Wednesday, November 27, 2013

प्राध्यापकीय व्याख्यान माला एवं ‘ भूमंडलीकरण और हिन्दी कविता‘ पुस्तक विमोचन कार्यक्रम 31 दिसंबर, 2013 को

प्राध्यापकीय व्याख्यान माला  एवं  ‘ भूमंडलीकरण और हिन्दी कविता‘ पुस्तक विमोचन कार्यक्रम 31 दिसंबर, 2013 को

केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, नई दिल्ली(मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार) के तत्वावधान में आयोजित प्राध्यापकीय व्याख्यान माला कार्यक्रम के अन्तर्गत दिनांक 13- 12- 2013, शुक्रवार दुपहर 1- 30 बजे मान्नानम के. ई. कालेज के न्यू सेमिनार हॉल में प्रसिद्ध हिन्दी लेखक प्रोफ.(डॉ.) विनय कुमारजी (प्रोफसर, हिन्दी विभाग, मगध विश्वविद्यालय, गया, बिहार) भूमंडलीकरण और हिन्दी साहित्य शीर्षक विषय पर व्याख्यान देंगे।
उस अवसर पर अमन प्रकाशन, कानपुर, यू. पी. द्वारा प्रकाशित हमारी पुस्तक भूमंडलीकरण और हिन्दी कविता (मुख्य संपादक – डॉ. बाबू जोसफ़, सह आचार्य व अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, के. ई. कालेज, मान्नानम) का विमोचन – लोकार्पण भी उन्हीं के करकमलों द्वारा संपन्न होगा। पुस्तक की प्रथम प्रति माननीय डॉ. के. वी. नारायण कुरुपजी (सिंडिकेट मेंबर, महात्मा गांधी विश्वविद्यालय, कोट्टयम) स्वीकार करेंगे। के. ई. कालेज के स्वर्ण जयन्ती समारोह के उपलक्ष्य में आयोजित इस कार्यक्रम में के. ई. कालेज के माननीय प्राचार्य फादर डॉ. जोसफ़ ओषुकयिल. सी. एम. आई. अध्यक्ष होंगे।
आप सबकी उपस्थिति सादर प्रार्थित है।

नेहा पॉल               डॉ. ब्रिजिट पॉल                        डॉ. बाबू जोसफ़
(सचिव, हिन्दी एसोसियेशन) ( निदेशक, हिन्दी एसोसियेशन  )       ( अध्यक्ष, हिन्दी विभाग)


As part of the Golden Jubilee Celebrations of our college, the Department of Hindi is organizing a lecture  by Dr. Binaykumar, (Well known Writer & Professor, Magath University, Gaya, Bihar) who will be visiting our college on Friday, 13-12-2013, as  a part of Professor Lecture  Series under the Professor Exchange Programme  of Central Hindi Directorate, New Delhi (Ministry of Human Resource Development, Govt. of India). He  will be delivering a lecture on ‘GLOBALIZATION AND LITERATURE’ in the new seminar hall at 1.30 pm.

He  will also be releasing ‘Bhumandalikaran Aur Hindi Kavita’( Publisher – Aman Prakashan, Kanpur, U. P.) a Book edited by Dr. Babu Joseph , Head of the Department of Hindi. First copy will be received by Dr. K. V. Narayana Kurup (Syndicate Member, Mahatma Gandhi University, Kottayam). The meeting will be presided by our Principal Rev. Dr. Joseph Ozhukayil. C. M. I.
All are cordially invited.


Neha Paul                                             Dr. Brigit Paul                                             Dr. Babu Joseph
(Secretary, Hindi Association)  (Director, Hindi Association)                (Head of The Dept. of Hindi)




PROFESSOR LECTURE SERIES AND BOOK RELEASE
Programme
Prayer song
Welcome Speech               - Dr. Babu Joseph (Head Of The Dept. of Hindi)
Presidential Address          - Rev. Dr. Joseph Ozhukayil. C. M. I (Principal, K. E.
                                                 College Mannanam)
Professor Lecture               -  Dr Binaykumar, (Well known Writer & Professor,
                                                 Magath University, Gaya, Bihar)
Releasing of the Book  ‘Bhumandalikaran Aur Hindi Kavita’, Edited by Dr. Babu Joseph, Head Of The Dept. of Hindi, K. E. College Mannanam( Publisher – Aman Prakashan, Kanpur, U. P.) by Dr. Binaykumar.
The First copy will be received by Dr. K. V. Narayana Kurup (Syndicate Member, Mahatma Gandhi University, Kottayam).
Keynote Address                            -  Dr. K. V. Narayana Kurup (Syndicate Member,
                                                             Mahatma Gandhi University, Kottayam)
Felicitation                                       - 1) Dr. A. S. Sumesh ( Head of the Dept. of Hindi,
                                                                         M. E. S. College Nedunkandam
                                                            2) Dr. Chandravadana (Director,
                                                                        SreeShankaracharya University, Ettumanur Centre)                                                                                              
                                                              3) Prof. Tomichan Joseph (Convenor, Golden
                                                                          Jubilee Committee)
                                                            4) Sri. Joshi Kurian (Secretary, Non Teaching Staff
                                                                        Association)

Vote Of Thanks                               - Dr. Brigit Paul


कार्यक्रम का स्थान  - 

KURIAKOSE ELIAS COLLEGE MANNANAM

Mannanam. P.O., Kottayam(Dt.) Kerala – 686561

Sunday, November 24, 2013

सत्यशोधक ज्ञानपीठ की अखिल भारतीय परीक्षाएँ 22 दिसंबर, 2013 को..

