Friday, January 27, 2012

कविता



कोख़ का क़त्ल

- दीपक शर्मा

"ज़मीं के सीने से लिपटा ये कफ़न किसका है

कफ़न में लिपटा ये मासूम बदन किसका है

कफ़न नया नहीं पुरानी धोती का टुकड़ा है

और इस टुकड़े में लिपटा प्यारा सा मुखड़ा है

बड़ी बेदर्दी से दफनाया गया मिटटी में इसे

पाँव पेट से लगे हैं , सिर छाती में सिकुड़ा है



मिटटी तक गीली है ले देख मिटटी की हालत

खाक तक पूरी न मयस्सर हुई कब्र को इसकी

और ऊपर से रख दिए फिर पत्थर तमाम

ताकि जान न पायें निगाहें कब्र है किसकी



प्यारी-प्यारी सी हथेली, मखमली-मखमली नाख़ून

कच्चे गुलाब से होंठ और निबोरी - सी निगाहें

गुलाब जिस्म, परी से पाँव, दिल - फरेब मुस्कान

जिसको देखकर खुद - ब - खुद उठ जाए बाहें



एक परी ने कहीं शक्ल एक बच्ची की लेकर

किसीके सुने चमन में खिलना चाहा था

उसने सोचा चलो ; जी लूँ इंसान की तरह

माँ की छाती से चिपककर पलना चाहा था



उसे मालूम न था कि पहली किलकारी ही उसकी

चीख़ बनकर रह जाएगी गले के ही भीतर

निगाहें देख भी ना पाएंगी दुनिया नज़र पहली

और दुनिया ही सिमट जायेगी नज़र के भीतर



क़त्ल कर देंगे माँ - बाप इस ख़ातिर क्योंकि

उसकी आवाज़ से आई है शहनाई की सदा

उनकी उम्मीदें थीं डोलियाँ ओथाने की कहीं

न की दहलीज़ से हो उनके कोई लड़की विदा



झूटी शान की ख़ातिर ,पुरानी रस्मों के कारण

लोग नन्हीं- नन्हीं बेटियों की काट देते हैं बोटियाँ

ताकि सिर ना झुके कहीं गैर पाँव के आगे

बेटी देती नहीं हैं मोक्ष, वंश और रोटियां



और बड़ी कमतर सी बात ये जो माँ अपना

लहू पिलाती है सुबह - शाम महीनों तक

जिसकी धड़कन के संग धड़कती एक धड़कन

जिसकी साँसों से लेती कोई सांस महीनो तक



जब वही अहसास एक शक्ल बच्ची की लेकर

कोख से आता है तो माएं क्यों आंसू बहाती हैं

क्यों निगाहें फेर लेतीं फिर पत्थर - दिल बनकर

जब ख़ुद दाइयां इन मासूमों का गला दबाती हैं



क्यों रातों की स्याही और दिल के उजाले में

लोग रौशिनी को अँधेरे कमरों की बुझा देते हैं

दबा कर नर्म गला, हिस्से कर मासूम बदन

घर की चौखट पर एक दिया जला देते हैं



याद रखो ! कि आसमान की बिसात है तब तक

जब तलक पाँव ज़मीन पे हैं और जहाँ तक

जहाँ पर धरती ख़त्म, आसमान वहीँ ख़त्म

इन झूटी ख्वाहिशों की फकत दुनिया है वहां तक

Monday, January 16, 2012

बिना भाव व संवेदना के कविता हो ही नहीं सकती


प्रमोद वर्मा संस्थान का तीसरा युवा रचना शिविर सम्पन्न




रायगढ़ । नये रचनाकारों को लिखने से अधिक पढ़ना चाहिए। वरिष्ठ
साहित्यकारों की रचनाओं को पढ़ना, आत्मसात करना फिर लिखना ही एक मंत्र है
। अधिकांश नया लेखक हड़बड़ी में रहता है जबकि साहित्य की कोई भी विधा
मुकम्मल समय मांगती है। प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान के अध्यक्ष
विश्वरंजन ने रायगढ़ में पद्मश्री मुकुटधर पाण्डेय स्मृति युवा रचना
शिविर को संबोधित करते हुए कहा कि नये समय की अदृश्य चुनौतियों पर
गंभीरता से विचार करना आज सभी युवा लेखकों का कर्तव्य होना चाहिए ।
उद्घाटन अवसर के मुख्य अतिथि प्रो. रोहिताश्व ने कहा कि वे संस्थान के हर
शिविर में आते रहे हैं । छत्तीसगढ़ में जिस तरह यह संस्थान राग-द्वेष से
मुक्त होकर नवागत लेखकों के लिए उद्यम कर रहा है वह देश के बड़े बड़े
प्रतिष्ठानों के वश की बात नहीं । संस्थान द्वारा आयोजित यह तीसरा रचना
शिविर था जो 7 से 9 जनवरी तक चला । शिविर की शुरूआत रायगढ़ के युवा
संगीतकार श्री मनहरण सिंह ठाकुर व चंद्रा देवांगन द्वारा महाकवि निराला
के गीत गायन से हुई । उद्घाटन सत्र का संचालन करते हुये युवा लेखक श्याम
नारायण श्रीवास्तव ने सर्वप्रथम आमंत्रित वरिष्ठ साहित्यकारों का परिचय
कराया । स्वागत भाषण दिया सुपरिचित आलोचक डॉ. बलदेव ने ।

