Sunday, January 31, 2010

कविता

भले और दीपक जलाओं नहीं तुम
-डॉ. गिरीश कुमार वर्मा

भले और दीपक जलाओं नहीं तुम ।
जला दीप लेकिन बुझाओ नहीं तुम।।

सहारा न दो लडखडा़ते हुओं को,
मगर ग़र्त में तो गिराओ नहीं तुम।

लिखो नाम दिल में किसी का खुशी से,
लिखा नाम लेकिन मिटाओ नहीं तुम।

भुला दो सभी कसमें - वादे भुला दो,
मगर आदमीयत भुलाओ नहीं तुम।

तुम्हारे लिए आइना बन गया जो,
उसे सामने से हटाओ नहीं तुम।

अग़र ख़ौफ़ इतना तुम्हें बिजलियों का,
कभी आशियाना बनाओ नहीं तुम।

जिसे राज़ मालूम सारे जहाँ का,
उसे राजे़ उल्फत बताओ नहीं तुम,

Saturday, January 30, 2010

4-8 मार्च, 2010 को कोयंबत्तूर में नैतिक मूल्यों पर पुस्तक प्रदर्शनी

अणुव्रत समिति, कोयंबत्तूर का आयोजन

BOOK-FAIR ON “ETHICALVALUES”

Organized by Anuvrat Samiti ,Coimbatore and in collaboration with
Bharathiar University , Avinashilingam University and Publishers & Book Seller’s Association, Coimbatore


Chairman, Book Fair Committee:

Prof.Dr. .K.. Kulandaivel, Ph.D.,(Ohio)
Former Chancellor, Avinashilingam University,
Ph (M) 94432 26362

Co-Chairman, Book Fair Committee
Rtn. PP. T. Sampath Kumar,
Co-ordinator, “Save Our Daughters”
Coimbatore Ph (M) :94431 43929



Dear Sir / Madam,


The Focal Theme of this Book Fair is Ethics Ensures Success and Happiness in Life.

This book Fair will be unique in the sense that ,it will bring under one roof, Books and CDs from various Religions ,Great thinkers, and Scientists. The formulae for Personalitry Development from Great minds will be made available for the public by reputed Publishers and Book Sellers from various parts of Tamil Nadu and other States .


Anuvrat Samiti, Coimbatore is an organ of the Anuvrat Mahasamiti,New Delhi. The major aim of the Anuvrat Movement, started by Acharya Tulsi and presently promoted by Acharya Maha Pragnya is to inculcate Ahimsa in the Thought, Speech and Behaviour of people throughout the World .The World will be a better place to live, when the individuals adopt some small-vows based on Universaly relevant ethical values.
In the Book -Fair there will also be Special Lectures ,Worshops and Video Displays of various Schools of Yoga, Meditation and Satsangh.
The outcome of their effort is expected to bring together like minded organization in the city towards Communal Harmony, Peace,. so that the Quality of Life is improved and prosperity is enhanced and a sense of concern for the fellow men and women is felt, leading to an ideal society drempt by noble men of this great Nation.

Yours Sincerely,

(Dr. Kulandaivel)

Rtn. PP Prof. Dr. V Ganesan Ph.D,
Chairman,Book Fair Committee
President
(M) 94434 78684


Rtn. PP. Narendra Motilal Ranka
Secretary
(M) 9894210152)

Thursday, January 28, 2010

डा० गणेश दत्त सारस्वत नहीं रहे

युग मानस की अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि

डॉ. गणेशदत्त सारस्वत

(१० दिसम्बर १९३६--२६ जनवरी २०१०)

डॉ. गणेशदत्त सारस्वत युग मानस के पाठकों के लिए सुपरिचित नाम, आज उनके हमारे बीच न रहने का दुःखद समाचार से युग मानस परिवार विक्षुब्ध है । रचनाकार के रूप में, युग मानस द्वारा आयोजित प्रतियोगिताओं के निर्णायक के रूप में उन्होंने बड़ी श्रद्धापूर्वक युग मानस के साथ जुड़े रहे । उनके आकस्मिक निधन से युग मानस ने एक अनन्य सहयोगी को खो दिया है । रामभक्ति पूर्ण साहित्य के विकास में, मानस के मंथन में एक समर्पित व्यक्ति के रूप में डॉ. सारस्वत जी की सेवाएँ अविस्मरणीय है । ईश्वर उनकी आत्मा को असीम शांति प्रदान करें । वे भौतिक रूप से आज हमारे साथ भले ही न हो, मगर उनका कृतित्व और उनके विचार हमारे साथ जीवित है ।

