Tuesday, August 28, 2012

एक साक्षात्कार : कवि महेंद्रभटनागर से


एक साक्षात्कार  : 
कवि महेंद्रभटनागर से
*प्रश्नकर्त्ता  : बी. आर. बेनीवाल [अपनी हिंदी]



लेखन में आपको क्या कठिनाइयाँ आयीं?
     हर कोई सर्वकालिक लेखक / रचनाकार नहीं होता। आजीविका     के   लिए संघर्ष करना पड़ता है। जिस काम से रोटी-रोज़ी चलती है; उस     काम को प्राथमिकता देनी पड़ती है। वहाँ शिथिलता नहीं बरती जा     सकती। प्राध्यापक रहा। अधिकांश समय महाविद्यालयों में गुज़रा      अध्यापन एवं अन्य दायित्वों के निर्वाह में। पारिवारिक      ज़िम्मेदारियाँ रहीं। स्वयं के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना पड़ा।    सामाजिकता की उपेक्षा भी नहीं की     जा सकती। गरज़ यह कि    लेखन-कर्म को अधिक समय नहीं मिल पाता। रात-रात भर     जगकर पढ़ना-लिखना स्वास्थ्य को क्षति पहुँचाना है। माना कि   अनेक     लेखक ऐसा करते हैं। जहाँ तक मेरा संबंध है, लेखन में     सर्वाधिक      बाधाएँ पारिवारिक परेशानियों के कारण आयीं। त्रस्त   मन:स्थितियों में सुचारू रूप से पढ़ना-लिखना सम्भव नहीं।


कविताएँ लिखते समय क्या कोई ख़ास वातावरण पसंद करते है या कोई ख़ास वस्तु (जैसे ख़ास टेबल, कलम या कुर्सी इत्यादि)?
     नहीं, ऐसा कुछ नहीं। लेकिन लिखने / रचना करने के लिए अवकाश-सुविधा के अतिरिक्त, मन भी बनाना पड़ता है। किसी     आन्तरिक प्रेरणावश लघु-विस्तारी कविता-सृष्टि करना अवश्य सहज   है। मेरी प्रमुख विधा कविता ही रही। काव्य-रचना मेरे लिए यातना     से गुज़रना नहीं है। रचना-सृष्टि के पश्चात्‌ अपूर्व तोष की अनुभूति      होती है।


आपकी  पसंदीदा रचनाएँ कौन-कौन-सी हैं?
     बताना कठिन है। अप्रिय रचना के अस्तित्व का प्रश्न ही नहीं।
     अधिक प्रिय रचनाएँ हो सकती हैं। सुविधा से उनका चयन करना   होगा। माना, यह कार्य भी इतना आसान नहीं!

अन्य लेखकों की पसंदीदा रचनाएँ? 
            ‘श्रीरामचरित मानस, प्रेमचंद का अधिकांश साहित्य, आधुनिक     कवियों में प्रसाद, पंत, निराला, दिनकर, सुमन, विवेकानंद-साहित्य,     आदि।

आपके प्रेरणास्रोत ?,
          गौतम बुद्ध, गांधी, मार्क्स, विवेकानंद, तुलसीदास, प्रेमचंद।


 हिंदी के बारे में आपके विचार?
          हिंदी मेरी मातृभाषा है। उसे अधिकाधिक समृद्ध और सक्षम                  बनाना-देखना चाहता हूँ।

— भारत के बारे में आपके विचार?
          भारत मेरी मातृभूमि है। मुझे भारत में रहना सुखद लगता है।
          विदेश में कहीं भी गया नहीं। दुनिया देखने की इच्छा ज़रूर                 है।


—वर्तमान हिंदी साहित्य के बारे में आपके विचार ?
          वर्तमान में भारत में और वह भी हिंदी में उत्कृष्ट साहित्य-                 रचना हो रही है।


हिंदी और हिंदी साहित्य का भविष्य क्या है?
          हर प्रकार से उज्ज्वल दीखता है।