ज्ञातव्य है कि संस्थान द्वारा देश के युवा एवं संभावनाशील रचनाकारों
विशिष्ट और वरिष्ठ साहित्यकारों के माध्यम से साहित्य के मूलभूत
सिद्धान्तों, विधागत विषेशताओं, परंपरां व समकालीन प्रवृत्तियों से
परिचित कराने, उनमें संवेदना और अभिव्यक्ति कौशल को¨ विकसित करने,
प्रजातांत्रिक और शाश्वत जीवन मूल्यों के प्रति उन्मुखीकरण तथा स्थापित
लेखक और उनकी रचनाधर्मिता से परिचित कराने की महत्वाकांक्षी योजना के
अन्तर्गत छत्तीसगढ़ की विभिन्न जनपदों में निःशुल्क रचना शिविर आयोजित
किया जा रहा है।
12 से अधिक कृतियों का विमोचन

शिविर के उद्घाटन अवसर पर कुछ प्रमुख कृतियों का विमोचन हुआ । जिसमें -
फ़िराक़ गोरखपुरी पर केंद्रित एकाग्र कुछ ग़में जाना कुछ ग़में दौरा (
विश्वरंजन ), आलोचनात्मक कृति “साहित्य की सदाशयता ( जयप्रकाश मानस ),
ललित निबन्ध संग्रह परम्परा का पुनराख्यान ( डॉ. श्रीराम परिहार ) छंद
प्रभाकर ( डॅा. सुशील त्रिवेदी ) छंद प्रभाकर ( आचार्य जगन्नाथ प्रसाद
'भानु' रचित कृति - डॉ. सुशील त्रिवेदी),बाल कविता संग्रह- मैना की दूकान
( शंभु लाल शर्मा वसंत ), व्यंग्य संग्रह- कार्यालय तेरी अकथ कहानी (
वीरेन्द्र सरल ) हिंदी के प्रथम साहित्य-शास्त्री- जगन्नाथ प्रसाद 'भानु'
( डॉ. सुशील त्रिवेदी ) , छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह (शिव कुमार पाण्डेय),
गीत संग्रह (गीता विश्वकर्मा), संग्रह संस्थान की त्रैमासिक साहित्यिक
पत्रिका पाण्डुलिपि का पांचवा अंक, कविता संग्रह टूटते सितारों की उड़ान
( लक्ष्मी नारायण लहरे ) कविता संग्रह सुगीत कलश ( भागवत कश्यप ) आदि
प्रमुख कृतियाँ हैं ।
विभिन्न विषयों पर व्याख्यान और मार्गदर्शन

इस रचना शिविर में समकालीन कविता : भाव, मूल्य और सरोकार व समकालीन कविता
: शिल्प और संप्रेषणीयता सत्र की अध्यक्षता प्रतिष्ठित आलोचक व गोवा
विश्वविद्यालय के प्रो.रोहिताश्व ने की । और सत्र के प्रमुख वक्ता थे -
बाँदा से पधारे कवि नरेन्द्र पुण्डरीक, कोलकाता के कवि व आलोचक प्रफुल्ल
कोलख्यान व भिलाई के कवि नासिर अहमद सिकंदर । संचालन का दायित्व निभाया
अशोक सिंघई ने । स्त्र का निष्कर्ष था कि प्रत्येक रचनाकार को अपने आसपास
घट रही घटनाओं को निरंतर देखना चाहिए, उनमें मानवीय संवेदनाओं को तलाशना
चाहिये क्योंकि बिना भाव व संवेदना के कविता हो ही नहीं सकती, भाव के
बिना कविता का कोई मूल्य नही है। निष्चय ही कविता का शिल्प भी उसकी
संप्रेषणीयता में सहायक होता है ।

छांदस विधाओं पर तीन सत्र निर्धारित थे पहला गीत : भाव और शिल्प, दूसरा
नवगीत : लघुक्षण में सघन भाव व्याकुलता तथा ग़ज़ल : हृदय का तनाव और
भावाकृति । इस विषय पर अक्षत के संपादक और हिन्दी के प्रतिष्ठित ललित
निबंधकार डॉ. श्री राम परिहार (खंडवा), रविशंकर विश्वविद्यालय के पूर्व
रीडर और भाषाविद् डॉ. चितरंजन कर, वरिष्ठ गीतकार एवं आलोचक श्रीकृष्ण
कुमार त्रिवेदी (फतेहपुर), कवि रवि श्रीवास्तव (भिलाई) व वरिष्ठ शायर
मुमताज (भिलाई) ने व्यापक मार्गदर्शन दिया व रचनाओं का परीक्षण कर सुझाव
दिया । संचालन किया फैजाबाद के युवा रचनाकार अशोक कुमार प्रसाद ने ।

