक्ता वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने की।
इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा ने कहा कि पत्रकारिता के सामने आज कई तरह की चुनौतियां हैं जिनसे युवा पत्रकारों को ही निपटकर रास्ता खोजना होगा। पत्रकारिता में मूल्यबोध की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि संवेदनशीलता और मूल्यों की रक्षा से ही लेखन को सार्थकता मिलती है।
साहित्यकार एवं चिंतक कैलाशचंद्र पंत ने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ पत्रकारिता बहुत सक्षम तरीके से लड़ाई लड़ रही है। सामान्य सा पत्रकार भी अगर चाह ले तो सत्ता को सीधा संदेश दे सकता है। भ्रष्टाचार की कथाएं प्रायः पत्रकार ही सामने लेकर आते हैं। इससे समाज में पत्रकारिता के प्रति भरोसा जगता है, आरोपियों की नींद हराम होती है। उन्होंने कहा यह विश्वास हमने सालों की तपस्या से अर्जित किया है, उसे बचाए रखने की जरूरत है। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने प्रेस कौंसिल को अधिकार संपन्न बनाने की बात कही। उन्होंने कहा कि मीडिया के सामने आज चुनौतियां किसी भी समय से ज्यादा है। मीडिया में आचार संहिता की जरूरत को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि इससे ही जनविश्वास और शुचिता की रक्षा हो सकेगी। प्रो. कुठियाला ने कहा कि विश्वविद्यालय शिक्षाविदों, मीडिया कर्मियों और संचार क्षेत्र के विशेषज्ञों के साथ मिलकर आचार संहिता बनाने का काम करेगा और उसे मीडिया के विचारार्थ प्रस्तुत करेगा। संचालन विश्वविद्यालय के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी राघवेन्द्र सिंह ने तथा आभार प्रदर्शन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने किया। इस अवसर पर वर्किग जर्नलिस्ट यूनियन के अध्यक्ष राधावल्लभ शारदा, रेक्टर प्रो. सी.पी. अग्रवाल, रजिस्ट्रार एस.के. त्रिवेदी, पुष्पेंद्रपाल सिंह, डा. पवित्र श्रीवास्तव, सौरभ मालवीय, डा. अविनाश वाजपेयी, डॉ. मोनिका वर्मा, डा. आरती सारंग, जया सुरजानी, लालबहादुर ओझा प्रमुख रूप से उपस्थित थे।

Monday, November 8, 2010

‘सरस्वती सुमन‘ के लघुकथा विशेषांक हेतु रचनाएं आमंत्रित

देहरादून से प्रकाशित ‘सरस्वती सुमन‘ के लघुकथा विशेषांक हेतु रचनाएं आमंत्रित

प्रिय महोदय,

जैसा कि आपको विदित है कि देहरादून से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका ‘सरस्वती सुमन‘ विभिन्न विषयों और विधाओं पर विशेषांक जारी कर रही है। इसी क्रम में पत्रिका का जुलाई-सितम्बर 2011 अंक ‘लघुकथा विशेषांक‘ के रूप में प्रस्तावित है। पत्रिका के संपादक डा0 आनंद सुमन सिंह जी ने लघु कथा विशेषांक के अतिथि संपादन का दायित्व मुझे सौंपा है। इस हेतु आपकी सक्रिय भागीदारी की कामना के साथ लघुकथा विशेषांक हेतु लघुकथा पर आलेख एवं चार सशक्त लघुकथाएं (संक्षिप्त परिचय व फोटोग्राफ सहित) आमंत्रित हैं। सामग्री प्राप्त होने की अंतिम तिथि 30 मई 2011 है संबंधित रचनाएं इस पते पर भेजी जायें- कृष्ण कुमार यादव, निदेशक डाक सेवाएं, अंडमान व निकोबार द्वीप समूह, पोर्टब्लेयर-744101.

व्यापक सहभागिता सुनिश्चित करने हेतु कृपया इस प्रकाशन की सूचना अपने लघुकथाकार मित्रों को भी दें और यथासंभव उनकी रचनाएँ भी साथ में प्रेषित करने का कष्ट करें। पत्र-पत्रिकाओं में इस सूचना के प्रकाशन का भी अनुरोध है।

आशा है कि सरस्वती सुमन के इस लघुकथा विशेषांक हेतु आपका पूरा सहयोग मिलेगा !!

सादर,

कृष्ण कुमार यादव

Thursday, November 4, 2010

कविता - इलेक्ट्रॉनिक दिवाली

इलेक्ट्रॉनिक दिवाली

राकेश ‘नवीन’

इसे महंगाई की मार कहें, अथवा फैशन की बहार
मिट्टी के दीये पर देखें, बिजली कैसे छा गई,
अब इलेक्ट्रॉनिक दिवाली आगई !


हलवाई की मिठाई पर, हल्दीराम का प्रभाव भा गया
शुभ कामनाओं की जगह, पैकेटिया सिस्टम छा गई ।
अब इलेक्ट्रॉनिक दिवाली आगई !


लक्ष्मी की पूजा धन, धान्य, वैभव समृद्धि
मतलब झूठी निष्ठा, मिथ्वा विश्वास आडंबर को दिखला गई ।
अब इलेक्ट्रॉनिक दिवाली आगई !


घर की लक्ष्मी क्लबों में, रेस्तरा और बीयर बारों में
नाच-नाच कर, झूम-झूम कर सशक्तिकरण का असर दिखला गई ।
अब इलेक्ट्रॉनिक दिवाली आगई !


कभी बंधुत्व सौहार्द्र का यह पर्व हुआ करता था,
आज अमीर और गरीब का स्पष्ट स्पष्ट फर्क दिखला गई
अब इलेक्ट्रॉनिक दिवाली आगई !

जमींदार, महाजन सूद लेकर खून चूसा करते थे
क्रेडिट कार्ड तो उससे बढ़कर अपनी उपस्थिति दिखा गई
अब इलेक्ट्रॉनिक दिवाली आगई !

Tuesday, November 2, 2010

बाल मानस

एम.डी. सादिक, चेन्नई की दो कविताएँ


आप कर सकते हैं... लेकिन

आप बेच सकते हैं
कुछ भी
आप खो सकते हैं
कुछ भी
आप कर सकते हैं
कुछ भी
लेकिन खोना नहीं
माँ, मातृभाषा और मातृभूमि को ।

योग्यता

डॉक्टर के लिए एमबीबीएस
वकील के लिए एलएलबी
कलेक्टर-आईएएस
लेकिन एक राजनेता बनने के लिए ?

Monday, November 1, 2010

अ. भा. रचना शिविर मुक्तिबोध की कर्मस्थली में


रचनाकारों की संस्था, प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान, रायपुर, छत्तीसगढ़ द्वारा देश के उभरते हुए कवियों/लेखकों/निबंधकारों/कथाकारों/लघुकथाकारों/ब्लॉगरों को देश के विशिष्ट और वरिष्ठ रचनाकारों द्वारा साहित्य के मूलभूत सिद्धातों, विधागत विशेषताओं, परंपरा, विकास और समकालीन प्रवृत्तियों से परिचित कराने, उनमें संवेदना और अभिव्यक्ति कौशल को विकसित करने, प्रजातांत्रिक और शाश्वत जीवन मूल्यों के प्रति उन्मुखीकरण तथा स्थापित लेखक तथा उनके रचनाधर्मिता से तादात्मय स्थापित कराने के लिए अ.भा.त्रिदिवसीय/रचना शिविर (18, 19, 20 दिसंबर, 2010) सृजनात्मक लेखन कार्यशाला का आयोजन विश्वकवि गजानन माधव मुक्तिबोध की कार्यस्थली(त्रिवेणी परिसर), राजनांदगाँव में किया जा रहा है । इस अखिल भारतीय स्तर के कार्यशाला में देश के 75 नवोदित/युवा रचनाकारों को सम्मिलित किया जायेगा ।

संक्षिप्त ब्यौरा निम्नानुसार है-
प्रतिभागियों को 20 नवंबर, 2010 तक अनिवार्यतः निःशुल्क पंजीयन कराना होगा । पंजीयन फ़ार्म संलग्न है ।

प्रतिभागियों का अंतिम चयन पंजीकरण में प्राप्त आवेदन पत्र के क्रम से होगा ।
पंजीकृत एवं कार्यशाला में सम्मिलित किये जाने वाले रचनाकारों का नाम ई-मेल से सूचित किया जायेगा ।

प्रतिभागियों की आयु 18 वर्ष से कम एवं 45 वर्ष से अधिक ना हो ।

प्रतिभागियों में 5 स्थान हिन्दी के स्तरीय ब्लॉगर के लिए सुरक्षित रखा गया है ।

प्रतिभागियों को संस्थान/कार्यशाला में एक स्वयंसेवी रचनाकार की भाँति, समय-सारिणी के अनुसार अनुशासनबद्ध होकर कार्यशाला में भाग लेना अनिवार्य होगा ।

प्रतिभागी रचनाकारों को प्रतिदिन दिये गये विषय पर लेखन-अभ्यास करना होगा जिसमें वरिष्ठ रचनाकारों द्वारा मार्गदर्शन दिया जायेगा ।

