Tuesday, June 3, 2014

हिंदी शिक्षण में आई.सी.टी. प्रयोग पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी 19-20 जून को

हिंदी शिक्षण में आई.सी.टी. प्रयोग पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी 19-20 जून को

हिंदी भाषा एवं साहित्य शिक्षण में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आई.सी.टी.) के प्रयोग के संबंध में दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन 19 एवं 20 जून को केरल स्थित एम.ई.एस. अस्माबी कालेज. पी. वेंबलूर, कोडुंगल्लूर (त्रिश्शूर जिला) में किया जा रहा है ।  विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के बृहत अनुसंधान परियोजना के तहत महाविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा आयोजित इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य है - शिक्षकों में आई.सी.टी. प्रयोग की जागरूकता व कुशलता विकसित करना । कार्यशाला के संयोजक एवं कालेज के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. एम. रंजित ने यहाँ जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि उच्च स्तर पर हिंदी शिक्षकों में शिक्षण कार्य में गुणवत्ता एवं उत्कृष्टता लाने के लिए आई.सी.टी. के प्रयोग में आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए इस कार्यशाला का संयोजन किया जा रहा है ।  शिक्षकों में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी की चेतना जगाने और उन्हें आई.सी.टी. संसाधनों के प्रयोग व ई-सामग्री के निर्माण की कुशलता प्रदान करने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण देना भी कार्यशाला के उद्देश्यों में शामिल है ।   इस दो दिवसीय कार्यशाला में सैद्धांतिक एवं व्याहारिक सत्र भी होंगे ।  सैद्धांतिक सत्रों में शिक्षण में आई.सी.टी. की भूमिका, बहुभाषाई शब्द-संसाधन, आई.सी.टी. के औजारों का शिक्षण व सीखने में प्रयोग करना, ई-सामग्री (ई-कंटेट) का निर्माण आदि विषयों की चर्चा होगी ।  ऑनलाइन व आफलाइन में ई-सामग्री का निर्माण, बहुभाषाई कंप्यूटिंग, ब्लॉगिंग, ऑनलाइन शिक्षण, मोबाइल शिक्षण, वेबकास्टिंग आदि विषयों में व्यावहारिक प्रशिक्षण देने के लिए प्रायोगिक सत्रों का आयोजन किया जा रहा है । शिक्षकों द्वारा निर्मित ई-सामग्री का मूल्यांकन भी कार्यशाला के दौरान किया जाएगा ।  इस कार्यशाला के संसाधक के रूप में पांडिच्चेरी केंद्रीय विश्वविद्यालय के सहायक आचार्य डॉ. सी. जय शंकर बाबु व एम.ई.एस. अस्माबी कालेज विशेषज्ञ प्रतिभागियों को प्रशिक्षित करेंगे ।  ध्यातव्य है कि डॉ. जय शंकर बाबु ने विगत एक दशक से बहुभाषाई कंप्यूटिंग विषयक डेढ़ हजार से अधिक तकनीकी कार्यशालाओं का आयोजन कर लाखों प्रतिभागियों में तकनीकी कुशलताएं विकसित की हैं ।  इस कार्यशाला में विश्वविद्यालय व महाविद्यालय स्तर के शिक्षक, शोधार्थी, छात्र तथा आई.सी.टी. की कुशलताएँ हासिल करने के लिए उत्सुक कोई भी व्यक्ति प्रतिभागिता कर सकते हैं ।  प्रतिभागियों के लिए अपेक्षित व्यवस्था करना सुनिश्चित करने के लिए कार्यशाला में अग्रिम पंजीकरण अनिवार्य है ।  कार्यशाला के संबंध में अधिक जानकारी एवं पंजीकरण के लिए कालेज की वेबसाइट www.mesasmabi.com पर देखा जा सकता है ।  अन्य जानकारी के लिए कार्यशाला संयोजक का ई-मेल ranjutkr@gmail.com या मोबाइल नं.9387441300 पर संपर्क किया जा सकता है ।



