Thursday, April 19, 2012

पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय में दि. 10 मई, 2012 को राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन - NATIONAL SEMINAR AT PONDICHERRY UNIVERSITY

पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय में दि. 10 मई, 2012 को
राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

NATIONAL SEMINAR AT PONDICHERRY UNIVERSITY
TOPIC - EXPRESSION OF SOCIAL HARMONY IN INDIAN LITERATURE

दि.10 मई, 2012 को हिंदी विभाग, पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय द्वारा भारतीय साहित्य में सामाजिक सद्भावना की अभिव्यक्ति विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय, पुदुच्चेरी में किया जा रहा है ।


शोध-प्रपत्रों की प्रस्तुति

शोध-प्रपत्रों के लिए उप विषय-

संगोष्ठी में शोध-प्रपत्र प्रस्तुत करने हेतु निम्नांकित उप विषय तय किए गए हैं –

1. असमिया भाषा के साहित्य में सामाजिक सद्भावना की अभिव्यक्ति

2. उर्दू साहित्य में सामाजिक सद्भावना की अभिव्यक्ति

3. ओडिया साहित्य में सामाजिक सद्भावना की अभिव्यक्ति

4. कन्नड साहित्य में सामाजिक सद्भावना की अभिव्यक्ति

5. गुजराती साहित्य में सामाजिक सद्भावना की अभिव्यक्ति

6. तमिल साहित्य में सामाजिक सद्भावना की अभिव्यक्ति

7. तेलुगु साहित्य में सामाजिक सद्भावना की अभिव्यक्ति

8. नेपाली साहित्य में सामाजिक सद्भावना की अभिव्यक्ति

9. पंजाबी साहित्य में सामाजिक सद्भावना की अभिव्यक्ति

10. बंग्ला साहित्य में सामाजिक सद्भावना की अभिव्यक्ति

11. मलयालम साहित्य में सामाजिक सद्भावना की अभिव्यक्ति

12. संस्कृत साहित्य में सामाजिक सद्भावना की अभिव्यक्ति

13. सिंधी साहित्य में सामाजिक सद्भावना की अभिव्यक्ति

14. हिंदी साहित्य में सामाजिक सद्भावना की अभिव्यक्ति

इसके अलावा अन्य भारतीय भाषाओं, भारतीय लोक-भाषाओं और भारतीय लेखकों द्वारा अंग्रेजी में लिखे गए साहित्य में सामाजिक सद्भवाना अभिव्यक्ति पर भी समग्र शोध-आलेख प्रस्तुत किए जा सकते हैं । इन भाषाओं के साहित्य में किसी काल-खंड या युग अथवा रचनाकार की रचनाओं में अभिव्यक्त सामाजिक सद्भवाना पर भी लेख प्रस्तुत किए जा सकते हैं ।

शोध-आलेख की तैयारी – शोध-आलेख कंप्यूटर मंगल फांट में डबल स्पेस के साथ फांट साइज 10 में टंकित किया जाना चाहिए । शीर्षक के लिए 14 साइज का फांट और उप-शीर्षकों के लिए 12 साइज के फांट का प्रयोग किया जाए । जिनके कंप्यूटर में मंगल फांट उपलब्ध नहीं हैं, वे कृतिदेव फांट में डबल स्पेस के साथ फांट साइज 12 में टंकित कर सकते हैं । शीर्षक के लिए 16 साइज का फांट और उप-शीर्षकों के लिए 14 साइज के फां फांट का प्रयोग किया जाए ।

शोध आलेख का प्रेषण – विद्वान प्रतिभागी अपना शोध-सार तथा शोध-आलेख ई-मेल द्वारा       दि.30 अप्रैल, 2012 तक yugmanas@gmail.com अथवा professorbabuji@gmail.com पर भेज सकते  हैं । आलेख की मुद्रित प्रति डॉ. सी. जय शंकर बाबु, हिंदी विभाग, पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय, पुदुच्चेरी – 605 014 के पते पर डाक द्वारा भेज सकते हैं । मुद्रित प्रति संगोष्ठी के समय में भी संयोजक को सौंप दी जा सकती है । चयनित आलेखों का संपादित रूप में ISSN नंबर पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने का प्रयास किया जाएगा ।

