Monday, October 28, 2013

राजेंद्र यादव नहीं रहें

भावभीनी श्रद्धांजली

हिंदी के जाने माने साहित्यकार राजेंद्र यादव का निधन कल रात (दि.28.10.2013 को) हो गया है ।  उनकी आत्मा को अपार शांति मिले, यही युग मानस की भावभीनी श्रद्धांजली 

श्री ललित गर्ग अणुव्रत लेखक पुरस्कार से सम्मानित


 श्री ललित गर्ग अणुव्रत लेखक पुरस्कार से सम्मानित


  आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में अणुव्रत महासमिति का राष्ट्रीय अणुव्रत लेखक पुरस्कार पत्रकार और साहित्यकार 

श्री ललित गर्ग को प्रदत्त करते हुए महासमिति के अध्यक्ष श्री बाबूलाल गोलछा एवं अन्य।



 श्री ललित गर्ग
आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में अणुव्रत महासमिति द्वारा प्रदत्त

 राष्ट्रीय अणुव्रत लेखक पुरस्कार समारोह में बोलते 

हुए पत्रकार और साहित्यकार श्री ललित गर्ग।


नई दिल्ली, 28 अक्टूबर 2013

    अणुव्रत महासमिति द्वारा प्रतिवर्ष उत्कृष्ट नैतिक एवं आदर्श लेखन के लिए प्रदत्त किया जाने वाला ‘अणुव्रत लेखक पुरस्कार’ वर्ष-2011 के लिए लेखक, पत्रकार एवं समाजसेवी श्री ललित गर्ग को अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण के सान्निध्य में जैन विश्व भारती, लाडनूं (राजस्थान) में आयोजित राष्ट्रीय अणुव्रत लेखक सम्मेलन में दिनांक 26 अक्टूबर 2013 को प्रदत्त किया गया। अणुव्रत महासमिति के अध्यक्ष श्री बाबूलाल गोलछा ने श्री गर्ग को इक्यावन हजार रुपए की राशि का चैक, स्मृति चिह्न और प्रशस्ति पत्र प्रदत्त कर उन्हें सम्मानित किया। श्री गर्ग पिछले तीन दशक से राष्ट्रीय स्तर पर लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवाएं प्रदत्त करते हुए अणुव्रत आंदोलन के साथ सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं। विदित हो वर्तमान में श्री गर्ग सूर्यनगर एज्यूकेशनल सोसायटी (रजि॰) द्वारा संचालित विद्या भारती स्कूल के विकास एवं मैनेजमेंट कमेटी के चेयरमैन है।

आचार्यश्री महाश्रमण ने श्री गर्ग की नैतिक एवं स्वस्थ लेखन की प्रतिबद्धता की चर्चा करते हुए कहा कि श्री गर्ग सृजनशील प्रतिभा हैं जिनमें सरलता, सादगी और नैतिक निष्ठा दिखाई देती है। ये संस्कार इन्हें इनके पिता वरिष्ठ पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी एवं साहित्यकार स्व॰ श्री रामस्वरूपजी गर्ग से विरासत में प्राप्त हुए हैं। आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ के साथ सक्रिय रूप से कार्य करने वाले इनके पिताजी ने अणुव्रत आंदोलन की सक्रिय सेवाएं की हैं। श्री ललित गर्ग भी अणुव्रत आंदोलन, आचार्य तुलसी, आचार्य महाप्रज्ञ और हमारे वर्तमान कार्यक्रमों में विशिष्ट सहयोगी हैं। आचार्य श्री महाश्रमण ने अणुव्रत महासमिति के इस चयन को सही बताया और गर्ग की धर्मसंघ के प्रति सेवा और समर्पण भावना की सराहना की। आचार्य श्री महाश्रमण ने आचार्य तुलसी जन्म शताब्दी की चर्चा करते हुए कहा कि देश में नैतिक एवं चारित्रिक मूल्यों की स्थापना में अणुव्रत आंदोलन का विशिष्ट योगदान है। उन्होंने लेखकों को सामाजिक विचारधारा का वाहक बताया और लेखन में नैतिकता अपनाने का आह्वान किया। अणुव्रत लेखक पुरस्कार की चर्चा करते हुए कहा कि उत्कृष्ट और नैतिक लेखन को प्रोत्साहन देने के लिए ऐसे लेखकों की विशेषताओं को स्वीकार कर हम उनका सम्मान करें, आदर करें, इससे एक बड़ी शक्ति का प्रस्फुटन हो सकता है। 
अणुव्रत महासमिति के अध्यक्ष श्री बाबूलाल गोलछा ने श्री गर्ग और उनके परिवार द्वारा की गई उल्लेखनीय समाज सेवा चर्चा करते हुए कहा कि श्री ललित गर्ग हमारे समाज की एक विशिष्ट प्रतिभा है। साहित्य, पत्रकारिता और जनसंपर्क की दृष्टि से इनकी समाज को विशिष्ट सेवाएं प्राप्त हो रही हैं। अणुव्रत आंदोलन को उन्होंने पिछले तीन दशक में राष्ट्रव्यापी स्तर पर स्थापित करने में उल्लेखनीय सहयोग किया।