बालगीत : बाल मन की समझ और सहज संप्रेषणीयता जैसे नये विषय पर बाल
साहित्य की तमाम बारीकियों पर एक सार्थक बहस हुई । जिसकी अध्यक्षता की
वरिष्ठ दिल्ली से आमंत्रित बाल साहित्यकार रमेश तैलंग ने और प्रमुख वक्ता
रहे शंभू लाल शर्मा बसंत, प्रफुल्ल कोलख्यान । रमेश तैलंग का मानना था कि
बाल साहित्य की रचनाओं में उद्देश्यपूर्ण रूप से निहित होना चाहिए और
हमें प्राचीन परम्परा से आगे बढ़ना चाहिए क्योंकि आज के बच्चे विज्ञान और
तकनीकी के परिवेश में पल रहे हैं । सत्र का कुशल संचालन डॉ. चितरंजन कर
ने किया।

कहानी विधा पर दो सत्र निर्धारित किये गये थे - कहानी कथा वस्तु और विविध
शिल्प तथा कहानी मूल्य और सरोकार । इस महत्वपूर्ण विषयों पर डॉ.
रोहिताश्व, प्रफूल्ल कोलख्यान, श्रीकृष्ण कुमार त्रिवेदी,

आदि ने कथाओं के शिल्प और कथ्य में हुए परिवर्तन और विकास पर सिलसिलेवार
जानकारी देकर कई कहानियों का अनुशीलन किया ।

3 वरिष्ठ कवियों को साधना सम्मान

इस अवसर पर रायगढ़ के तीन वरिष्ठ कवियों जनकवि आनंदी सहाय शुक्ल, गुरुदेव
काश्यप, ईश्वर शरण पांडेय को सुदीर्घ साहित्य साधना के लिए प्रमोद वर्मा
साधना सम्मान से अंलकृत किया । उन्हें प्रशस्ति पत्र, शाल, श्रीफल,
प्रतीक चिन्ह और संस्थान द्वारा प्रकाशित 2 हजार रुपयों की साहित्यिक
कृतियां भेंट कर सम्मानित किया गया ।


कविता पाठ

कविता पाठ की बारीकियों से परिचित कराने के लिए आयोजन में वरिष्ठ और
नवागत रचनाकारों के लिए दो दिन रचना पाठ का आयोजन भी किया गया जिसमें
जनकवि आनन्दी सहाय शुक्ल, डॉ. रोहिताश्व, विश्वरंजन, प्रफुल्ल कोलख्यान,
डॉ श्री राम परिहार, मुमताज, नरेन्द्र पुण्डीक, रमेश तैलंग, डॉ. सुशील
त्रिवेदी, नरेन्द्र श्रीवास्तव, डॉ. चित्तरंजन कर, विजय राठौर, जयप्रकाश
मानस, राम लाल निशाद, राम किशन डालमिया, शंभूलाल शर्मा आदि ने अपनी
रचनाओं की माध्यम से नये रचनाकारों को शिल्प, भाव व सरोकार के प्रति सजग
किया । एक अलग सत्र में 40 से अधिक युवा रचनाकारों ने अपनी रचनाओं का पाठ
किया जिसमें कुमार वरुण, रमेश कुमार सोनी, कन्दर्प कर्ष, कृष्णकुमार
अजनबी, श्याम नारायण श्रीवास्तव, अंजनी कुमार अंकुर, अमित दूबे, ललित
शर्मा, श्लेष चन्द्राकर, मो. शाहिद, कमल कुमार स्वर्णकार, गीता
विश्वकर्मा, आशा मेहर किरण, वाशिल दानी, प्रमोद सोनवानी, देवकी डनसेना,
बनवारी लाल देवांगन आदि प्रमुख हैं ।

इस आयोजन को सफल बनाने में स्थानीय युवा लेखक श्याम नारायण श्रीवास्तव,
के. के. स्वर्णकार, अंजनी कुमार अंकुर के अलावा कमल बहिदार, कन्दर्प
कर्ष, सुजीत कर, सनत चौहान, नील कमल वैष्णव, बसंत राघव, लक्ष्मी नारायण
लहरे, शिवकुमार पांडेय, प्रभात त्रिपाठी, शिव शरण पाण्डेय, गिरिजा
पांडेय, किशन कुमार कंकरवाल ने उल्लेखनीय भूमिका निभायी । समापन समारोह
में संस्थान के अध्यक्ष व कार्यकारी निदेशक की ओर से सभी प्रतिभागियों को
प्रतीक चिन्ह और प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया गया ।


रायगढ़ से श्याम नारायण श्रीवास्तव की रपट
मोबाइल नं --09827477442

Friday, January 13, 2012

New Font Converters...प्रखर देवनागरी फ़ॉन्ट परिवर्तक का अपडेटेड संस्करण वर्जन 2.2.5.0


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Thursday, January 12, 2012

अब माओवादी भी लड़ेंगें भ्रष्टाचार से!