—आपकी दृष्टि में हिंदी कितनी उपयोगी है ?
          हिंदी भारत की अधिकांश जनता की मातृभाषा है। हिंदी भारत की            सम्पर्क भाषा है। प्राचीन काल से वह अनायास भारत की                   राष्ट्रभाषा चली आ रही है। हिंदी भारत के साधुओं-संतों की                भाषा चिरकाल से रही है। रामेश्वरम्‌ से बद्रीनाथ द्वारिकापुरी से             जगन्नाथपुरी। भारत की भावनात्मक एवं राष्ट्रीय एकता उसके प्रचार-             प्रसार      पर निर्भर है।

—हिंदी साहित्य का सरंक्षण और प्रचार - प्रसार किस प्रकार हो?
          आज जब देश स्वतंत्र है तब मात्र हिंदी भाषा और साहित्य के                    संरक्षण और प्रचार-प्रसार का दायित्व ही नहीं; भारत की                         प्रत्येक भाषा और उसके साहित्य का संरक्षण एवं उसके प्रचार-               प्रसार का      दायित्व केन्द्रीय और राज्य-सरकारों का है; जिसे                वे समझदारी से निभा रही हैं।

—हिंदी से आपकी उम्मीदें ?
          हिंदी में आधुनिक ज्ञान-विज्ञान से सम्बद्ध साहित्य-सामग्री                   आसानी से उपलब्ध हो। हमें नये शब्दों के गढ़ने के स्थान पर                    अंतर्राष्ट्रीय शब्दों को ही अपना बना लेना चाहिए। विश्व की                 किसी भी भाषा के शब्दों से हमें परहेज़ न हो।

           ==================================

110 बलवन्तनगर, गांधी रोड, ग्वालियर 474 002 [म॰प्र॰]
-मेल : drmahendra02@gmail.com




रमेश यादव की मराठी बाल कहानियों की कृति-थिरकणारे पंख - का लोकार्पण समारोह सुसंपन्न


रमेश यादव की मराठी बाल कहानियों की कृति-थिरकणारे पंख - का लोकार्पण समारोह सुसंपन्न

  फोटो में बायें से- अरविंद लेखराज, कुणाल यादव, आंजनेय ढवले, डा.रमेश मिलन, आशुतोश गोवारीकर, जयराज सालगावकर।
 मराठी बाल कहानियों की कृति -थिरकणारे पंख


रमेश यादव

रमेश यादव की मराठी बाल कहानियों की कृति -थिरकणारे पंख - का लोकार्पण समारोह हाल ही में प्रसिद्ध सिने निर्देशक आशुतोश गोवरीकर के हाथों संपन्न हुआ।इस अवसर पर प्रमुख अतिथि के रूप में जयराज सालगावकर उपस्थित थे। मराठी के प्रसिद्ध प्रकाशक केशव भिकाजी ढवले प्रकाशन की ओर से इस पुस्तक का प्रकाशन किया गया।

Tuesday, August 21, 2012

अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉगर सम्मेलन एवं परिकल्पना सम्मान समारोह


संभावित कार्य विवरण 
  
अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉगर सम्मेलन
एवं परिकल्पना सम्मान समारोह 
(दिनांक : 27 अगस्त 2012,
स्थान : राय उमानाथ बली प्रेक्षागृहक़ैसरबागलखनऊ ) 

प्रात: 11.00 से 12.00  उदघाटन सत्र

उदघाटनकर्ता : श्री श्रीप्रकाश जायसवाल, केंद्रीय कोयला मंत्री, दिल्ली भारत सरकार
अध्यक्षता : श्री शैलेंद्र सागर, संपादक : कथा क्रम, लखनऊ
मुख्य अतिथि : श्री उद्भ्रांत, वरिष्ठ साहित्यकार, दिल्ली
विशिष्ट अतिथि : श्री के. विक्रम राव, वरिष्ठ पत्रकार, लखनऊ
              : श्री समीर लाल समीर,वरिष्ठ ब्लॉगर, टोरंटो कनाडा 
              : श्री मती शिखा वार्ष्नेय, स्वतंत्र पत्रकार और न्यू मीडिया कर्मी, लंदन
              : श्री प्रेम जनमेजय, वरिष्ठ व्यंग्यकार, दिल्ली
              : श्री मती राजेश कुमारी, वरिष्ठ ब्लॉगर, देहरादून
 स्वागत भाषण : डॉ ज़ाकिर अली रजनीश, महामंत्री तस्लीम, लखनऊ
 धन्यवाद ज्ञापन : रवीन्द्र प्रभात, संचालक : परिकल्पना  न्यू मीडिया विशेषज्ञ, लखनऊ
 संचालन :  प्रो मनोज दीक्षित, अध्यक्ष, डिपार्टमेन्ट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन,एल यू ।
 