अणुव्रत लेखक पुरस्कार से सम्मानित श्री गर्ग ने आयोजकों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यह पुरस्कार मेरे लिए महान् संत पुरुषों का आशीर्वाद है। मेरा यह सौभाग्य है कि मुझे बचपन से ही आचार्यश्री तुलसी, आचार्यश्री महाप्रज्ञ और आचार्य श्री महाश्रमण का असीम अनुग्रह, स्नेह और आशीर्वाद प्राप्त हुआ है। बचपन में जहां गांधी, विनोबा भावे और आचार्य तुलसी के साथ पिताजी से जुड़े निकटता के अनूठे संस्कारों से शिक्षित होने का अवसर मिला। आज प्राप्त पुरस्कार पिताजी की अविस्मरणीय एवं अनुकरणीय सेवाओं का ही अंकन है। उन जैसी सरलता, सादगी, समर्पण और नैतिक निष्ठा को जीना दुर्लभ है। फिर भी गुरुदेव श्री तुलसी, आचार्यश्री महाप्रज्ञ एवं आचार्य श्री महाश्रमण से ऐसे आशीर्वाद की कामना है कि उनके नैतिक और मानवतावादी कार्यक्रमों में अपने आपको अधिक नियोजित करते हुए समाज और राष्ट्र की अधिक-से-अधिक सेवा कर सकूं।

इस अवसर पर श्री ठाकरमल सेठिया ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि श्री गर्ग का जीवन प्रेरक है क्योंकि इन्हें बचपन से ही एक आदर्श पिता के साथ-साथ आचार्य तुलसी, आचार्यश्री महाप्रज्ञ एवं आचार्य श्री महाश्रमण जैसे महान पुरुषों के साथ काम करने का अवसर प्राप्त हुआ है। ये सम्मान प्रतिभा के साथ-साथ संस्कारों का भी सम्मान है। अणुव्रत महासमिति के महामंत्री श्री संपत सामसुखा ने प्रशस्ति पत्र का वाचन करते हुए कहा कि श्री गर्ग ने पत्रकारिता के क्षेत्र में नैतिक दर्शन और मूल्यों को प्रतिस्थापित करने की दृष्टि से प्रयत्न किए हैं। आपने पंद्रह वर्षों तक ‘‘अणुव्रत पाक्षिक’’ का संपादन किया। ‘‘अणुव्रत लेखक मंच’’ के संयोजक के रूप में लेखकों को संगठित करने और उन्हें नैतिक लेखन के लिए प्रोत्साहित करने के लिए विशिष्ट प्रयत्न किए। वर्तमान में भी ‘समृद्ध सुखी परिवार’ मासिक पत्रिका के संपादक के अलावा अन्य पत्र-पत्रिकाओं का संपादकीय दायित्व निभा रहे हैं। कार्यक्रम का संयोजन करते हुए डॉ.. आनंद प्रकाश त्रिपाठी रत्नेश ने श्री ललित गर्ग की विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी की चर्चा करते हुए उन्हें हार्दिक बधाई दी। 

स्वर्गीय ‘शासनभक्त’ हुकुमचंद सेठिया, जलगाँव (महाराष्ट्र) की पुण्य स्मृति में प्रतिवर्ष दिये जाने वाले अणुव्रत लेखक पुरस्कार से अब तक स्व॰ श्री धरमचंद चोपड़ा, डॉ. निजामुद्दीन, श्री राजेन्द्र अवस्थी, श्री राजेन्द्र शंकर भट्ट, डॉ. मूलचंद सेठिया, डॉ. के. के. रत्तू, डॉ. छगनलाल शास्त्री, श्री विश्वनाथ सचदेव, डॉ. नरेन्द्र शर्मा कुसुम, डॉ. आनंद प्रकाश त्रिपाठी, श्रीमती सुषमा जैन एवं प्रो. उदयभानू हंस सम्मानित हो चुके हैं। 