प्रतिभागियों को मार्ग-व्यय तथा अन्य खर्च का वहन स्वयं करना होगा ।  पूर्व सूचना मिलने पर आवास की सामान्य व्यवस्था निःशुल्क की जाएगी ।  अधिक जानकारी के लिए कृपया yugmanas@gmail.com ई-मेल पर संपर्क करें ।

Monday, April 16, 2012

Entries Open for 5th KCK Award - 5th KC Kulish Award for Excellence in Print Journalism

5th KC Kulish Award for Excellence in Print Journalism

As Patrika Group of Newspapers enters into its 56th Year we are expanding in reach, editorial campaigning for core issues and focusing on Development Intervention through newspaper strength. Recognizing Good work in print media across the globe is a gesture to pay homage to our founder father Sh Karpoor Chandra Kulish and promote Value laden Journalism. Kindly encourage fellow journalists to send best of their works and also stay prepared with better planning and works for the coming awards.


Patrika Group


Entries Open for 5th KCK Award


5th KC Kulish Award for Excellence in Print Journalism


Given by Patrika Group of Newspapers - No 5th among top ranking newspapers of India and 29th in the World Association of Newspaper Ranking, Among Best Community Newspapers as per BBC-Reuters Survey

Theme: Changemakers ( see detail on www.patrika.com/kckaward)


Deadline: 30th April 2012


Award: Citation and USD 11,000/


Eligibility: Stories Published in Daily Newspaper in the year 2011


Evaluation: Team Effort, Good Research and Impact



Feel Free to Seek Any Clarification. Shall soon announce the results of 4th KCK on Crusade Against Corruption

Download the form from the site and send your entries to the e mail: kckaward@epatrika.com

Call Our Award Desk @ 0141-3005688 ( between 2 pm -6 pm Indian Time)

संवेदना के बिना पत्रकारिता संभव नहीं- उपाध्याय

 
वरिष्ठ पत्रकार उमेश उपाध्याय का कहना है कि संवेदनशीलता के बिना पत्रकारिता संभव नहीं है। एक पत्रकार की दृष्टि संपन्नता और संवेदनशीलता ही उसको प्रामणिकता प्रदान करती है। वे यहां माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के इलेक्ट्रानिक मीडिया विभाग द्वारा आयोजित व्याख्यान को संबोधित कर रहे थे। श्री उपाध्याय ने कहा कि नए पत्रकारों को घटनाओं को देखने और बरतने का तरीका बदलना होगा। आज जब दुनिया में पत्रकारिता के अंत की बातें हो रही हैं तो हमें अपनी मीडिया को ज्यादा सरोकारी और जवाबदेह बनाना होगा। संवेदना, वैल्यू एडीशन और नजरिया ही किसी भी पत्रकारीय लेखन की सफलता है। उन्होंने दुख जताते हुए कहा कि मीडिया को आज लोग सत्ता प्रतिष्ठान का हिस्सा मानने लगे हैं, यह धारणा बदलने की जरूरत है। टेलीविजन में नकारात्मक संवेदनाएं बेचने पर जोर है, जिससे इस माध्यम को लोग गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। उनका कहना था कि पत्रकारिता 20-20 का मैच नहीं है, यह दरअसल टेस्ट मैच है, जिसमें आपको लंबा खेलना होता है। धैर्य, समर्पण और सतत लगे रहने से ही एक पत्रकार अपना मुकाम हासिल करता है। आज इस दौर में जब शब्द महत्व खो रहे हैं तोहमें शब्दों की बादशाहत बनाए रखने के लिए प्रयास करने होंगें। कार्यक्रम के प्रारंभ में जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी और डा. मोनिका वर्मा ने श्री उपाध्याय का स्वागत किया। संचालन प्रो. आशीष जोशी ने किया।



( संजय द्विवेदी)

ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया का अधिवेशन संपन्न


ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (एजीआई) का 37वां दो दिवसीय अधिवेशन पंजिम स्थित गोवा विश्वविद्यालय के समारोह में आयोजित किया गया.  गोवा विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. रोहिताश्व शर्मा व पंजिम की महापौर वैदेही नाईक बतौर अतिथि उपस्थित थीं ।  अध्यक्ष डॉ. सोमनाथ समरपंथ व अन्य द्वारा किए गये दीप प्रज्जवलन के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ ।  एजीआई महासचिव डॉ. शिवशंकर अवस्थी ने संस्था का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया । उद्घाटन भाषण के बाद कई पुस्तकों का लोकार्पण हुआ । एजीआई के उपाध्यक्ष उपेंद्र कुमार के धन्यवाद ज्ञापन के साथ उद्घाटन सत्र संपन्न हुआ । तदुपरांत ‘वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य में पुस्तक संस्कृति’ विषय पर चार सत्रों में प्रपत्र प्रस्तुत किये गये  । पहले सत्र में पद्मश्री डॉ. श्याम सिंह शशि अध्यक्ष व संचालक डॉ. सुरेश डीगरा थे ।  इसमें विभिन्न शहरों से पधारे 10सदस्यों ने अपने प्रपत्र प्रस्तुत किये ।  तीसरे सत्र की अध्यक्षता मद्रास चेप्टर के संयोजक डॉ.बाला सुब्रह्मण्यम ने की तथा मणिकंठन ने संचालन किया । तमिल व अंग्रेजी में 10 प्रपत्र प्रस्तुत किये गये ।
चतुर्थ सत्र में डॉ. हीरालाल बाछोतिया की अध्यक्षता में हैदराबाद चैप्टर की संयोजिका डॉ. अहिल्या मिश्र के संचालन में डॉ. प्रभा मेहता, डॉ. सुषमा सिंह, डॉ. मधु शुक्ला (नागपुर) एवं अन्य पाँच लोगों ने प्रपत्र प्रस्तुत किये । रघुनंदन प्रसाद शर्मा ने सार संक्षेपण किया । सभी के योगदान से सत्र बहुत ही जीवंत रहा  ।  कई नई बातें संचालक ने पुस्तक संस्कृति के संबंध में उठाई । दिविक रमेश की अध्यक्षता में सायं एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया । गोष्ठी में डॉ. मधु धवन (चेन्नई), डॉ. सेतु रामन व संचालिका डॉ. सरोजिनी प्रीतम के साथ हैदराबाद चैप्टर की डॉ. अहिल्या मिश्र, डॉ. सुनीला सूद, ज्योति नारायण, संपत देवी मुरारका, सीता मिश्र एवं नीरज त्रिपाठी, राजेश मुरारका के साथ नागपुर चैप्टर के नरेंद्र परिहार, मधु पाटोदिया, अभिय अधर निडर, डॉ. रेखा कक्कड़, सुषमा सिंह, भोपाल से अनुज सक्सेना, सागर से डॉ. श्याम सिरोडिया, नई दिल्ली से गुमेश गुंजन, श्याम सिंह शशि, हीरालाल बाछोतिया, उपेंद्र कुमार, जय राजजय, रामप्रकाश गुप्ता, सुरेश डीगरा, शिवशंकर अवस्थी,ओम शिव सपना तिवारी, रामन सेतु (केरल) एवं गोवा के कवियों ने हिंदी, कोंकणी, अंग्रेजी, तमिल, तेलुगु आदि भाषाओं में काव्य पाठ किया । समापन सत्र में गोवा विधानसभा के अध्यक्ष राजेन्द्र आरेलकर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे  ।  इस दौरान प्रो. दिलीप दिवाकर (कुलपति, गोवा विश्वविद्यालय), पुंडलिक नायक, डॉ. उपेंद्र कुमार, रामप्रकाश गुप्ता, सुश्री प्रीतम, शिवशंकर अवस्थी, मोहनदास सुलेकर (अध्यक्ष, गोमांतक साहित्य समिति) आदि ने अपने विचार व्यक्त किये
देश के सभी चैप्टरों के लगभग 150 सदस्यों ने इस कन्वेंशन में भाग लिया  । उपेंद्र के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ  ।  एजीआई की केन्द्रीय समिति द्वारा सभी को स्मृति चिह्न व प्रमाण-पत्र देकर सम्मानित किया गया ।  कार्यक्रम की सफलता में विशेष रूप से गोवा चैप्टर के रमेश सुलेकर व ज्योति कुलकर्णी के अलावा मोहन व अन्य सदस्यों का योगदान रहा  ।