विशेष : वटवृक्ष पत्रिका के ब्लॉगर दशक विशेषांक का लोकार्पण तथा दशक के हिन्दी ब्लोगर्स का सारस्वत सम्मान ।

12.00 से 1.30  चर्चा सत्र प्रथम : न्यू मीडिया की भाषायी चुनौतियाँ
अध्यक्षता : डॉ सुभाष राय, वरिष्ठ पत्रकार, लखनऊ
मुख्य अतिथि :  श्री मति पूर्णिमा वर्मन, संपादक : अभिव्यक्ति,शरजाह, यू ए ई
विशिष्ट अतिथि : श्री रवि रतलामी, वरिष्ठ ब्लॉगर, भोपाल 
               सुश्री वाबुशा कोहली, लंदन, युनाईटेड किंगडम 
               डॉ रामा द्विवेदी, वरिष्ठ कवयित्री, हैदराबाद
               डॉ अरविंद मिश्र, वरिष्ठ ब्लॉगर, वाराणसी
               डॉ अनीता मन्ना, प्राचार्या, कल्याण (महाराष्ट्र)

आमंत्रित वक्ता : हेमेन्द्र तोमर, पूर्व अध्यक्ष लखनऊ पत्रकार संघ, डॉ ए. के. सिंह, अध्यक्ष,इंस्टीट्यूट ऑफ जर्नलिज़्म एंड मास कम्यूनिकेशन, कानपुर, शहंशाह आलम, चर्चित कवि, पटना (बिहार)एवं अरविंद श्रीवास्तव, वरिष्ठ युवा साहित्यकार, मधेपुरा (बिहार) और सुनीता सानू, दिल्ली ।
संचालक : डॉ. मनीष मिश्र, विभागाध्यक्ष, हिन्दी, के एम अग्रवाल कौलेज, कल्याण (महाराष्ट्र)।
विशेष : साहित्यकार सम्मान समारोह (प्रबलेस और लोकसंघर्ष पत्रिका द्वारा) ।

अपराहन 1.30 से 2.30 : दोपहर का भोजन

 

अपराहन 2.30 से 3.30 : चर्चा सत्र द्वितीय : न्यू मीडिया के सामाजिक सरोकार
अध्यक्षता : श्री मती इस्मत जैदी, वरिष्ठ गजलकार,पणजी (गोवा)
मुख्य अतिथि : श्री कृष्ण कुमार यादव, निदेशक डाक सेवाएँ, इलाहाबाद
विशिष्ट अतिथि : डॉ सुधाकर अदीब, निदेशक उ.प्र. हिंदी संस्थान   
             श्री मती रंजना रंजू भाटिया, वरिष्ठ ब्लॉगर, दिल्ली
             श्री गिरीश पंकज, वरिष्ठ व्यंग्यकार, रायपुर (छतीसगढ़)
             श्री मती संगीता पुरी, वरिष्ठ ब्लॉगर, धनबाद (झारखंड) 
             सुश्री रचना,वरिष्ठ ब्लॉगर, दिल्ली 
             श्री पवन कुमार सिंह, जिलाधिकारी, चंदौली (उ. प्र.)      
मुख्य वक्ता : शेफाली पांडे, हल्द्वानी (उत्तराखंड), निर्मल गुप्त, मेरठ, संतोष त्रिवेदी, रायबरेली,रतन सिंह शेखावत, जयपुर,सुनीता सानू, दिल्ली और सिद्धेश्वर सिंह, खटीमा (उत्तराखंड)
संचालक : डॉ हरीश अरोड़ा, दिल्ली 

