Thursday, June 24, 2010

हाइकु


संजीव 'सलिल
*
कोई किसी का
सलिल न अपना
न ही पराया.
*
मेरे स्वर ने
कविता रचकर
तुमको गाया.
*
मैं तुम दो से
एक बन गए हैं
नीर-क्षीर हो.
*
हँसे चमन
नयन न हो नम
रहे अमन.
*
पराप्रकृति
श्री राधा-श्री कृष्ण थे
परापुरुष..
*
है अनुबंध
सुमन-भ्रमर में
झूमेंगे साथ..
*
कहे झरना.
लाद मत कुसुम.
शीघ्र झरना.
*
'ईंट-रेत का
मंदिर मनहर
देव लापता.
***

Wednesday, June 23, 2010

पत्रकार श्री शशिनारायण स्वाधीन एक निजी दुर्घटना में घायल....

हिंदी के सुख्यात कवि एवं पत्रकार श्री शशिनारायण स्वाधीन एक निजी दुर्घटना में घायल हो गए, जिससे उनका बायां पैर क्षतिग्रस्त हो गया । हैदराबाद का प्रमुख अस्पताल निम्स में उनका 12 दिनों से उपचार चल रहा है और एक बार ऑपरेशन भी किया गया है । राज्य सरकार के कई प्रशासनिक अधिकारी, पत्रकार मित्रों, सांसदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अस्पताल प्रशासन से निवेदन किया है के संपूर्ण स्वास्थ्य लाभ होने पर ही श्री शशिनारायण स्वाधीन जी को अस्पताल से छुट्टी दी जाए । डॉक्टरों की पूरी टीम उनके स्वास्थ्य पर निगाह बनाई है । उच्च मधुमेह के चलते पैर की खराब स्थिति के कारण उन्हें निम्न अस्पताल के वार्ड सं.7, बेड सं.3 पर रखा गया है । उनके अनेक कवि मित्रों ने अस्पताल पहुँचकर मिज़ाजपुरसी की हैं । विदित है कि स्वाधीन जी भारत के महामहिम राष्ट्रपति से दो बार सम्मानित हो चुके हैं और फिलहाल आर्थिक अभाव में अपना इलाज आंध्र प्रदेश के मुख्य मंत्री द्वारा आबंटित आरोग्यश्री सुविधा के अंतर्गत करवा रहे हैं ।
स्वाधीन जी हिंदी संवाद सेतु पत्रिका के संपादक हैं । लंबे समय तक उन्होंने एक प्रमुख दैनिक समाचारपत्र में काम किया और अवकाशोपरांत अपना जीवन साहित्य के लिए समिर्पित किया है । अब तक उनके आठ कविता संग्रह, नौ समीक्षात्मक संदर्भ ग्रंथ तथा राजभाषा हिंदी पर केंद्रित लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । श्री स्वाधीन भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों की हिंदी सलाहकार समितियों में सलाहकार के रूप में अपनी सेवाएँ समर्पित कर चुके हैं । युग मानस की कामना है कि उन्हें शीघ्र ही संपूर्ण स्वास्थ्य लाभ मिले । उनका संपर्क है – 09849512747.

Friday, June 18, 2010

श्यामल सुमन की तीन कविताएँ

बचपन

याद बहुत आती बचपन की।
उमर हुई है जब पचपन की।।

बरगद, पीपल, छोटा पाखर।
जहाँ बैठकर सीखा आखर।।

संभव न था बिजली मिलना।
बहुत सुखद पत्तों का हिलना।।

नहीं बेंच, था फर्श भी कच्चा।
खुशी खुशी पढ़ता था बच्चा।।

खेल कूद और रगड़म रगड़ा।
प्यारा जो था उसी से झगड़ा।।

बोझ नहीं था सर पर कोई।
पुलकित मन रूई की लोई।।

बालू का घर होता अपना।
घर का शेष अभीतक सपना।।

रोज बदलता मौसम जैसे।
क्यों न आता बचपन वैसे।।

बचपन की यादों में खोया।
सु-मन सुमन का फिर से रोया।।
***
प्रियतम होते पास अगर

प्रियतम होते पास अगर
मिट जाती है प्यास जिगर

ढ़ूँढ़ रहा हूँ मैं बर्षों से
प्यार भरी वो खास नजर

टूटे दिल की तस्वीरों का
देता है आभास अधर

गिरकर रोज सम्भल जाएं तो
बढ़ता है विश्वास मगर

तंत्र कैद है शीतल घर में
जारी है संत्रास इधर

लोगों को छुटकारा दे दो
बन्द करो बकवास खबर

टूटे सपने सच हो जाएं
सुमन हृदय एहसास अगर
***

ज़िंदगी

आग लग जाये जहाँ में फिर से फट जाये ज़मीं।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।

आँधी आये या तूफ़ान बर्फ गिरे या फिर चट्टान।
उत्तरकाशी भुज लातूर सुनामी और पाकिस्तान।।
मौत का ताण्डव रौद्र रूप में फँसी ज़िंदगी अंधकूप में।
लाख झमेले आने पर भी बढ़ी ज़िंदगी छाँव धूप में।।