भटकाव भरे आंदोलन ऐसे भ्रम फैलाकर जनता की सहानुभूति चाहते हैं
-संजय द्विवेदी
यह कहना कितना आसान है कि माओवादी भी अब भ्रष्टाचार के दानव से लड़ना चाहते हैं। लेकिन यह एक सच है और अपने ताजा बयान में माओवादियों ने सरकार से कहा है कि वह शांति वार्ता (नक्सलियों के साथ) का प्रस्ताव देने से पहले भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों के खिलाफ सरेआम कार्रवाई करे। साथ ही विदेशी मुल्कों के बैंकों में जमा सारा काला धन स्वेदश वापस लाए। कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की केंद्रीय समिति के प्रवक्ता अभय ने मीडिया को जारी विज्ञप्ति में कहा है कि सरकार ने प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के लिए औद्योगिक व व्यवसायिक घरानों के साथ लाखों-करोड़ों के समझौते किए हैं।इन्हें रद किया जाए। भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया को तत्काल रोका जाए। साथ ही सरकार भ्रष्टाचारियों को सरेआम सजा देने की व्यवस्था करे।
लोकप्रियतावादी राजनीति के फलितार्थः
जाहिर तौर पर यह एक ऐसा बयान है जिसे बहुत गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं हैं। किंतु यह बताता है कि संचार माध्यम देश में कितने प्रभावी हो उठे हैं कि वे जंगलों में रक्तक्रांति के माध्यम से देश की राजसत्ता पर कब्जे का स्वप्न देख रहे माओवादियों को भी देश में चल रही भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम पर प्रतिक्रिया करने के लिए मजबूर कर देते हैं। सही मायने में इस बयान को एक लोकप्रियतावादी राजनीति का ही विस्तार माना जाना चाहिए। माओवादियों का पूरा अभियान आज एक भटकाव भरे रास्ते पर है ऐसे में उनसे किसी गंभीर संवाद की अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। उनके कदम पूरी तरह लोकप्रियतावादी राजनीति से मेल खाते हैं और उनका अर्थतंत्र भी भ्रष्टाचार के चलते ही फलफूल रहा है। भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाने की बात करने वाले माओवादियों से यह पूछा जाना चाहिए कि नक्सल प्रभावित राज्यों में चल रहे विकास कार्यों को रोककर और करोडों की लेवी वसूलकर वे किस मुंह से भ्रष्टाचार के विरूद्ध बात कह रहे हैं। सही मायने में इस तरह के बयान सिर्फ सुर्खियां बटोरने का ही उपक्रम हैं। माओवादियों के इन भ्रामक बयानों पर गंभीर होने के बजाए यह सोचना जरूरी है कि क्या माओवादी हमारे संविधान और गणतंत्र में कोई अपने लिए कोई स्पेस देखते हैं ? क्या वे मानते हैं कि वर्तमान व्यवस्था उनके विचारों के अनुसार न्यायपूर्ण है? सही मायने में माओवाद एक गणतंत्र विरोधी विचार है। उनकी सांसें जनतंत्र में घुट रही हैं। वे माओ का राज, यानी एक बर्बर अधिनायक तंत्र के अभिलाषी हैं। देश में लोकतंत्र के रहते वे अपने विचारों और सपनों का राज नहीं ला सकते। शायद इसीलिए मतदान करते हुए लोगों को वे धमकाते हैं कि यदि उनकी उंगलियों पर मतदान की स्याही पाई गयी तो वे उंगलियां काट लेगें। यानि एक आम आदमी को गणतंत्र में मिले सबसे बड़े अधिकार- मताधिकार पर भी उनकी आस्था नहीं हैं। एक गणतंत्र में वे भ्रष्टाचारियों के लिए सरेआम फांसी लटकाने की सजा चाहते हैं। यह एक बर्बर अधिनायक तंत्र में ही संभव है। हमारे यहां कानून के काम करने का तरीका है। अपराध को साबित करने की एक कानूनी प्रक्रिया है जिसके चलते आरोपी को स्वयं को दोषमुक्त साबित करने के अवसर हैं।
शोषकों के सहायक हैं माओवादीः
माओवादियों ने जनता को मुक्ति और न्याय दिलाने के नाम पर इन क्षेत्रों में प्रवेश किया किंतु आज हालात यह हैं कि ये माओवादी ही शोषकों के सबसे बड़े मददगार हैं। इन इलाकों के वनोपज ठेकेदारों, सार्वजनिक कार्यों को करने वाले ठेकेदारों, राजनेताओं और उद्योगों से लेवी में करोड़ों रूपए वसूलकर ये एक समानांतर सत्ता स्थापित कर चुके हैं। भ्रष्ट राज्य तंत्र को ऐसा माओवाद बहुत भाता है। क्योंकि इससे दोनों के लक्ष्य सध रहे हैं। दोनों भ्रष्टाचार की गंगा में गोते लगा रहे हैं और हमारे निरीह आदिवासी और पुलिसकर्मी मारे जा रहे हैं। राज्यों की पुलिस के आला अफसररान अपने वातानुकूलित केबिनों में बंद हैं और उन्होंने सामान्य पुलिसकर्मियों और सीआरपीएफ जवानों को मरने के लिए मैदान में छोड़ रखा है। आखिर जब राज्य की कोई नीति ही नहीं है तो हम क्यों अपने जवानों को यूं मरने के लिए मैदानों में भेज रहे हैं। आज समय आ गया है कि केंद्र और राज्य सरकारों के यह तय करना होगा कि वे माओवाद का समूल नाश चाहते हैं या उसे सामाजिक-आर्थिक समस्या बताकर इन इलाकों में खर्च होने वाले विकास और सुरक्षा के बड़े बजट को लूट-लूटकर खाना चाहते हैं। एक बात पर और सोचने की जरूरत है कि देश के तमाम इलाके शोषण और भुखमरी के शिकार हैं किंतु माओवादी उन्हीं इलाकों में सक्रिय हैं, जहां वनोपज और खनिज है तथा शासकीय व कारपोरेट कंपनियां काम कर रही हैं। ऐसे में क्या लेवी का करोड़ों का खेल ही इनकी मूल प्रेरणा नहीं है।
