Wednesday, April 25, 2018

‘रामचरित मानस' पर कांचीपुरम् में राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

रामचरित मानस' पर कांचीपुरम् में राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न





कांचीपुरम् में स्थित श्री चंद्रशेखरेंद्रसरस्वती मानित विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग की ओर से 24 एवं 25 अप्रैल 2018 को "रामचरित मानस और समाज'' विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन अत्यंत सफलतापूर्वक किया गया है। इस संगोष्ठी के पहले दिन विश्वविद्यालय के कुलसचिव आचार्य जि. श्रीनिवासु की अध्यक्षता में आरंभिक सत्र संपन्न हुआ। संगोष्ठी के संयोजक और हिन्दी विभाग के सहायक आचार्य डॉ. दण्डिभोट्ला नागेश्वर राव ने संगोष्ठी के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि रामचरित मानस पर सामाजिक दृष्टिकोण से विचार करना इस संगोष्ठी का मुख्य आशय है। सत्राध्यक्ष प्रोफेसर श्रीनिवासु जी ने रामचरित मानस' ग्रंथ के महत्व पर प्रकाश डालते हुए इस ग्रंथ को भारतीय संस्कृति की धरोहर कहा। इस सत्र के मुख्य अतिथि के रूप में पधारे तमिलनाडु केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष आचार्य एस.वि.एस.एस. नारायण राजु जी ने संगोष्ठी का बीज-व्याख्यान दिया। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि रामचरित मानस का भारतीय समाज पर अपार प्रभाव है और नैतिक एवं पारिवारिक मूल्यों की दृष्टि से आज भी रामचरित मानस प्रासंगिक है। मुख्य अतिथियों के करकमलों के द्वारा संगोष्ठी के शोध-पत्रों के सार-संग्रह का लोकार्पण इलैक्ट्रानिक पुस्तक' (सी.डी.) के रूप में किया गया। इस सत्र में संस्कृत एवं भारतीयसंस्कृति विभाग के अध्यक्ष डॉ. देबज्योति जेना ने स्वागत वचन कहे और संस्कृत विभाग के सहायक आचार्य डॉ. ग. शंकर नारायणन जी ने धन्यवाद ज्ञापित किये।
हैदराबाद विश्वविद्यालय की आचार्या प्रोफेसर चेर्ला अन्नपूर्णा जी ने प्रथम तकनीकी सत्र की अध्यक्षता का भार-वहन किया। उन्होंने अपने व्याख्यान के दौरान संस्कृत के वाल्मीकि रामायण की तुलना मानस के साथ की। दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा-चेन्नै, कोयंबत्तूर, तिरुचिरापल्लि इत्यादि प्रदेशों से लगभग 50 हिन्दी प्राध्यापक, अध्यापक एवं हिन्दी प्रेमियों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया। पहले दिन दो तकनीकी सत्रों का संचालन किया गया जिनमें कुल 12 प्रपत्रों का वाचन किया गया। रामचरित मानस की ऐतिहासिकता', ‘रामचरित मानस और फादर कामिल बुलके', ‘रामचरित मानस और तेलुगु मोल्ला-रामायण की तुलना', ‘रामचरित मानस और कम्ब रामायण' इत्यादि रोचक विषयों पर सारगर्भित प्रपत्रों का वाचन संपन्न हुआ। तकनीकी सत्रों के पश्चात् डॉ. श्रीधर और संस्कृत के शोध-छात्र शुभचंद्र झा के द्वारा रामचरित मानस के सुंदरकाण्ड का विशेष-पाठ किया गया जिससे सभागार में उपस्थित श्रोताओं के मन में भावभीनी श्रद्धा और भक्ति का संचार हुआ।
दूसरे दिन के कार्यक्रम में तीन तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया। पुदुच्चेरी केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष (प्रभारी) डॉ. जयशंकर बाबूजी एवं तिरुवण्णामलै के मनोन्मणियन सुंदरनार विश्वविद्यालय की भूतपूर्व संकायाध्यक्षा डॉ. भवानी ने तकनीकी सत्रों की अध्यक्षता की जिम्मेदारी ली। डॉ. भवानी जी ने कहा कि तमिल में वाल्मीकि से भी पूर्व अगस्त्य रामायण' का प्रस्ताव है। डॉ. जयशंकर बाबूजी ने मानस में प्रस्तावित पर्यावरणीय मूल्य-चेतना पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज के माहोल में मानस का पठन-पाठन पर्यावरणीय चेतना के नज़रिये से करने की आवश्यकता है। इन दो सत्रों में तिरुवनंतपुरम्, तिरुचिरापल्लि, पेरम्बलूर, मधुरांतकम्, पांडिचेरी, हैदराबाद, विशाखपट्टणम्, तिरुपति इत्यादि क्षेत्रों से पधारे कुल 16 प्रतिभागियों ने अपने प्रपत्रों का समर्पण किया जिनमें रामचरित मानस और वर्तमान समाज', रामचरित मानस की प्रासंगिकता', रामचरित मानस और मलयालम रामकाव्य की तुलना' इत्यादि महत्वपूर्ण विषयों का प्रतिपादन हुआ। दूसरे दिन के अंतिम तकनीकी सत्र के अध्यक्ष रहे कांची विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के वरिष्ठतम आचार्य प्रोफेसर नारायणजी झा, जिन्होंने प्राकृत भाषा-विज्ञान की पृष्ठभूमि में रामचरित मानस की भाषा-शैली पर अत्यंत अमूल विचार व्यक्त किये। इस सत्र में संपूर्णतया संस्कृत में ही प्रपत्रों का वाचन किया गया जो कि विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इस सत्र में संस्कृत वाल्मीकि रामायण और रामचरित मानस की तुलना अनेक प्रसंगों की पृष्ठभूमि में की गयी। संगोष्ठी के समापन सत्र में हैदराबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग की प्रोफेसर चेर्ला अन्नपूर्णा जी ने मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया। संयोजक डॉ. नागेश्वर राव के द्वारा संगोष्ठी-प्रतिवेदन एवं धन्यवाद-ज्ञापन से संगोष्ठी का समापन हुआ। इस दो दिवसीय संगोष्ठी में देश के विभिन्न प्रदेशों- विशेषकर दक्षिण भारत के सभी राज्यों से एक सौ से अधिक प्रतिभागियों ने भागीदारी ली। कागज का कम उपयोग करते हुए यह सेमिनार पर्यावरण-हित भी सिद्ध हुई, जो कि काबिले तारीफ है। कुल मिलाकर हिन्दी विभाग के द्वारा कांची विश्वविद्यालय में आयोजित राष्ट्रीय स्तर की यह पहली संगोष्ठी अत्यंत सफल एवं विचारोत्तेजक सिद्ध हुई।