कार्यशाला के सभी निर्धारित नियमों का आवश्यक रूप से पालन करना होगा ।

प्रतिभागियों को सैद्धांतिक विषयों के प्रत्येक सत्र में भाग लेना अनिवार्य होगा । अपनी वांछित विधा विशेष के सत्र में वे अपनी इच्छानुसार भाग ले सकते हैं । प्रतिभागियों के आवास, भोजन, स्वल्पाहार, प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिन्ह की व्यवस्था संस्थान द्वारा किया जायेगा ।

प्रतिभागियों को कार्यशाला में संदर्भ सामग्री दी जायेगी ।

प्रतिभागियों को अपना यात्रा-व्यय स्वयं वहन करना होगा ।

प्रतिभागियों को 17 दिसंबर, 2010 दोपहर 3 बजे के पूर्व कार्यशाला स्थल –त्रिवेणी परिसर/सिंधु सदन, जीई रोड, राजनांदगाँव, छत्तीसगढ़ में अनिवार्यतः उपस्थित होना होगा । पंजीकृत/चयनित प्रतिभागी लेखकों को कार्यशाला स्थल (होटल) की जानकारी, संपर्क सूत्र आदि की सम्यक जानकारी पंजीयन पश्चात दी जायेगी ।

संपर्क सूत्र
जयप्रकाश मानस
कार्यकारी निदेशक
प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान, छत्तीसगढ़
एफ-3, छगमाशिम, आवासीय परिसर, पेंशनवाड़ा, रायपुर, छत्तीसगढ – 492001
ई-मेल-pandulipipatrika@gmail.com
मो.-94241-82664
पंजीयन हेतु आवेदनपत्र नमूना
01. नाम -
02. जन्म तिथि व स्थान (हायर सेंकेंडरी सर्टिफिकेट के अनुसार) -
03. शैक्षणिक योग्यता –
04. वर्तमान व्यवसाय -
05. प्रकाशन (पत्र-पत्रिकाओं के नाम) –
06. प्रकाशित कृति का नाम –
07. ब्लॉग्स का यूआरएल – (यदि हो तो)
08. अन्य विवरण ( संक्षिप्त में लिखें)
09. पत्र-व्यवहार का संपूर्ण पता (ई-मेल सहित) –
हस्ताक्षर

Sunday, October 31, 2010

श्यामल सुमन की पांच कविताएँ

श्यामल सुमन


काव्य-रचनाएँ



यह जीवन श्रृंगार प्रभु




सबकी है सरकार प्रभु
क्या सबको अधिकार प्रभु

आमलोग जीते मुश्किल से
इतना अत्याचार प्रभु

साफ छवि लाजिम है जिनकी
करते भ्रष्टाचार प्रभु

मँहगाई, आतंकी डर से
दिल्ली है लाचार प्रभु

रिश्ते-नाते आज बने क्यों
कच्चा-सा व्यापार प्रभु

अवसर सबको मिले बराबर
यह जीवन श्रृंगार प्रभु

लोग खोजते अब जीवन में
जीने का आधार प्रभु

देव-भूमि भारत में अब तो
लगता सब बेकार प्रभु

सुना युगों से करते आये
जुल्मों का संहार प्रभु

सुमन आस है, नहीं डरोगे
क्या लोगे अवतार प्रभु




क्या बात है




अपनों के आस पास है तो क्या बात है
यदि कोई उसमें खास है तो क्या बात है
मजबूरियों से जिन्दगी का वास्ता बहुत,
दिल में अगर विश्वास है तो क्या बात है

आँखों से आँसू बह गए तो क्या बात है
बिन बोले बात कह गए तो क्या बात है
मुमकिन नहीं है बात हरेक बोल के कहना,
भावों के साथ रह गए तो क्या बात है

इन्सान बन के जी सके तो क्या बात है
मेहमान बन के पी सके तो क्या बात है
कपड़े की तरह जिन्दगी में आसमां फटे,
गर आसमान सी सके तो क्या बात है

जो जीतते हैं वोट से तो क्या बात है
जो चीखते हैं नोट से तो क्या बात है
जो राजनीति चल रही कि लुट गया सुमन,
जो सीखते हैं चोट से तो क्या बात है




मुस्कान ढ़ूँढ़ता हूँ






तेरे प्यार में अभी तक मैं जहान ढ़ूँढ़ता हूँ
दीदार हो सका न क्यूँ निशान ढ़ूँढ़ता हूँ

जब मतलबी ये दुनिया रिश्तों से क्या है मतलब
इन मतलबों से हटकर इन्सान ढ़ूढ़ता हूँ

खोया है इश्क में सब आगे है और खोना
खुद को मिटाने वाला नादान ढ़ूढ़ता हूँ

एहसास उनका सच्चा गिरकर जो सम्भलते जो
अनुभूति ऐसी अपनी पहचान ढ़ूढ़ता हूँ

कभी घर था एक अपना जो मकान बन गया है
फिर से सुमन के घर में मुस्कान ढ़ूढ़ता हूँ


दूजा नया सफ़र है




निकला हूँ मैं अकेला अनजान सी डगर है
कोई साथ आये, छूटे मंजिल पे बस नजर है

महफिल में मुस्कुराना मुश्किल नहीं है यारो
जो घर में मुस्कुराये समझो उसे जिगर है

पी करके लड़खड़ाना और गिर के सम्भल जाना
इक मौत जिन्दगी की दूजा नया सफर है

जब सोचने की ताकत और हाथ भी सलामत
फिर बन गए क्यों बेबस किस बात की कसर है

हम जानवर से आदम कैसे बने ये सोचो
क्यों चल पड़े उधर हम पशुता सुमन जहर है




दिल्ली से गाँव तक




अंदाज उनका कैसे बिन्दास हो गया
महफिल में आम कलतक वो खास हो गया
जिसे कैद में होना था संसद चले गए,
क्या चाल सियासत की आभास हो गया

रुकते ही कदम जिन्दगी मौत हो गयी
प्रतिभा जो होश में थी क्यों आज सो गयी
कल पीढ़ियाँ करेंगी इतिहास से सवाल,
क्यों मुल्क बचाने की नीयत ही खो गयी

मरते हैं लोग भूखे बिल्कुल अजीब है
सड़ते हैं वो अनाज जो बिल्कुल सजीव है
जल्दी से लूट बन्द हो दिल्ली से गाँव तक,
फिर कोई कैसे कह सके भारत गरीब है

आतंकियों का मतलब विस्तार से यारो
शासन की कोशिशे भी संहार से यारो
फिर भी हैं लोग खौफ में तो सोचता सुमन,
नक्सल से अधिक डर है सरकार से यारो





श्यामल सुमन का परिचय

नाम : श्यामल किशोर झा

लेखकीय नाम : श्यामल सुमन

जन्म तिथि: 10.01.1960

जन्म स्थान : चैनपुर, जिला सहरसा, बिहार

शिक्षा : स्नातक, अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र एवं अँग्रेज़ी

तकनीकी शिक्षा : विद्युत अभियंत्रण में डिप्लोमा

वर्तमान पेशा : प्रशासनिक पदाधिकारी टाटा स्टील, जमशेदपुर

साहित्यिक कार्यक्षेत्र : छात्र जीवन से ही लिखने की ललक, स्थानीय समाचार पत्रों सहित देश के कई पत्रिकाओं में अनेक समसामयिक आलेख समेत कविताएँ, गीत, ग़ज़ल, हास्य-व्यंग्य आदि प्रकाशित

स्थानीय टी.वी. चैनल एवं रेडियो स्टेशन में गीत, ग़ज़ल का प्रसारण, कई कवि-सम्मेलनों में शिरकत और मंच संचालन।
अंतरजाल पत्रिकाएँ अनुभूति, हिन्दी नेस्ट, साहित्य कुञ्ज, साहित्य शिल्पी, युग मानस आदि में सैकड़ों रचनाएँ प्रकाशित।

गीत ग़ज़ल संकलन "रेत में जगती नदी" कला मंदिर प्रकाशन में शीघ्र प्रकाशनार्थ ।

रुचि के विषय : नैतिक मानवीय मूल्य एवं सम्वेदना ।

Monday, October 4, 2010

कोयंबत्तूर में राष्ट्रीय हिंदी संगोष्ठी सुसंपन्न







विभिन्न दक्षिण भारतीय भाषाओं के विद्वानों उपस्थिति में
दक्षिण में हिंदी की स्थिति, गति एवं प्रगति पर केंद्रित महत्वपूर्ण परिसंवाद
भारतीय सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए भारतीय भाषाओं का विकास जरूरी है – वर्गीस एम.पी.

नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, कोयंबत्तूर एवं डॉ. जी.आर.दामोदरन विज्ञान महाविद्यलय, कोयंबत्तूर के संयुक्त तत्वावधान में कोयंबत्तूर में 4 अक्तूबर, 2010 को राष्ट्रीय हिंदी संगोष्ठी का आयोजन किया गया । संगोष्ठी का उद्घाटन नराकास, कोयंबत्तूर के अध्यक्ष एवं क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त श्री एम.पी. वर्गीस ने दीप प्रज्वलन के साथ किया । उद्घाटन सत्र में अपने अध्यक्षीय भाषण में वर्गीस जी ने कहा कि राष्ट्रीय एकता की संकल्पना को साकार बनाने के लिए जहाँ एक संपर्क भाषा की जरूरत है, वहीं भारतीय सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए भारतीय भाषाओं का विकास जरूरी है । भारतीय संविधान इस संकल्पना के लिए प्रतिबद्ध है ।
समिति के सदस्य-सचिव एवं संगोष्ठी के संयोजक डॉ. सी. जय शंकर बाबु ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि दक्षिण के आंध्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल एवं पांडिच्चेरी प्रदेशों में शैक्षिक, सामाजिक, साहित्यिक, आर्थिक, व्यावसायिक, वाणिज्यिक, औद्योगिक, प्रशासनिक क्षेत्रों के अलावा मीडिया एवं फिल्मी क्षेत्रों में भी आज हिंदी का विस्तृत प्रचार-प्रसार के आलोक में समग्र स्थिति का जायज़ा लेने के लिए आज इस एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है ।
तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी की महासचिव डॉ. मधुधवन ने नई पीढ़ी का आह्वान करते हुए कहा कि उन्हें आगे बढ़कर हिंदी प्रचार-प्रसार का दायित्व संभालना चाहिए । वरिष्ठ हिंदी साहित्यकार डॉ. पी.के. बालसुब्रमणियन जी ने तमिल साहित्य को हिंदी में अनुवादित करने के लिए नई पीढ़ी को प्रेरित किया और जानकारी दी कि इसके लिए तमिलनाडु सरकार आर्थिक मदद देती है ।
उद्घाटन सत्र में श्रीमती उषा वर्गीस, महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. ए. पोन्नुसामी ने भी अपने विचार प्रकट किए और बच्चों को हिंदी अवश्य पढ़ाने का आग्रह किया ।
दक्षिण भारत में शिक्षा, साहित्य, संस्कृति एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में हिंदी पर केंद्रित प्रथम सत्र की अध्यक्षता डॉ. पी.के. बालसुब्रमण्यन ने किया । विशिष्ट अतिथियों के रूप में डॉ. ना. गोपालकृष्णन, निदेशक, केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, श्री ईश्वर चंद्र झा, मंडल प्रबंधक, दि न्यू इंडिया एश्योरेंस कं.लि., उपस्थित थे । इस सत्र में बीज वक्तव्य देते हुए श्री सुदर्शन मलिक विश्व के एक बड़े जनतंत्रात्मक राष्ट्र की प्रचलित हिंदी को आज विश्व की भाषा का स्तर दिलाना आवश्यक है, इसके लिए हर ढंग से हमें पहल की जानी चाहिए । इस सत्र का संचालन डॉ. सी. जय शंकर बाबु ने किया ।
दूसरे सत्र का दक्षिण भारत में प्रशासनिक, व्यावसायिक एवं औद्योगिक क्षेत्रों में हिंदी की प्रगति पर केंद्रत रहा । इस सत्र में डॉ. एस. बशीर, डॉ. वासुदेवन शेष विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे । डॉ. सी. जय शंकर बाबु ने बीज वक्तव्य देते हुए कहा कि दक्षिण भारत में हिंदी की प्रगति का कोई ऐसा आयाम नहीं है, जिस ओर हिंदीतर भाषियों का ध्यान नहीं गया हो । दक्षिण में हिंदी में पत्रकारिता आज विकसित स्थिति में है और आज दक्षिण में कई हिंदी ब्लागर हैं जो हिंदी को दुनिया की भाषा बनाने की पहल कर रहे हैं । इस सत्र का संचालन श्री डी. राम मोहन रेड्डी, शाखा प्रबंधक, न्यू इंडिया एश्योरेंस ने किया ।
दोनों सत्रों में लगभग चालीस विद्वानों ने अपने शोध-पूर्ण आलेख प्रस्तुत किए । अंत में काव्य गोष्ठी में वरिष्ठ कवियों ने अपनी कविताओं तथा गीतों से श्रोताओं का मन बहलाया । अंत में सभी विद्वानों का सम्मान, श्रीमती सी.आर. राजश्री, भाषा विभागाध्यक्ष, डॉ. जी. आर. डी. विज्ञान महाविद्यालय के धन्यवाद ज्ञापन तथा राष्ट्रगान के साथ संगोष्ठी सुसंपन्न हुई ।

Tuesday, September 28, 2010

ओरिएण्टल इंश्योरेंस कंपनी में हिंदी पखवाड़ा संपन्न




दि ओरिएण्टल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, क्षेत्रीय कार्यालय, कोयंबत्तूर में हिंदी पखवाड़ा का आयोजन दि.14 सितंबर से 28 सितंबर तक किया गया । हिंदी पखवाड़े का समापन एवं पुरस्कार वितरण समारोह का आयोजन दि.28 सितंबर 2010 को कार्यालय परिसर में किया गया । समारोह की अध्यक्षता कंपनी के मुख्य क्षेत्रीय प्रबंधक डॉ. एम. जॉनसन ने की । प्रशासनिक अधिकारी श्री प्रवीन कुमार द्वारा प्रार्थना एवं अतिथियों के स्वागत के बाद डॉ. जानसन जी ने समारोह को संबोधित किया । उन्होंने कहा कि कार्यालय के कार्यों में मूल टिप्पण व पत्राचार को बढ़ावा देकर हमें वार्षिक कार्यक्रम के निर्धारित लक्ष्यों को हासिल कर सकते हैं । हिंदी प्रयोग का यह क्रम सिर्फ पखवाड़े के दौरान तक ही सीमित न रहकर इसे वर्ष पर्यंत तक अनवरत चलना चाहिए । इस अवसर पर क्षेत्रीय प्रबंधक डॉ. सी. गोपी शंकर ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारत सरकार की राजभाषा नीति कार्यान्वयन करना हमारा दायित्व है ।

समारोह मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित डॉ. सी. जय शंकर बाबु, सदस्य सचिव, कोयंबत्तूर नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति ने अपने संबोधन में कहा कि हिंदी एक सरल, समृद्ध व सशक्त भाषा है । सभी अधिकारियों व कर्मचारियों को दैनिक कामकाज में हिंदी का अधिकाधिक प्रयोग करना चाहिए । सभी को क्षेत्रीय भाषा के अतिरिक्त देश की भाषा को भी सीखने का प्रयत्न करना चाहिए । जिस प्रकार कंपनी के मूल कार्यों में बेहतरीन कार्य-निष्पादन से अपने क्षेत्र को श्रेष्ठ स्थान हासिल कर पा रहे हैं, उसी तरह हिंदी कार्यान्वयन में भी समन्वित प्रयासों से प्रगति संभव है । हिंदी अधिकारी श्री प्रवीन कुमार सभी अधिकारियों से अनुरोध किया कि वे दैनिक कामकाज में हिंदी का प्रयोग करते हुए लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में सहयोग दें । अंत में हिंदी अधिकारी श्री प्रवीन कुमार के धन्यवाद ज्ञापन व राष्ट्रगान के साथ ही समारोह सुसंपन्न हुआ ।

Monday, September 27, 2010

सृजनात्मक लेखन कार्यशाला हेतु ब्लॉगरों से प्रविष्टि आमंत्रित

रायपुर । रचनाकारों की संस्था, प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान, रायपुर, छत्तीसगढ़ द्वारा देश के उभरते हुए कवियों/लेखकों/निबंधकारों/कथाकारों/लघुकथाकारों/ब्लॉगरों को देश के विशिष्ट और वरिष्ठ रचनाकारों द्वारा साहित्य के मूलभूत सिद्धातों, विधागत विशेषताओं, परंपरा, विकास और समकालीन प्रवृत्तियों से परिचित कराने, उनमें संवेदना और अभिव्यक्ति कौशल को विकसित करने, प्रजातांत्रिक और शाश्वत जीवन मूल्यों के प्रति उन्मुखीकरण तथा स्थापित लेखक तथा उनके रचनाधर्मिता से तादात्मय स्थापित कराने के लिए अ.भा.त्रिदिवसीय (13, 14, 15 नवंबर, 2010) सृजनात्मक लेखन कार्यशाला का आयोजन बिलासपुर में किया जा रहा है । इस अखिल भारतीय स्तर के कार्यशाला में देश के 75 नवोदित/युवा रचनाकारों को सम्मिलित किया जायेगा ।


