Tuesday, July 21, 2020

सीता (एक महाकाव्य) अंग्रेज़ी मूल कवि - डॉ. नंदिनी साहू, हिंदी अनुवादक - दिनेश कुमार माली

सीता महाकाव्य का धारावाहिक प्रकाशन
(डॉ. नंदिनी साहू जी कृत महाकाव्य सीता का हिंदी अनुवाद श्री दिनेश कुमार माली जी ने किया है ।  इस अनूदित महाकाव्य को युग मानस में धारावाहिक प्रकाशन दि.18 जुलाई, 2020 से किया जा रहा है ।  25 सर्गों के इस महाकाव्य की प्रस्तावना और क्रमशः प्रथम सर्ग, द्वितीय सर्ग के प्रकाशन के बाद इसी क्रम में आज तृतीय सर्ग का प्रकाशन किया गया है ।  आशा है, 'युग मानस' के सुधी पाठक वर्ग इस महाकाव्य पर अपनी आत्मीय प्रतिक्रिया देने की कृपा अवश्य करेंगे । - डॉ. सी. जय शंकर बाबु)

डॉ. नंदिनी साहू


                                    सीता 

                                             (तृतीय सर्ग)


पिनाकविशाल दिव्य शिव-धनुष,
जनक को मिला परशुराम से, जब वे हुए उनकी तपस्या से खुश
और मिला उन्हें वरदान, रखो तुम उसे सुरक्षित अपने पास ।


धनुर्वेद में उल्लेखितभगवान शिव ने यह धनुष
परशुराम को दिया, उनके तप पर हो खुश  
कैसे होता मुझे उसकी पवित्रता का ज्ञान ?

पता नहीं क्यों, कोई दु:स्वप्न
धुंधली रेखा बन उभरता मेरे पिता के नयन  
जब भी वे करते इसके दर्शन ।

पिता का था एक दयनीय स्वप्न  
स्वायत्तता-योग्य नहीं कुछ जीवन   
शिव-धनुष भी नहीं कर पाया उन्हें प्रसन्न।

 दुख-दर्द ही था उनका धन,
पर उनके पास था समर्पण,आशान्वित नयन
मैं यानि मैथिली कैसे बनूँ सुहागन ?  

उस दिन, पहाड़ों के भीमाकार शिखर,
बने अपारदर्शी छाया-तस्वीर   
पिता करने लगे गहन सोच-विचार।

अनुभवजनित उत्तेजना भरने लगी ज्यामितीय स्थान,
सामान्य वस्तु,पेड़-पौधें, जानवर, छवि और सामग्रिक संरचन,  
मुझे नहीं पता, क्या मैं करने जा रही हूँ इतिहास-लेखन ?  

खेल-खेल में शिव-धनुष उठाकर रखा मैंने दरवाजे के पास  
एकत्रित हजारों लोगों को नहीं हुआ अपनी आँखों पर विश्वास,  
क्या एक लड़की उठा सकती उसे, तीन सौ सैनिक उठा नहीं पाए जिसे?


मुंह से निकल पड़ा उनके, इतनी शक्तिशाली महिला! ऐसी वीर !
कौन जानता था कि  अराजकता और अत्याचार
बाएँ मुंह फाड़े खड़ा था मेरी ओर ?

 क्या किसी सच्चा योद्धा का हो रहा अवतरण  ?
 राजा जनक ने पितृसत्तात्मक मूल्यों का किया अवमूल्यन  
 "चाहेगा जो मेरी बेटी से विवाह, करेगा वह शिव-धनुष भग्न।”

वह विशाल धनुष बना, मेरे स्वयंवर का आधार  
दूल्हे के पिता की पसंद पर मन ही मन करने लगी विचार ,
क्या उन्हें पसंद है मेरा यह स्वयंवर  ?

पति की पसंद नारी के लिए महत्वपूर्ण
या पिता की शर्त- शारीरिक शक्ति की पूर्व प्रदर्शन?  
क्या ताकत ही महिला के लिए बिन्दु-आकर्षण ?

आज भी, बेटे की उम्मीद में करते माता-पिता बेटियों का विस्मरण;
लड़कियां करती लड़कों के लिए मार्ग-निर्धारण
उनकी भावी दूल्हे से शादी हो जाती है एक दिन ।

जिनके पास हो अच्छी नौकरी, ऊंचा खानदान 
भले ही,  किया हो जन्म-कुंडली का गलत मिलान   
आज भी बिना प्रेम, इच्छा के होते हैं विवाह सम्पन्न!