Saturday, February 10, 2018

दीनदयाल उपाध्याय होने का मतलब


आलेख

दीनदयाल उपाध्याय होने का मतलब
पुण्यतिथि पर विशेष (11 फरवरी)



-संजय द्विवेदी

  राजनीति में विचारों के लिए सिकुड़ती जगह के बीच पं. दीनदयाल उपाध्याय का नाम एक ज्योतिपुंज की तरह सामने आता है। अब जबकि उनकी विचारों की सरकार पूर्ण बहुमत से दिल्ली की सत्ता में स्थान पा चुकी हैतब यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर दीनदयाल उपाध्याय की विचारयात्रा में ऐसा क्या है जो उन्हें उनके विरोधियों के बीच भी आदर का पात्र बनाता है।
   दीनदयाल जी सिर्फ एक राजनेता नहीं थेवे एक पत्रकारलेखकसंगठनकर्तावैचारिक चेतना से लैस एक सजग इतिहासकारअर्थशास्त्री और भाषाविद् भी थे। उनके चिंतनमनन और अनुशीलन ने देश को एकात्म मानवदर्शन जैसा एक नवीन भारतीय विचार दिया। सही मायने में  एकात्म मानवदर्शन का प्रतिपादन कर दीनदयाल जी ने भारत से भारत का परिचय कराने की कोशिश की। विदेशी विचारों से आक्रांत भारतीय राजनीति को उसकी माटी से महक से जुड़ा हुआ विचार देकर उन्होंने एक नया विमर्श खड़ा कर दिया। अपनी प्रखर बौद्धिक चेतना,समर्पण और स्वाध्याय से वे भारतीय जनसंघ को एक वैचारिक और नैतिक आधार देने में सफल रहे। सही मायने में वे गांधी और लोहिया के बाद एक ऐसे राजनीतिक विचारक हैंजिन्होंने भारत को समझा और उसकी समस्याओं के हल तलाशने के लिए सचेतन प्रयास किए। वे अनन्य देशभक्त और भारतीय जनों को दुखों से मुक्त कराने की चेतना से लैस थेइसीलिए वे कहते हैं-प्रत्येक भारतवासी हमारे रक्त और मांस का हिस्सा है। हम तब तक चैन से नहीं बैठेंगें जब तक हम हर एक को यह आभास न करा दें कि वह भारत माता की संतान है। हम इस धरती मां को सुजलासुफलाअर्थात फल-फूलधन-धान्य से परिपूर्ण बनाकर ही रहेंगें। उनका यह वाक्य बताता है कि वे किस तरह का राजनीतिक आदर्श देश के सामने रख रहे थे। उनकी चिंता के केंद्र में अंतिम व्यक्ति हैशायद इसीलिए वे अंत्योदय के विचार को कार्यरूप देने की चेष्ठा करते नजर आते हैं।
   वे भारतीय समाज जीवन के सभी पक्षों का विचार करते हुए देश की कृषि और अर्थव्यवस्था पर सजग दृष्टि रखने वाले राजनेता की तरह सामने आते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था पर उनकी बारीक नजर थी और वे स्वावलंबन के पक्ष में थे। राजनीतिक दलों के लिए दर्शन और वैचारिक प्रशिक्षण पर उनका जोर था। वे मानते थे कि राजनीतिक दल किसी कंपनी की तरह नहीं बल्कि एक वैचारिक प्रकल्प की तरह चलने चाहिए। उनकी पुस्तक पोलिटिकल डायरीमें वे लिखते हैं- भिन्न-भिन् राजनीतिक पार्टियों के अपने लिए एक दर्शन (सिद्दांत या आदर्श) का क्रमिक विकास करने का प्रयत्न करना चाहिए। उन्हें कुछ स्वार्थों की पूर्ति के लिए एकत्र होने वाले लोगों का समुच्च मात्र नहीं बनना चाहिए। उनका रूप किसी व्यापारिक प्रतिष्ठान या ज्वाइंट स्टाक कंपनी से अलग होना चाहिए। यह भी आवश्यक है कि पार्टी का दर्शन केवल पार्टी घोषणापत्र के पृष्ठों तक ही सीमित न रह जाए। सदस्यों को उन्हें समझना चाहिए और उन्हें कार्यरूप में परिणत करने के लिए निष्ठापूर्वक जुट जाना चाहिए। उनका यह कथन बताता है कि वे राजनीति को विचारों के साथ जोड़ना चाहते थे। उनके प्रयासों का ही प्रतिफल है कि भारतीय जनसंघ (अब भाजपा) को उन्होंने वैचारिक प्रशिक्षणों से जोड़कर एक विशाल संगठन बना दिया। यह विचार यात्रा दरअसल दीनदयाल जी द्वारा प्रारंभ की गयी थीजो आज वटवृक्ष के रूप में लहलहा रही है। अपने प्रबोधनों और संकल्पों से उन्होंने तमाम राजनीतिक कार्यकर्ताओं तथा जीवनदानी उत्साही नेताओं की एक बड़ी श्रृंखला पूरे देश में खड़ी की।