दहशतों के बीच चलकर खिल उठी है ज़िंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।

कुदरत के इस कहर को देखो और प्रलय की लहर को देखो।
हम विकास के नाम पे पीते धीमा धीमा ज़हर तो देखो।।
प्रकृति को हमने क्यों छेड़ा इस कारण ही मिला थपेड़ा।
नियति नियम को भंग करेंगे रोज़ बढ़ेगा और बखेड़ा।।

लक्ष्य नियति के साथ चलना और सजाना ज़िंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।

युद्धों की एक अलग कहानी बच्चे बूढ़े मरी जवानी।
कुरुक्षेत्र से अब इराक़ तक रक्तपात की शेष निशानी।।
स्वार्थ घना जब जब होता है जीवन मूल्य तभी खोता है।
करुणभाव से मुक्त हृदय भी विपदा में संग संग रोता है।।

साथ मिलकर जब बढ़ेंगे दूर होगी गंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।

जीवन है चलने का नाम रुकने से नहीं बनता काम।
एक की मौत कहीं आ जाये दूजा झंडा लेते थाम।।
हाहाकार से लड़ना होगा किलकारी से भरना होगा।
सुमन चाहिए अगर आपको काँटों बीच गुज़रना होगा।।

प्यार करे मानव मानव को यही करें मिल बंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।
***

Tuesday, June 1, 2010

दोहा सलिला:



संजीव वर्मा 'सलिल'

*
जितने भी दिन हम जियें, जियें चैन से ईश.
उस दिन के पहले उठा, जिस दिन नत हो शीश..
*
कान अन्य के आ सकें, तब तक देना साँस.
काम न आयें किसी के, तो हो जीवन फाँस..
*
वह सहस्त्र वर्षों जियें, जो हरता पर-पीर.
उसका जीवन ख़त्म हो, दे सबको पीर..
*
उसका कभी न अंत हो, जिसको कहते आत्म.
मिटा मात्र शरीर है, आत्म बने परमात्म..
*
सदियाँ हम मानें जिसे, वह विधि का पल मात्र.
पानी के बुलबुले सा, है मानव का गात्र..
*
ज्यों की त्यों चादर धरे, जो न मृत्यु छी पाए.
ढाई आखर पढ़े बिन, साँस न आए-जाए
*

गीत

- आचार्य संजीव सलिल

तन-मन, जग-जीवन झुलसाता काला कूट धुआँ.
सच का शंकर हँस पी जाता, सारा झूट धुआँ....

आशा तरसी, आँखें बरसीं,
श्वासा करती जंग.
गायन कर गीतों का, पाती
हर पल नवल उमंग.
रागी अंतस ओढ़े चोला भगवा-जूट धुआँ.....

पंडित हुए प्रवीण, ढाई
आखर से अनजाने.
अर्थ-अनर्थ कर रहे
श्रोता सुनें- नहीं माने.
धर्म-मर्म पर रहा भरोसा, जाता छूट धुआँ.....

राष्ट्रवादी

- श्यामल सुमन


तनिक बतायें नेताजी, राष्ट्रवादियों के गुण खासा।
उत्तर सुनकर दंग हुआ और छायी घोर निराशा।।

नारा देकर गांधीवाद का, सत्य-अहिंसा का झुठलाना।
एक है ईश्वर ऐसा कहकर, यथासाध्य दंगा करवाना।
जाति प्रांत भाषा की खातिर, नये नये झगड़े लगवाना।
बात बनाकर अमन-चैन की, शांति-दूत का रूप बनाना।
खबरों में छाये रहने की, हो उत्कट अभिलाषा।
राष्ट्रवादियों के गुण खासा।।

किसी तरह धन संचित करना, लक्ष्य हृदय में हरदम इतना।
धन-पद की तो लूट मची है, लूट सको तुम लूटो उतना।
सुर नर मुनि सबकी यही रीति, स्वारथ लाई करहिं सब प्रीति।
तुलसी भी ऐसा ही कह गए और तर्क सिखाऊँ कितना।।
पहले "मैं" हूँ राष्ट्र "बाद" में ऐसी रहे पिपासा।
राष्ट्रवादियों के गुण खासा।।

आरक्षण के अन्दर आरक्षण, आपस में भेद बढ़ाना है।
फूट डालकर राज करो, यह नुस्खा बहुत पुराना है।
गिरगिट जैसे रंग बदलना, निज-भाषण का अर्थ बदलना।
घड़ियाली आंसू दिखलाकर, सबको मूर्ख बनाना है।
हार जाओ पर सुमन हार की कभी न छूटे आशा।
राष्ट्रवादियों के गुण खासा।।

"सूत्र" एक है "वाद" हजारों, टिका हुआ है भारत में।
राष्ट्रवाद तो बुरी तरह से, फँस गया निजी सियासत में।।