विशेष: ब्लॉगरों को नुक्कड़ सम्मान

अपराहन 3.30 से 4.00 : चाय एवं सूक्ष्म जलपान

शाम 4.00 से 6.00 : चर्चा सत्र तृतीय : न्यू मीडिया दशा, दिशा और दृष्टि
अध्यक्षता : श्री मुद्रा राक्षस, वरिष्ठ साहित्यकार, लखनऊ
मुख्य अतिथि : श्री वीरेंद्र यादव, वरिष्ठ आलोचक, लखनऊ
विशिष्ट अतिथि : श्री राकेश, वरिष्ठ रंगकर्मी, लखनऊ
               श्री शिवमूर्ति, वरिष्ठ कथाकार, लखनऊ
               श्री शकील सिद्दीकी, सदस्य प्रगतिशील लेखक संघ, उत्तरप्रदेश इकाई
               श्री अविनाश वाचस्पति, वरिष्ठ ब्लॉगर, दिल्ली 
               श्री नीरज रोहिल्ला, टेक्सास (अमेरिका)

मुख्य वक्ता : बी एस पावला(छतीसगढ़),शैलेश भारतवासी, दिल्ली,शाहनवाज़(दिल्ली),मुकेश कुमार तिवारी, इंदोर (म प्र), दिनेश गुप्ता (रविकर), धनबाद, अर्चना चव जी,इंदोर, श्री श्रीश शर्मा,यमुना नगर (हरियाणा), डॉ प्रीत अरोड़ा, चंडीगढ़, आकांक्षा यादव, इलाहाबाद ।

संचालक : डॉ विनय दास, चर्चित समीक्षक, बाराबंकी ।
धन्यवाद ज्ञापन : एडवोकेट रणधीर सिंह सुमन, प्रबंध संपादक लोकसंघर्ष और वटवृक्ष पत्रिका ।
विशेष : परिकल्पना सम्मान समारोह ।
विशेष आमंत्रित अतिथि : श्री आनंद सुमन सिंह, संपादक : सरस्वती सुमन (देहरादून)

अन्य आमंत्रित अतिथि : सर्वश्री रूप चन्द्र शास्त्री मयंक (उत्तराखंड),दिनेश माली(उड़ीसा), अलका सैनी (चंडीगढ़), हरे प्रकाश उपाध्याय (लखनऊ), गिरीश बिल्लोरे मुकुल (जबलपुर) ,कनिष्क कश्यप (दिल्ली),डॉ जय प्रकाश तिवारी(छतीसगढ़), राहुल सिंह (छतीसगढ़) ,नवीन प्रकाश(छतीसगढ़), रविन्‍द्र पुंज (हरियाणा), दर्शन बवेजा(हरियाणा), श्रीश शर्मा(हरियाणा), संजीव चौहान(हरियाणा)डाप्रवीण चोपडा(हरियाणा),  मुकेश कुमार सिन्हा(झारखण्ड),पवन चन्दन(दिल्ली),नीरज जाट (दिल्ली),कुमार राधारमण (दिल्ली), अजय कुमार झा (दिल्ली), सुमित प्रताप सिंह (दिल्ली), रतन सिंह शेखावत(राजस्थान,मनोज कुमार पाण्डेय(बिहार),  शहंशाह आलम(बिहार), सिद्धेश्वर सिंह (उतराखंड),निर्मल गुप्त(मेरठ),संतोष त्रिवेदी (रायबरेली), कुमारेन्द्र सिंह सेंगर, शिवम मिश्रा(मैनपुरी),कुवर कुसुमेश (लखनऊ)डॉ श्याम गुप्त (लखनऊ), हरीश सिंह (भदोही). प्रवीण त्रिवेदी  फतेहपुर (उ.प्र.)  और प्रेमनंदन  तथा  पवन चन्दन (दिल्ली) आदि ।

द्रष्टव्य : इस अवसर पर अल्का सैनी का कहानी संग्रह लाक्षागृह और डॉ मनीष कुमार मिश्र द्वारा संपादित न्यू मीडिया से संबंधित सद्य: प्रकाशित पुस्तक का लोकार्पण भी होगा ।

शाम 6.00  से 7.00  : सांस्कृतिक कार्यक्रम/तत्पश्चात समापन

(आगत अतिथियों की यात्रा में फेरबदल के कारण उपरोक्त विवरण में परिवर्तन संभावित है )