संक्षिप्त ब्यौरा निम्नानुसार है-

प्रतिभागियों को 20 अक्टूबर, 2010 तक अनिवार्यतः निःशुल्क पंजीयन कराना होगा । पंजीयन फ़ार्म संलग्न है ।
प्रतिभागियों का अंतिम चयन पंजीकरण में प्राप्त आवेदन पत्र के क्रम से होगा ।
पंजीकृत एवं कार्यशाला में सम्मिलित किये जाने वाले रचनाकारों का नाम ई-मेल से सूचित किया जायेगा ।
प्रतिभागियों की आयु 18 वर्ष से कम एवं 40 वर्ष से अधिक ना हो ।
प्रतिभागियों में 5 स्थान हिन्दी के स्तरीय ब्लॉगर के लिए सुरक्षित रखा गया है ।
प्रतिभागियों को संस्थान/कार्यशाला में एक स्वयंसेवी रचनाकार की भाँति, समय-सारिणी के अनुसार अनुशासनबद्ध होकर कार्यशाला में भाग लेना अनिवार्य होगा ।
प्रतिभागी रचनाकारों को प्रतिदिन दिये गये विषय पर लेखन-अभ्यास करना होगा जिसमें वरिष्ठ रचनाकारों द्वारा मार्गदर्शन दिया जायेगा ।
कार्यशाला के सभी निर्धारित नियमों का आवश्यक रूप से पालन करना होगा ।
प्रतिभागियों को सैद्धांतिक विषयों के प्रत्येक सत्र में भाग लेना अनिवार्य होगा । अपनी वांछित विधा विशेष के सत्र में वे अपनी इच्छानुसार भाग ले सकते हैं ।
प्रतिभागियों के आवास, भोजन, स्वल्पाहार, प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिन्ह की व्यवस्था संस्थान द्वारा किया जायेगा ।
प्रतिभागियों को कार्यशाला में संदर्भ सामग्री दी जायेगी ।
प्रतिभागियों को अपना यात्रा-व्यय स्वयं वहन करना होगा ।
प्रतिभागियों को 12 नवंबर, 2010 शाम 5 बजे के पूर्व कार्यशाला स्थल - बिलासपुर, छत्तीसगढ़ में अनिवार्यतः उपस्थित होना होगा । पंजीकृत/चयनित प्रतिभागी लेखकों को कार्यशाला स्थल (होटल) की जानकारी, संपर्क सूत्र आदि की सम्यक जानकारी पंजीयन पश्चात दी जायेगी ।

प्रस्तावित/संभावित विषय एवं विशेषज्ञ लेखक

दिनाँक 13 नवंबर, 2010

रचना की दुनिया – दुनिया की रचना – श्री चंद्रकांत देवताले – विश्वनाथ प्रसाद तिवारी – प्रभाकर श्रोत्रिय
रचना में यथार्थ और कल्पना – श्री राजेन्द्र यादव – नीलाभ – केदारनाथ सिंह
रचना और प्रजातंत्र – श्री अखिलेश – रघुवंशमणि – परमानंद श्रीवास्तव
रचना और भारतीयता – श्री नंदकिशोर आचार्य – श्री अरविंद त्रिपाठी – विश्वनाथ प्रसाद तिवारी
रचना : महिला, दलित और आदिवासी –– सुश्री अनामिका - कात्यायनी - मोहनदास नैमिशारण्य
रचना और मनुष्यता के नये संकट - श्री विनोद शाही- श्रीप्रकाश मिश्र – सीताकांत महापात्र

दिनाँक 14 नवंबर, 2010

रचना और संप्रेषण – श्री कृष्ण मोहन – ज्योतिष जोशी – मधुरेश
शब्द, समय और संवेदना – श्री नंद भारद्वाज - श्रीभगवान सिंह – ए.अरविंदाक्षन
कविता की अद्यतन यात्रा – श्री वीरेन्द्र डंगवाल – ओम भारती - अशोक बाजपेयी
कविता - छंद और लय – श्री दिनेश शुक्ल – राजेन्द्र गौतम – डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र
कैसा गीत कैसे पाठक ? - श्री राजगोपाल सिंह – यश मालवीय – माहेश्वर तिवारी
कहानी-विषयवस्तु, भाषा, शिल्प – श्री शशांक – डॉ. परदेशीराम वर्मा – गोविन्द मिश्र

दिनाँक 15 नवंबर, 2010

कहानी की पहचान – सुश्री उर्मिला शिरीष - सूरज प्रकाश – सतीश जायसवाल
लघुकथा क्या ? लघुकथा क्या नहीं ? – श्री अशोक भाटिया – फ़ज़ल इमाम मल्लिक - बलराम
आलोचना क्यों, आलोचना कैसी? श्री शंभुनाथ – डॉ. रोहिताश्व - विजय बहादुर सिंह
ललित निबंध : कितना ललित-कितना निबंध – श्री नर्मदा प्रसाद उपा.-अष्टभुजा शुक्ल – डॉ.श्रीराम परिहार
(अंतिम नाम निर्धारण स्वीकृति/अस्वीकृति उपरांत)

संपर्क सूत्र
जयप्रकाश मानस
कार्यकारी निदेशक
प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान, छत्तीसगढ़
एफ-3, छगमाशिम, आवासीय परिसर, पेंशनवाड़ा, रायपुर, छत्तीसगढ – 492001
ई-मेल-pandulipipatrika@gmail.com
मो.-94241-82664
बिलासपुर
श्री सुरेन्द्र वर्मा, मो.-94255-70751
श्री राजेश सोंथलिया, 9893048220

पंजीयन हेतु आवेदनपत्र नमूना

01. नाम -
02. जन्म तिथि व स्थान (हायर सेंकेंडरी सर्टिफिकेट के अनुसार) -
03. शैक्षणिक योग्यता –
04. वर्तमान व्यवसाय -
05. प्रकाशन (पत्र-पत्रिकाओं के नाम) –
06. प्रकाशित कृति का नाम –
07. ब्लॉग्स का यूआरएल – (यदि हो तो)
08. अन्य विवरण ( संक्षिप्त में लिखें)
09. पत्र-व्यवहार का संपूर्ण पता (ई-मेल सहित) –

हस्ताक्षर

Wednesday, September 22, 2010

कोयंबत्तूर में एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी 4 अक्तूबर को ....

दक्षिण भारत में हिंदी की स्थिति, गति एवं प्रगति
पर राष्ट्रीय संगोष्ठी

NATIONAL SEMINAR
on
STATUS, SCOPE AND PROGRESS OF HINDI IN SOUTH INDIA

दि. 4 अक्तूबर, सोमवार 2010 * Date: October 4th, Monday 2010
कोयंबत्तूर * COIMBATORE

संयोजक / ORGANISERS
नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, कोयंबत्तूर
TOWN OFFICIAL LANGUAGE IMPLEMENTATION COMMITTEE, COIMBATORE
(गृह मंत्रालय, भारत सरकार / Ministry of Home Affairs, Govt. of India)
एवं / &
डॉ. जी. आर. दामोदरन विज्ञान महाविद्यालय, कोयंबत्तूर
DR. G.R. DAMODARAN COLLEGE OF SCIENCE, COIMBATORE
/ Venue :

आईटी सेमिनार हाल, डॉ. जी. आर. दामोदरन विज्ञान महाविद्यालय, कोयंबत्तूर
GRDIT Seminar Hall, Dr. G.R. Damodaran College of Science, Coimbatore-14

उद्देश्य एवं सहभागिता / Overview & Participation:

भारत के संविधान में राजभाषा, भारतीय जनमानस में राष्ट्रभाषा के रूप में दर्जा प्राप्त हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार एवं प्रयोग दक्षिण भारत में भारत की आज़ादी की पूर्व से ही होता रहा है । दक्षिण के आंध्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल एवं पांडिच्चेरी प्रदेशों में शैक्षिक, सामाजिक, साहित्यिक, आर्थिक, व्यावसायिक, वाणिज्यिक, औद्योगिक, प्रशासनिक क्षेत्रों के अलावा मीडिया एवं फिल्म क्षेत्रों में भी आज हिंदी का विस्तृत प्रचार-प्रसार के आलोक में समग्र स्थिति का जायज़ा लेने के लिए एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है ।
इस संगोष्ठी में सभी क्षेत्रों में संबद्ध अधिकारी, विद्वान, अध्यापक, शोधार्थी, उद्योगपति, साहित्यकार, पत्रकार आदि अपने मौलिक एवं शोधपरक आलेख प्रस्तुत कर सकते हैं ।

विषय / Topic - दक्षिण भारत में हिंदी की स्थिति, गति एवं प्रगति


उप विषय / Sub-topics:

दक्षिण भारत में हिंदी भाषा का प्रचार
दक्षिण भारत में शैक्षिक, प्रशासनिक आदि क्षेत्र में हिंदी की स्थिति
दक्षिण भारत में हिंदी लेखन, साहित्य एवं पत्रकारिता
आंध्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल एवं पोंडिच्चेरी में हिंदी की स्थिति संबंधित अन्य विषय

प्रपत्र प्रस्तुतीकरण के लिए सुझाव / Guidelines for Submission of Papers:

प्रपत्र मैक्रोसॉफ्ट वर्ड (.doc अथवा .docx) फाईल फार्मेट में ई-मेल द्वारा दि.28 सितंबर, 2010 तक tolicseminar@gmail.com तथा nationalhindiseminars@gmail.com पर भेजे जा सकते हैं।

कंप्यूटर पर यूनिकोड फोंट (मंगल अथवा एरियल यूनिकोड) में अथवा कृतिदेव फांट का प्रयोग करके प्रपत्र तैयार किया जाना चाहिए । शीर्षकों के लिए 14 साइज़ का फांट तथा शेष सामग्री के लिए 12 साइज़ फांट का प्रयोग किया जाए । दो-लाइन स्पेस में चारों ओर कम से कम 1'' मार्जिन सहित तैयार किया जाए और पृष्ठ की एक ही तरफ मुद्रित किया जाए ।
जो ई-मेल द्वारा प्रपत्र नहीं भेज पाते हैं, वे स्पीड पोस्ट/कोरियर द्वारा प्रपत्र की मुद्रित प्रति A4 साइज़ में तथा कंप्यूटर पर अक्षरांकित सामग्री की सी.डी. भी भेज सकते हैं। प्रपत्र का शीर्षक एवं सार प्रथम पृष्ठ पर शामिल किया जाए। प्रपत्र को इस क्रम में तैयार किया जाए - शीर्षक, सार, उपशीर्षक, संदर्भ एवं परिशिष्ट । निर्धारित समय तक प्रपत्र की स्वीकृत की सूचना ई-मेल/वेबसाइट के माध्यम से दी जाएगी ।