वैसे, मैं तुमसे प्यार करती थी, हे राम! मर्यादा पुरुषोत्तम,
उपनिषदों के ब्रह्म! 
तुम हुआ आगमन, ऋषि वशिष्ठ के आश्रम

ऋषि विश्वामित्र ने तुम्हारे पिता से किया अनुनय-विनय
तुम्हें और लक्ष्मण को भेजने अरण्य   
ताकि तुम समझ सको युद्ध के रहस्य। 

तुम मिथिला आए मेरे स्वयंवर  
ऋषि विश्वामित्र के साथ चलकर
शिव-धनुष-भंग कर बने मेरे वर !

तुम्हारे भाई लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न 
मेरी बहिनों उर्मिला, श्रुतकीर्ति और मांडवी को देखकर हुए प्रसन्न
हुआ उनके संग उनका पाणीग्रहण । 

हे राम!  जीवन के मिश्रित पहलू हैं हम  
इच्छा-शक्ति के लिए लक्ष्मण, आत्मा के लिए राम,
तर्क के लिए शत्रुघ्न, भाव-प्रवणता के लिए भरत और
दिव्य-बुद्धि के लिए मैं स्वयं

राजा दशरथ की तीन रानी, तीन गुण  
कौशल्या सतोगुण की यानि सद्भाव, भावना, संतुलन
सुमित्रा रजोगुण की अर्थात्  काम, ऊर्जा और परिवर्तन;
 कैकेयी तमोगुण की, मतलब अंधकार, जड़ता और पतन ।

मेरे प्रभु!  अगर मेरी जिंदगी असंख्य तत्वों से थी भरी,
तो फिर ऐसा क्यों ? सीता थी मैडोना या लिली की तरह खरी  
जनक का स्वप्न-वैभव, क्या वह सकती थी हरा ?

मैं मैथिली- मीरा, राधा, लक्ष्मी, रूपा, सतरूपा, असीमा का अवतार
अंतहीन भंवर जाल में फंसती जाती नश्वर साहसिक पुनर्वार ,
 निसंदेह,मैं मेरी माँ वसुधा के गोद में सोकर कह रही बार-बार ।

सम्पूर्ण स्मृतियाँ खंगालती मेरा मन  
जहां देखती जलती दुल्हन, नष्ट-नारी, कन्या भ्रूण-दलन !
कैसे रखूँ अलग खुद को संपूर्ण नारीत्व के अनुसंधान-अभियान ?  

मेरी भव्य-शादी को कौन कर रहा आज स्मरण ?  
मैं महिला हूँ,  हर महिला के अन्तर्मन  
प्रतिष्ठित अश्वमेध का बन बलिदान ।

अंग्रेज़ी मूल - डॉ. नंदिनी साहू

हिंदी अनुवाद - दिनेश कुमार माली ़

Monday, July 20, 2020

सीता (एक महाकाव्य) अंग्रेज़ी मूल कवि - डॉ. नंदिनी साहू, हिंदी अनुवादक - दिनेश कुमार माली

सीता महाकाव्य का धारावाहिक प्रकाशन
(डॉ. नंदिनी साहू जी कृत महाकाव्य सीता का हिंदी अनुवाद श्री दिनेश कुमार माली जी ने किया है ।  इस अनूदित महाकाव्य को युग मानस में धारावाहिक प्रकाशन दि.18 जुलाई, 2020 से किया जा रहा है ।  25 सर्गों के इस महाकाव्य की प्रस्तावना और प्रथम सर्ग के प्रकाशन के बाद इसी क्रम में आज द्वितीय सर्ग का प्रकाशन किया गया है ।  आशा है, 'युग मानस' के सुधी पाठक वर्ग इस महाकाव्य पर अपनी आत्मीय प्रतिक्रिया देने की कृपा अवश्य करेंगे । - डॉ. सी. जय शंकर बाबु)



सीता (महाकाव्य)


द्वितीय सर्ग

डॉ. नंदिनी साहू





जनक-नंदिनी-जानकी- मेरा नाम सीता
मैं इकलौती पुत्री, राजा जनक मेरे पिता  
यज्ञ-पूजिता पावन धरती मेरी माता ।

पूरी तरह निर्विवादित प्रिया
पक्के इरादों वाली संतोष हिया  
भगवान राम की सुंदर भार्या

पितृसत्तात्मक समाज की प्रचलित धारा
बनी “सीताय चरितम् महत:”- का मुहावरा
और मेरे सिर का आकर्षक जेवर ।


उर्मिला, मांडवी और श्रुतिकीर्ति-मेरी तीन बहन
जिनका हुआ पाणिग्रहण सम्पन्न
राम के भाई लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न ।


