Saturday, November 29, 2008

Live Commentary in Hindi in S.V. Bhakthi Channel by Dr. C. Jaya Sankar Babu


तिरुपति श्रीवेंकटेश्वर भक्ति (टी.वी.) चैनल में डॉ. सी. जय शंकर बाबु का हिंदी में व्याख्यान



तिरुमला-तिरुपति श्री वेंकटेश्वर स्वामी (श्री बालाजी) की सहधर्मिनी श्री पद्मावती देवी का तिरुचानूर (तिरुपति से 5 कि.मी. दूर स्थित) स्थित मंदिर में कार्तीक ब्रह्मोत्सव धूम-धाम से सुसंपन्न हो रहे हैं । देवी पद्मावती मंदिर में संपन्न होने वाले वार्षिक उत्सवों में अत्यंत महत्वपूर्ण उत्सव है, कार्तीक ब्रह्मोत्सव । शास्त्रों के उल्लेख के अनुसार भगवान श्री महाविष्णु की हृदयेश्वरी महालक्ष्मी कवियुग में देवी पद्मावती के रूप में कार्तीक पंचमी, शुक्रवार उत्तराषाड नक्षत्र की शुभवेला तिरुचार स्थित पद्म सरोवर में स्वर्ण कमल से आविर्भूत हुई थी । इसलिए इस क्षेत्र में कार्तीक ब्रह्मोत्सव अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है । नौ दिन के इस उत्सव में लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं । इस वर्ष 24 नवंबर, 2008 से 2 दिसंबर, 2008 तक संपन्न होनेवाले श्री पद्मावती देवी कार्तीक ब्रह्मोत्सव का सीधा प्रसारण श्री वेंकटेश्वर भक्ति चैनल (तिरुमला तरुपति देवस्थानम का अधिकारिक टी.वी. चैनल) में किया जा रहा है । इसमें दक्षिण की भाषाओं के अलावा हिंदी में भी व्याख्यान की व्यवस्था की गई है ।



आज दि.30 नवंबर, 2008 रविवार को सुबह सूर्य वाहन और शाम 8 बजे से चंद्रप्रभा वाहन में श्री पद्मावती देवी की परिक्रमा होगी । कल (1 दिसंबर, 2008 सोमवार) सबसे महत्वपूर्ण उत्सव - रथोत्सव होगा । इन दोनों अवसरों पर श्री वेंकटेश्वर भक्ति चैनल के सीधे प्रसारणों में हिंदी में व्याख्यान देंगे युग मानस के संपादक डॉ. सी. जय शंकर बाबु । इनके साथ सह व्याख्यानदाताओं के रूप में डॉ. पुट्टपर्ति नागपद्मिनी और डॉ. वाई.वी.एन. राव भी शामिल होंगे ।

Friday, November 21, 2008

जीव-हत्या JEEV HATYA

Cattle restrained for stunning just prior to slaughter. Dr Temple Grandin को धन्यवाद सहित ।