स्वीकृत प्रपत्र पर कापीराइट तथा आयोजन समिति के द्वारा प्रकाशित किए जानेवाले संकलन में प्रपत्र को संपादित कर प्रकाशित करने का अधिकार संपादक के पास रहेगा।

प्रोजेक्टर की सुविधा / Projector Facility:
यदि आवश्यक हो, महत्वपूर्ण विषयों पर पवरपाइंट प्रस्तुतीकरण के लिए प्रोजेक्टर की सुविधा उपलब्ध रहेगी ।

पंजीकरण / Registration:

प्रपत्र प्रस्तुतकर्ता तथा अन्य सामान्य प्रतिभागियों को भी पंजीकरण फार्म भरकर दि. 28 सितंबर 2010 तक प्रस्तुत करना अपेक्षित है।

शुल्क / Fees:

प्रपत्र प्रस्तुतीकरण एवं प्रतियोगिता के लिए कोई शुल्क देय नहीं है।

मार्गव्यय / Travelling Expenses:

प्रपत्र प्रस्तुतकर्ताओं तथा सामान्य प्रतिभगियों को स्वयं अथवा अपने कार्यालय/संस्थान की ओर से मार्गव्यय की व्यवस्था करनी होगी।

आवास व्यवस्था / Accommodation:

बाहर से पधारनेवाले प्रतिभागी अपने रुकने/आवास की व्यवस्था स्वयं कर लेंगे। कोयंबत्तूर शहर के प्रमुख होटलों की सूची नराकास वेबसाइट (www.toliccbe.blogspot.com) पर उपलब्ध कराई जाएगी।

प्रपत्र/पंजीकरण फार्म प्रस्तुत करने हेतु पता : / Address for submission of papers:

डॉ. सी. जय शंकर बाबु, सदस्य सचिव, नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन, डॉ. बालसुदरम रोड, कोयंबत्तूर - 641 018.
दूरभाष:0422-2240225 फैक्स:0422-2240140 मोबाइल:09843508506
ई-मेल:tolicseminar@gmail.com, toliccbe@gmail.com,
nationalhindiseminars@gmail.com,
महत्वपूर्ण तिथि / Important Date :

Last date for submission of Registration Forms along with abstract & final paper: 29 September, 2010.

पंजीकरण प्रपत्र - Registration Form
दक्षिण भारत में हिंदी की स्थिति, गति एवं प्रगति पर राष्ट्रीय संगोष्ठी
National Seminar
on STATUS, SCOPE AND PROGRESS OF HINDI IN SOUTH INDIA
October 4th, Monday 2010

नाम/Name : Prof/Dr/Mr/Ms………………………………………………………..
पदनाम/Designation :……………………………………………………………….
कार्यालय/संस्थान/Office/Institution :………………………………………………
पत्राचार का पता/ Address for correspondence :
……………………………………………………………………………………….
…………………………………………………………………………………………
पिनकोड/Pincode :…………………………….राज्य/State :………………………..
क्या प्रपत्र प्रस्तुत कर रहे हैं - जी, हाँ/जी नहीं@Whether presenting paper? – Yes/No

मोबाईल सं./Mobile No. ई-मेल/E-mail:
फैक्स सं/Fax No. दूरभाष/Telephone No.
CERTIFICATE
I certify that the research paper/article titled …………......................................................… ………………………………............................. is an original work carried out by me. It has not been published / presented elsewhere. In the event of acceptance and publication in the conference proceedings, I agree that its copyright will be automatically transferred to the Seminar Organizing Committee. I have read other details about Seminar.
हस्ताक्षर/ Signature……………………………………… दिनांक/Date …………………………..
पंजीकरण फार्म प्रस्तुत करने की अंतिम तिथि : 28 सितंबर, 2010
Last date for submission of Registration Form: 28th September 2010.

Monday, September 20, 2010

हिन्दी यूएनओ की भाषा बने - अनिरूद्ध जगन्नाथ (राष्ट्रपति, मारीशस)



रायपुर। मारीशस के राष्ट्रपति श्री अनिरूद्ध जगन्नाथ ने कहा कि छत्तीसगढ़, भारत की साहित्यिक संस्था सृजन सम्मान द्वारा विश्वभर में हिन्दी के प्रचार-प्रसार, साहित्यकारों का सम्मान एवं हिन्दी की जो सेवा की जा रही है वह प्रशंसनीय है। उन्होंने कहा कि हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषाओं में सम्मिलित करने का प्रयास करना अच्छी बात है। यह विचार उन्होंने भारत के छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक संस्था सृजन सम्मान द्वारा आयोजित साहित्यिक भ्रमण के अंतर्गत संस्था के राष्ट्रीय महासचिव एवं यात्रा संयोजक द्वय जयप्रकाश मानस एवं एच.एस.टाकुर के नेतृत्व में मारीशस पहुँचे यात्रा समूह के सदस्यों के साथ आयोजित एक बैठक में व्यक्त किए। उन्होंने संस्था द्वारा किए जा रहे कार्यों पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए मारीशस की अर्थव्यवस्था एवं उपलब्ध सुविधाओं के बारे में भी सदस्यों से बातचीत की। इस अवसर पर मारीशस की प्रथम महिला श्रीमती सरोजनी जगन्नाथ विशेष रूप से उपस्थित थी।





तृतीय अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन बाली (इंडोनेशिया) में



बैठक के आरंभ में जयप्रकाश मानस ने पुस्तकें भेंटकर राष्ट्रपति का स्वागत किया। अपने स्वागत उद्बोधन में मानस ने व्यस्तता के बावजूद भारतीय साहित्यकारों के दल को समय देने के लिए राष्ट्रपति के प्रति आभार व्यक्त करते हुए संस्था के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि संस्था के माध्यम से मारीशस में द्वितीय हिन्दी सम्मेलन का आयोजन किया गया। गतवर्ष पहला अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन थाईलैंड में किया गया था । हिन्दी दिवस के अवसर पर मारीशस के 7 वरिष्ठ साहित्यकारों का सम्मान भी किया गया। उन्होंने राष्ट्रपति को अवगत कराया कि भविष्य में हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषाओं में सम्मिलित किए जाने का प्रयास जारी है और इस सिलसिले में अगले साल इंडोनेशिया (बाली) में तृतीय अंतरराष्ट्रीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन करने का निर्णय लिया गया है।



राष्ट्रपति भवन में साहित्यकारों का दल



इस अवसर पर छत्तीसगढ़ शासन के संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का एक पत्र एवं बस्तर के कलाकारों द्वारा निर्मित धातु शिल्प भी राष्ट्रपति को सौंपा गया। इसके अलावा अनेक साहित्यकारों ने अपनी पुस्तकें तथा फ़िलाटेलिक सोसायटी ऑफ इंडिया की छत्तीसगढ़ इकाई की ओर से भारत के साहित्यकारों एवं अगले माह आयोजित होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों पर केन्द्रित भारतीय डाक टिकटों के दो एलबम भेंट किए गए। तत्पश्चात राष्ट्रपति के साथ सदस्यों का एक फ़ोटो सत्र का आयोजन किया गया। जिसमें प्रथम महिला एवं बड़ी संख्या में मारीशस के शिक्षाविद एवं साहित्यकार भी सम्मिलित थे। राष्ट्रपति भवन की ओर से सदस्यों के लिए स्वल्पाहार का आयोजन भी किया गया था।

उल्लेखनीय है कि साहित्यिक संस्था सृजन सम्मान द्वारा संस्था के महासचिव जयप्रकाश मानस के नेतृत्व में विश्व हिन्दी दिवस के अवसर पर 10 से 18 सितम्बर तक मारीशस का साहित्यिक, सांस्कृतिक पर्यटन अध्ययन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें देशभर के 61 सदस्यों ने भाग लिया।



हिन्दी का संसार एवं संसार की हिन्दी विषय पर संगोष्ठी



भ्रमण के दौरान मारीशस सरकार द्वारा गठित सांस्कृतिक प्रतिष्ठान हिन्दी स्पीकिंग यूनियन द्वारा हिन्दी दिवस पर हिन्दी का संसार एवं संसार की हिन्दी विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। प्रथम सत्र के मुख्य अतिथि थे हिन्दी के वरिष्ठ उपन्यासकार अभिमन्यु अनत और अध्यक्षता की जयप्रकाश मानस ने । द्वितीय सत्र में कृतियों का विमोचन एवं मॉरीशस के साहित्यकारों का अंलकरण कार्यक्रम आयोजित था । इस सत्र के मुख्य अतिथि थे - मारीशस के संस्कृति एवं कला मंत्री श्री मुखेश्वर शोन्नी ।