क्या मैं इसे 'बहिनापा' कहूँया कुछ और कथन ?
उनकी नियति भी मेरे जितनी जटिल,लिए अधूरापन  
अनेक प्रभावशाली महिलाओं से हुए मेरे कथोपकथन :

ऋषि अत्रि की पत्नी अनसूया,
प्रसिद्ध गार्गी, मैत्रेयी,
कात्यायनी, अरुंधति, लोपामुद्रा, अहल्या ।

 फिर असुर और वानर रानी,
 मंदोदरी और तारा
 इन महिलाओं के दुनिया की कहानी ।

उन नारियों का बंधन
उनके अविश्वसनीय संस्मरण  
उनकी चमत्कारी कहानी-किस्सों के निष्कर्षण।

मेरी कहानी का आधार है अनुभव
शोध कर सकते हो तुम जब-तब
या दे सकते हैं अपने तार्किक विभव  

मेरा अपहरणकर्ता दस सिर वाला रावण  
लघिमा-गरिमा में सिद्धहस्त हनुमान
दीर्घ निद्रालु पेटू दानव कुम्भकर्ण ।  

राम-सेतु बना मेरे खातिर समुद्र के धरातल  
 "यह संभव है?" मत पूछना यह सवाल
 भौहें चढ़ाकर, निकालना मत मेरी नकल

मेरी कहानी में जो भी है थोड़ा-बहुत कथानक
वह है सीता का सीधा-सादा सीतापन,
पवित्र, निष्पक्ष और सती महिला का वर्णन।   

मेरा अनुग्रह और चारित्रिक बल 
अलंकारिक तर्कों के बावजूद हुआ सफल
और किया जन-मानस का काया-पटल

मैंने अपने जीवन में देखे अनेक जीवन,
काली-विद्या का घनघोर कालापन
जिससे हुआ मेरी महाकाव्यिक भूमिका में अधोपतन।

स्वर्ण-हिरणराक्षस, साँप-सँपेरे, माया सीता
काली-विद्या ने कभी नहीं पहुंचाया आघात  
और नहीं किया बुरे भाग्य को आमंत्रित ।
  
मगर प्यार और पवित्रता के नाम  
बार-बार धकेला गया मुझे चौराहे पर खुले-आम
मेरे महाकाव्यिक भूमिका को किया गया बदनाम ।

मेरे पति मेरे प्रभु  राम एक ओर   
बाकी अदृश्य गतिशील संघर्ष दूसरी ओर
तान रहे थे मेरे विवेक और स्वतंत्र इच्छा की डोर ।

 हां, मैं सीता हूँ निरपराध
स्वेच्छा से निर्वासित नारी
बिना किसी अपवाद

फिर भी, मानव-मन का आवारापन,
ज्ञान-शक्ति का उर्ध्वीकरण ,
पर्यावरण-नारीवादियों का सशक्तिकरण ।

और सबसे महत्वपूर्ण मानव-मस्तिष्क 
प्रौद्योगिकी से होगा प्रदूषित
लगेगा उस पर खतरनाक कलंक

मेरा महाकाव्य है- मेरी आत्मा का द्वार और मेरे सर्जन का कुंजी-पटल  
मेरा महाकाव्य दर्शाता है- नाट्य-मंच बनाम वनस्पतियों और जीवों का संबंध अटल
धीरे-धीरे तुम्हारे सामने लाता है पार्थिव और ब्रह्मांडीय जगत-जंजाल !

पेड़-पौधेनदी-नाले, आकाश-बादल, सूरज, चाँद, सितारे,धूमकेतु,नर-नारी !
मैं हूँ अमर, कालजयी, दयालु और हितकारी
मैं हूँ मृत्युहीन देवी हूँ, अधिवास मेरा प्रत्येक जीवित-नारी ।

 यह सत्य है, मैं भूमिजा,कैसे बताऊँ मेरी व्यथा ?
नहीं मिटा सकती थी अपनी संप्रभुता,
राम ने जब कहा,रचूँगा दूसरी अग्नि-परीक्षा की गाथा।  

तब तक निभा चुकी थी मैं पुत्री, पत्नी और माता के दायित्व,
सारे पारिवारिक कर्त्तव्य  
पितृसत्तात्मक जोड़-घटाव और घरेलू कलंक से परे निर्भय

मेरा हृदयस्पर्शी इतिहास हर पल याद दिलाता राम-रावण
मैं दोहराने को विवश हो जाती अपना परिकल्पन
इस कवितायन का अपूर्व शानदार वर्णन
अंग्रेज़ी मूल - डॉ. नंदिनी साहू

हिंदी अनुवाद - दिनेश कुमार माली