सत्यशोधक ज्ञानपीठ की अखिल भारतीय परीक्षाएँ 22 दिसंबर, 2013 को..



Friday, November 22, 2013

सेंदिल कुमरन की लेखनी से एक नई कहानी - बेचारा... ! ?

कहानी
बेचारा... ! ?

-    एन. सेंदिल कुमरन, पुदुच्चेरी


                ‘‘बेटा, रवि तू स्कूल से वापस आ गया ?  इधर आ । दुकान से तेल खरीदकर जल्दी आ । खाना पकाना है न । मनीषा कहाँ है ? खेल रही है या सो रही है ?‘‘
                छोटा-सा घर, कमरा तो एक ही है । बिजली की बत्ती टिमटिमा रही है । शाम का समय, रसोईघर में मंद रोशनी में माँ रसोई बनाने में व्यस्त है, वह भी जल्दी-जल्दी, । कहने के लिए तो वह रसोई तो बना रही है, मगर उसके चेहरे से जान पड़ता है कि उसके विचार तो दूसरी तरफ़ हैं ।
                ‘‘अरे रवि, सुनता नहीं, जल्दी आ । वहाँ क्या कर रहा है तू ?‘‘
                ‘‘लिख रहा हूँ माँ । अभी आता हूँ ।‘‘
                रवि सरकारी स्कूल में पाँचवीं कक्षा पढ़ रहा है । वह स्कूल में दिया गया गृह-कार्य कर रहा था । माँ के बुलाने पर वह करते गृह-कार्य को जैसे के तैसे छोड़कर रसोईघर के अंदर झांकता है ।
                ‘‘पैसे दे दो माँ ।‘‘
     शाम का वक्त, वह छोटा-सा बच्चा लगभग आधे किलोमीटर दूर स्थित दुकान से तेल लाकर देता है ।
                ‘‘माँ लीजिए ......तेल लाया हूँ ।‘‘
                ‘‘इधर रखो और बाहर देखो कि नल में पानी आ रहा है या नहीं । ‘‘
                पहाड़ की तराई में स्थित उस गाँव में हरे-भरे बड़े-बडे़ गगनचुंबी पेड़ हैं । स्वच्छ हवा एवं रमणीय दृश्यों से भरे उस गाँव में केवल चार गलियाँ हैं, वह भी संकीर्ण । बड़ी-बड़ी गाडियाँ उन संकर गलियों में चल नहीं सकतीं । केवल दुपहिए वाहन ही आ-जा सकते हैं । तड़के पेड़ों के ऊपर से भिन्न-भिन्न प्रकार के पक्षियों का कलरव सुनने से जान पड़ता है कि सुख्यात गायकों ने  यहीं से ही गीतों का राग-लय लिया हो । इस गाँव की रमणीय प्रकृति के दृश्यों को देखने के बाद दूसरी चीज़ों की ओर आँखें नहीं जाएँगी । भूख-प्यास सब भूल जाएँगे । मानसिक क्लेश भी पता नहीं कहाँ छिप जाएगा । गीत और नृत्य सुनने-देखने के लिए रेडिया-टी.वी  की ज़रूरत नहीं । साक्षात् गीत और नृत्य का दर्शन सीधा कोयल और मोर से मिलता है । वहाँ के सुन्दर एवं रम्यमय वातावरणआनेवाले यात्रियों को  उतनी जल्दी वहाँ से वापस लौटने नहीं देता। औषधी युक्त दवा जैसी हवा अस्वस्थ भी स्वस्थ हो जाएँगे ।
                कई विशेषताओं से  युक्त उस गाँव में एक कमी है । वह है, गरीबी । गरीबी तो इतनी है कि लोग रोज़ी रोटी के लिए भी तड़पते हैं । गांधीजी देश के हित उपवास कर रहे थे, किंतु इस गाँव के लोग आज़ाद देश में किसके हित के लिए कई दिन कई बार उपवास रहते हैं । क्या सरकार इन लोगों के उपवास के वास्ते कोई खि़ताब देगी ?.. . . . . . . .
                 प्राकृतिक आपदाएँ बार-बार उस गाँव में मेहमान बन जाती है । उस समय सब गाँववासी शाकाहारी पशु बन जाते हैं, पौधे ही उनका आहार है । अपनी दयनीय स्थिति को कहकर सरकार से या दूसरों से हाथ पसारते नहीं । किसी प्रकार की चीज़ मुफ़्त में लेकर अपना शेष जीवन बिताने की आदत उनके वश में नहीं है ।  उस गाँव में वसन्त तो सदा होता है पर उनके जीवन में वसन्त कब आएगा ? ऐसा प्रश्न सब के मन में होता है । आधुनिक वैज्ञानिक युग में सभी जगह और क्षेत्र की उन्नति हो गई, किंतु अब भी ऐसे गाँव कितने पिछड़े पड़े हैं । सरकार और राजनीतिज्ञ पाँच सालों में एक बार उस गाँव का नाम याद करते और बाद में भूल जाते हैं । क्यों  याद रखेंगे ? याद रखना अच्छे आदमी का लक्षण नहीं है न ?