मॉरीशस के 7 साहित्यकारों को सृजनश्री अंलकरण



इस अवसर पर सृजन-सम्मान द्वारा वहाँ के वरिष्ठ 7 साहित्यकारों को सृजन-श्री अंलकरण से अलंकृत किया गया । सम्मानित साहित्यकारों को शॉल, श्रीफल, प्रतीक चिन्ह एवं प्रशस्ति पत्र भेंट कर सम्मान किया गया। जिसमें उपन्यास के लिए मारीशस के श्री अभिमन्यु अनत, कहानी के लिए प्रकारेश धुरंधर, नाटक के लिए महेश राम जीयावन, कविता के लिए पूजा नंद नेमा, महिला विमर्श के लिए भानुमति नागदान, हिन्दी सेवा के लिए स्व.मुनेश्वर लाल चिन्तामणी के अलावा महात्मा गांधी संस्थान के वरिष्ठ व्याख्याता एवं कार्यक्रम के संयोजक विनय गोदारी को सृजन श्री सम्मान से विभूषित किया गया। संगोष्ठी में भारत से मारीशस पहुँचे अनेक साहित्यकारों की पुस्तकों, पत्रिकाओं एवं गीतों के कैसेटों का विमोचन भी किया गया। इसके अलावा सदस्यों ने महात्मा गांधी संस्थान का भ्रमण किया। संस्थान के विभागाध्यक्ष एवं अन्य प्राध्यापकों ने प्रतिष्ठान की गतिविधियों की जानकारी दी। साथ ही प्रतिष्ठान द्वारा संचालित हिन्दी प्रचार अभियान के अंतर्गत नुक्कड़ नाटक का अवलोकन किया।


इस सांस्कृतिक अध्ययन दल में यात्रा संयोजक जयप्रकाश मानस एवं एच.एस.ठाकुर सहित छत्तीसगढ़ शासन के संस्कृति विभाग के संचालक राजीव श्रीवास्तव, राम पटवा, डॉ.सुधीर शर्मा, डॉ.जे.आर.सोनी, डॉ.महेन्द्र ठाकुर, दीपक पाचपोर, सुरेश तिवारी, चेतन भारती, संजीव ठाकुर, डॉ.निरुपमा शर्मा, डॉ.सीमा श्रीवास्तव, लतिका भावे, शकुन्तला तरार, अरूणा चौहान,अरविन्द मिश्रा, कुमेश कुमार जैन, नागेन्द्र दुबे, टामन सिंह सोनवानी, श्रीमती पदमनी सिंह, अभिषेक सोनवानी, ललित गणवीर, श्रीमती गणवीर, जी.एस.बाम्बरा, श्रीमती आर.बाम्बरा, प्रतापचंद पारख, सत्यपाल, श्रीकांत अग्रवाल, रमाकांत अग्रवाल, बिलासपुर के राजेश सोन्थलिया, रायगढ़ के सत्यदेव शर्मा, संजय तिवारी, उसत राम, भीखलाल पटेल, सुरेश पंडा, सुरेश छत्री, श्रीमती क्षत्री, अर्जुन दास, देवानी, एम.आर.ठाकुर, समुन्द सिंह, मिश्री लाल पाण्डे, राजेश तिवारी, सरायपाली के मीनकेतन दास, नागपुर महाराष्ट्र के भाषाविद डॉ.रामप्रकाश सक्सेना, हनुमन्त ठाकरे, नागेन्द्र अन्नाराव, रामदेव खुशहाल राव, बंडोपाद्ये यशवंत, नरेन्द्र दंडारे, उत्तराखण्ड नैनीताल के दिवाकर भट्ट, मध्यप्रदेश भोपाल के डी.पी.सक्सेना, मधु सक्सेना, प्रकाशचंद तापड़े, अरूणा तापड़े एवं सृजन-सम्मान के यात्रा-पार्टनर क्रियेटिव ट्रेव्हलर्स के प्रमुख विकास मल्होत्रा आदि सम्मिलित थे।



(मारीशस से लौटकर हीरामन सिंह ठाकुर)

Friday, September 17, 2010

अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में निदेशक डाक सेवा कार्यालय में हिन्दी-दिवस का आयोजन

भारतीय संस्कृति की अस्मिता की पहचान है हिन्दी

भारत के सुदूर दक्षिणी अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में निदेशक डाक सेवा कार्यालय में हिन्दी-दिवस का आयोजन किया गया. निदेशक डाक सेवाएँ श्री कृष्ण कुमार यादव ने माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण और पारंपरिक द्वीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया. कार्यक्रम के आरंभ में अपने स्वागत भाषण में सहायक डाक अधीक्षक श्री रंजीत आदक ने इस बात पर प्रसन्नता जाहिर कि निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव स्वयं हिन्दी के सम्मानित लेखक और साहित्यकार हैं, ऐसे में द्वीप-समूह में राजभाषा हिन्दी के प्रति लोगों को प्रवृत्त करने में उनका पूरा मार्गदर्शन मिल रहा है. हिन्दी कि कार्य-योजना पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने बताया कि संविधान सभा द्वारा 14 सितंबर, 1949 को सर्वसम्मति से हिंदी को संघ की राजभाषा घोषित किया गया था, तब से हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है. इस अवसर पर जोर दिया गया कि राजभाषा हिंदी अपनी मातृभाषा है, इसलिए इसका सम्मान करना चाहिए और बहुतायत में प्रयोग करना चाहिए.

इस अवसर पर कार्यक्रम को संबोधित करते हुए चर्चित साहित्यकार और निदेशक डाक सेवाएँ श्री कृष्ण कुमार यादव ने हिन्दी को जन-जन की भाषा बनाने पर जोर दिया। अंडमान-निकोबार में हिन्दी के बढ़ते क़दमों को भी उन्होंने रेखांकित किया. उन्होंने कहा कि हमें हिन्दी से जुड़े आयोजनों को उनकी मूल भावना के साथ स्वीकार करना चाहिए। स्वयं डाक-विभाग में साहित्य सृजन की एक दीर्घ परम्परा रही है और यही कारण है कि तमाम मशहूर साहित्यकार इस विशाल विभाग की गोद में अपनी काया का विस्तार पाने में सफल रहें हैं. इनमें प्रसिद्ध साहित्यकार व ‘नील दर्पण‘ पुस्तक के लेखक दीनबन्धु मित्र, ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लोकप्रिय तमिल उपन्यासकार पी0वी0अखिलंदम, राजनगर उपन्यास के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित अमियभूषण मजूमदार, फिल्म निर्माता व लेखक पद्मश्री राजेन्द्र सिंह बेदी, ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता मशहूर लेखिका महाश्वेता देवी, सुविख्यात उर्दू समीक्षक शम्सुररहमान फारूकी, शायर कृष्ण बिहारी नूर जैसे तमाम मूर्धन्य नाम शामिल रहे हैं। उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द जी के पिता अजायबलाल भी डाक विभाग में ही क्लर्क रहे।

निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव यादव ने अपने उद्बोधन में बदलते परिवेश में हिन्दी की भूमिका पर भी प्रकाश डाला और कहा कि- ''आज की हिन्दी ने बदलती परिस्थितियों में अपने को काफी परिवर्तित किया है. विज्ञान-प्रौद्योगिकी से लेकर तमाम विषयों पर हिन्दी की किताबें अब उपलब्ध हैं, पत्र-पत्रिकाओं का प्रचलन बढ़ा है, इण्टरनेट पर हिन्दी की बेबसाइटों और ब्लॉग में बढ़ोत्तरी हो रही है, सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की कई कम्पनियों ने हिन्दी भाषा में परियोजनाएं आरम्भ की हैं. निश्चिततः इससे हिन्दी भाषा को एक नवीन प्रतिष्ठा मिली है।'' श्री यादव ने जोर देकर कहा कि साहित्य का सम्बन्ध सदैव संस्कृति से रहा है और हिन्दी भारतीय संस्कृति की अस्मिता की पहचान है। इस अवसर पर पोर्टब्लेयर प्रधान डाकघर के पोस्टमास्टर एम. गणपति ने कहा कि आज हिन्दी भारत ही नहीं बल्कि विश्व भर में अपनी पताका फहरा रही है और इस क्षेत्र में सभी से रचनात्मक कदमों की आशा की जाती है। इस अवसर पर डाकघर के कर्मचारियों में हिंदी के प्रति सुरुचि जागृत करने के लिए निबंध लेखन, पत्र लेखन, हिंदी टंकण, श्रुतलेख, भाषण और परिचर्चा जैसे विभिन्न कार्यक्रम भी आयोजित किये गए. कार्यक्रम में जन सम्पर्क निरीक्षक पी. नीलाचलम, कुच्वा मिंज, शांता देब, निर्मला, एम. सुप्रभा, पी. देवदासु, मिहिर कुमार पाल सहित तमाम डाक अधिकारी/ कर्मचारी उपस्थिति रहे. कार्यक्रम का सञ्चालन हिंदी अनुभाग के कुच्वा मिंज द्वारा किया गया.