जीव-हत्या

- लक्ष्मी ढौंडियाल, नई दिल्ली

बरसों से अरमां सजाए
हाथों में मेहँदी लग जाए
खुश थी कितनी मुद्दत बाद
मिलने वाली थी मन मुराद
आने वाली थी बारात
बस चंद रोज ही शेष बचे थे
मदमस्त गाँव गलियारे जाती
झूम झूम जंगल में गाती
अकस्मात् एक दिन जंगल में
शेर खड़ा था उसके पास
उसने कहा मुझे छोड़ दो
मेरे सभी अरमां हैं बाकि
मुझे मेहँदी लगवानी है
दुल्हन बन पी घर जाना है
शेर में जज्बात कहाँ
दिया झपट्टा मार गिराया
पल में प्राण पखेरू उड़ गए
रह गए सभी अरमां अधूरे
वो तो पशु था
दिल भी पशुवत
हम मनुष्य हैं फिर भी पग पग
पशुता ही दिखलाते हैं
बकरी को चारा दिया
हिष्ट पुष्ट तंदुरुस्त बन जाए
मुर्गी को दाना दिया
अंग अंग कोमल हो जाए
मछली को भोजन दिया
निगलें तो कांटा न आए
सब जीवों को हमने पाला
स्वाद स्वाद में वध कर डाला
बरछी भाला चाकू छुरी से
कितने जीव कर दिए हलाल
तब तो तनिक भी रूह न कांपी
अपने पाँव में शूल चुभे तो
कैसी चीखें चिल्लाते हो
मूक निरीह कमजोर जीव का
मांस चाव से खाते हो
धर्म कर्म उपदेश की बातें
मानव क्यूँ दोहराते हो
सोचो गर तुम्हें कोई मारे
अंग अंग छिन्न भिन्न कर डाले
भुने आग में
तले तेल में
हल्दी मिर्च का लेप लगाए
शरीर तुम्हारा मृतप्राय पर
आत्मा रह रह चिल्लाए
एक माँ की ममता हो तुम
एक पिता का गहन दुलार
पत्नी के माथे की बिंदी
बहन की राखी से बंधा प्यार
भूखे बच्चों की रोटी हो
सबकी आँखों का मोती हो
तुम्हे कोई स्वाद की चाह में मारे
सोचने से भी घबराते हो
वो जीव भी माता पिता हैं
वो भी किसी की आँख के तारे
तो फिर क्यूँ तुम मनुष्य होकर
अधम पशु बन जाते हो
स्वाद स्वाद में
हत्या दर हत्या
कितने पाप कमाते हो ।

***
JEEV HATYA - A POEM IN HINDI BY LAKSHMI DHAUNDIYAL, NEW DELHI
***

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Tuesday, November 18, 2008

तेलुगु भाषा एवं साहित्य

तेलुगु भाषा एवं साहित्य


अंतरजाल पर तेलुगु भाषा एवं साहित्य पर हिंदी में अपेक्षित मात्रा में सामग्री उपलब्ध न होने के कारण अपने पाठकों के लिए युग मानस की ओर से तेलुगु भाषा एवं साहित्य पर धारावाहिक लेखमाला का प्रकाशन आरंभ किया गया है । तेलुगु के युवा कवि उप्पलधडियम वेंकटेश्वरा अपने लेखों के माध्यम से तेलुगु भाषा एवं साहित्य के विविध आयामों पर प्रकाश डालते हुए धारावाहिक लिख रहे हैं । इस क्रम में 1, 2, 3 के बाद अब चौथा किस्त यहाँ प्रस्तुत है । - सं.

तेलुगु भाषा की प्राचीनता
(गतांक से जारी)

- उप्पलधडियम वेंकटेश्वरा, चेन्नै ।



संस्कृत साहित्य में अनेक ग्रंथों में तेलुगु-प्रजाति और तेलुगु भाषा का उल्लेख मिलता है ।

(i) प्राचीन संस्कृत साहित्य में, दक्षिण भारत की प्रजातियों में से आंध्र-प्रजाति का उल्लेख ही प्राचीनतम है ।


(ii) संस्कृत साहित्य में तेलुगु प्रजाति का सर्वप्रथम उल्लेख ऐतरेय ब्राह्मण (ई.पू.छठी शताब्दी) में मिलता है । महर्षि विश्वामित्र के पुत्र, शुनश्शेप को अपने बड़ा भाई मानने से इनकार कर देते हैं तो कुपित होकर विश्वामित्र उन्हें आंध्र, पुंड्र, शबर इत्यादि दस्युओं में शामिल हो जाने का शाप देते हैं ।

तस्यह विश्वामित्र स्यैकशतम् पुत्रा आसु:
पंचाशत् एक ज्यायांसो मधुच्चंदस:
पंचाशत् कनीयांस: तद्वैज्यायांसो नते कुलम् मेतिरे
तान् अनुयाजहारन् तान् व: प्रजाभिक्षिस्तेति त
एतेन्ध्रा: पुंड्रा शबरा: पुलिंदा मूतिबा इत्युदंत्या