- डॉ. सी. जय शंकर बाबु, संपादक, युग मानस

हिन्दी साहित्य के पुरोधा विद्वता व विनम्रता की प्रतिमूर्ति सरस्वतीपुत्र, डा० गणेश दत्त सारस्वत २६ जनवरी २०१० को हमारे बीच नहीं रहे। शिक्षा : एम ए, हिन्दी तथा संस्कृत में पी० एच० डी०प्राप्त सम्मान: उ० प्र० हिंदी संस्थान से अनुशंसा पुरुस्कार, हिंदी साहित्य सम्मेलन इलाहाबाद से साहित्य महोपाध्याय की उपाधि सहित अन्य बहुत से पुरुस्कार।पूर्व धारित पद: पूर्व विभागाध्यक्ष हिंदी विभाग आर० एम० पी० पी० जी० कालेज सीतापुर आप ’हिन्दी सभा’ के अध्यक्ष तथा’ ’मानस चन्दन’ के प्रमुख सम्पादक रहे हैं। सारस्वत कुल में जनम, हिरदय में आवास..उमादत्त इनके पिता, सीतापुर में वास. श्यामल तन झुकते नयन, हिन्दी के विद्वान .वाहन रखते साइकिल, साधारण परिधान..कोमल स्वर मधुरिम वचन, करते सबसे प्रीति.सरल सौम्य व्यवहार से, जगत लिया है जीत..कर्म साधना में रमे, भगिनी गीता साथ.मानस चन्दन दे रहे, जनमानस के हाथ..तजी देह गणतन्त्र दिन, छूट गये सब काज. हुए जगत में अब अमर, सारस्वत महाराज हिंदी की सारी सभा, हुई आज बेहाल..रमारमणजी हैं विकल, साथ निरन्जन लाल.. आपस में हो एकता, अपनी ये आवाज. आओ मिल पूरित करें, इनके छूटे काज..अम्बरीष नैना सजल, कहते ये ही बात.आपस में सहयोग हो, हो हाथों में हाथ..--अम्बरीष श्रीवास्तव

सारस्वत जी नहीं रहे...

श्री सारस्वत जी नहीं रहे, सुनकर होता विश्वास नहीं.लगता है कर सृजन रहे, मौन बैठकर यहीं कहीं....
मूर्ति सरलता के अनुपम,जीवंत बिम्ब थे शुचिता के. बाधक बन पाए कभी नहीं-पथ में आडम्बर निजता के. वे राम भक्त, भारत के सुत,हिंदी के अनुपम चिन्तक-कवि.मानस पर अब तक अंकित हैसादगीपूर्ण वह निर्मल छवि. प्रभु को क्या कविता सुनना है?या गीत कोई लिखवाना है? पत्रिका कोई छपवाना है -या भजन नया रचवाना है?
क्यों उन्हें बुलाया? प्रभु बोलो, हम खोज रहे हैं उन्हें यहीं. श्री सारस्वत जी नहीं रहे, सुनकर होता विश्वास नहीं...

******************

आइये! हम उन्हें कुछ श्रद्धा सुमन समर्पित करते हैं।

प्रस्तुति - आचार्य संजीव सलिल

सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम">सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम / दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

Wednesday, January 27, 2010

कानपुर के साहित्यकारों-बुध्दिजीवियों ने दी के0के0 यादव को भावभीनी विदाई



कानपुर मण्डल के प्रवर डाक अधीक्षक, चीफ पोस्टमास्टर एवं प्रवर रेलवे डाक अधीक्षक पदों का दायित्व निरवाहन कर चुके कृष्ण कुमार यादव को डर्बी रेस्टोरेंट, दि माल में आयोजित एक भव्य समारोह में भावभीनी विदाई दी गई। गौरतलब है कि श्री यादव का प्रमोशन निदेशक पद के लिए हो गया है और वे अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवाएं रुप में अपना नया पद ज्वाइन करने जा रहे हैं। एक प्रशासक के साथ-साथ साहित्यकार के रूप में चर्चित श्री यादव की इस विदाई की गवाह नगर के तमाम प्रमुख साहित्यकार, बुद्विजीवी, शिक्षाविद, पत्रकार, अधिकारीगण एवं डाक विभाग के तमाम कर्मचारी बने।