निदेशक डाक सेवाएँ
अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, पोर्टब्लेयर -744101

Monday, September 13, 2010

श्यामल सुमन की कविता - हिन्दी पखवाड़ा

हिन्दी पखवाड़ा

भाषा जो सम्पर्क की हिन्दी उसमे मूल।
राष्ट्र की भाषा न बनी यह दिल्ली की भूल।।

राज काज के काम हित हिन्दी है स्वीकार।
लेकिन विद्यालय सभी हिन्दी के बीमार।।

भाषा तो सब है भली सीख बढ़ायें ज्ञान।
हिन्दी बहुमत के लिए करना मत अपमान।।

मंत्री के संतान सब जा के पढ़े विदेश।
भारत में भाषण करे हिन्दी पर संदेश।।

बढ़ा है अन्तर्जाल में हिन्दी नित्य प्रभाव।
लेकिन हिन्दुस्तान में है सम्मान अभाव।।

सिसक रही हिन्दी यहाँ हम सब जिम्मेवार।
बना दो भाषा राष्ट्र की ऐ दिल्ली सरकार।।

दिन पंद्रह इक बरस में हिन्दी आती याद।
यही सोच हो शेष दिन सुमन करे फरियाद।।

Saturday, September 11, 2010

श्यामल सुमन की एक कविता

सपना

बचपन से ही सपन दिखाया, उन सपनों को रोज सजाया।
पूरे जब न होते सपने, बार-बार मिलकर समझाया।
सपनों के बदले अब दिन में, तारे देख रहा हूँ।
सपना हुआ न अपना फिर भी, सपना देख रहा हूँ।।

पढ़-लिखकर जब उम्र हुई तो, अवसर हाथ नहीं आया।
अपनों से दुत्कार मिली और, उनका साथ नहीं पाया।
सपन दिखाया जो बचपन में, आँखें दिखा रहा है।
प्रतिभा को प्रभुता के आगे, झुकना सिखा रहा है।
अवसर छिन जाने पर चेहरा, अपना देख रहा हूँ।
सपना हुआ न अपना फिर भी, सपना देख रहा हूँ।।

ग्रह-गोचर का चक्कर है यह, पंडितजी ने बतलाया।
दान-पुण्य और यज्ञ-हवन का, मर्म सभी को समझाया।
शांत नहीं होना था ग्रह को, हैं अशांत घर वाले अब।
नए फकीरों की तलाश में, सच से विमुख हुए हैं सब।
बेबस होकर घर में मंत्र का, जपना देख रहा हूँ।
सपना हुआ न अपना फिर भी, सपना देख रहा हूँ।।

रोटी जिसको नहीं मयस्सर, क्यों सिखलाते योगासन?
सुंदर चहरे, बड़े बाल का, क्यों दिखलाते विज्ञापन?
नियम तोड़ते, वही सुमन को, क्यों सिखलाते अनुशासन?
सच में झूठ, झूठ में सच का, क्यों करते हैं प्रतिपादन?
जनहित से विपरीत ख़बर का, छपना देख रहा हूँ।
सपना हुआ न अपना फिर भी, सपना देख रहा हूँ।।

Sunday, September 5, 2010

श्यामल सुमन की एक कविता - अक्स

अक्स


साथी सुख में बन जाते सब दुख में कौन ठहरता है।
मेरे आँगन का बादल भी जाने कहाँ विचरता है।।

कैसे हो पहचान जगत में असली नकली चेहरे की।
अगर पसीने की रोटी हो चेहरा खूब निखरता है।।

फर्क नहीं पड़ता शासन को जब किसान भूखे मरते।
शेयर के बढ़ने घटने से सत्ता-खेल बिगड़ता है।।

इस हद से उस हद की बातें करते जो आसानी से।
और मुसीबत के आते ही पहले वही मुकरता है।।

बड़ी खबर बन जाती चटपट बड़े लोग की खाँसी भी।
बेबस के मरने पर चुप्पी, कैसी यहाँ मुखरता है।।

अनजाने लोगों में अक्सर कुछ अपने मिल जाते हैं।
खून के रिश्तों के चक्कर में जीवन कहाँ सँवरता है।।

करते हैं श्रृंगार प्रभु का समय से पहले तोड़ सुमन।
जो बदबू फैलाये सड़कर मुझको बहुत अखरता है।।

Friday, September 3, 2010

गाँधी जी पर आधारित हिन्दी फिल्म का शुभारम्भ पोर्टब्लेयर में..



आइलैंड फिल्म प्रोडक्शन के द्वारा गाँधी जी पर आधारित एक हिन्दी फिल्म का शुभारम्भ पोर्टब्लेयर में हुआ। फिल्म की कथा, निर्माण एवं निर्देशन नरेश चन्द्र लाल द्वारा किया जा रहा है। कई राष्ट्रीय पुरस्कारों के विजेता श्री लाल की अंडमान आधारित ‘अमृत जल‘ फिल्म चर्चा में रही है। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के डाक निदेशक एवं चर्चित साहित्यकार कृष्ण कुमार यादव ने मुहुर्त क्लैप शॉट देकर फिल्म का शुभारंभ किया। फिल्म सेंसर बोर्ड, कोलकाता रीजन के सदस्य नंद किशोर सिंह ने मुहुर्त नारियल तोड़ा। इस अवसर पर आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए डाक निदेशक कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि-” गाँधी जी की प्रासंगिकता सदैव बनी रहेगी और अपने विचारों के कारण वे सदैव जिंदा रहेंगे। काला-पानी कहे जाने वाले अंडमान के द्वीपों में वे भले ही कभी नहीं आएं हों, पर द्वीप-समूहों ने भावनात्मक स्तर पर उन्हें अपने करीब महसूस किया है। जाति-धर्म-भाषा क्षेत्र की सीमाओं से परे जिस तरह द्वीपवासी अपने में एक ‘लघु भारत ‘ का एहसास कराते हैं, वह गाँधी जी के सपनों के करीब है।“ श्री यादव ने फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों के अंडमान से लगाव पर प्रशंसा जाहिर की और आशा व्यक्त की कि ऐसी फिल्में द्वीप-समूहों की ऐतिहासिकता, प्राकृतिक सुन्दरता के साथ-साथ सेलुलर जेल जैसे क्रांति-तीर्थ स्थलों को बढ़ावा देने में भी सफल होंगी।

गौरतलब है कि इस फिल्म में बालीवुड के जाने-माने चेहरे मुकुल नाग, अनुकमल, राजेश जैश, मुम्बई फिल्म उद्योग के मनोज कुमार यादव के अलावा स्थानीय कलाकार गीतांजलि आचार्य, कृष्ण कुमार विश्वेन्द्र, रविन्दर राव, डी0पी0 सिंह, ननकौड़ी के रशीद, पर्सी आयरिश मेयर्श तथा पोर्टब्लेयर महात्मा गाँधी स्कूल के चार बच्चे इस फिल्म में काम करेंगे।

निर्देशक नरेश चंद्र लाल ने बताया कि सेलुलर जेल के बाद महाराष्ट्र के वर्धा स्थित गाँधी आश्रम सेवा ग्राम में भी इस फिल्म की शूटिंग होगी और यह फिल्म दिसम्बर, 2010 में रिलीज होगी।



नरेश चन्द्र लाल
निदेशक - अंडमान पीपुल थिएटर एसोसिएशन(आप्टा)
पोर्टब्लेयर, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह

Thursday, September 2, 2010

जन्माष्टमी पर विशेष लघुकथा: मोहनभोग ---संजीव वर्मा 'सलिल'



'हे प्रभु! क्षमा करना, आज मैं आपके लिये भोग नहीं ला पाया. मजबूरी में खाली हाथों पूजा करना पड़ रही है.' किसी भक्त का कातर स्वर सुनकर मैंने पीछे मुड़कर देखा.

अरे! ये तो वही सज्जन हैं जिन्होंने सवेरे मेरे साथ ही मिष्ठान्न भंडार से भोग के लिये मिठाई ली थी फिर...? मुझसे न रहा गया, पूछ बैठा: ''भाई जी! आज सवेरे हमने साथ-साथ ही भगवान के भोग के लिये मिष्ठान्न लिया था न? फिर आप खाली हाथ कैसे? वह मिठाई क्या हुई?''

'क्या बताऊँ?, आपके बाद मिष्ठान्न के पैसे देकर मंदिर की ओर आ ही रहा था कि देखा किरणे की एक दूकान में भीड़ लगी है और लोग एक छोटे से बच्चे को बुरी तरह मार रहे हैं. मैंने रुककर कारण पूछा तो पता चला कि वह एक डबलरोटी चुराकर भाग रहा था. लोगों को रोककर बच्चे को चुप किया और प्यार से पूछा तो उसने कहा कि उसने सच ही डबलरोटी बिना पैसे दिये ले ली थी. . रुपये-पैसों को उसने हाथ नहीं लगाया क्योंकि वह चोर नहीं है...मजबूरी में डबल रोटी इसलिए लेना पड़ा कि मजदूर पिता तीन दिन से बुखार के कारण काम पर नहीं जा सके...घर में अनाज का एक दाना भी नहीं बचा... आज माँ बीमार पिता और छोटी बहन को घर में छोड़कर काम पर गयी कि शाम को खाने के लिये कुछ ला सके....छोटी बहिन रो-रोकर जान दिये दे रही थी... सबसे मदद की गुहार की.. किसी ने कोई सहायता नहीं की तो मजबूरी में डबलरोटी...' और वह फिर रोने लगा...

'मैं सारी स्थिति समझ गया... एक निर्धन असहाय भूख के मारे की मदद न कर सकनेवाले ईमानदारी के ठेकेदार बनकर दंड दे रहे थे. मैंने दुकानदार को पैसे देकर बच्चे को डबलरोटी खरीदवाई और वह मिठाई का डिब्बा भी उसे ही देकर घर भेज दिया. मंदिर बंद होने का समय होने के कारण दुबारा भोग के लिये मिष्ठान्न नहीं ले सका और आप-धापी में सीधे मंदिर आ गया, इस कारण मोहन को भोग नहीं लगा पा रहा.'