  कार्यकर्ताओं और आम जन के वैचारिक प्रबोधन के लिए उन्होंने पांचजन्यस्वदेश और राष्ट्रधर्म जैसे प्रकाशनों का प्रारंभ किया। भारतीय विचारों के आधार पर एक ऐसा दल खड़ा किया जो उनके सपनों में रंग भरने के लिए तेजी से आगे बढ़ा। वे अपने राजनीतिक विरोधियों के प्रति भी बहुत उदार थे। उनके लिए राष्ट्र प्रथम था। गैरकांग्रेस की अवधारणा को उन्होंने डा.राममनोहर लोहिया के साथ मिलकर साकार किया और देश में कई राज्यों में संविद सरकारें बनीं। भारत-पाक महासंघ बने इस अवधारणा को भी उन्होंने डा. लोहिया के साथ मिलकर एक नया आकाश दिया। विमर्श के लिए बिंदु छोड़े। यह राष्ट्र और समाज सबसे बड़ा है और कोई भी राजनीति इनके हितों से उपर नहीं है। दीनदयाल जी की यह ध्रुव मान्यता थी कि राजनीतिक पूर्वाग्रहों के चलते देश के हित नजरंदाज नहीं किए जा सकते। वे जनांदोलनों के पीछे दर्द को समझते थे और समस्याओं के समाधान के लिए सत्ता की संवेदनशीलता के पक्षधर थे। जनसंघ के प्रति कम्युनिस्टों का दुराग्रह बहुत उजागर रहा है। किंतु दीनदयाल जी कम्युनिस्टों के बारे में बहुत अलग राय रखते हैं। वे जनसंघ के कालीकट अधिवेशन में 28 दिसंबर,1967 को कहते हैं- हमें उन लोगों से भी सावधान रहना चाहिए जो प्रत्येक जनांदोलन के पीछे कम्युनिस्टों का हाथ देखते हैं और उसे दबाने की सलाह देते हैं। जनांदोलन एक बदलती हुयी व्यवस्था के युग में स्वाभाविक और आवश्यक है। वास्तव में वे समाज के जागृति के साधन और उसके द्योतक हैं। हांयह आवश्यक है कि ये आंदोलन दुस्साहसपूर्ण और हिंसात्मक न हों। प्रत्युत वे हमारी कर्मचेतना को संगठित कर एक भावनात्मक क्रांति का माध्यम बनें। एतदर्थ हमें उनके साथ चलना होगाउनका नेतृत्व करना होगा। जो राजनीतिकआर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में यथास्थिति बनाए रखना चाहते हैं वे इस जागरण से घबराकर निराशा और आतंक का वातावरण बना रहे हैं। 
  इस प्रकार हम देखते हैं कि दीनदयाल जी का पूरा लेखन और जीवन एक राजनेता की बेहतर समझउसके भारत बोध को प्रकट करता है। वे सही मायने में एक राजनेता से ज्यादा संवेदनशील मनुष्य हैं। उनमें अपनी माटी और उसके लोगों के प्रति संवेदना कूट-कूट कर भरी हुयी है। सादा जीवन और उच्च विचार का मंत्र उनके जीवन में साकार होता नजर आता है। वे अपनी उच्च बौद्धिक चेतना के नाते भारत के सामान्य जनों से लेकर बौद्धिक वर्गों में भी आदर से देखे जाते हैं। एक लेखक के नाते आप दीनदयाल जी को पढ़ें तो अपने विरोधियों के प्रति उनमें कटुता नहीं दिखती। उनकी आलोचना में भी एक संस्कार हैसुझाव है और देशहित का भाव प्रबल है। पुण्यतिथि पर उनके जैसे लोकनायक की याद सत्ता में बैठे लोग करेंगेंशेष समाज भी करेगा। उसके साथ ही यह भी जरूरी है कि उनके विचारों का अवगाहन किया जाएउस पर मंथन किया जाए। वे कैसा भारत बनाना चाहते थे? वे किस तरह समाज को दुखों से मुक्त करना चाहते थे? वे कैसी अर्थनीति चाहते थे?

