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Monday, September 8, 2008

हास्य


हर समस्या का निदान - पत्नी पुराण

- श्यामल सुमन

शेर की शादी में चूहे को देखकर हाथी ने पूछा - "भाई तुम इस शादी में किस हैसियत से आये हो ?" चूहा बोला, " जिस शेर की शादी हो रही है, वह मेरा छोटा भाई है ।" हाथी का मुँह खुला का खुला रह गया, बोला, "शेर और तुम्हारा छोटा भाई ? " चूहा - "क्या कहूँ ? शादी के पहले मैं भी शेर ही था ।" यह तो हुई मजाक की बात, लेकिन पुराने समय से ही दुनिया का मोह छोड़कर, सच की तलाश में भटकनेवाले भगोडों को सही रास्ते पर लाने के लिए, शादी कराने का रिवाज हमारे समाज में रहा है । कई बिगडैल कुँवारों को इसी पद्धति से आज भी रास्ते पर लाया जाता है । हम सबने कई बार देखा-सुना है कि तथाकथित सत्य की तलाश में भटकने को तत्पर आत्मा, शादी के बाद पत्नी को प्रसन्न करने के लिए लगातार भटकती रहती है । कहते भी हैं कि "शादी वह संस्था है जिसमें मर्द अपनी 'बैचलर डिग्री' खो देता है और स्त्री 'मास्टर डिग्री' हासिल कर लेती है ।"

प्रायः शादी के पहले की जिंदगी पत्नी को पाने के लिए होती है और शादी के बाद की जिंदगी पत्नी को खुश रखने के लिए । तकरीबन हर पति के लिए पत्नी को खुश रखना एक अहम और ज्वलंत समस्या होती है और यह समस्या चूँकि सर्वव्यापी है अतः इसे हम चाहें तो राष्ट्रीय (या अंतर्राष्ट्रीय) समस्या भी कह सकते हैं । लगभग प्रत्येक पति दिन-रात इसी समस्या के समाधान में लगा रहता है, पर कामयाबी बिरलों के भाग्य में ही होती है । सच तो यह है कि आदमी की पूरी जिंदगी पत्नी को ही समर्पित रहती है और पत्नी है कि खुश होने का नाम ही नहीं लेती । अगर खुश हो जाएगी तो उसका बीवीपन खत्म हो जाएगा, फिर उसके आगे-पीछे कौन घूमेगा? किसी ने ठीक ही तो कहा है कि "शादी और प्याज में कोई खास अन्तर नहीं - आनंद और आँसू साथ-साथ नसीब होते हैं ।"

पत्नी को खुश रखना इस सभ्यता की संभवतः सबसे प्राचीन समस्या है । सभी कालखंडों में पति अपनी पत्नी को खुश रखने के आधुनिकतम तरीकों का इस्तेमाल करता रहा है और दूसरी ओर पत्नी भी नाराज होने की नई-नई तरकीबों का ईजाद करती रहती है । एक बार एक कामयाब और संतुष्ट-से दिखाई देनेवाले पति से मैंने पूछा- 'क्यों भाई पत्नी को खुश रखने का उपाय क्या है ?' वह नाराज होकर बोला- 'यह प्रश्न ही गलत है । यह सवाल यूँ होना चाहिए था कि पत्नी को भी कोई खुश रख सकता है क्या ?' उन्होंने तो यहाँ तक कहा कि "शादी और युद्ध में सिर्फ एक अन्तर है कि शादी के बाद आप दुश्मन के बगल में सो सकते हैं ।"

जिस पत्नी को सारी सुख-सुविधाएँ उपलब्ध हों, वह इस बात को लेकर नाराज रहती है कि उसका पति उसे समय ही नहीं देता । अब बेचारा पति करे तो क्या करे ? सुख-सुविधाएँ जुटाए या पत्नी को समय दे ? इसके बरअक्स कई पत्नियों को यह शिकायत रहती है कि मेरे पति आफिस के बाद हमेशा घर में ही डटे रहते हैं । इसी प्रकार के आदर्श-पतिनुमा एक इन्सान(?) से जब मैंने पूछा कि 'पत्नी को खुश रखने का क्या उपाय है ?' तो उसने तपाक से उत्तर दिया-'तलाक ।' मुझे लगा कि कहीं यह आदमी मेरी ही बात तो नहीं कह रहा है ? मैं सोचने लगा " 'विवाह' और 'विवाद' में केवल एक अक्षर का अन्तर है शायद इसलिए दोनों में इतना भावनात्मक साहचर्य और अपनापन है ।"