''नहीं मेरे भाई!, हम सब तो मोहन की पाषाण प्रतिमा को ही पूजते रह गए... वास्तव में मोहन के जीवंत विग्रह को तो आपने ही भोग लगाया है.'' मेरे मुँह से निकला...प्रभु की मूर्ति पर दृष्टि पडी तो देखा वे मंद-मंद मुस्कुरा रहे हैं.

Thursday, August 26, 2010

मिट्टी के बर्तन - डॉ. एस. बशीर की सोलह मिनी कविताएँ

मिट्टी के बर्तन

यदि आपका,
हर काम होना है आसान।
तो बेच डालो अपना ईमान,
दिया करो कुछ न कुछ ईनाम।
नहीं तो कम से कम दो, एक मुस्कान (1)
***
यारी फूल है, फिज़ा में खुशबू बिखेरता।
चमन के लिए,
चराग मयस्सर है।
जीवन के लिए,
अंधेरे को चीर रोशनी को लाता,
हवा-सी थोड़ी भी, भूल हो तो।
फूल मुरझाता, चराग बुझ जाता। (2)

***
जो जिंदगी से,
करते है जितना प्या़र। उससे भी ज्यादा,
मौत से करते हैं इनकार। जिंदगी तो रहम खाती,
लेकिन मौत बेरहम हो जाती। (3)
***
अगर गुस्से को, न करें रिफ्यूज
दिमागी बल्ब हो जायेगा फ़्यूज।
वक्त का करें हमेशा यूज,
रिश्तों का न करें मिस्यूज (4)

***
इस दुनिया में,
सभी के दोस्त हैं आंसू। सिर्फ ग़म में ही नहीं,
खुशी में भी साथ देते।
हमेशा दवा और दुआ बनकर,
काम आते, जीने की प्रेरणा देते। (5)
***
सूखे पत्ते,
बहार के राज़ !
बुजर्ग ........
जिंदगी के साज़ हैं । (6)
***
मेरी दुआ है तुझी से
अय! खुदा..... ! दुश्मदनों से बचा सदा,
तारीफ करने वाले दोस्तों से कर जुदा।
मतलब के लिए जो हो जाते हैं फिदा,
कभी मंजूर न हो उनकी अदा । (7)
***
बादलों की तरह, फूलों पर ही नहीं
काटों पर भी बरसों, सदा प्यास से तरसों।
प्यार बरसाना, दिलवालों का खेल है
यही जीवन का मेल है, मंजिल की रेल है। (8)
***
‘तम’ में ही
सितारें नज़र आते, ‘गम’ में ही रिश्तें काम आते।
आते जाते ये सिल‍-सिले,
जीवन का मिसाल बताते। (9)
***
सोना सब के लिए
बराबर...... लेकिन
सपनों के है रंग हजार। (10)
***
किसी की आंसुओं पर
तरस न खाना,
क्यों कि .......... मगरमच्छ भी,
बहाया करते........ (11)
***
‘हार’ को
‘जीत’ में बदलना ही,
जिंदगी का मकसद ।
कायर को शायर बनाना ही,
महफिल की कसरत । (12)
***
सागर व शायरी
जिनकी नहीं कोई गहराई।
जितना डूबोगे,
उतना पाओगे।
क्योंकि..............
किनारे वालों को,
इसका अंदाज नहीं होता। (13)
***

यदि इस दुनिया में कांटे न होते तो,
फूलों की हिफाज़त कौन करता ?
आंसू न होते तो,
मुस्कान की चाहत कौन करता ?
मौत न होती तो,
कौन पहचानता कुदुरत ?
यदि तुम न होती तो, मैं जी सकता ? (14)
***
मुहब्बत एक
सागर! जिसकी कोई गहराई नहीं ।
जिंदगी एक
जहर!
जिसकी कोई
रिहाई नहीं । (15)
***
जीवन पलते हैं,
सिगरेट जलते हैं,
रिश्ते बदलते हैं,
हम हाथ मलते हैं,
कोसों दूर चलते हैं,
आखि‍र........ राख में बदलते हैं,
पानी में मिलते हैं। (16)

Monday, August 23, 2010

कविता - मेरा सफ़र


मेरा सफ़र

- डॉ. एस. बशीर, उप प्रबंधक, राजभाषा, एच.पी.सी.एल, चेन्नै

सदियों से सफ़र मेरा जारी है
कोई हमसफ़र मिले या न मिले
मेरा सफ़र तो चलता ही रहेगा
सूर्योदय से सूर्यास्त तक
दिन से रात तक, सुबह से शाम तक
इस पार से, उस पार तक
पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण तक
कई सदियों से सफ़र मेरा जारी है
अंधेरों में, उजालों में
विभीषिकाओं में, संघर्षों में
फूल व कांटों में, आँसूं व मुस्कान में
मकसद का ये मशाल जलता ही रहेगा
अंधेरों को चीर, मंजिल की ओर बढ़ता ही रहेगा
जीवन नदी बन
कल-कल नाद करता चलता हूं
पल पल नये रंग में बदलता हूं
मौसम व माहौल से नहीं घबराता
जैसे वक्त है उस रूप में बदलता हूं
कर्त्तव्य को निभाना मेरी इबादत है
इन्सानियात को कायम रखना मेरी आदत है।
नव चेतना को जागृत कर
नव स्फूर्ति को फैलाता हूं
जड़ समाज में परिवर्तन कर
नव समाज के निर्माण में हाथ बढ़ाता हूं
कण कण जीवन में
क्षण क्षण नव ऊर्जा का सृजन करता हूं
नव उमंग, नव उत्साह का
नव गीत गुनगुनाता हूं
परिवर्तन ही जीवन है
यही बात दुहराता हूं
मैं अपने राह पर चलता हूं
आगे बढ़ता हूं
मंजिल मिले या न मिले
परवाह नहीं मुझे
अपना सफ़र हमेशा जारी रखता हूं।

Saturday, August 21, 2010

सेलुलर जेल भी पहुँची क्वींस बैटन रिले



भारत इस वर्ष 19 वें राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन कर रहा है। परंपरानुसार इसकी शुरूआत 29 अक्तूबर, 2009 को बकिंघम पैलेस, लंदन में महारानी एलिजाबेथ द्वितीय द्वारा भारत की राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल को क्वीन्स बैटन हस्तांतरित करके हुई। इसके बाद ओलम्पिक एयर राइफल चैंपियन, अभिनव बिंद्रा ने क्वीन विक्टोरिया मान्युमेंट के चारों ओर रिले करते हुए क्वीन्स बैटन की यात्रा शुरू की। क्वीन्स बैटन सभी 71 राष्ट्रमंडल देशों में घूमने के बाद 25 जून, 2010 को पाकिस्तान से बाघा बार्डर द्वारा भारत में पहुँच गई और उसे पूरे देश में 100 दिनों तक घुमाया जाएगा। इस बीच यह जिस भी शहर से गुजर रही है, वहाँ इसका रंगारंग कार्यक्रमों द्वारा स्वागत किया जा रहा है। गौरतलब है कि आस्ट्रेलिया के बाद भारत दूसरा देश है, जहाँ इसके सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में बैटन रिले ले जाया जा रहा है.

19 अगस्त 2010 को राष्ट्रमंडल खेलों की क्वींस बैटन रिले भारत के दक्षिणतम क्षोर अण्डमान निकोबार द्वीप समूह की राजधानी पोर्टब्लेयर में भी चेन्नई से पहुंची, जहाँ सवेरे 7.45 बजे पोर्टब्लेयर हवाई अड्डे पर बैटन रिले का भव्य स्वागत किया गया. रिले औपचारिक रूप से शाम को 3 बजे ऐतिहासिक राष्ट्रीय स्मारक सेलुलर जेल परिसर में उपराज्यपाल (अवकाश प्राप्त ले0 जनरल) भूपेंद्र सिंह द्वारा प्रथम धावक के रूप में मुख्य सचिव विवेक रे को क्वींस बैटन रिले सौंप कर की गई. सेल्युलर जेल से शुरू होकर क्वींस बैटन रिले पोर्टब्लेयर के विभिन्न भागों से होते हुए ऐतिहासिक नेताजी स्टेडियम पहुँचकर सम्पन्न हुई. जहाँ सांसद श्री विष्णुपद राय ने बैटन को प्राप्त कर अधिकारियों को सौंपा. बैटन रिले को यादगार बनाने के लिए जहाँ प्रमुख स्थलों पर तोरण द्वार स्थापित किये गए, वहीँ पोर्टब्लेयर के डा0 बी. आर. अम्बेडकर सभागार में सांस्कृतिक संध्या का भी आयोजन किया गया. यही नहीं अबर्दीन जेटी और रास द्वीपों के बीच जहाजों को रोशनियों से सजाया भी गया. रिले के दौरान भारी संख्या में स्कूली विद्यार्थी इसका स्वागत करते दिखे. रिले के दौरान द्वीपों के राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त खिलाड़ियों के अलावा करीब 30 लोग बैटन धारक के रूप में इसे लेकर आगे बढ़ते रहे. इसे करीब से देखना वाकई एक सुखद अनुभव रहा.

आकांक्षा यादव