डर्बी रेस्टोरेंट में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार पद्मश्री गिरिराज किशोर ने कहा कि प्रशासन के साथ-साथ साहित्यिक दायित्वों का निर्वहन बेहद जटिल कार्य है पर श्री कृष्ण कुमार यादव ने इसका भलीभांति निर्वहन कर रचनात्मकता को बढ़ावा दिया। गिरिराज किशोर ने इस बात पर जोर दिया कि आज समाज व राष्ट्र को ऐसे ही अधिकारी की जरूरत है जो पदीय दायित्वों के कुशल निर्वहन के साथ-साथ मानवीय संवेदनाओं से भी अपने को जोड़ सके। जीवन में लोग इन पदों पर आते-जाते हैं, पर मनुष्य का व्यक्तित्व ही उसकी विराटता का परिचायक होता है। मानस संगम के संयोजक डॉ0 बद्री नारायण तिवारी ने कहा कि बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी, रचनाशीलता के पर्याय एवं सरस्वती साधक श्री यादव जिस बखूबी से अपने अधीनस्थ अधिकारियों-कर्मचारियों से कार्य लेते हैं, सराहनीय है। अपने निष्पक्ष, स्पष्टवादी, साहसी व निर्भीक स्वभाव के कारण प्रसिध्द श्री यादव जहाँ कर्तव्यनिष्ठ एवं ईमानदार अधिकारी की भूमिका अदा कर रहे हैं, वहीं एक साहित्य साधक एवं सशक्त रचनाधर्मी के रूप में भी अपने दायित्वों का बखूबी निर्वहन कर रहे हैं। विशिष्ट अतिथि के रुप में उपस्थित टी0आर0 यादव, संयुक्त निदेशक कोषागार, कानपुर मण्डल ने एक कहावत के माध्यम से श्री यादव को इंगित करते हुए कहा कि कोई भी पद महत्वपूर्ण नहीं होता बल्कि उसे धारण करने वाला व्यक्ति अपने गुणों से महत्वपूर्ण बनाता है। एक ही पद को विभिन्न समयावधियों में कई लोग धारण करते हैं पर उनमें से कुछ पद व पद से परे कार्य करते हुए समाज में अपनी अमिट छाप छोड़ देते हैं, के0के0 यादव इसी के प्रतीक हैं। समाजसेवी एवं व्यवसायी सुशील कनोडिया ने कहा कि यह कानपुर का गौरव है कि श्री यादव जैसे अधिकारियों ने न सिर्फ यहां से बहुत कुछ सीखा बल्कि यहां लोगों के प्रेरणास्त्रोत भी बने।

वरिष्ठ बाल साहित्यकार डॉ0 राष्टबन्धु ने अपने अनुभवों को बांटते हुए कहा कि वे स्वयं डाक विभाग से जुड़े रहे हैं, ऐसे में के0के0 यादव जैसे गरिमामयी व्यक्तित्व को देखकर हर्ष की अनुभूति होती है। सामर्थ्य की संयोजिका गीता सिंह ने कहा कि बहुआयामी प्रतिभा सम्पन्न श्री यादव अपने कार्यों और रचनाओं में प्रगतिवादी हैं तथा जमीन से जुडे हुए व्यक्ति हैं। उत्कर्ष अकादमी के निदेशक डॉ0 प्रदीप दीक्षित ने कहा कि श्री के0के0 यादव इस बात के प्रतीक हैं कि साहित्य हमारे जाने-पहचाने संसार के समानांतर एक दूसरे संसार की रचना करता है और हमारे समय में हस्तक्षेप भी करता है। जे0के0 किड्स स्कूल के प्रबन्धक इन्द्रपाल सिंह सेंगर ने श्री यादव को युवाओं का प्रेरणास्त्रोत बताया।