प्रेषकः


(बरुण कुमार सिंह)


ए-56/, प्रथम तल, लाजपत नगर-2


नई दिल्ली-110024



मो. 9968126797


Wednesday, October 23, 2013

संजय द्विवेदी को प्रवक्ता सम्मान

संजय द्विवेदी को प्रवक्ता सम्मान



भोपाल,23 अक्टूबर। देश की महत्वपूर्ण वेबसाइट प्रवक्ता डाट काम (http://www.pravakta.com/) के पांच साल पूरे होने पर कांस्टीट्यूशन क्लब, दिल्ली के स्पीकर हाल में आयोजित समारोह में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी को प्रवक्ता सम्मान-2013’ से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उन्हें न्यू मीडिया के क्षेत्र में विशिष्ठ योगदान के लिए दिया गया है। प्रख्यात पत्रकार श्री राहुल देव ने संजय द्विवेदी को शॉल एवं प्रतीक चिन्‍ह भेंटकर सम्‍मानित किया। इस अवसर वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह, जगदीश उपासने, जयदीप कार्णिक सहित अनेक महत्वपूर्ण पत्रकार, साहित्यकार एवं बुद्धिजीवी मौजूद थे। संजय द्विवेदी पिछले 20 वर्षों में पत्रकारिता, लेखन, संपादन और सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए है। वे मीडिया विमर्श पत्रिका के कार्यकारी संपादक भी हैं।


Sunday, October 20, 2013

सन्त श्री विष्णुचित्त

आलेख

सन्त श्री विष्णुचित्त
(पेरियाल्वार)
-    एस.वीणा*


        
                                                                  

"ज्येष्टे स्वातीभ्व विष्णुरथांशं धान्विनः पुरे  ।
 प्रपद्यश्रेवशुरं विष्णोः विष्णुचित्तं पुरः शिखम ॥"

     श्री धन्वीनगर में जेठ महीने में स्वाति नक्षत्र के दिन अवतरित संत श्रीविष्णुचित्त की वन्दना करता हूँ जो पुरः शिखकुलीन है।  जो विष्णुरथांश (अर्थात गरुडांश ) है और जो (श्रीरंगनाथ) के ससुर माने जाते है ।

     कलियुग के आरम्भ में दक्षिण भारत के श्रीविल्लिपुत्तूर क्षेत्र में जो धन्वीक्षेत्र भी कहलाता है -एक पूर्वशिख ब्रह्मण कुल में जेठ मास स्वाति नक्षत्र में विष्णुचित्त का जन्म हुआ । कहा जता है कि वह श्रीमन्नारयण के वाह्न गरुड का अंश था। परमात्मा की निहेंतुक कृपा से बालक में ईश्वर-भक्ति का उदय हुआ और वह दिन-दिन बढती रही । जात्युचित वेदाध्ययन और शास्त्र शिक्षा आदि प्रप्त कर के वह सोचने लगा कि आत्मोज्जीवन का समीचीन उपाय कौन है, वह इस निश्चय पर आया कि परमत्मा की सेवा ही सर्वश्रेष्ठ है और उसमें ही पुष्प-माला गूंद कर उसके भगवान को समर्पित करना। इतिहास में कृष्णवतार में एक मालकार की कथा है । वह कंस का सेवक था और उसे प्रतिदिन मालाएँ देता था । एक दिन जब श्री कृष्ण मथुरा आकर वीथी में जाते थे और दैववशात देखा कि एक मालाकार सुंदर पुष्पमालाएँ ले कर राजमहल की और जा रहा है, कृष्ण ने उससे माला मांगी, मालाकार ने कृष्ण की शोभा और सौंदर्य देखकर सब मालाएँ उन्हें दे कर अपने को कृतार्थ माना । कृष्ण भी मालाएँ ले कर बहुत प्रसन्न हुए और मालाकार पर अनुग्रह किया।  इस कथा से विष्णुचित्त बहुत प्रभावित हुआ ।
      श्रिविष्णुचित्त ने एक फुल्वारी तैयार कर के रंगबिरंगे सुगंधित फूलों की लताएँ, पौधे और वृक्षा लगाये। प्रतिदिन तुलसी और चम्पक, मालती और मल्लिका के पुष्प चुनकर गूंथ कर श्री विल्लिपुत्तूर के भगवन श्रीवटपत्रशायी को समर्पित करके अपने को कृतकृत्य मानते थे |
    इस समय दक्षिण मथुरा (कूडल) में पांड्य वंश का वल्लभदेव नाम का एक नृपति राज करता था । वह बडा धार्मिक और प्रजा प्रेमी था और स्वयं रात में वेष बदलकर नगर में घूम कर जान लेता था कि प्रजा को किसकी कमी है और कैसे उसे संतुष्ट करे । एक रात इस प्रकार जाते समय उसने देखा कि एक वृद्ध ब्राह्मन एक घर की बाहरी वेदी पर लेटा था । उसे जगा कर राजा ने पूछा की तुम कौन हो और कहाँ से आये हो । ब्राह्मन ने कहा "मैं एक ब्राह्मन हूँ । गंगा-स्नान कर के आया हूँ और अब रामेश्वर जा रहा
हूँ । रात होने से यहाँ ठहरा हूँ । राजा ने उससे प्रर्थना की कि आप बडे विद्वान दिखाते है । मुझे कुछ उपदेश दीजिये । ब्राह्मन बोला