    दीनदयाल जी को आयु बहुत कम मिली। जब वे देश के पटल पर  अपने विचारों और कार्यों को लेकर सर्वश्रेष्ठ देने की ओर थेतभी हुयी उनकी हत्या ने इस विचारयात्रा का प्रवाह रोक दिया। वे थोड़ा समय और पाते थे तो शायद एकात्म मानवदर्शन के प्रायोगिक संदर्भों की ओर बढ़ते। वे भारत को जानने वाले नायक थेइसलिए शायद इस देश की समस्याओं का उसके देशी अंदाज में हल खोजते। आज वे नहीं हैंकिंतु उनके अनुयायी पूर्ण बहुमत से केंद्र की सत्ता में हैं। भाजपा और उसकी सरकार को चाहिए कि वह दीनदयाल जी के विचारों का एक बार फिर से पुर्नपाठ करे। उनकी युगानूकूल व्याख्या करे और अपने विशाल कार्यकर्ता आधार को उनके विचारों की मूलभावना से परिचित कराए। किसी भी राजनीतिक दल का सत्ता में आना बहुत महत्वपूर्ण होता हैकिंतु उससे कठिन होता है अपने विचारों को अमल में लाना। भाजपा और उसकी सरकार को यह अवसर मिला है वह देश के भाग्य में कुछ सकारात्मक जोड़ सके। ऐसे में पं.दीनदयाल उपाध्याय के अनुयायियों की समझ भी कसौटी पर है। सवाल यह भी है कि क्या दीनदयाल उपाध्याय,कांग्रेस के महात्मा गांधी और समाजवादियों के डा. लोहिया तो नहीं बना दिए जाएंगें?उम्मीद की जानी चाहिए कि सत्ता के नए सवार दीनदयाल उपाध्याय को सही संदर्भ में समझकर आचरण करेंगें।