अनसुनी की कानू सान्याल की बातः
आदिवासियों के वास्तविक शोषक, लेवी देकर आज माओवादियों की गोद में बैठ गए हैं। इसलिए तेंदुपत्ता का व्यापारी, नेता, अफसर, ठेकेदार सब माओवादियों के वर्गशत्रु कहां रहे। जंगल में मंगल हो गया है। ये इलाके लूट के इलाके हैं। इस बात का भी अध्ययन करना जरूरी है कि माओवादियों के आने के बाद आदिवासी कितना खुशहाल या बदहाल हुआ है। आज माओवादी आंदोलन एक अंधे मोड़ पर है जहां पर वह डकैती, हत्या, फिरौती औरआतंक के एक मिलेजुले मार्ग पर खून-खराबे में रोमांटिक आंनद लेने वाले बुध्दिवादियों का लीलालोक बन चुका है, ऐसे में नक्सली नेता स्व. कानू सान्याल की याद बहुत स्वाभाविक और मार्मिक हो उठती है। कानू साफ कहते थे कि किसी व्यक्ति को खत्म करने से व्यवस्था नहीं बदलती। उनकी राय में भारत में जो सशस्त्र आंदोलन चल रहा है,उसमें एक तरह का रुमानीपन है। उनका कहना है कि रुमानीपन के कारण ही नौजवानइसमें आ रहे हैं लेकिन कुछ दिन में वे जंगल से बाहर आ जाते हैं।
गहरे द्वंद का शिकार है आंदोलनः
नक्सल आंदोलन भी इस वक्त एक गहरे द्वंद का शिकार है। 1967 के मई महीने में जब नक्सलवाड़ी जन-उभार खड़ा हुआ तबसे इस आंदोलन ने एक लंबा समय देखा है। टूटने-बिखरने, वार्ताएं करने, फिर जनयुद्ध में कूदने जाने की कवायदें एक लंबा इतिहास हैं। संकट यह है कि इस समस्या ने अब जो रूप धर लिया है वहां विचार की जगह सिर्फ आतंक,लूट और हत्याओं की ही जगह बची है। आतंक का राज फैलाकर आमजनता पर हिंसक कार्रवाई या व्यापारियों, ठेकेदारों, अधिकारियों, नेताओं से पैसों की वसूली यही नक्सलवाद का आज का चेहरा है। कड़े शब्दों में कहें तो यह आंदोलन पूरी तरह एक संगठित अपराधियों के एक गिरोह में बदल गया है। भारत जैसे महादेश में ऐसे हिंसक प्रयोग कैसे अपनी जगह बना पाएंगें यह सोचने का विषय हैं। नक्सलियों को यह मान लेना चाहिए कि भारत जैसे बड़े देश में सशस्त्र क्रांति के मंसूबे पूरे नहीं हो सकते। साथ में वर्तमान व्यवस्था में अचानक आम आदमी को न्याय और प्रशासन का संवेदनशील हो जाना भी संभव नहीं दिखता। जाहिर तौर पर किसी भी हिंसक आंदोलन की एक सीमा होती है। यही वह बिंदु है जहां नेतृत्व को यह सोचना होता है कि राजनैतिक सत्ता केहस्तक्षेप के बिना चीजें नहीं बदल सकतीं क्योंकि इतिहास की रचना एके-47 या दलम से नहीं होती उसकी कुंजी जिंदगी की जद्दोजहद में लगी आम जनता के पास होती है। कानू की बात आज के हो-हल्ले में अनसुनी भले कर दी गयी पर कानू दा कहीं न कहीं नक्सलियों के रास्ते से दुखी थे। वे भटके हुए आंदोलन का आखिरी प्रतीक थे किंतु उनके मन और कर्म में विकल्पों को लेकर लगातार एक कोशिश जारी रही। भाकपा(माले) के माध्यम से वे एक विकल्प देने की कोशिश कर रहे थे। कानू साफ कहते थे चारू मजूमदार से शुरू से उनकी असहमतियां सिर्फ निरर्थक हिंसा को लेकर ही थीं।
भोथरी बयानबाजी और भ्रम फैलाने की कवायदः
माओवादी आज की तारीख में सही मायने में भारतीय राजसत्ता के बातचीत के आमंत्रण को ठुकराना चाहते हैं। उसके लिए वे बहाने गढ़ते हैं। आज वे अपने हिंसाचार के माध्यम से कहीं न कहीं राज्य पर भारी दिख रहे हैं। इसलिए इस वक्त वे संवाद की हर कोशिश को घता बताएंगें। पिछले दिनों रायपुर में राष्ट्रपति ने भी माओवादियों से हथियार रखकर बातचीत करने की अपील की, किंतु माओवादी इस पर रजामंद नहीं हैं। इसलिए ऐसे बयानों के माध्यम से वे भ्रम फैलाने के प्रयास कर रहे हैं। आज अगर राज्य उन पर भारी पड़े तो वे बातचीत के लिए तैयार हो जाएंगें। एक छापामार लड़ाई में उनके यही तरीके हम पर भारी पड़ रहे हैं। आंध्र प्रदेश में यह प्रयोग कई बार देखा गया। जब उन पर पुलिस भारी पड़ी तो वे वार्ता की मेज पर आए या युद्ध विराम कर दिया। इस बीच फिर तैयारियां पुख्ता कीं और फिर हिंसा फैलाने में जुट गए। कुल मिलाकर माओवादियों का ताजा बयान एक भ्रम सृजन और अखबारी सुर्खियां बटोरने से ज्यादा कुछ नहीं है।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Wednesday, January 4, 2012