 
प्रस्तुति -  डॉ. अहिल्या मिश्र एवं संपत देवी मुरारका, हैदराबाद

Tuesday, April 10, 2012

10 मई, 2012 को पांडिच्चेरी में एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

भारतीय भाषाओं में सामाजिक सद्भावना की अभिव्यक्ति विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी

दि.10 मई, 2012 को हिंदी विभाग, पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय द्वारा भारतीय भाषाओं में सामाजिक सद्भावना की अभिव्यक्ति विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय, पुदुच्चेरी में किया जा रहा है ।

संगोष्ठी में औराद शाहजनी, लातूर जिला, महाराष्ट्र से 25 छात्राएँ और उनके अध्यापकगण भी पधार रहे हैं, जिनसे विचार-विमर्श के लिए एक सत्र रखा गया है, जिसमें महाराष्ट्र में सद्भावना की परंपरा के आकलन का करने का अवसर मिलेगा ।

प्रतिभागी भारतीय भाषा के साहित्य में सामाजिक सद्भावना की अभिव्यक्ति का विवेचना अथवा किसी कालावधि के साहित्य अथवा किसी रचनाकार द्वारा या कृति में सामाजिक सद्भवना की अभिव्यक्ति के संबंध में प्रपत्र प्रस्तुत कर सकते हैं ।
इच्छुक प्रतिभागी professorbabuji@gmail.com पर अपना परिचय एवं प्रपत्र दि.25 अप्रैल, 2012 तक भेज सकते हैं ।

डॉ. नरेन्द्र कोहली का व्यक्तित्व एवं कृतित्व


डॉ. नरेन्द्र कोहली का व्यक्तित्व एवं कृतित्व 

-    एम. शोभा*

मनुष्य जीवन भगवान का एक अपूर्व देन है। जीवन को सही अर्थों में जीना एक बात है और उसकी बराबर बात करते रहना एक अलग बात है।
प्रतिभावान लेखक कोहलीजी के लिए जीवन जीने के कर्म की परिभाषा है, जिजीविषा का पर्याय है। उनका समग्र लेखन उनकी जीवटता को स्पष्ट करता है।
जन्म :
6 जनवरी 1940 ई. को पंजाब के स्यालकोट (यह स्थान अब पाकिस्तान में है) में प्रातः साढ़े नौ बजे अपने दादा के घर पर जन्म लिये हुए इस साहित्यकार को जीवन के संघर्षों ने ही रचना संसार में पधारने की प्रेरणा दी थी।