के0के0 यादव पर संपादित पुस्तक ''बढ़ते चरण शिखर की ओर'' के संपादक दुर्गाचरण मिश्र ने कहा कि उनकी नजर में श्री यादव डाक विभाग के पहले ऐसे अधिकारी हैं, जिन्होंने नगर में रहकर नये कीर्तिमान स्थापित किये। इसी कारण उन पर पुस्तक भी संपादित की गई। चार साल के कार्यकाल में श्री यादव ने न सिर्फ तमाम नई योजनाएं क्रियान्वित की बल्कि डाकघरों के प्रति लोगों का रूझान भी बढ़ाया। प्रेस इन्फारमेशन ब्यूरो इंचार्ज एम0एस0 यादव ने आशा व्यक्त की कि श्री यादव जैसे कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों के चलते लोगों का साहित्य प्रेम बना रहेगा। नगर हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ0 एस0पी0 शुक्ल ने श्री यादव को भावभीनी विदाई देते हुए कहा कि कम समय में ज्यादा उपलब्धियों को समेटे श्री यादव न सिर्फ एक चर्चित अधिकारी हैं बल्कि साहित्य-कला को समाज में उचित स्थान दिलाने के लिए कटिबध्द भी दिखते हैं। चर्चित कवयित्री गीता सिंह चौहान ने श्री यादव की संवेदनात्मक अनुभूति की प्रशंसा की।

सहायक निदेशक बचत राजेश वत्स ने श्री यादव के सम्मान में कहा कि आप डाक विभाग जैसे बड़े उपक्रम में जो अपने कठोर अनुशासन, कर्तव्यनिष्ठा व ईमानदारी के लिए प्रसिध्द है, में एक महत्वपूर्ण तथा जिम्मेदार-सजग अधिकारी के रूप में अपनी योग्यता, कुशाग्र बुध्दि और दक्षता के चलते प्रशासकीय क्षमता के दायित्वों का कुशलता से निर्वहन कर रहे हैं। जिला बचत अधिकारी विमल गौतम ने श्री यादव के कार्यकाल के दौरान महत्वपूर्ण उपलब्धियों को इंगित किया तो सेवानिवृत्त अपर जिलाधिकारी श्यामलाल यादव ने श्री यादव को एक लोकप्रिय अधिकारी बताते हुए कहा कि प्रशासन में अभिनव प्रयोग करने में सिध्दस्त श्री यादव बाधाओं को भी चुनौतियों के रूप में स्वीकारते हैं और अपना आत्म्विश्वास नहीं खोते।

अपने भावभीनी विदाई समारोह से अभिभूत के0के0 यादव ने इस अवसर पर कहा कि अब तक कानपुर में उनका सबसे लम्बा कार्यकाल रहा है और इस दौरान उन्हें यहाँ से बहुत कुछ सीखने का मौका मिला। यहाँ के परिवेश में न सिर्फ मेरी सृजनात्मकता में वृध्दि की बल्कि उन्नति की राह भी दिखाई। श्री यादव ने कहा कि वे विभागीय रूप में भले ही यहाँ से जा रहे हैं पर कानपुर से उनका भावनात्मक संबंध हमेशा बना रहेगा।

श्री के0के0 यादव की प्रोन्नति के अवसर पर नगर की तमाम साहित्यिक-सामाजिक संस्थाओं द्वारा अभिनन्दन एवं सम्मान किया गया। इसमें मानस संगम, उ0प्र0 हिन्दी साहित्य सम्मेलन युवा प्रकोष्ठ, विधि प्रकोष्ठ, सामर्थ्य, उत्कर्ष अकादमी, मानस मण्डल जैसी तमाम चर्चित संस्थाएं शामिल थीं। कार्यक्रम की शुरूआत अनवरी बहनों द्वारा स्वागत गान से हुई। स्वागत-भाषण शैलेन्द्र दीक्षित, संचालन सियाराम पाण्डेय एवं संयोजन सुनील शर्मा द्वारा किया गया।

(अनुराग)
सचिव- ''मेधाश्रम'' संस्था
13/152 डी (5) परमट, कानपुर (उ0प्र0)

Monday, January 25, 2010

कविता


जय गणतंत्र दिवस !