                ‘‘पानी आ रहा है माँ । किंतु भीड़ है ।‘‘ सारी गली के वासी उस नल में पानी के लिए धक्का-मुक्की कर रहे हैं । गाँव की हरेक गली में केवल एक-एक सरकारी का आम नल है । एक दिन छोड़कर एक दिन शामको मात्र पेयजल के नल से पानी टपकने लगता है । उस गली के सब लोगों को उस नल से ही पीने का पानी ले जाना है । और कोई पेयजल की व्यवस्था वहाँ नहीं है । बारिश के समय हो या गरमी, एक सप्ताह तक भी वहाँ पेयजल मिलना टेढ़ी खीर है ।
                जब पेयजल मिलता है तभी लेकर सुरक्षित रखते हैं ।  वहाँ पेयजल के वास्ते लड़ाई भी होती रहती हैं । बलशाली उस लड़ाई में भाग लेते हैं और दुर्बल दूर से तमाशा देखते है । एक दिन नहीं पूरे साल ऐसा ही पेयजल के लिए लड़ाई-वड़ाई होती रहती है । पर अजीब बात यह है कि उस समय मात्र एक दूसरे से दुश्मनी होगी, उस जगह से हटते ही सब में मन-मुटाव खत्म हो जाती है । उस गाँव को आनेवाली कोई यात्री पीने के लिए किसी के घर जाकर पानी मांगने पर सहर्ष से जितना भी चाहे उतना देंगे, ‘अथिति देवो भव‘ को सार्थक साबित करते हुए ।
                ‘‘रवि तू जाकर पानी ला । अब तक तेरा बाप घर नहीं लौटा । ‘रोज़ बोलती रहती हूँ कि जल्दी घर आ जा। घर का काम भी देख लो। सुनता नहीं । रोज़ शामको शराब की दुकान में कमाये हुए पैसों में से आधा हज़म करता है । रोज़ी रोटी के लिए भी ऊपर-नीचे देखना पड़ता है । विधाता हमारे भाग्य पर क्या बदा है ? कौन जाने ?‘‘
                माँ, मुझे पढ़ना-लिखना है । मैं न जाऊँ पानी लाने...। वहाँ इतनी भीड़ रहती है कि मैं जल्दी लौट ही नहीं पाऊँगामनीषा को भेज दो न !‘‘
                ‘‘अरे, मनीषा तुमसे छोटी है । सात साल की बच्ची ।‘‘
                ‘‘माँ, मुझे स्कूल का गृह-कार्य करना है, पढ़े बिना जाऊँ, तो अध्यापक से खरी-खोटी सुननी पड़ेगी ।  अन्य दोस्त हँसी-मज़ाक करेंगे । मुझे शरम होगा । पहले से ही बाप के व्यवहार से मुझे अपना सिर नीचा करना पड़ता है ।‘‘
                ‘‘बेटा, जि़द न कर । माँ क्या करेगी ? मैं भी काम के वास्ते सुबह जाकर शाम को लौटती हूँ । मैं न जाऊँ, तो रसोई घर में बिल्ली सोएगी । हम सब को भूख से तड़पना पड़ेगा । कौन पूछेंगे ? सुनेंगे ? कोई जानना चाहेंगे हमारी स्थिति को ?‘‘
                महंगी दुनिया में हमारे जैसे परिवार के लोगों को दिनोंदिन अजीब-अजीब प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता हैै । घर के सभी कमाते हैं, तो घर निश्चिंत चलता है नहीं तो, नहीं ।
                रवि का परिवार निम्नमध्य श्रेणी का है । माँ नौकरी पर न गई तो घर का निर्वाह करना बहुत मुश्किल होता है । बाप को बुरी आदत लग गई । इकलौता बेटा-बेटी है । मासूम लड़के-लड़की अपनी छोटी उम्र में ही घर की स्थिति से अवगत हैं । बाप घर की देखभाल किए बिना कभी आता है और जाता है । घर में कौन खाते हंैं कौन नहीं ? बच्चे क्या करते हैं ? इसका उसे कोई परवाह नहीं । बाप पियवकड़ है । स्वादिष्ट भोजन चाहता है । इससे पति-पत्नी के बीच में बार-बार मुठभेड होता है । बच्चों के ऊपर भी  इसका कुप्रभाव पड़ता है ।