मीडिया विमर्श के वार्षिकांक का विमोचन 5 को

मीडिया और लोकतंत्र विषय पर संगोष्ठी, प्रकाश जावडेकर होंगें मुख्यअतिथि



जनसंचार के सरोकारों पर केंद्रित त्रैमासिक पत्रिका मीडिया विमर्श के पांच साल पूरे होने पर रायपुर में मीडिया और लोकतंत्र विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया है। इस अवसर मीडिया विमर्श के वार्षिकांक का विमोचन भी होगा तथा राज्य के कई वरिष्ठ पत्रकारों को सम्मानित भी किया जाएगा। कार्यक्रम का आयोजन 5 जनवरी को सिविल लाइंस स्थित वृंदावन हाल में सांय चार बजे किया गया है। कार्यक्रम के मुख्यअतिथि सांसद और भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर होंगें तथा मुख्यवक्ता माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला होंगें। यह जानकारी देते हुए पत्रिका के प्रबंध संपादक प्रभात मिश्र ने बताया कि आयोजन के विशिष्ट अतिथि के रूप में गृहमंत्री ननकीराम कंवर, कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू, कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय, रायपुर के कुलपति डा. सच्चिदानंद जोशी और हिंदी की प्रख्यात साहित्यकार श्रीमती जया जादवानी संगोष्ठी में लेंगें। आयोजन छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश के अनेक साहित्यकार, पत्रकार, मीडिया शिक्षक और शोधार्थी हिस्सा लेगें।     

मीडिया विमर्श के वार्षिकांक में सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर एक बड़ी बहस

क्या हर फ्रेंड जरूरी होता है?