- सुश्री डी. अर्चना, चेन्नै ।

भारतीय गणतंत्र के
पूरे हुए अब 60 साल
कई देश भक्त-बलिदान वीरों के
त्याग सेवा है, बेमिसाल।
हजारों राष्ट्र सेवकों ने
भारत को सींचा और संवारा
जन गण मन के अधिनायक
नव भारत को आधुनिक रूप दे कर
जय किसान ! जय जवान !! जय विज्ञान !!!
नारों से, न केवल सरताज किया
भारत को पूरे ज़ग में
बल्‍की विकास की ओर बढ़ने की
प्रेरणा भी दी।
हे! भारत के पवित्र गण्‍तंत्र
बने महान हमारा जन - तंत्र
शत्रु के नाश हो षडयंत्र
सफल हो भारत के नवमंत्र
तुम्हें अभिनंदन गणतंत्र !
अभिवंदन कोटि कोटि
हृदय तंत्र - जनंमत्र।
गणतंत्र - जनतंत्र।।

कविता

भले और दीपक जलाओं नहीं तुम

-डॉ. गिरीश कुमार वर्मा

भले और दीपक जलाओं नहीं तुम ।
जला दीप लेकिन बुझाओ नहीं तुम।।

सहारा न दो लडखडा़ते हुओं को,
मगर ग़र्त में तो गिराओ नहीं तुम।

लिखो नाम दिल में किसी का खुशी से,
लिखा नाम लेकिन मिटाओ नहीं तुम।

भुला दो सभी कसमें - वादे भुला दो,
मगर आदमीयत भुलाओ नहीं तुम।

तुम्हारे लिए आइना बन गया जो,
उसे सामने से हटाओ नहीं तुम।

अग़र ख़ौफ़ इतना तुम्हें बिजलियों का,
कभी आशियाना बनाओ नहीं तुम।

जिसे राज़ मालूम सारे जहाँ का,
उसे राजे़ उल्फत बताओ नहीं तुम,

Saturday, January 23, 2010

कविता

मुक्तिका


संजीव 'सलिल'

दिल में क्या है न सब से सदा बोलिए.
सोचिये फिर समझ राज निज खोलिए.
बोल दी बात जो, हो न वापिस कभी.
पेश्तर बोलने के जरा तोलिये.
राह मंदिर कि हो या कि मस्जिद कि हो.
जब चलें तो जुबां में अमृत घोलिये.
लोग कहते रहे कि 'सलिल' सो रहा.
क्या पता उनको हमने सपन बो लिए.

आप की बात कोई सुने, न सुने.
हौसले से 'सलिल' सच यहाँ बोलिए.

Thursday, January 21, 2010

कविता


बेटियां


- डॉ. एस. बशीर, चेन्नै.



बेटियां…… घर - घर का साज शिंगार हैं
दर - दर महकता, बसंत बहार हैं
झर झर बहती प्‍यास बुझाती अमृत की धार हैं
झिलमिल हीरे-सोने का बहुमूल्‍य हार हैं
ये गुल नहीं गुलजार हैं
बेटियों घर में खुदा का बख्‍शा, बेमिसाल उपहार हैं
बेटियां……..
मुहब्‍बत का इज़हार हैं
ममता का पारावार हैं
समता का पतवार हैं
सेवा का अवतार हैं
बेटियां जहां हो………
हर घर में, हर दिन, त्‍यौहार ही त्‍यौहार है।
बेटियां…….
ये परिवार का दुलार हैं
समूचे दौलत के हकदार हैं
सुख दुख में भागीदार हैं
सरगम का मलहार है
जिस घर में बेटियां हो तो
बरकत व शफाएं-फरिश्‍तों की भरमार हैं।

बेटियं आज ………
बेटों से भी आगे बढ़ रही हैं
सभी क्षेत्रों में विकास कर रही हैं
माता-पिता गुरुजनों का नाम रोशन कर,
वतन पर मर मिटने को तैयार हैं।
बेटियां सिर्फ घर परिवार के ही नहीं
बेटियां इनसानियत की लाज़ हैं
बेटियां हमेशा……… गौरवशाली इतिहास का साज़ हैं
बहुमूल वक्‍त का राज़ है
भारत वर्ष ताज़ हैं ।
हर युग में सरताज़ है।
हर युग में सरफराज़ हैं।।
गरिमामय देश की, कौमी का एकता की, आवाज़ है।