                रवि, माँ की अनुनय-विनय से विवश होकर पानी लाने जाता है । बेचारा लड़का, उसके कहे अनुसार पानी लाने में  देरी हो जाती है । आते ही खाए बिना सो जाता है ।  स्कूल के काम के साथ-साथ घर का काम भी करना है, तो रवि क्या करेगा ? उसके वश में कुछ भी नहीं है ।  पहले से ही वह दुर्बल है । गरीब परिवार में जन्मे उसको कहाँ मिलता है पौष्टिक भोजन ? पौष्टिक भोजन दिवा सपना है ।
                रात दस बजे का समय । चारों ओर सन्नाटा है.... । ‘दुर्गा ....... दुर्गा‘‘ रवि के पिता की आवाज़ ।
                दुर्गा दिन भर कडी मेहनत के नाते जल्दी सो गई । कभी-कभी अपना मन बहलाव के लिए बच्चों को पुरानी कथाएँ सुनाती । आज बच्चे जल्दी सो जाने के कारण वह भी सोे गई । पहाड़ की तराई में स्थित गाँव के नाते बार-बार बिजली की समस्या भी है ।
                बाप पुनः ज़ोर से, ‘‘दुर्गा ..... दुर्गा.....‘ कहाँ मर गई ? सुनता नहीं कि मैं इधर गला फाड़-फाड़कर चिल्लाता हूँ तू निश्चित सोती है ? उठ, किवाड़ खोलो ।‘‘
                दुर्गा अधखुले ही उठकर किवाड़ खोलती है । रवि के पिता मनिक अन्दर आते ही पत्नी को थप्पड़ देता है और गरजता है -
                ‘‘कब तक मैं बाहर खड़े होकर चिल्लाता हूँ, सुनाई नहीं पड़ता तुझे ? गला भी सूख गया है मेरा ।‘‘
                मनिक पूरे नशे में है । अभी दुर्गा बात करेगी, तो पूरे घर में शोरगुल होगा, ऐसा समझकर दुर्गा चुपचाप सहन करती है । फिर उसको  भोजन लाकर खिलाती है ।
                मनिक खाते-खाते खरी-खोटी सुनाता रहता है । बराबर नौकरी पर जाता नहीं, ऐसा जाने पर वह रुपया शराब की दुकान पर चला जाता है । इसे सोचते-सोचते दुर्गा ‘आधा हो गई‘। दुर्गा की आँखों की आँसू धीरे-धीरे बूँद, फिर धारा बन जाती हैं । वह रोज़ ‘मरकर जीती‘ है । ‘‘आदमी आदमी में अंतर, कोई हीरा कोई कंकर‘‘ है । मनिक किस ढंग का आदमी है .....? विधाता ही जाने ।
                रोज़ दुर्गा मुँह अंधेरे उठती है । नित्य घर के काम के साथ अपने बच्चों को भी तैयार करके स्कूल भिजवाती है । फिर नौकरी के लिए चलती है, वह खाती है या नहीं भगवान ही जाने । यहीं उसकी दिनचर्या है । सब घर से निकलने बाद मनिक उठकर मन में लगन हो, तो काम के लिए जाएगा, नहीं तो घर में ही सोएगा । उसका स्वभाव है कि ‘घड़ी भी की बेशर्मी दिन भर का आराम‘ अर्थात् एक दिन काम करके नौ दिन बैठकर उसे खाएगा । किंतु रोज़ ठीक शाम के वक्त शराब की दुकान पर जाता है और खूब पीता है । रात दस बजे तक शराब की दुकान ही मनिक की शय्या बन जाती है ।
                घरेलू काम बोझ के कारण रवि ठीक-ठीक से स्कूल का गृह-कार्य नहीं कर पाता । कक्षा में वह डरकर बैठा रहता है कि अध्यापक कुछ डांट लगाएँगे ? उसका मुँह कलंकित रहता है । किसी सहपाठी से भी बात नहीं करता ।  रवि के कार्यकलाप से अध्यापक को मात्र नहीं, बल्कि सबको समझने में देरी नहीं हुई ।
                कहा जाता है न भाग्य अपना-अपना । वह बेचारा लड़का जोे परिस्थिति वश केवल एक अध्याय छोड़कर अन्य सभी अध्याय अच्छी तैयारी करके आने पर भी, उसका दुर्भाग्य यह है कि शिक्षक उस अध्याय से ही प्रश्न छेड़ता है, तो वह कैसा ठीक-ठीक उत्तर दे सकता है तब वह पाता है नाम ‘‘बुद्धु‘‘, ‘‘नालायक‘‘ । जो इसके उल्टे हैं, उनका भाग्य है कि शिक्षक केवल उस अध्याय से प्रश्न पूछने पर वे ठीक-ठीक उत्तर दे पाते हैं । तब वे छात्र पाते हैं, ‘‘शबाश‘‘, ‘‘अच्छा लड़का‘‘, ‘‘खूब पढ़कर आया है‘‘ । तब वह सबका प्रशंसनीय पात्र बन जाता है । यह तो विधि है, आश्चर्य की बात तो नहीं है । क्या इसे ही कहते हैं-‘‘उसका भाग्य अच्छा है, इसका भाग्य बुरा है ?‘‘