जनसंचार के सरोकारों पर केंद्रित त्रैमासिक पत्रिका मीडिया विमर्श के पांच साल पूरे होने पर निकाला गया वार्षिकांक सोशल नेटवर्किंग साइट्स और उनके सामाजिक प्रभावों पर केंद्रित है। पत्रिका के ताजा अंक की आवरण कथा इसी विषय पर केंद्रित है। इस आवरण कथा का प्रथम लेख माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने लिखा है, जिसमें उन्होंने सोशल नेटवर्किंग साइट्स के सकारात्मक पक्ष पर प्रकाश डालते हुए इसके सार्थक उपयोग की चर्चा की है। इसके साथ ही इस चर्चा में शामिल होकर अनेक वरिष्ठ पत्रकारों, मीडिया प्राध्यापकों, चिंतकों एवं शोध छात्रों ने अलग-अलग विषय उठाए हैं। जिनमें प्रमुख रूप से प्रकाश दुबे, मधुसूदन आनंद, कमल दीक्षित, वर्तिका नंदा, विजय कुमार, प्रकाश हिंदुस्तानी, राजकुमार भारद्वाज,डा.सुशील त्रिवेदी,विनीत उत्पल, शिखा वाष्णेय, धनंजय चोपड़ा, संजय कुमार, अंकुर विजयवर्गीय, संजना चतुर्वेदी, कीर्ति सिंह, संजय द्विवेदी, आशीष कुमार अंशू, सी. जयशंकर बाबू ,बबिता अग्रवाल, रानू तोमर, अनुराधा आर्य, शिल्पा अग्रवाल, जूनी कुमारी, एस.स्नेहा, तृषा गौर के नाम शामिल हैं। इसके अलावा इस अंक में भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष मार्कंडेय काटजू के बयानों से उत्पन्न विवाद पर एनके सिंह और डा. श्रीकांत सिंह की महत्वपूर्ण टिप्पणी प्रकाशित की गयी है। हिंदी को सरल बनाने के भारत सरकार के गृहमंत्रालय की पहल पर प्रभु जोशी की एक विचारोत्तेजक टिप्पणी भी इस अंक की उपलब्धि है, जो सरलता के बहाने हिंदी पर अंग्रेजी के हमले की वास्तविकता को उजागर करती है। पत्रिका के कार्यकारी संपादक संजय द्विवेदी ने बताया कि विगत पांच वर्षों से निरंतर प्रकाशित पत्रिका मीडिया विमर्श ने अपने विविध अंकों के माध्यम से एक सार्थक विमर्श की शुरूआत की है। पत्रिका के प्रत्येक अंक का मूल्य 50 रूपए है और वार्षिक शुल्क 200 रूपए है। पत्रिका के संदर्भ में किसी जानकारी या लेखकीय सहयोग के लिए ई-मेल कर सकते हैं - mediavimarsh@gmail.com                                   

Tuesday, January 3, 2012

ताशकंद में होगा 5 वां अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन



सृजनगाथा डॉट कॉम की पहल

रायपुर । अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी और हिंदी-संस्कृति को प्रतिष्ठित करने के लिए साहित्यिक संस्था सृजन-सम्मान तथा वेब पोर्टल www.srijangatgha.com द्वारा, किये जा रहे प्रयास और पहल के अनुक्रम में रायपुर, बैंकाक, मारीशस, पटाया में चार अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों के सफलतापूर्वक आयोजन के पश्चात अब आगामी 24 जून से 1 जुलाई, 2012 तक ताशकंद-समरकंद-उज्बेकिस्तान में पांचवे अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है । सम्मेलन में देश -विदेश के हिंदी के आधिकारिक विद्वान, अध्यापक, लेखक, भाषाविद्, संपादक, पत्रकार, टेक्नोक्रेट, बुद्धिजीवी एवं हिंदी सेवी संस्थाओं के सदस्य, हिन्दी-प्रचारक भाग लेंगे । सम्मेलन का उद्देश्य स्वंयसेवी आधार पर हिंदी-संस्कृति का प्रचार- प्रसार, भाषायी सौहार्द्रता एवं न्यूनतम लागत में सामूहिक रूप से सांस्कृतिक अध्ययन-पर्यटन सहित एक दूसरे से अपरिचित सृजनरत रचनाकारों के मध्य परस्पर रचनात्मक तादात्म्य उपलब्ध कराना भी है।

ताशकंद-समरकंद- उज्बेकिस्तान में आयोजन

संगोष्ठी

1. उत्तर औपनिवैशिक समय में आलोचना

2. भाषा की संस्कृति : संस्कृति की भाषा )

अन्य आयोजन

1. बहुभाषी कविता-पाठ

2. कहानी पाठ

3. कृतियों का विमोचन

4. कविता पोस्टर एवं पेंटिग प्रदर्शनी का आयोजन

5. उल्लेखनीय योगदान देनेवाले रचनाकारों का सम्मान, अंलकरण

इसके लावा प्रतिभागियों के लिए Independence Square, Lal Bahadur Shastri Street , Chingam hills, Khazrat Imam complex (16thcent) with The Koran of Othman Khalif (the 7th c) library and museum, Old City,Independence Square, Amir Temur’s Square, The Monument of Courage,Samarkand- Registan square - Medreseh Ulughbek (15th c.), Medreseh Shir-Dor (17th c.), Medreseh Tilla-Kori (17th c.), Registan or Nasaf, CHORSU and ALAY markets. Uzbek Metro station आदि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्तावाले स्थलों के सांस्कृतिक पर्यटन का अवसर भी उपलब्ध होगा ।

पंजीयन- सहभागिता के लिए अपना अकादमिक बायोडेटा 30 मार्च 2012 के पूर्व srijangatha@gmail.com पर या राज्य समन्वयक से संपर्क करके पंजीयन कराया जा सकता है एवं अन्य जानकारी प्राप्त की जा सकती है ।