(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में जनसंचार विभाग के अध्यक्ष हैं)

Monday, January 22, 2018

छठा सोशल मीडिया मैत्री सम्मेलन एवं सम्मान समारोह , (नेपाल), 2018

छठा सोशल मीडिया मैत्री सम्मेलन एवं सम्मान समारोह , (नेपाल), 2018

आमंत्रण 

गत वर्षों में भारत में संपन्न हो चुके 5 सोशल मीडिया मैत्री सम्मेलनों की अपार सफलता के पश्चात छठा सोशल मीडिया मैत्री सम्मेलन आगामी 30-31 मार्च,18 को मैथिल प्रदेश (जनकपुर/रौतहट,नेपाल) में होना प्रस्तावित है। इस बार पुनः इस आयोजन में फेसबुक, ट्वीटर, वाट्सअप आदि प्रमुख सोशल मीडिया साइट्स से जुड़े/खाताधारी, भारत और आसपास के देशों के विश्व मैत्री-भाईचारे में यकीन रखने वाले प्रतिभाशाली कलाकर्मियों/व्यक्तित्वों को शामिल किया जायेगा। इसमें स्थान सीमित हैं और पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर प्रतिभाओं के नाम/प्रोफाइल नामांकन आमंत्रित हैं। उपर्युक्त सम्मेलन के बारे में अन्य विवरण निम्न प्रकार से हैः 

1, इस सम्मेलन में साहित्य/पत्रकारिता/संगीत/गायन/अभिनय/नृत्य/रंगमंच/हास्य/चित्रकारी/हस्त शिल्प/व्यंग्य चित्रकारी, समाज सेवा आदि विभिन्न क्षेत्रों की देशी/विदेशी प्रतिभाएं अपने प्रदर्शन के साथ शामिल हो सकती हैं।
2, देशी-विदेशी प्रतिभाओं का अपनी भाषा के अलावा हिन्दी भाषा का काम चलाऊ ज्ञान आवश्यक है। बेशक वे सांस्कृतिक (गायन, नृत्य आदि की प्रस्तुति) गतिविधियों में अपनी भाषा में भागीदारी कर सकेंगे।
3, दो दिवसीय इस सम्मेलन के विभिन्न सत्रों में प्रतिभागी परिचय/कवि सम्मेलन/सांस्कृतिक कार्यक्रम (गायन, वादन, नृत्य, अभिनय/हास्य) परिचर्चा/भाषाई कवि सम्मेलन और सम्मान के अलग-अलग अमूमन दो-दो घंटे के लगभग पांच सत्र होंगे। इसके अलावा चित्रकार/फोटोग्राफर/व्यंग्यकारों आदि के चित्रों की प्रदर्शनी भी मौके पर ही आयोजित की जाएगी। कोई भी प्रतिभागी अपनी कला के नमूने के साथ अधिकतम दो सत्रों के लिए निर्धारित प्रारूप में अपनी प्रविष्टि किसी व्यक्ति/संस्था के माध्यम से भेज सकेगा और उसके लिए उसके चयन और समय/स्थिति के अनुसार कम से कम एक सत्र में शामिल होना/प्रतिभा का प्रदर्शन अनिवार्य होगा।