रचनाकार.ऑर्ग कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन हेतु प्रविष्टियाँ आमंत्रित


रचनाकार.ऑर्ग कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन हेतु प्रविष्टियाँ आमंत्रित




पूर्व में रचनाकार.ऑर्ग में व्यंग्य लेखन पुरस्कार आयोजन किया गया था जो कि बेहद सफल रहा था.
इसी तारतम्य में रचनाकार.ऑर्ग कहानी लेखन पुरस्कार आयोजित किया जा रहा है.
हम सभी के भीतर एक कथाकार छुपा होता है. आइए, इस बहाने नया सृजन करें.
कथाकार अपनी प्रविष्टियाँ 30 सितम्बर 2012 तक भेज सकते हैं. कृपया यह खबर अपने तमाम सृजनशील मित्रों तक पहुँचाएँ. पुरस्कारों की घोषणा अक्तूबर-नवंबर 2012 में की जाएगी.
आरंभ में कुल रु. 12000 (बारह हजार) के पुरस्कारों की घोषणा की गई थी, परंतु अब पुरस्कार में इजाफ़ा हुआ है. अब पुरस्कृत प्रविष्टियों को कुल रु. 15000/-  (पंद्रह हजार) के पुरस्कार दिए जाएंगे. पुरस्कारों की राशि में और इजाफा संभव है. पुरस्कार राशि अथवा किताबों हेतु प्रायोजन सादर आमंत्रित हैं.

प्रथम पुरस्कार - कुल रु. 6000/- ( रु. 3000 नकद व रु. 4000 से अधिक की किताबें)

द्वितीय पुरस्कार - कुल रु. 4000 (रु. 2000 नकद व रु. 3000 से अधिक  की किताबें)

तृतीय पुरस्कार - कुल रु. 2000 (रु. 1000 नकद व रु. 2000 से अधिक की किताबें)

इस आयोजन हेतु एक निर्णायक मंडल का गठन किया गया है. सुप्रसिद्ध वरिष्ठ कथाकार द्वय श्री सूरज प्रकाश तथा श्री हरि भटनागर इस आयोजन के निर्णायक रहेंगे.
अधिक जानकारी हेतु कृपया यहाँ क्लिक कीजिए ।

आगे पढ़ें: रचनाकार: रचनाकार.ऑर्ग कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन हेतु प्रविष्टियाँ आमंत्रित http://www.rachanakar.org/2012/07/blog-post_07.html#ixzz24GSiuz2b

ये चीत्कार !

कविता 


ये चीत्कार !

- अनामिका


ये चीत्कार !

ये हाहाकार !
ये संहार !!!    क्यों ?


ये संत्रास ! 
ये परिहास !
सब बदहवास ! क्यों?


ये वारदात !
ये मारकाट !
सब बरबाद ! क्यों?




प्रशासन हाय !
नाकामी दर्शाय !
नाकाबिल ये !   क्यों??


देश है त्रस्त !
लुटेरे है मस्त !
अनाचार ज़बरदस्त ! क्यों?


कोई तो बताये !
कौन है सहाय!
अब सहा न जाए !   यूं ।।

Thursday, August 16, 2012

प्रो. श्रीवास्तव ने श्रीमदभगवदगीता के हिंदी पद्यानुवाद में मूल भावों की पूर्ण रक्षा की है - श्रीमती विभूति खरे


पुस्तक समीक्षा 

 प्रो. श्रीवास्तव ने श्रीमदभगवदगीता के हिंदी पद्यानुवाद में मूल भावों की पूर्ण रक्षा की है
 -  श्रीमती विभूति खरे

कृति ... श्रीमदभगवदगीता हिन्दी पद्यानुवाद 
अनुवादक .... प्रो सी बी श्रीवास्तव " विदग्ध " 
प्रकाशक .... अर्पित पब्लिकेशन्स , कैथल ,  हरियाणा 
मूल्य .... हार्ड बाउण्ड २५० रु   
 पृष्ठ ... २५४ 
पुस्तक प्राप्ति हेतु पता ... ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी रामपुर , जबलपुर म. प्र. ४८२००८ 


