Sunday, July 19, 2020

सीता (एक महाकाव्य) अंग्रेज़ी मूल कवि - डॉ. नंदिनी साहू, हिंदी अनुवादक - दिनेश कुमार माली

सीता महाकाव्य का धारावाहिक प्रकाशन
(डॉ. नंदिनी साहू जी कृत महाकाव्य सीता का हिंदी अनुवाद श्री दिनेश कुमार माली जी ने किया है ।  इस अनूदित महाकाव्य को युग मानस में धारावाहिक प्रकाशन दि.18 जुलाई, 2020 से किया जा रहा है ।  25 सर्गों के इस महाकाव्य की प्रस्तावना 18 जुलाई, 2020 को प्रकाशन किया गया था ।  इसी क्रम में आज प्रथम सर्ग का प्रकाशन किया गया है ।  आशा है, 'युग मानस' के सुधी पाठक वर्ग इस महाकाव्य पर अपनी आत्मीय प्रतिक्रिया देने की कृपा अवश्य करेंगे । - डॉ. सी. जय शंकर बाबु)



सीता (महाकाव्य)
प्रथम सर्ग

डॉ. नंदिनी साहू






 भले ही,कहो उसे- सीता, जानकी,वैदेही, रामा
मगर रहेगी वह हमेशा ही वामा
हर महिला में बन आदर्श का जामा ।

जिसने चयन किया स्व-निर्वासन;
जिसका बार-बार पितृसत्ता ने किया दमन  
ताकि हो उसकी उन्मुक्त-चेतना का पतन

मगर वह कहाँ रहती चुप, क्यों मानती हार ?  
वापस आ, वह धरती के उदर से, हमारे भीतर ,
ब्रह्मांड की सामूहिक चेतना के अंदर

सृष्टि के आरंभ से वह उपस्थित
समाज के बदले रूपों को करती परिभाषित   
अलग-अलग रूपों, प्रतिकृतियों में अलिखित

सीता रहती भारत के सीतापुर, रामपुर, उदयपुर;
इंटरनेट, टीवी-धारावाहिक,सड़क, कॉल सेंट, विश्वविद्यालय,घर,मंदिर,
चर्च, श्रीलंका, केरल-समुद्र-तट, तुम्हारी ध्यान-धारणा और भारतीय संविधान के पन्नों पर

वह है भारत की महिला प्रधान मंत्री,महिला राष्ट्रपति,कामकाजी माता
वह है गृहिणीरात में दिल्ली बस में गैंगरेप की शिकार निर्भया  
वह है एम्स के ट्रॉमा सेंटर में अवसाद-ग्रस्त जामाता

वह है गरीबों के गर्म, असहाय आँसुओं में छिपा हुआ डर
फिर भी आश्वस्त, अडिग, आत्म-निर्भर
वह है तेजस्वी नई महिला, पेगासस का लचीला आधार

वह नहीं, केवल काल्पनिक या शिक्षाविदों तक सीमित  
वह वास्तव में है अनुप्राणित और जीवित,
वह है अनित्य-अनंत

वह है सर्वव्यापी, वर्तमान और अतीत
चाहे हो, सामाजिक, राजनीतिक या धार्मिक रीत
प्रगतिशील भारतीय महिला में सदैव उपस्थित ।

दुखों को झेलकर भी पीछे नहीं देखने का दूसरा नाम है सीता
मैं हूँ एक नई औरत सुविचारिता   
कैसे मुझे समझ पाओगे, बिना समझे सीता

कर पाओगे मुझ पर सामूहिक विश्वास, बिना किए सीता का खंडन  ?
बचेगा तुम्हारे भीतर सहानुभूति, स्वानुभूति, जिज्ञासा का दामन
लेकर हमारी खंडित पहचान ?

कर पाओगे इस दुनिया की महिलाओं का चित्रांकन,  
समझ पाओगे कामकाजी या चूल्हा संभालने वाली औरतों का मन,
बिना समझे सुविचारित औपचारिक सीता का चरित्र-चित्र?

सीता है सांप्रदायिक और समाज के बंद गवाक्षों की अनुवादक,
राजत्व की सुदूर नियंत्र,  
निर्वासन की नैतिकता, दायित्व, समर्पण और त्याग-भावना का प्रतीक।   

इसलिए लिख रही मैं श्लोक बद्ध यह सीता-महाकाव्य 
पढ़कर ऋषि वाल्मीकि का शास्त्रीय रामायण अद्वितीय  
यह अनूठा संस्करण होगा सुश्रव्य और दिव्य।  

वाल्मीकि ने देखा क्रौंच पक्षी मर्माहत  
हुआ वह एक शिकारी द्वारा आहत,
विधाता के क्रूर खेल से उनका मन हुआ विचलित।

क्या समझ पाओगे किसी के जीवन का आधार
मन में व्याप्त किसी की करुणा और डर
बिना पढ़े उत्तर-कांड में सीता का खोया-प्यार  ?

सीता ने अकेले पाले अपने पुत्र  
इसलिए लव-कुश कहलाए 'सीता-पुत्र',
कहो वाल्मीकि!, क्या कहलाएंगे 'राम-पुत्र' ?

क्या समझ सकते हैं किसी माता की पीर
बिना जाने सीता की तकदीर ?
अनेक अकेली माताओं का जीवन दोहराता वही चित्रहार ?

न कालीदास का रघुवंश’, भवभूति की उत्तर-रामायण
करती सीता के जीवन का बखान
कैसे कहूँ मैं उन्हें महान व्याख्यान ?

इस महाकाव्य में है नारीत्व पर अनुसंधान;
सीता की ज़िंदादिली, प्रेम-भावनाअग्नि-परीक्षा और वन-गमन
कराते मेरे भीतर वीर छंद उत्पन्न ।  

इस कविता का हो रहा मेरे भीतर अवतरण   
देखकर मेरे स्नेह-संबंध, बलिदान और वचन
और सामाजिक मूल्यों का उन्मुक्त-गान

     अंग्रेज़ी मूल - डॉ. नंदिनी साहू

हिंदी अनुवाद - दिनेश कुमार माली

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