Sunday, June 1, 2014

शिक्षा के साथ शैक्षणिक आर्थिक-प्रशासनिक व्यवस्था शिक्षक के हाथ में हो

शिक्षा के साथ शैक्षणिक आर्थिक-प्रशासनिक
व्यवस्था शिक्षक के हाथ में हो- इंदुमति काटदरे
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प्राचीन भारतीय ग्रंथों में बताये गये शिक्षा, संचार एवं पत्रकारिता के
सिद्धान्तों से हो सकता है भारत का पुनर्निर्माण- प्रो. कुठियाला
पत्रकारिता विश्वविद्यालय में हिन्दी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर पुनुरुत्थान विद्यापीठ,अहमदाबाद की संयोजक सुश्री इंदुमति काटदरे का व्याख्यान
भोपाल, 30 मई । शिक्षा व्यवस्था में स्वायत्ता के सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि शिक्षा के साथ-साथ शिक्षा से जुड़ी अर्थव्यवस्था एवं प्रशासनिक व्यवस्था शिक्षक के हाथ में हो। प्राचीन भारत में इस तरह की शिक्षा व्यवस्था उपलब्ध थी। आज भारत में शिक्षक अधिष्ठाता तो है परंतु वह प्रशासनिक-आर्थिक व्यवस्था उपलब्ध कराने वाले लोगों के अधीन होकर कार्य कर रहा है। यह विचार हिन्दी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में पुनुरुत्थान ट्रस्ट की मंत्री एवं पुनुरुत्थान विद्यापीठ की संयोजक सुश्री इंदुमति काटदरे ने व्यक्त किये।
        भारत के पुनर्निर्माण के लिए शिक्षा पर कार्य कर रही संस्था पुनुरुत्थान विद्यापीठ एक मुख्य शिक्षा संगठन है जिसका लक्ष्य भारतीय ज्ञान-विज्ञान को शिक्षा की मुख्य धारा बनाना है। विद्यापीठ की संयोजक सुश्री इंदुमति ने कहा कि प्राचीन भारत में शिक्षा में आर्थिक-प्रशासनिक व्यवस्था शिक्षक ही करता था। राजा एवं समाज के धनी लोग इस व्यवस्था में सहयोग करते थे। यह सहयोग ज्ञान की सेवा करने का सम्मान मानकर किया जाता था। यदि राजा गुरुकुल में जाता तो उसे भी विनीत वस्त्र धारण करने होते थे साथ ही विनीत व्यवहार भी करना होता था। गुरुकुल अथवा आश्रम में दस हजार छात्रों की शिक्षा, भोजन एवं आवास व्यवस्था करने वाला कुलपति कहलाता था और इस कार्य के लिए उसे सभी आर्थिक-प्रशासनिक अधिकार एवं दायित्व प्रदान किये जाते थे। यह माना जाता था कि ज्ञान के प्रसार में स्वायत्ता सबसे ऊपर होना चाहिए। विगत दो शताब्दियों में अंग्रेजी शिक्षा के प्रचार-प्रसार से यह व्यवस्था पूर्णतः समाप्त हो गई है।
        सत्ता के तीन रूपों शासन सत्ता, अर्थ सत्ता एवं धर्म सत्ता में सबसे ऊपर धर्म सत्ता को रखा गया है। यह माना जाता था कि शासन एवं अर्थव्यवस्था धर्म के अधीन रहेंगी। धर्म का संबंध समाज से था अर्थात धर्मतंत्र का प्रतिनिधित्व करने वाली शिक्षा व्यवस्था भी देश को प्रगति के पथ पर ले जा सकती है। हमारे यहाँ आज भी गाँव का शिक्षक पूरे गाँव का गुरुजी होता है और शिक्षा के साथ-साथ अन्य पक्षों पर भी समाज का मार्गदर्शन करता है। शिक्षा हमेशा समाज को मार्गदर्शन देने वाली रही है। अतः जरूरी है कि आज भी शिक्षा का संचालन एवं नियंत्रण शिक्षक के हाथों में ही रहे, यही सच्चे अर्थों में स्वायत्ता है। स्वायत्त शिक्षा कैसी हो इस पर आज विचार करने की आवश्यकता है। शिक्षा में स्वायत्ता लाने के लिए तीन बातें जरूरी हैं प्रथम शिक्षा का संचालन शिक्षक के हाथ में होना चाहिए, द्वितीय इस पर हमारी पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास होना चाहिए, तृतीय शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग होते रहना चाहिए। इन तीनों पहलुओं के अमल से ही शिक्षा में स्वायत्ता संभव है।
        अध्यक्षीय उद्बोधन में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने कहा कि राष्ट्र, समाज एवं मानव के निर्माण में अपना सर्वश्रेष्ठ देना शिक्षक का कार्य है। इस दृष्टि से शिक्षा के संबंध में गहन चितन मनन की आवश्यकता है। शिक्षा को स्वायत्त बनाने के प्रयास में शिक्षकों को आगे आना होगा और इसमें समाज को भी सहयोग प्रदान करना होगा। उन्होंने  कहा कि पुनुरुत्थान विद्यापीठ के कार्य में विश्वविद्यालय भी सहयोग करेगा। विशेषकर भारतीय शिक्षा शास्त्र के निर्माण का जो प्रयास पुनुरुत्थान विद्यापीठ कर रहा है उसमें विश्वविद्यालय के शिक्षकों एवं अधिकारियों का सहयोग रहेगा। हिन्दी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर प्रो. कुठियाला ने कहा कि प्राचीन भारतीय ग्रंथों में बताये गये शिक्षा, संचार एवं पत्रकारिता के सिद्धान्तों से ही भारत का पुनर्निर्माण हो सकता है। विश्वविद्यालय ने इसी उद्देश्य से महर्षि नारद, भरतमुनि, महर्षि पतंजलि, पाणिनि, महर्षि अरविंद, स्वामी विवेकानंद, पीठ की स्थापना की है। इन शोध पीठ के माध्यम से सामाजिक संचार, संवाद व पत्रकारिता के सिद्धान्तों एवं व्यवहार की व्याख्या की जायेगी। जिस तरह महर्षि नारद द्वारा बताये गये नारद सूत्र लोकमंगल एवं राष्ट्र के पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।