                आजकल यह भी गलत धाराणा हो गई कि अच्छे अंक पाने वाले सब विषय पर कौशल होंगे, जो अच्छे अंक नहीं पाते वे विषय पर निरा होंगे । अंक के आधार पर काम सौंपना कितना खतरनाक है । इसे अनुभवी से पूछने पर मालूम होगा ।
                अध्यापक रवि को उठाकर, ‘‘रवि तुम बोलो, क्या सब होमवर्क करके आए हो ?‘‘
                ‘‘जी नहीं,‘‘
                ‘‘तुम्हारी मुखाकृति से ही मैंने जान लिया कि तुमने होमवर्क नहीं किया । आगे भी तुम होमवर्क नहीं करोगे ?‘‘
                 ‘‘जी, अधिक घर का काम होने से वह काम करते-करते थककर जल्दी सो गया था। आगे से ऐसा नहीं होगा । इस बार मुझे माफ़ कीजिए सर ।‘‘
                ‘‘बुद्धु ...... बुद्धु ...... कितनी बार माफ़ करना है तुमको । सुनता नहींकिसी  लायक नहीं हो तुम ।‘‘
                सब के सामने अध्यापक गाली सुनाने से रवि से रह नहीं सकता । अनजान से अपने आप आँखों से आँसू बह निकलता है ।
                अध्यापक कड़ककर कहता है - ‘‘तुम्हारा स्कूल आना न आना बराबर है ।  तुम से अन्य बच्चे बिगड़ जाएँगे । कल से तुम घर का काम देख, व्यर्थ से क्यों आते हो स्कूल ?‘‘
                रवि ईमानदार लड़का है, नहीं तो दूसरे लड़के, जैसे कुछ-न-कुछ झूठ बोलकर बच निकल सकता है । सत्य का पुरस्कार उसे ‘‘बुद्धु‘‘.....‘‘नालायक‘‘ के रूप में मिलता है ।  आजकल का ज़माना ही ऐसा है ।
                रवि रोते-रोते घर लौटता है ।
                माँ पूछती है - ‘‘क्या रे, क्यों रो रहे  हो ? क्या हुआ‘ ?
                माँ भी थककर आने के कारण कड़क आवाज़ से पूछ बैठती है ।
                ‘‘कुछ नहीं माँ । कल से मैं स्कूल नहीं जाऊँगा ।‘‘
                ‘‘क्यों ?‘‘
                ‘‘अध्यापक ने गाली सुनायी, और आगे यह भी कहा कि तुम नालायक... बुद्धु हो, कल से स्कूल नहीं आना ।‘‘
                यह बात सुनते ही दुर्गा की स्थिति ऐसी हो गई कि ‘तेल डालने से आग नहीं बुझती‘ । अब असमंजस में पड जाती है कि आगे क्या करना है ? अध्यापक से जाकर बात करने में भी डर है और चुप भी नहीं रह सकती ।
                दुर्गा मनिक से सारी बातें बताती है । और यह भी आग्रह करती है कि कल स्कूल जाकर अध्यापक से बात वह बात करें । मनिक सुने अना सुन बोलता है कि ‘‘‘नहीं.... नहीं... कल से रवि को भी साथ ले जाओ । काम पर लगाओ । नौकरी करने से कुछ रुपया मिलता है । स्कूल जाए, तो कौन देगा रुपया । पढ़कर यह क्या करेगा ? क्या कलेक्टर बनेगा ?‘‘
                आगे की कहानी वही जो आम ग़रीब परिवारों की है । उस बच्चे को  देखकर किसी के मन में यह सवाल पैदा हो जाना सहज़ है कि क्या बाल मज़दूर इस तरह ही पैदा होते हैं या पैदा किये जाते हैं ?
                   बेचारा रवि, श्यामपट के सामने बैठने के वय में खतरनाक मशीन के सामने बैठ रहा है ।
                रवि का भविष्य जीवन .......... ? ? ? अब ही वह बहुत दुबला और कमज़ोर है । क्या वह अच्छा नागरिक बन सकेगा ? बताते हैं कि आज का बालक कल का अच्छा नागरिक ।  क्या अब रवि बालक नहीं है ? क्या वह भविष्य में अच्छा नागरिक बन पाएगा ? क्या दस के उम्र में ही खतरनाक मशीनों के साथ उसे नाता बनाना है