          "वर्षर्थमष्टौ प्रयतेत मासान निशर्थमर्थ दिवसं यतेत ।
      वार्धक्यहेतो: वयसा नवेन परत्र हेतोरिह जन्मना च ॥"

    यह श्लोक का तत्पर्य है कि  वर्षा के दिनों में जीविका के लिए अन्य महिनों में अर्थ कमाना चाहिए, रात्रि के लिए दिन में, वार्धक्य के लिए यौवन में तर्था परलोक की प्रप्ति के लिए इसी जन्म में ।
       उपदेश ग्रहण कर के नृपति महल लौटा । प्रतःकाल होते ही अपने पुरोहित घनपूर्ण को बुला कर उससे प्रशन किया कि सर्वश्रेष्ठ पुरुषार्थ प्रप्ति का ज्ञान हमें कैसे होगा ? पुरोहित ने उत्तर दिया-राज्य के सुशिक्षित विद्वानों को बुलाकर उनसे चर्चा कर के निश्चय कर लें । राजा को भी वह उचित लगा । उसने एक थैली में धन बाँध कर एक खंभे के सिरे पर लटका दिया और घोषण करवायी कि सभी विद्वान लोग आवें और अपनी बुद्धिमता से परतत्व   निर्णय के वाद-विवाद में जीत कर धन ले लें । दुसरे दिन वैसे ही किया गया और पढेंलिखे शास्त्रज्ञ विद्वान आ कर एकत्रित हुए।

     श्रीविल्लिपुत्तूर के भगवान ने संकल्प किया कि मैं अपने भक्त विष्णुचित्त से परतत्व का निर्णय कर के लोकहित का काम करूँ । रात में विष्णुचित्त को स्वप्न में दर्शन दे कर भगवान ने कहा कि आप मथुरा जाइए और विद्वत्सभा में परतत्व का निर्णय कर के विजय-सम्मान प्राप्त कर आइये । विष्णुचित ने निवेदन किया मुझे वेदांत का ज्ञान कहाँ है ? मेरा तो परिचय हंसिया और कुदाली से, फुल्वारी और टोकरी से है। पंडितों के आगे मैं बोल कैसे सकता हूँ? भगवान ने कहा - "आप सभा में आइये और बोलिये । जिह्वाग्र में रह कर परतत्व निर्णय की वचनशक्ति देंगें ।

    दूसरे दिन श्री विष्णुचित्त प्रातःकाल उठ कर दैनिक कर्मानुष्ठान समाप्त कर के पुष्पमालएँ लेकर मंदिर गये और भगवान को पहना कर अंजलिसहित खडे रहे । भगवान ने पूजकों द्वारा अपनी माला उतरवा कर उन्हे पहनवा कर मथुरा जाने की आज्ञा दी । भक्तियुक्त विष्णुचित्त मथुरा आये और पांड्य नृपति ने आदर पूर्वक स्वागत कर के सभा में स्थान दिया । चर्चा प्रारंभ हुई । विद्वानों ने अपने-अपने अधीन शास्त्र के अनुसार पुरुषार्थ तथा तत्प्राप्ति के उपाय का उल्लेख किया । अंत में श्री विष्णुचित्त उठे और सांजलिबंध भगवान का ध्यान कर के पंडितों की युक्तियों का सप्रमाण खंडन किया और यह सिध्दान्त स्थापित किया कि श्रीमन्नारायण ही परतत्व है । उसके चरण कमल ही उपाय है और उसकी सेवा ही परम पुरुषार्थ है ।