पतिव्रता नारियों का युग अब प्रायः समाप्ति की ओर है और पत्नीव्रत पुरुषों की संख्या, प्रभुत्व और वर्चस्व लगातार बढ़त की ओर है । यदि इसका सर्वेक्षण कराया जाय तो प्रायः हर दूसरा पति आपको पत्नीव्रत मिलेगा । मैंने सोचा क्यों न किसी अनुभवी पत्नीव्रत पति से मुलाकात करके पत्नी को खुश रखने का सूत्र सीखा जाए । सौभाग्य से इस प्रकार के एक महामानव से मुलाक़ात हो ही गई, जो इस क्षेत्र में पर्याप्त तजुर्बेकार थे । मैंने अपनी जिज्ञासा जाहिर की तो उन्होंने जो भी बताया, उसे अक्षरशः नीचे लिखने जा रहा हूँ, ताकि हर उस पति का कल्याण हो सके, जो पत्नी-प्रताड़ना से परेशान हैं -

१ - ब्रह्ममुहुर्त में उठकर पूरे मनोयोग से चाय बनाकर पत्नी के लिए 'बेड टी' का प्रबंध करें । इससे आपकी पत्नी का 'मूड नार्मल' रहेगा और बात-बात पर पूरे दिन आपको उनकी झिडकियों से निजात मिलेगी । वैसे भी, किसी भी पत्नी के लिए पति से अच्छा और विश्वासपात्र नौकर मिलना मुश्किल है, इसलिए इसे बोझस्वरूप न लें, बल्कि सहजता से युगधर्म की तरह स्वीकार करें । कहा भी गया है कि "सर्कस की तरह विवाह में भी तीन रिंग होते हैं - एंगेजमेंट रिंग, वेडिंग रिंग और सफरिंग ।"

२ - अगर आपका वास्ता किसी तेज-तर्रार किस्म की पत्नी से है तो उनके तेज में अपना तेज (अगर अबतक बचा हो तो) सहर्ष मिलाकर स्वयं निस्तेज हो जाएँ । क्योंकि कोई भी पत्नी तेज-तर्रार पति की वनिस्पत ढुलमुल पति को ही ज्यादा पसंद करती है । इसका यह फायदा होगा कि आप पत्नी से गैरजरूरी टकराव से बच जाएँगे, अब तो जो भी कहना होगा, पत्नी कहेगी । आपको तो बस आत्मसमर्पण की मुद्रा अपनानी है ।

३- आपकी पत्नी कितनी ही बदसूरत क्यों न हो, आप प्रयास करके, मीठी-मीठी बातों से यह यकीन दिलाएँ कि विश्व-सुंदरी उनसे उन्नीस पड़ती है । पत्नी द्वारा बनाया गया भोजन (हलाँकि यह सौभाग्य कम ही पतियों को प्राप्त है) चाहे कितना ही बेस्वाद क्यों न हो, उसे पाकशास्त्र की खास उपलब्धि बताते हुए पानी पी-पीकर निवाले को गले के नीचे उतारें । ध्यान रहे, ऐसा करते समय चेहरे पर शिकायत के भाव उभारना वर्जित है, क्योंकि "विवाह वह प्रणाली है, जो अकेलापन महसूस किए बिना अकेले जीने की सामर्थ्य प्रदान करती है ।"

४ - पत्नी के मायकेवाले यदि रावण की तरह भी दिखाई दे तो भी अपने वाकचातुर्य और प्रत्यक्ष क्रियाकलाप से उन्हें 'रामावतार' सिद्ध करने की कोशिश में सतत सचेष्ट रहना चाहिए ।