श्रीमदभगवदगीता एक सार्वकालिक ग्रंथ है . इसमें जीवन के मैनेजमेंट की गूढ़ शिक्षा है . आज संस्कृत समझने वाले कम होते जा रहे हैं , पर गीता में सबकी रुचि सदैव बनी रहेगी , अतः संस्कृत न समझने वाले हिन्दी पाठको को गीता का वही काव्यगत आनन्द यथावथ मिल सके इस उद्देश्य से प्रो. सी. बी .श्रीवास्तव "विदग्ध" ने मूल संस्कृत श्लोक , फिर उनके द्वारा किये गये काव्य अनुवाद तथा शलोकशः ही शब्दार्थ को हार्ड बाउण्ड , बढ़िया कागज व अच्छी प्रिंटिंग के साथ यह बहुमूल्य कृति प्रस्तुत की है . अनेक शालेय व विश्वविद्यालयीन पाठ्यक्रमो में गीता के अध्ययन को शामिल किया गया है , उन छात्रो के लिये यह कृति बहुउपयोगी बन पड़ी है . 
भगवान कृष्ण ने  द्वापर युग के समापन तथा कलियुग आगमन के पूर्व (आज से पांच हजार वर्ष पूर्व) कुरूक्षेत्र के रणांगण मे दिग्भ्रमित अर्जुन को ,  जब महाभारत युद्ध आरंभ होने के समस्त संकेत योद्धाओ को मिल चुके थे, गीता के माध्यम से ये अमर संदेश दिये थे व जीवन के मर्म की व्याख्या की थी .श्रीमदभगवदगीता का भाष्य वास्तव मे ‘‘महाभारत‘‘ है। गीता को स्पष्टतः समझने के लिये गीता के साथ ही  महाभारत को पढना और हृदयंगम करना भी आवश्यक है। महाभारत तो भारतवर्ष का क्या ? विश्व का इतिहास है। ऐतिहासिक एवं तत्कालीन घटित घटनाओं के संदर्भ मे झांककर ही श्रीमदभगवदगीता के विविध दार्शनिक-आध्यात्मिक व धार्मिक पक्षो को व्यवस्थित ढ़ंग से समझा जा सकता है। 
जहॉ भीषण युद्ध, मारकाट, रक्तपात और चीत्कार का भयानक वातावरण उपस्थित हो वहॉ गीत-संगीत-कला-भाव-अपना-पराया सब कुछ विस्मृत हो जाता है फिर ऐसी विषम परिस्थिति मे गीत या संगीत की कल्पना बडी विसंगति जान पडती है। क्या रूद में संगीत संभव है? एकदम असंभव किंतु यह संभव हुआ है- तभी तो ‘‘गीता सुगीता कर्तव्य‘‘ यह गीता के माहात्म्य में कहा गया है। अतः संस्कृत मे लिखे गये गीता के श्लोको का पठन-पाठन भारत मे जन्मे प्रत्येक भारतीय के लिये अनिवार्य है। संस्कृत भाषा का जिन्हें ज्ञान नहीं है- उन्हे भी कम से कम गीता और महाभारत ग्रंथ क्या है ? कैसे है ? इनके पढने से जीवन मे क्या लाभ है ? यही जानने और समझने के लिये भावुक हृदय कवियो साहित्यकारो और मनीषियो ने समय-समय पर साहित्यिक श्रम कर कठिन किंतु जीवनोपयोगी संस्कृत भाषा के सूत्रो (श्लोको) का पद्यानुवाद किया है, और जीवनोपयोगी ग्रंथो को युगानुकूल सरल करने का प्रयास किया है। 
    इसी क्रम मे साहित्य मनीषी कविश्रेष्ठ प्रो. चित्रभूषण श्रीवास्तव जी ‘‘विदग्ध‘‘ ने जो न केवल भारतीय साहित्य-शास्त्रो धर्मग्रंथो के अध्येता हैं बल्कि एक कुशल अध्येता भी हैं स्वभाव से कोमल भावो के भावुक कवि भी है। निरंतर साहित्य अनुशीलन की प्रवृत्ति के कारण विभिन्न संस्कृत कवियो की साहित्य रचनाओ पर हिंदी पद्यानुवाद भी आपने प्रस्तुत किया है . महाकवि कालिदास कृत ‘‘मेघदूतम्‘‘ व रघुवंशम् काव्य का आपका पद्यानुवाद दृष्टव्य , पठनीय व मनन योग्य है।गीता के विभिन्न पक्षों जिन्हे योग कहा गया है जैसे विषाद योग जब विषाद स्वगत होता है तो यह जीव के संताप में वृद्धि ही करता है और उसके हृदय मे अशांति की सृष्टि का निर्माण करता है जिससे जीवन मे आकुलता, व्याकुलता और भयाकुलता उत्पन्न होती हैं परंतु जब जीव अपने विषाद को परमात्मा के समक्ष प्रकट कर विषाद को ईश्वर से जोडता है तो वह विषाद योग बनकर योग की सृष्टि श्रृखंला का निर्माण करता है और इस प्रकार ध्यान योग, ज्ञान योग, कर्म योग, भक्तियोग, उपासना योग, ज्ञान कर्म सन्यास योग, विभूति योग, विश्वरूप दर्शन विराट योग, सन्यास योग, विज्ञान योग, शरणागत योग, आदि मार्गो से होता हुआ मोक्ष सन्यास योग प्रकारातंर से है,  तो विषाद योग से प्रसाद योग तक यात्रासंपन्न करता है।
इसी दृष्टि से गीता का स्वाध्याय हम सबके लिये उपयोगी सिद्ध होता हैं . अनुवाद में प्रायः दोहे को छंद के रूप में प्रयोग किया गया है .  कुछ अनूदित अंश बानगी के रूप में  इस तरह  हैं ..