     "श्रीमान नारयणो नः पतिः अखिलतनुः मुक्तिदः मुक्त भोग्यः "

   श्रीमन्नारायण ही हमारे स्वामी सब चेतानाचेतन उसके शरीर है, वही मोक्ष-दाता है और मोक्ष दशा में उसी का अनुभव किया जाता है । श्री विष्णुचित्त के सुदृढ श्रुति-स्मृति आदि के प्रमाण वचनों के साथ युक्तियुक्त और निष्पक्षपात वाद सुनकर सब पंडितों ने उनकी प्रशंसा की । नृपति इससे बहुत प्रभवित हुआ। एक अद्भुत घटना दैवयोग से हुई कि धन-थैली युक्त स्तंभ झुक कर थैली श्रीविष्णुचित्त के हाथ में रख दी ।
     पांड्य नृपति ने श्रीविष्णुचित्त को हाथी पर बिठा कर छत्रचामर और वाद्य-वृंद के साथ मथुरा की विथियों में एक जुलूस निकाला । श्रीविष्णुचित्त की प्रशंसा करते हुए सब पंडित और नृपति उसमें सम्मिलित हुए। जब जुलूस चल रहा था तब गरुड पर आरूढ हो कर आयुध-आभरणों से भूषित साक्षात लक्ष्मी और नारायण अंतरिक्ष में दिखाई दिये मानो अपने पुत्र की विजययात्रा देखने के लिये माता पिता निकल आये हों। उनके दर्शन कर के श्री विष्णुचित्त पहले आनन्दित हुये । परंतु उत्तरक्षण में उनके मन मे यह आशंका उत्पन्न हुई कि उसके निरुपम सौंदर्यमय जलद सदृश मनोहर रूप को देख कर संसारियों की बुरी दृष्टि उस पर पडे तो क्या करें ।  
             अतिस्नेह के कारण श्री विष्णुचित्त भूल गये कि परमात्मा सर्वशक्त है और जगद्रक्षक है। सर्वरक्षक का रक्षा मंगल करने के लिये(अर्थात मंगलाशासन) करने के लिये श्री विष्णुचित्त ने हाथी पर लटकती घंटियाँ हाथ में लेकर झाँझ के काम में लाए और दिव्यदंपति लक्ष्मी-नारायण की रक्षा के लिये "जुग जुग जीओ "(पल्लाण्डु-पल्लाण्डु) गाने लगे । विद्वद गोष्ठी भजन मंडली बन गई ।
     सर्वशक्ति परमात्मा की रक्षा करने के लिये उत्कंठित हो जाने की यह भावना और प्रवृत्ति असाधारण ही है । अधिक स्नेह से भय की आशंका होती है - अतिस्नेह पापशंकी और यह प्रेमभक्ति ईश्वर को अपनी रक्षा वस्तु समझ कर उसकी रक्षा में लग जाती है। जीवात्मा और परमात्मा में रक्ष्य-रक्षक भाव है वह उल्टा हो जाता है अत्यंत भक्तियुक्त संतों में । 
     इस प्रकार कूडल क्षेत्र में  (जो आजकल मथुरा नाम से प्रसिद्ध है) संत श्री विष्णुचित्त के प्रबंधम् (श्री विष्णुचित्त पद्यावली पेरियळ्वार तिरुमोलि) का अवतार रक्षामंगल से आरब्ध  होता है । श्री विष्णुचित्त पांडय नृपति का सम्मान और पंडितों की प्रशंसा पा कर अपने स्थान श्री विल्लिपुत्तूर लौटे और सीधे वट-पत्र-शायी के मन्दिर जा कर अपने सम्मान को उसके चरणों में अर्पित किया । फिर यथापूर्व माला-कैंकर्य में लग गए और भगवान के गुण और विभूति के अनुभव में मग्न हो कर रहे। आण्डाल नाम से प्रसिद्ध श्रीगोदादेवी इन की पुत्री थी जिसका अविर्भाव इसकी पुल्वारी में तुलसी पौधे के पास हुआ था जैसे सीता जी का मिथिला के जनकमहाराजा की यज्ञभूमी से । आण्डाल भी तमिल्नाडु के संतों बारह आळ्वरों में एक है, साथ ही भगवान श्रीरंगनाथ की प्रियतमा ।