4, परिचर्चा संगोष्ठी सम्मान में भाग लेने हेतु "मैत्री-भाईचारे के प्रचार-प्रसार में सोशल मीडिया की भूमिका कितनी सकारात्मक, कितनी नकारात्मक" के अलावा "सोशल साइट्स के खट्टे-मीठे अनुभव पर" सभी प्रतिभागियों के विचार सामान्य हिन्दी अथवा अंग्रेजी भाषा में अधिकतम लगभग 250 शब्दों में आमंत्रित हैं। (नोटः स्टेज आर्टिस्ट्स या कला प्रदर्शनी के भागीदारों को छोड़कर परिचर्चा/अन्य गतिविधियों में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों को प्रविष्टि के साथ उपर्युक्त किसी एक विषय पर अपना विचार भेजना आवश्यक है)

5, इस आयोजन में पहली बार चयनित सभी प्रतिभागियों के आवास (सामूहिक), भोजन आदि की दो दिवसीय (30-31 मार्च,18) सामान्य व्यवस्था निःशुल्क रहेगी परन्तु उन्हें अपने आने-जाने के रेल/बस अथवा हवाई आदि की यात्रा का खर्च स्वयं वहन करना होगा। जो प्रतिभागी अलग से अपने खर्च पर व्यक्तिगत आवास सुविधा या आयोजन तिथि से आगे-पीछे की तारीखों में रुकना चाहेंगे वो आयोजकों की मदद से अपनी व्यवस्था खुद कर सकेंगे।

6, सम्मेलन हेतु चयनित प्रतिभागियों को उनके जीवन वृत्त/उत्कृष्ट उपलब्धियों/और कला क्षेत्र के विशिष्ट प्रदर्शन के लिये स्मृति चिन्ह, प्रमाण पत्र प्रदान करने के अलावा उपयोगी पुस्तकें आदि भेंट की जायेंगी और उन्हें शाल/पटका ओढ़ाकर सोशल मीडिया मैत्री/विशिष्ट सोशल मीडिया प्रतिभा/सहभागिता सम्मान,2018 (अवार्ड) से समानित किया जायेगा।

7, उपर्युक्त सम्मेलन में प्रतिभागिता की इच्छुक प्रतिभायें अपने कार्यों/उपलब्धियों के विवरण सहित अपना तैयार जीवन वृत्त अथवा नीचे दिए गए प्रारूप के अनुसार अपना पूरा विवरण, एक सिंगल तथा कुछ खास ईवेन्ट्स फोटोग्राफ्स/वीडियो (यदि हो) के साथ अधिकतम् 15 फरवरी,2018 (विदेशी प्रतिभाओं के मामले में 20 फ़रवरी,18) तक नीचे दिये गये ईमेल पर किसी व्यक्ति/संस्था के माध्यम से प्रेषित कर सकते हैं। तत्पश्चात् उन्हें उनकी योग्यतानुसार सम्मेलन/अवार्ड समारोह में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया जायेगा। प्रविष्टियां संलग्न दस्तावेजों/प्रमाणों आदि की अटैच फाइल के साथ ईमेल से ही स्वीकार्य की जाएँगी।