अध्याय ५ से ..

नैव किंचित्करोमीति युक्तो मन्येत तत्ववित्‌ ।
पश्यञ्श्रृण्वन्स्पृशञ्जिघ्रन्नश्नन्गच्छन्स्वपंश्वसन्‌ ॥
प्रलपन्विसृजन्गृह्णन्नुन्मिषन्निमिषन्नपि ॥
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेषु वर्तन्त इति धारयन्‌ ॥

स्वयं इंद्रियां कर्मरत,करता यह अनुमान
चलते,सुनते,देखते ऐसा करता भान।।8।।
सोते,हँसते,बोलते,करते कुछ भी काम
भिन्न मानता इंद्रियाँ भिन्न आत्मा राम।।9।।

भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम्‌ ।
सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ॥

हितकारी संसार का,तप यज्ञों का प्राण
जो मुझको भजते सदा,सच उनका कल्याण।।29।।

अध्याय ९ से ..

अहं क्रतुरहं यज्ञः स्वधाहमहमौषधम्‌ ।
मंत्रोऽहमहमेवाज्यमहमग्निरहं हुतम्‌ ॥

मै ही कृति हूँ यज्ञ हूँ,स्वधा,मंत्र,घृत अग्नि
औषध भी मैं,हवन मैं ,प्रबल जैसे जमदाग्नि।।16।।
इस तरह प्रो श्रीवास्तव ने  श्रीमदभगवदगीता के श्लोको का पद्यानुवाद कर हिंदी भाषा के प्रति अपना अनुराग तो व्यक्त किया ही है किंतु इससे भी अधिक सर्व साधारण के लिये गीता के दुरूह श्लोको को सरल कर बोधगम्य बना दिया है .गीता के प्रति गीता प्रेमियों की अभिरूचि का विशेष ध्यान रखा है । गीता के सिद्धांतो को समझने में साधको को इससे बडी सहायता मिलेगी, ऐसा मेरा विश्वास है। अनुवाद बहुत सुदंर है। शब्द या भावगत कोई विसंगति नहीं है। अन्य गीता के अनुवाद या व्याख्येायें भी अनेक विद्वानो ने की हैं पर इनमें  लेखक स्वयं अपनी संमति समाहित करते मिलते हैं जबकि इस अनुवाद की विशेषता यह है कि प्रो श्रीवास्तव द्वारा ग्रंथ के मूल भावो की पूर्ण रक्षा की गई है।
समीक्षक ... श्रीमती विभूति खरे , ए ७ , यश क्लासिक , सुस रोड ,पाषाण ,  पुणे ..२१