* एस॰वीणा   कर्पगम विश्वविद्यालयकोयम्बत्तूर, तमिलनाडु में डॉ. के.पी. पद्मावति अम्माल के निर्देशन में शोधरत हैं |

Tuesday, October 8, 2013

मीडिया में नैतिक मूल्यों का विकास जरूरी: डॉ. कुरैशी

तृतीय आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ स्मृति व्याख्यान माला
पीएचडी चेम्बर में आयोजित तृतीय आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ स्मृति व्याख्यान माला में बोलते हुए हिन्दुस्तान टाइम्स के सलाहकार श्री वीर सिंघवी।

पीएचडी चेम्बर में आयोजित तृतीय आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ स्मृति व्याख्यान माला में मंच पर विराजित हैं मुनि मोहजीत कुमार, मुनि सुखलालजी,
अभिषेक मनु सिंघवी एवं डॉ. एस. वाई. कुरैशी।

पीएचडी चेम्बर में आयोजित तृतीय आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ स्मृति व्याख्यान माला में उपस्थित श्रोतागण।

पीएचडी चेम्बर में आयोजित तृतीय आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ स्मृति व्याख्यान माला में मंगलाचरण करते हुए तेरापंथ महिला मंडल दिल्ली की सदस्याएं।

पीएचडी चेम्बर में आयोजित तृतीय आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ स्मृति व्याख्यान माला में मंच पर विराजित हैं मुनि मोहजीत कुमार, मुनि सुखलालजी,
अभिषेक मनु सिंघवी एवं डॉ. एस. वाई. कुरैशी।