५ - आप जो कुछ कमाएँ, उसे चुपचाप 'नेकी कर दरिया में डाल' की नीति के अनुसार बिल्कुल सहज समर्पित भाव से अपनी पत्नी के करकमलों में अर्पित कर दें और प्रतिदिन आफिस जाते समय बच्चों की तरह गिडगिडाकर दो-चार रूपयों की माँग करें । पत्नी समझेगी कि मेरा पति कितना बकलोल है कि कमाता खुद है और रूपये-दो रूपयों के लिए रोज मेरी खुशामद करता रहता है । एक हालिया सर्वे के अनुसार लगभग पचहत्तर प्रतिशत पति इसी श्रेणी में आते हैं । मैं अपील करता हूँ कि शेष पच्चीस प्रतिशत भी इस विधि को अपनाकर राष्ट्र की मुख्यधारा में सम्मिलित हो जाएँ और सुरक्षित जीवन-यापन करें ।

अंत में उस अनुभवी महामानव ने अपने इस प्रवचन के सार-संक्षेप के रूप में यह बताया कि उक्त विधियों को अपनाकर आप भले दुखी हो जाएँ, लेकिन आपकी पत्नी प्रसन्न रहेगी और उनकी मेहरबानी के फूल आप पर बरसते रहेंगे । किसी ने बिलकुल ठीक कहा है कि "प्यार अंधा होता है और शादी आँखें खोल देती है ।" मेरी भी आँखें खुल गईं । कलम घिसने का रोग जबसे लगा, साहित्यिक मित्रों की आवाजाही घर पर बढ़ गई । चाय-पानी के चक्कर में जब पत्नी मुझे पूतना की तरह देखती तो मेरी रूह काँप जाती थी । मैंने इससे निजात पाने का रास्ता ढूँढ ही लिया ।

आपने फूल कई रंगों के देखे होंगे, लेकिन साँवले या काले रंग के फूल प्रायः नहीं दिखते । मैंने अपने नाम 'श्यामल' के आगे पत्नी का नाम 'सुमन' जोड़ लिया । हमारे साहित्यिक मित्र मुझे 'सुमनजी-सुमनजी' कहकर बुलाते हुए घर आते । धीरे-धीरे नम्रतापूर्वक मैंने अपनी पत्नी को विश्वास दिलाने में आश्चर्यजनक रूप से सफलता पाई कि मेरे उक्त क्रियाकलाप से आखिर उनका ही नाम तो यशस्वी होता है । अब मेरे घर में ऐसे मित्रों भले ही स्वागत-सत्कार कम होता हो, पर मैं निश्चिंत हूँ कि अब उनका अपमान नहीं होगा । किसी ने ठीक ही कहा है कि "विवाह वह साहसिक-कार्य है जो कोई बुजदिल पुरुष ही कर सकता है ।"

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Sunday, April 22, 2007

युग मानस YUG MANAS

आज मैंने अपना ब्लाग युग मानस के नाम से शुरू किया है । मानवीय मूल्यों के विकास के लिए समर्पित यह ब्लाग भारतीय भाषाओं के संवर्धन आदि के लिए भी उपयोग करूँगा । 2 अक्तूबर, 1996 को युग मानस का अनुष्ठान साहित्यिक त्रैमासिकी के रूप में गुंतकल (आंध्र प्रदेश) से हुआ था । 2004 के मध्य तक सक्रिय रहा । कई विडंबनाओं के कारण मेरी मानस पुत्री 2004 पुनर्जीवित नहीं हो पा रही थी । इस ब्लाग स्पाट की कृपा से पुनः इस रूप में युग मानस सक्रिय हो रहा है । आप सबके अमूल्य सुझावों एवं प्रतिक्रियाओं का स्वागत है ।
Today I have initiated my blog in the name of YUG MANAS. This blog will be devoted for the humanitarian values and promotion of Indian Languages etc. I started preaching of the values through Yug Manas, a literary quarterly on 2nd October, 1996 from Guntakal (Andhra Pradesh). It was very much active up to mid 2004. Due to many unavoidable reasons my Manas could not be activated since 2004. I am thankful for this blog spot that YUG MANAS is reviving in this shape today. Your valuable suggestions and responses are invited.