                बाल मज़दूरी के लिए कौन जिम्मेदार हैं ? अध्यापक, पिता, माता, गरीबी, सरकार, परिरिथति या सारे । काल ही इसका जवाब दे सकता है । परंतु अब बेचारा रवि की स्थिति ...... ? ? ? ? ?  एक अच्छा, नेक, ईमानदार बच्चे के भविष्य प्रश्नार्थक बनती स्थिति में यह धरा भी निरा देखती ही रह जाती है ।

Thursday, November 21, 2013

ओमप्रकाश वाल्मीकि स्मृति सभा

ओमप्रकाश वाल्लीकि
फोटो - बी.बी.सी. हिंदी वेबजाल से साभार

ओमप्रकाश वाल्मीकि स्मृति सभा

दलित साहित्य कला केन्द्र, प्रगतिशील लेखक संघ, एवं जन संस्कृति मंच, के संयुक्त तत्वावधान में 
हिंदी दलित साहित्य के जाने माने वरिष्ठ रचनाकार ओमप्रकाश वाल्मीकि की स्मृति में एक सभा का आयोजन किया जा रहा है । 
आप स्मृति सभा में सादर आमंत्रित हैं ।
आपसे अनुरोध है कि अपने मित्रों सहित इस सभा में शिरकत करें और अपनी उपस्थिति से अपने प्रिय रचनाकार को श्रद्धांजलि अर्पित करें ।

दिनांक : 24 नवंबर 2013, रविवार

समय : शाम 3:30 बजे

स्थान : 
कमेटी रूम, SSS-1, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली


भवदीय :
                       विमल थोरात,  दलित साहित्य कला केन्द्र
      प्रणय कृष्ण, जन संस्कृति मंच
अली जावेद, प्रगतिशील लेखक संघ

संपर्क : 9811807522, 9811135667, 9415637908, 986857154

Wednesday, November 13, 2013

भारतीय उपन्यास साहित्य में तकष़ि शिवशंकर पिल्लै का स्थान

आलेख

तकष़ि शिवशंकर पिल्लै

भारतीय उपन्यास साहित्य में
तकष़ि शिवशंकर पिल्लै का स्थान
          


- लंबोधरन पिल्लै. बी
     
 
    
          विश्व साहित्य की ओर केरलीय भाषा मलयालम प्रदान कर दिया गया सबसे बड़ा देन है ज्ञानपीठ पुरस्कृत स्वर्गीय तकष़ि शिवशंकर पिल्लै I चारों ओर पानी से भरी हुई कुट्टनाड नामक छोटे गाँव से संसार के अलग अलग सभ्यता, संस्कृति और भाषा बोलने वाले लोगों के मन में तकष़ि ने शाश्वत स्थान पा लिया है । इस महान् साहित्यकार ने साधारण लोगों के बीच रह कर अतिसाधारण जीवन बिताया है I हिन्दी भाषी उपन्यास सम्राट स्वर्गीय प्रेमचन्द को जितना आदर और पसन्द करते हैं, केरलीय जनता तकष़ि को उतना ही पसन्द करते हैं और आदर देते हैं I वे उन्हें अपना पथ प्रदर्शक समझते हैं I श्री शिवशंकर पिल्लै को 'तकष़ि' नाम से ही ख्याति मिली है I


·        जन्म: विख्यात कथाकार और उपन्यासकार तकष़ि का जन्म  17अप्रैल 1912 में केरल के आलप्पुष़ा नामक जिला के भीतर का गाँव तकष़ि पर हुआ था I
·        मृत्यु: 10 अप्रैल 1999 में, 86 वर्ष की आयु में तकष़ि गाँव, आलप्पुष़ा जिला, केरल राज्य में I
·        साहित्य में स्थान: मलयालम भाषा के सबसे बडा सामाजिक,साँस्कृतिक,यथार्थवादी उपन्याकार और कहानिकार I
·        विशेषताएँ:मानव जीवन की वास्तविकताएँ अपने कृतियों में अंकित
किया गया कालातीत रचनाओं के प्रणेता I साहित्य के हर विधा  पर अपने प्रतिभा का चमत्कार छापने पर भी उपन्यासकार के रूप में पूरे साहित्य जगत् में सर्वादरणीय जगह पा लिया महाप्रतिभा I प्रेमचन्द के समान दबाये गये लोगों के आवाज़ को उचित स्थान दिया गया मनुष्य-स्नेही रचनाकार I 600 से अधिक  कहानियों के सिवा 1948 में प्रकशित रन्डिडंगष़ि, 1956 में प्रकाशित 'चेम्मीन' और 1978 में प्रकाशित 'कयर' आदि 'मास्टरपीस'

तकष़ि और मलयालम साहित्य

मलयालम केरलीयों की अपनी मातृभाषा है I शिक्षा, साहित्य, सभ्यता, संस्कृति और राजनीति आदि हर क्षेत्र में केरल और मलयाली और किसी प्रदेश और भाषी के पीछे नहीं है I
मलयायम साहित्य में अपना स्थान निर्धारित करते हुए विश्वविख्यात साहित्यकार तकष़ि शिवशंकर पिल्लै ने विनम्रता के साथ इस प्रकार कहा था:-' एक ज़माना था, तब मलयाली और उनका साहित्य पूर्णरूप में रुककर खडा था I तब मनुष्य और उनके साहित्य को रास्ता दिखाकर आगे ले जाने केलिए कुछ लोग आये, उन व्यक्तियों में मुझे भी एक स्थान था- काल, इतिहास के पन्ने में कभी ऎसा लिख जाता तो अपना जीवन कृतार्थ हो सकेंगे 'I (मलयालम से हिन्दी अनुवाद, ' केरल विश्व विद्यालय में किया गया भाषण -उपन्यासकारों के शिल्पशाला-' तकष़ि-1970)
हाँ, मलयालम के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासकार तकष़ि को कर्नाटक का सीमा मंजेश्वर से तमिलनाड़ के सीमा पारशाला तक के केरल में नहीं, अपितु पूरे संसार के आर-पर विश्व प्रसिद्ध महान् साहित्यकार का परिवेश है I भारत सरकार उन्हें ञानपीठ पुरस्कार देकर सम्मानित किया, ऎसा कर हर भारतीय सम्मानित हुएI       
  