मीडिया में नैतिक मूल्यों का विकास जरूरी: डॉ. कुरैशी

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त डॉ. एस. वाई. कुरैशी ने कहा कि स्थायी विकास और मूल्याधारित समाज निर्माण में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका है। मीडिया नैतिक मूल्यों को अपनाकर ही राष्ट्र के अनवरत एवं स्थायी विकास को संभव कर सकता है। व्यक्ति के जीवन में जिस तरह मूल्य एवं आदर्श की स्थापना जरूरी है, उसी तरह मीडिया जगत में भी नैतिकता का विकास आवश्यक है।
डॉ. कुरैशी ने आज आचार्य महाश्रमण के विद्वान शिष्य शासनश्री मुनिश्री सुखलालजी के सान्निध्य में पीएचडी चैम्बर में आयोजित तृतीय आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ स्मृति व्याख्यान माला को सम्बोधित करते हुए अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में उक्त विचार व्यक्त किए। ‘स्थायी एवं नैतिक विकास में मीडिया की सामाजिक जिम्मेदारी’ विषय पर आयोजित इस व्याख्यानमाला में राजधानी के प्रमुख व्यवसायियों, उद्योगपतियों, शिक्षाशास्त्रिायों, पत्राकारों, साहित्यकारों, समाजसेवियों एवं
कॉरपोरेट जगत के प्रमुख व्यक्तित्वों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा एवं पीएचडी चैम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इंडस्ट्री के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राज्यसभा सांसद डा. अभिषेक मनु सिंघवी एवं सम्मानित अतिथि हिन्दुस्तान टाइम्स के सलाहकार श्री वीर सिंघवी थे। समारोह में जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय की कुलपति समणी चारित्राप्रज्ञा, पदमश्री डॉ. के. के. अग्रवाल, अमर उजाला के स्थानीय संपादक श्री संजय देव, न्यूज नेशन चैनल के सीनियर न्यूज एडिटर श्री अजय कुमार, डीसीएम हुंडई लि॰ के चेयरमैन श्री आलोक बी. श्रीराम, पीएचडी चेम्बर के सदस्य श्री एम. केदुगड़, पीएचडी चेम्बर के शिक्षा समिति के सचिव श्री जतिन्द्र सिंह आदि ने आचार्य श्री तुलसी एवं आचार्य श्री महाप्रज्ञ के अवदानों को उपयोगी बताते हुए समाज एवं राष्ट्र निर्माण में उनके योगदान को अविस्मरणीय बताया एवं मीडिया में नैतिक मूल्यों की आवश्यकता व्यक्त की।
मुख्य अतिथि डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा आचार्य श्री महाप्रज्ञ एक अद्भूत आध्यात्मिक व्यक्तित्व थे, उन्होंने समूचे विश्व के कल्याण के लिए चिंतन-मनन के साथ-साथ समाज और राष्ट्र के निर्माण में स्वस्थ और नैतिक मूल्यों की प्रभावी विवेचना की। आज के मीडिया और राजनीति से जुड़े लोग भी उनके बताये मार्ग पर चलकर स्वस्थ समाज की स्थापना कर सकते हैं। शासन श्री मुनि सुखलालजी ने कहा कि वर्तमान की समस्याओं का समाधान अध्यात्म एवं नैतिकता के द्वारा ही संभव है। मूल्यों एवं नैतिकता के अभाव में सभी व्यवस्थाओं पर प्रश्नचिह्न लग रहा है और अकल्पित समस्याएं पैदा हो रही हैं। मुनि सुखलाल नेआगे कहा कि सार्थक और स्थायी विकास के लिए हमें आचार्य श्री तुलसी के अणुव्रत आंदोलन को समझना होगा। उन्होंने कहा कि जनरुचि एवं उनमें नैतिकता की अलख जगाने के लिए मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका है। सत्य की प्रस्तुति के साथ-साथ जनरुचि के परिष्कार का महत्वपूर्ण दायित्व भी मीडिया पर है।
श्री अजय कुमार ने अपने उद्बोधन में कहा कि अक्सर मीडिया पर यह आरोप लगाया जाता है कि आर्थिक प्रलोभन में वह नैतिक, सामाजिक और राष्ट्रीय मूल्यों को धुंधलाता है। जबकि मीडिया अक्सर जनता की रुचि और आकर्षण के हिसाब से अपने कार्यक्रमों को प्रस्तुति देता है। जरूरत है जनरुचि मूल्यों और संवेदनाओं से जुड़े। उन्होंने पेड न्यूज की चर्चा करते हुए कहा कि आजादी के दौरान भी पेड न्यूज का प्रचलन था। इसी संदर्भ में उन्होंने स्टिंग ऑपरेशन की चर्चा करते हुए प्रश्न किया कि क्या स्टिंग ऑपरेशन अनुचित है? अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि मीडिया की भूमिका कहीं न कहीं जनमुद्दों के पक्ष में खड़े होने की रही है, अन्यथा उसकी विश्वसनीयता नहीं रहेगी। अमर उजाला के संपादक श्री संजय देव ने कहा कि पर्यावरण और जनकल्याण की दृष्टि से भी मीडिया का महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व है।
मुनि मोहजीतकुमार ने कहा कि मीडिया की प्रभावी भूमिका के लिए तीन सुंदर शब्द हैं- नीति, नियम एवं निष्ठा। अगर मीडिया की भूमिका में इन तीनों शब्दों का समावेश किया जाता है तो समाज और राष्ट्र के विकास को स्थायी और सार्थक दिशा दी जा सकती है।
इस अवसर पर पीएचडी चेम्बर के उपाध्यक्ष श्री सौरभ सानियाल ने अपने स्वागत वक्तव्य में कहा कि चेम्बर के लिए आज की यह संगोष्ठी इसलिए महत्वपूर्ण है कि इसमें दो आध्यात्मिक संतपुरुषों की स्मृति के साथ समाज की विभिन्न धाराओं का समन्वय हो रहा है। प्रारंभ में तेरापंथ महिला मंडल की सदस्याओं ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संयोजन श्रीमती सुनीता जैन ने किया। आभार ज्ञापन जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा के महामंत्राी श्री सुखराज सेठिया ने किया।
श्री मांगीलाल सेठिया, श्री एम. के. दुगड़, श्री जतिन्द्र सिंह आदि ने प्रशस्ति पत्रा, साहित्य एवं शील्ड के माध्यम से अतिथियों का स्वागत किया।
प्रेषकः
ललित गर्ग
-56/, प्रथम तल, लाजपत नगर-2, नई दिल्ली-110024

मो. 9811051133, फोनः 41720778, 41722657, फैक्सः 29847741