परिवार:
डॉ. कोहलीजी के दादा हरिकिशन दास कोहलीजी अविभाजित पंजाब के वन विभाग में हेडक्लार्क थे। इनकी दो पत्नियाँ थी। बड़ी पत्नी भाइयाँ देवी और दूसरी पत्नी दुर्गादेवी थी। डॉ. कोहली दुर्गादेवी के पौत्र थे। डॉ. कोहली के पिता श्री परमानन्द कोहली थे। इनका जन्म भी स्यालकोट में हुआ था। इनकी आँखों में बचपन से कुकरे थे। इसलिए सातवीं आठवीं से आगे नहीं पढ़ सके थे। हरिकिशन दास ने अपने अंग्रेज अधिकारी से कहकर इन्हें अपने ही विभाग में अस्थायी क्लर्क की नौकरी दिलवा दी। इनको लिखने का शौक था। इनकी एकाध रचना छपी भी थी। बयासी वर्ष की अवस्था में आप स्वर्ग सिधारे। डॉ. कोहली जी की माता विद्यावती थी। उनका जन्म पंजाब के स्यालकोट जिले के एक छोटा व पिछड़ा गाँव कौलोकी में हुआ था। इस गाँव में कोई स्कूल नहीं था। इस कारण वे नहीं पढ़ पाई थी। इनका देहान्त 1992 में दिल्ली में हुआ।
शिक्षा:
कोहलीजी की शिक्षा लाहौर में देव समाज हाई स्कूल में छह वर्ष की अवस्था में आरम्भ हुई। सन् 1947 में देश विभाजन के बाद जब परिवार जमशेदपुर आ गये तो वहाँ धतकिडीड लोअर प्राइमरी स्कू में तीसरी कक्षा की पढ़ाई की। चौथी से सातवी तक की पढाई न्यू मिडिल इंग्लिश स्कूल में हुई। आठवीं से ग्यारहवीं तक की पढाई मिसेज़ के एम.पी.एम. हाई स्कूल में हुई। 1965 ई. में रामजस कॉलेज दिल्ली से एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा दिल्ली विश्वविद्यालय से 1970 ई. में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की।
आजीविका:
डॉ. कोहली अब स्वतन्त्र लेखन कर रहे हैं । पूर्व में दिल्ली के पी.जी.डी.ए.वी. (सांध्य) कॉलेज में असिस्टेंट लेक्चरर के रूप में काम करने के बाद 1965 में गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज में प्राध्यापक बने। और आगे यही कॉलेज मोतीलाल नेहरु कॉलेज बना अपनी 55 वर्ष की उम्र में स्वैच्छिक अवकाश ग्रहण करने तक इसी कॉलेज में कार्यरत रहे।
विवाह:
कोहलीजी का विवाह सन् 1965 में डॉ. मधुरिमा जी से हुआ। मधुरिमाजी दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएच.डी. ली और कमला नेहरु कॉलेज में प्राध्यापिका भी बनी। 1967 में मधुरिमा जी ने दो जुड़वाँ बच्चों को जन्म दिया। एक लड़का और एक लड़की। लड़की सिर्फ़ चौबीस दिन जीवित रह सकी।
लड़का कार्तिकेय अब रामलाल आनन्द कॉलेज दिल्ली में अर्थशास्त्र का अध्यापन कर रहे हैं । छोटे पुत्र अगस्त्य का जन्म 1975 में हुआ था, वे अब अमेरिका में कार्यरत हैं

हिन्दी साहित्य को कोहली जी का योगदान

हिन्दी साहित्य को बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. कोहली का योगदान उल्लेखनीय है। मूलतः व्यंग्यकार होते हुए भी इन्होंने कई विधाओं में अपनी लेखनी चलाई हैं । वे व्यंग्यकार, कथाकार, निबन्धकार आलोचक, समीक्षक, नाटककार और उपन्यासकर हैं। इनकी पहली रचना फ़रवरी 1960 में दो हाथ नामक इनकी कहानी प्रकाशित हुई। अब डॉ. कोहलीजी क श्रेष्ट पौराणिक उपन्यासकार के रूप में स्थापित हो चुके हैं इनके कृतित्व को साहित्यिक विधाओं के अनुसार ही वर्गीकृत किया जाना उचित है।
उपन्यास:
आतंक”, “अभिज्ञान”, “साथ सहा गया दुख”, “पुनरारम्भ”, “मेरा अपना संसार”, “जंगल की कहानियाँ”, “अभ्युदय – दो खण्ड(राम कथा), महासमर (महाभारत की कथा) आठ खण्ड”, “तोड़ो कारा तोड़ोवसुदेव।
कहानियाँ:
परिणति”, “कहानी का अभाव”, “दृष्टि में एकाएक”, “शटल”, “नमक का कैदी”, “संचित भूख”, नरेन्द्र कोहली की कहानियाँ समग्र कहानियाँ।
नाटक:
.(1) राम्बू की हत्या, (2) निर्णय रुका हुआ, (3) हत्यारे, (4) समग्र नाटक।
व्यंग्य:
.(1) एक और लाल तिकोन, (2) पाँच एब्सर्ड उपन्यास, (3) जगाने का अपराध, (4) त्रासदियाँ, (5) परेशानियाँ, (6) समग्र व्यंग्य, (7) मेरी इक्यावन व्यंग्य रचनायें।
निबन्ध:
.(1) नेपथ्य, (2) माजरा क्या है, (3) जहाँ है धर्म वही है जय, (4) किसे जगाऊँ।
बालसाहित्य:
.(1) गणित का पूजन, (2) आसान रास्ता, (3) एक दिन मथुरा में, (4) हम सबका घर।
संस्मरण पत्र:
.(1) बाबानागार्जुन, (2) प्रतिवाद
अन्य:
.(1) नरेन्द्र कोहली की चुनी हुई रचनायें
इस प्रकार कोहली जी एक लेखक के रूप में बहुमुखी प्रतिभा, व्यक्तित्व के धनी हैं
(*करपगम विश्वविद्यालय, कोयम्बत्तूर में डॉ. पद्मावति अम्माल के निर्देशन में शोधरत हैं ।)