v तकष़ि की रचनाएँ
·        उपन्यास :
§  त्यागत्तिनु प्रतिफलम-1934 में प्रकाशित
§  पतित पंकजम-1935 में प्रकाशित
§  सुशीलन-1938 में प्रकाशित
§  परमार्थन्गल-1945 में प्रकाशित
§  विल्पनक्कारी-1946 में प्रकाशित
§  तलयोड-1947 में प्रकाशित
§  तोट्टियुटे मकन-1947 में प्रकाशित
§  रन्डिडंगष़ि -1948 में प्रकाशित
§  तेण्डिवर्गम-1950 में प्रकाशित
§  अवन्टे स्मरणयिल-1955  में प्रकाशित
§  चेम्मीन-1956 में प्रकाशित
§  औसेप्पिन्टे मक्कल-1959 में प्रकाशित
§  अंजु पेण्णुंगल-1961 में प्रकाशित
§  जीवितं सुन्दरमाण्-1961 में प्रकाशित
§  एणिप्पटिकल-1964 में प्रकाशित
§  धर्म, नितियो अल्ल जीवितम-1965 में प्रकाशित
§  पापि अम्मयुं मक्कलुं-1965 में प्रकाशित
§  माँसतिन्टे विलि-1966 में प्रकाशित
§  अनुभवंगल पालिच्चकल-1967 में प्रकाशित
§  आकाशम-1967 में प्रकाशित
§  चुक्क्-1967 में प्रकाशित
§  व्याकुल माताव्-1968 में प्रकाशित
§  नेल्लुं तेंगयुं-1969 में प्रकाशित
§  पेण्ण्-1969 में प्रकाशित
§  पेण्णायि पिरन्नाल-1970 में प्रकाशित
§  नुरयुं पतयुं -1970 में प्रकाशित
§  कोटिप्पोय मुखंगल-1972 में प्रकाशित
§  कुरे मनुष्यरुटे कथा-1973 में प्रकाशित                  
§  अकत्तलम-1974 में प्रकाशित
§  पुन्नप्र वयलारिन् शेषम-1975 में प्रकाशित
§  अष़ियाक्कुरुक्क्-1977 में प्रकाशित                
§  आद्यकाला नोवलुकल-1977 में प्रकाशित            
§  लघु नोवलुकल-1978 में प्रकाशित
§  कयर-1978 में प्रकाशित
§  बलूणुकल-1982 में प्रकाशित
§  ओरु मनुष्यन्टे मुखम-1983 में प्रकाशित
§  ओरु प्रेमत्तिन्टे बाक्की-1988 में प्रकाशित
§  एरिन्जटंगल-1990 में प्रकाशित

·        कहानी संग्रह : पुतु मलर(1935) से आलिंगनम(1961) तक के 21 पुस्तक
·        नाटक तोट्टिट्टिल्ला-1946 में प्रकाशित
·        आत्मकथा :
§  एन्टे क्कील जीवितं- 1961 में प्रकाशित
§  एन्टे बाल्यकाल कथा- 1967 में प्रकाशित
§  ओरम्मयुटे तीरंगलिल- 1985 में प्रकाशित
·        यात्रा विवरण : अमेरिकन तिरशीला- 1966 में प्रकाशित
                 
रन्डिडंगष़ि उपन्यास

तकष़ी की कृतियों में रूप और भाव की दृष्टि में समानताएँ रखने वाले उनके आरंभकालीन उपन्यास हैं जिनमें 1947 में प्रकाशित तोट्टियुटे मकन (भंगी का बेटा) और 1948 में प्रकाशित रन्डिडंगष़ि आदि मुख्य है I इन दोनों में उनके मार्क्सवादी मनोभाव खुलकर प्रकट होता है I ‘रन्डिडंगष़ि उपन्यासकार के जीवन से अटूट सम्बंध जोड़ने वाला उपन्यास भी है I एक बार एक सह्रदय तकष़ि से उनके प्रिय उपन्यास के बारे में प्रश्न उठाया तो – “रन्डिडंगष़ि मेरी जीवन की अंग है” - निसंकोच उत्तर उन्होंने दिया है आगे उन्होंने व्यक्त किया कि उस पर चित्रित जीवन मेरी अपनी जीवन  है  I   इस उपन्यास द्वारा कुट्टनाड (केरल के आलप्पुष़ा जिला का रमणीय प्रदेश) भारत की नक्शे पर भी नहीं, विश्व के नक्शे पर स्थान पाया है I