8, किसी भी कला क्षेत्र की नवोदित/प्रयासरत प्रतिभाएं भी इस सम्मेलन में अपनी सामान्य प्रतिभागिता दर्ज करा सकती हैं। उन्हें भी उनके स्तर के अनुसार आयोजन में सहभागिता का सम्मान प्रदान किया जायेगा।
ईमेलः friendship.conference18@gmail.com

नोटः यह सम्मेलन पहली बार भाग ले रहे सभी प्रतिभागियों/स्टेज कलाकर्मियों के लिये निःशुल्क है ।

2. प्रतिभागियों के कला प्रदर्शन और सम्मान के क्षेत्र का निर्णय एक समिति के द्वारा उनकी योग्यता और उपलब्धियों के मद्दे नज़र लिया जायेगा, जो सर्व मान्य होगा ।

3. मैत्री सम्मेलन एक विशुद्ध अव्यवसायिक/पारिवारिक और मैत्रीय प्रकृति का आयोजन होता है । इसमें मेजबान और मेहमानों के बीच कोई सीमा रेखा नहीं होती..सभी मेहमान होते हैं और सभी खुद के मेजबान भी अतः विशेष मेहमान नवाजी के हिमायती या नाज़ नखरे वाले व्यक्ति इस आयोजन में शामिल नहीं किये जाते हैं । बशर्ते सभी को मान-सम्मान और आयोजन में स्थान देने का पूरा प्रयास किया जाता है।

4, समय-समय पर किसी अन्य बदलाव की सूचना/सम्मेलन से सम्बंधित अन्य जानकारियां प्रतिभागियों को इस इवेंट पेज और सम्मेलन के whatsapp ग्रुप पर दी जाती रहेंगी ।

हम सब साथ साथ , भारत और सहयोगी संस्थाएं तथा स्थानीय नेपाली संस्थाएं: नेपाल-भारत वीरांगना फाउन्डेशन, आरडीएस सोसाइटी सेंटर, झाँसी की रानी दैनिक समाचार पत्र, सुप्रभा साप्ताहिक, मधेशी पत्रकार समाज, नेपाल


संपर्क/अन्य जानकारी हेतु मो. 1. प्रभा सिंह (संपादक, झाँसी की रानी दैनिक समाचार पत्र, नेपाल)- +977-9855044325, 9845161325 2. किशोर श्रीवास्तव (प्रभारी, आयोजन)- +91 8447673015, 9868709348 (प्रविष्टि/कार्यक्रम सम्बन्धी) 3. गोवर्धन चौमाल-9413382124 4. शशि श्रीवास्तव (संपादक, हम सब साथ साथ)- 8800518246 (परिचर्चा सम्बन्धी) 5. राज कुमार दुबे (सचिव, नव प्रभात जन सेवा संस्थान)- 9560806775 6, सुमन द्विवेदी (अध्यक्ष, नव प्रभात जन सेवा संस्थान) 9999513602 (परिचर्चा/व्यवस्था सम्बन्धी) 7, अखिलेश दिवेदी-9891285918, 8. सुषमा भंडारी-9810152263 (भारत)


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13, प्राप्त पुरस्कारों/सम्मानों का विवरण (यदि कोई हों):
14. नाबालिक/महिला प्रतिभागी साथ में आने वाले सदस्य का विवरण:
15, परिचर्चा का शीर्षक/शब्द संख्या:
16, अन्य कोई महत्पूर्ण विवरण (यदि देना चाहें):

नोट: अपने फोटो के साथ यह प्रपत्र भरकर समस्त प्रमाणों के साथ 15/25 फरवरी,18 तक व्यक्ति/संस्था के माध्यम से मेल करें और संस्था की स्वीकृति प्राप्त होने के 10 दिनों के भीतर अपने आने की पक्की सूचना रेल/हवाई आदि के टिकट की कॉपी friendship.conference18@gmail.com पर मेल करें.

समस्त जानकारी सम्मेलन के ब्लॉग friendshipconference.blogspot.com / इवेंट पेज https://www.facebook.com/events/1768741883175972/1772596416123852/?notif_t=admin_plan_mall_activity&notif_id=1516274483927302 पर भी उपलब्ध है