Monday, April 9, 2012

कविता - अतृप्त कामनाएँ

अतृप्त कामनाएँ







- एस. निर्मला, विशाखपट्टणम


हर बार टूट कर जुड़ती हूँ

बार-बार बिखर संवरती हूँ

किंतु छूट जाते हैं कुछ

नहीं समेट पाती सब कुछ

अतृप्त कामनाओं के टुकड़े

पड़े रहते हैं चारों ओर

मुझे देखते और चिढ़ाते, कहते

देख हमें और सोच फिर

क्या खोया क्या पाया तूने

किस बात पर इतराती हो

आएगा इक दिन वह भी

हम-सी बिखरी मिलोगी कहीं !

Wednesday, April 4, 2012

मीडिया विमर्श का अगला अंक ‘जनांदोलन और मीडिया’


देश की चर्चित मीडिया पत्रिका ‘मीडिया विमर्श’ का अगला अंक ‘जनांदोलन और मीडिया’ विषय पर केंद्रित होगा। देश में चल रहे तमाम जनांदोलनों की तरफ देखने की मीडिया की दृष्टि क्या है ? क्या मीडिया इन आंदोलनों के प्रति अपने संतुलित दृष्टिकोण का निर्वहन कर रहा है ? क्या कभी वो किसी आंदोलन को बहुत सिर माथे चढ़ाता है ( अन्ना आंदोलन) या कभी किसी आंदोलन को नजरंदाज कर देता है? ऐसे तमाम सवाल मीडिया के सामने हैं। इससे मीडिया की प्रामणिकता, विश्वसनीयता के सवाल भी जुड़े हैं। किसी आंदोलन को कवर करने, न करने, अतिरिक्त महत्व देने, अंडर प्ले करने के पीछे क्या राजनीति छिपी हो सकती है? इसमें शासन, सत्ता, प्रशासन, राजनीति और खुद मीडिया की वैचारिक या विचारधारात्मक लाइन कितनी बड़ी भूमिका अदा करती है। सत्ता और उसके उपादान क्यों आंदोलनों की आवाज को अनसुना करना चाहते हैं ? कुछ आंदोलनों और उसके पीछे छिपे अदृश्य हाथ जैसे तमाम सवाल हैं, जिनके उत्तर तलाशने जरूरी हैं। ‘मीडिया विमर्श’ का यह अंक इन्हीं सवालों के इर्द-गिर्द बातचीत करना चाहता है,ताकि जनांदोलनों की तरफ देखने की मीडिया की दृष्टि और मीडिया को जनांदोलन किस तरह से लेते हैं-इसे समझना संभव हो सके। इन मुद्दों के इर्द-गिर्द या इससे मिलते-जुलते सवालों पर आप सोचें और हमारा साथ दें। इस अंक के लिए आपकी टिप्पणी हमें 25 अप्रैल, 2012 तक मिल जाए तो हमें सुविधा होगी। मुझे उम्मीद है आपके लेख, विश्लेषण या टिप्पणी से यह अंक ज्यादा समृद्ध और प्रामाणिक बनेगा। आपकी सामग्री की प्रतीक्षा में
सादर
आपका
संजय द्विवेदी
( कार्यकारी संपादकः मीडिया विमर्श)