रन्डिडंगष़ि उसके लेखक के जीवन से काट दी गयी कथा है I क्योंकि शिवशंकर पिल्लै के पिताजी कुट्टनाट् के तकष़ि नामक स्थान का किसान- ज़मींदार था I पिल्लै ने अपने जन्म से मृत्यु तक का जीवन इधर ही बिताया था I इधर के किसानों के वास्तविक जीवन से वे चिरपरिचित थे I जीवन के कटु अनुभवों और रचना के बने जाने के बारे में विश्व साहित्यकार प्रेमचंद ने एक बार कहा था -' मैं पुस्तको की पाठशाला से नहीं, जीवन की पाठशाला से साहित्य क्षेत्र पर आया था I हाँ, तकष़ि भी ऐसा ही  आया है I इसलिए मडयत्तरा कुंजेप्पन नामक अनुसूचित जाति के किसान-मज़दर को रन्डिडंगष़ि समर्पित करते हुए उन्होंने लिखा है – “मेरे पिताजी के उस प्रिय सेवक (कुंजप्पन) 60 वर्ष तक काम करने के बाद मर गया तो उनका भौतिक शरीर मिट्टी की ओर उठाते समय अपने पिताजी पहले पहल रोया - मैंने देखा था I अपना ज़मींदार एक अच्छे घर बनाकर रहना उनका मोह था, यह भी सफल हुआ I उनका ज़मींदार एक भूस्वामी बनकर आया..... देखा है I उस मडयत्तरा कुंजप्पन के याद केलिए यह पुस्तक सर्पित करता हूँ I कुंजप्पन मरने के वर्षों बाद उनके परम्परा विप्लव और सहमत स्वर लेकर आगे बढे, यहाँ अवश्य परिवर्तन लाया I इस परिवर्तन का आँखों देखा चित्रण विवेच्य उपन्यास में उन्होंने किया है I

सन् 1988 में तकष़ि तिरुवनंतपुरम के केरल विश्वविद्यालय में सी.वी.रामन पिल्लै के सस्मृति भाषण देते हुए कहा है – “विश्वविद्यलय के मलयालम विभाग ने मुझे अनुरोध दिया कि अपने तीन उपन्यासों की रचना और उसके प्रयास के बारे में कुछ जानकारी दे दें I  सूचित किया गया उपन्यास रन्डिडंगष़ि, चेम्मीन और कयर (रस्सी) है I अपने उपन्यास के बारे में स्वयं निर्णय कर बातें करना आसान नहीं है I मुझे डर लगा कि स्वयं घमण्ड का प्रदर्शन....बुरा हैतुम्हें बुरा लगेंगे, फिर भी यह मेरा रहस्य है, जब सामाजिक समस्याएँ मन पर उठ खड़ी होती, तब मैं सुबोध से रचना शुरु करता हूँ I”

      प्रेमचन्द और तकष़ि शिवशंकर पिल्लै विश्वविख्यात उपन्यासकार हैं I प्रेमचन्द भारत की राष्ट्र भाषा हिन्दी में साहित्य रचना कर पूरे संसार के आदर के पात्र हुए तो तकष़ि केरल की राज्य भाषा मलयालम को माध्यम बनाकर वही स्थान पा लिया है I

     गोदान, रंगभूमि और सेवासदन जैसी रचनाएँ प्रेमचन्द का कीर्ति स्तंभ है तो कयर, चेम्मीन और  रन्डिडंगष़ि जैसी कृतियाँ तकष़ि का अपूर्वतम प्रतिभा के दीप स्तंभ हैं I
     गोदान में प्रेमचन्द ने अपना काल और उस ज़माने के पीडितों और पद दलित किसानों को आवाज़ दिया है , रन्डिडंगष़ि में तकष़ि ने भी वही किया है I प्रेमचन्द आदर्शनिष्ठ थथार्थवादी साहित्यकार है, तकष़ि ने भी आदर्शनिष्ठता और थथार्थवादिता का परिचय दिया है I

   गोदन के समान रन्डिडंगष़ि भी मुख्य रूप में किसानों के वेदनाजनक जीवन का अक्षरबद्ध कृति है I गोदान में होरी, धनिया, गोबर और मेहता जैसे कथापात्र है, वैसे कोरन, चिरुता, चात्तन  और पुष्पवेलि औसेप जैसे शोषित और शोषक कथापात्र रन्डिडंगष़ि में पाये जाते हैं I

    गोदन का प्रकाशन 1936 में हुआ तो रन्डिडंगष़ि 1948 में प्रकाशित हुआ   था I पहले में उत्तर भारतीय कथापात्र हैं तो रन्डिडंगष़ि में दक्षिण भारत (केरल) के कथापात्र हैं I उत्तर हो या दक्षिण भारत, किसान, दलित और पीड़ित एवं शोषितों का दर्द समान है, शोषकों या ज़मीन्दारों का चेहरा यहाँ और वहाँ एक समान है I
(कोयंबत्तूर करपगम विश्वविद्यालय में प्रो.(डॉ.) के.पी.पद्मावती अम्मा के मार्गदर्शन में पीएच.डी. के लिए शोधरत हैं ।) (Lembodharan Pillai.B is a Research scholar, under the guidance of Prof. (Dr.) K.P.Padmavathi Amma, Karpagam University , Coimbatore, Tamil Nadu, South India.