प्रशस्ति-पत्र - प्रतिभागियों को सृजन-सम्मान, सृजनगाथा डॉट कॉम और प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान की ओर से मानपत्र, प्रतीक चिन्ह तथा साहित्यिक कृतियां भेंट स्वरूप प्रदान की जायेगी ।

सह-प्रायोजक- प्रतिष्ठित साहित्यिक संगठन इस आयोजन में रुपए5000 शुल्क देकर सह-प्रायोजक बन कर सभी प्रतिभागियों को अपने संगठन का प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिन्ह प्रदान कर सकते हैं तथा अपना बैनर्स प्रदर्शित कर सकते हैं ।

संरक्षक मंडल

1. डॉ. गंगा प्रसाद विमल, दिल्ली, मो. - 08826235548

2. डॉ. खगेन्द्र ठाकुर, पटना, मो. - 09431102736

3. डॉ. अजय तिवारी, दिल्ली, मो - 09717170693

4. डॉ. ए. अरविंदाक्षन, वर्धा, मो.- 09404354425

5. श्री विश्वरंजन, रायपुर, मो. - 94241-82664

6. डॉ. सुधीर सक्सेना, भोपाल, मो. - 09711123909

7. श्री गिरीश पंकज, रायपुर, मो. - 09425212720

8. श्री अशोक सिंघई, भिलाई, मो. - 088170121

राज्य समन्वयक

महाराष्ट्र

श्री प्रमोद कुमार शर्मा, नागपुर वि.वि. नागपुर, मो 0902814633

श्रीमती संतोष श्रीवास्तव, कथाकार, मुंबई, 09769023188

मध्यप्रदेश

श्री अभि मनोज, संपादक, पीपुल्स समाचार, जबलपुर मो. - 09200000912

राजस्थान

श्री मीठेश निर्मोही, जोधपुर, ईमेल- mnirmohi@gmail.com

श्री रमेश खत्री, कवि, जयपुर, मो.- 094143733188

उड़ीसा

श्री दिनेश माली, अनुवादक, ब्रजराजनगर, मो.-09437059979

उत्तरप्रदेश

श्री रवीन्द्र प्रभात, संपादक, परिकल्पना, लखनऊ, मो. - 9415272608

उत्तरांचल

श्री दिवाकर भट्ट, नैनीताल मों 09410552828

हिमाचल प्रदेश

श्री अशोक गौतम, एसोशियेट प्रोफ़ेसर, सोलन, मो. -9418970089

पश्चिम बंगाल

डॉ. अभिज्ञात, कवि, लेखक, पत्रकार, कोलकाता, मो. - 09830277656

छत्तीसगढ़

डॉ. एच. एस.ठाकुर, संपादक, आरएनएस, रायपुर, मो.-9425509696

डॉ. सुधीर शर्मा, वैभव प्रकाशन मो. - 9425358748

बिहार

श्री संजय कुमार, अधिकारी, आकाशवाणी, पटना, मो.- sanju3feb@gmail.com

श्री अरविंद सिह, कवि, मधेपुरा, ईमेल- khabarkosi@gmail.com

पंजाब

श्री अमरजीत कौंके, कवि, पटियाला, मो. - 98142-31698

चड़ीगढ़

अलका सैनी, पत्रकार. चंडीगढ़. ईमेल - alkams021@gmail.com

आंध्रप्रदेश/पांडिचेरी

डॉ. जयशंकर बाबु, पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय, पुदुच्चेरी, मो.- 09843508506  ई-मेल- yugmanas@gmail.com

गुजरात

श्री पंकज त्रिवेदी, सुरेन्द्र नगर, मो.-09662514007

विदेश के समन्यवक

मारीशस

श्री विनय गुदारी, मोका, मारीशस, ईमेल- vinaye08@gmail.com

नेपाल

श्री कुमुद अधिकारी, संपादक, साहित्य सरिता, विराटनगर, ईमेल.-kumudadhikari@gmail.com

डेनमार्क

चांद हदियाबादी, रेडियो सबरंग, डेनमार्क, ईमेल-chaandshukla@gmail.com

ब्रिटेन

श्री प्राण शर्मा, कवि/लेखक, लंदन, ईमेल- sharmapran4@gmail.com

अमेरिका

श्री आदित्य प्रताप सिंह, हिंदी सेवी, डैलास, adityapsingh@aol.com

सुधा ओम धींगरा, कवयित्री, नार्थ कैरोलाईना, ईमेल- sudhaom9@gmail.com

मुख्य समन्वयक

जयप्रकाश मानस

संपादक, www.srijangatha.com

कार्यकारी संपादक, पांडुलिपि (त्रैमासिक)

एफ-3, छगमाशिम, आवासीय परिसर, पेंशनवाड़ा

रायपुर, छत्तीसगढ़-492001

मो.-94241-82664