बहवो भवंति वैश्वामित्रा दस्यूनाम् भूयिष्ठा :

(ऐतरेय ब्राह्मण, तृतीय अध्याय, पांचवा खंड)

(iii) वाल्मीकि रामायण में किष्किंधाकांड में आंध्र-प्रांत का उल्लेख है । सुग्रीव सीताजी की खोज में अपनी वानर-सेना को दक्षिण की ओर भेजते हुए उसको निर्देश देते हैं कि आंध्र, पुंड्र इत्यादि प्रांतों में जाकर खोजें ।


. . . .अन्वीक्ष्य दण्डाकारण्यम् सपर्वत नदी गुहम्
नदीम् गोदावरीम् चैव सर्वमेवानु पश्वत
तथैव आंध्रांश्च . . . .


iv) महाभारते के 'आदि पर्व' में बताया गया कि द्रौपदी के स्वयंवर में अंधक भी शामिल हुए ।


हलायुध स्तत्र जनार्दनश्च
वृष्ण्यंधका श्चैव यथा प्रधानम्
प्रेक्षाम् स्मचक्रुर्यदुपुंगवास्ते
स्थिताश्च कृष्णस्य मते महांत:


v) महाभारत के सभापर्व में बताया गया कि युधिष्ठिर की मयसभा में अन्य
राजाओं के साथ आंध्र-नरेश भी शामिल थे ।


तथांग वंगौ सह पुंड्रकेण
पांडयोढ्र राजौच सह आंध्रकेण

(सभापर्व, चतुर्थ अध्याय, श्लोक सं.24)

vi) महाभारत में यह भी बताया गया कि दक्षिण की विजय-यात्रा के दौरान सहदेव ने आंध्र के राजा को पराजित किया ।


. . . . आंध्रांम् स्तालवनांश्चैव कलिंगा नुष्ट्र कर्णिकान्


vii) शांति पर्व में युधिष्ठिर को विभिन्न जातियों का बोध करते हुए भीष्म पितामह कहते हैं कि दक्षिण की प्रजातियों में आंध्रक-प्रजाति भी एक हैं ।

दक्षिणापथ जन्मान: सर्वे नरवरांध्रक :
गुहा: पुलिंदा: शबरश्चुचुका मद्रकैस्सह

viii) भागवत पुराण में इस बात का उल्लेख है कि किरात, हूण, आंध्र, पुलिंद इत्यादि प्रजातियों की जनता ने अपने-अपने पापों से मुक्त होने के लिए भगवान विष्णु की प्रार्थना की ।

किरात हूणांध्र पुलिंद पुल्कसा . . . .
तस्मै प्रभविष्णवे नम :

(श्रीमत् भागवत्, द्वितीय स्कंध, 14 वां अध्याय, श्लोक सं.18)

ix) भागवत पुराण में यह भी बताया गया कि राजा बलि के छ: पुत्रों ने अपने-अपने नाम से साम्रज्य की स्थापना की, जिनमें से 'आंध्र' नामक पुत्र द्वारा आंध्र-साम्राज्य की स्थापना की गई ।

अंग वंग कलिंगांध्र सिंह पुंड्रांध्र संक्षिका:
जिज्ञिरे दीर्घ तपसो बले: क्षेत्रे महीक्षित:
चकु स्स्वनान्नू विषयान् षडिमान् प्राच्चयगांश्चते

(भागवत पुराण, नवम स्कंध, 23 वां अध्याय, श्लोक सं.6)

x) मनुस्मृति में बताया गया कि आंध्र की जनता कारवार स्त्री और वैदेह की संतान है ।

कारावरो निषादात्तु चर्मकार: प्रसूयते
वैदेहिका दंध्र मेदौ बहिर्गामृ प्रतिश्चयौ

(मनुस्मृति, 10 वां अध्याय, श्लोक सं. 30)

xi) सम्राट अशोक के शिलालेखों में आंध्र-जनता की प्रशंसा मिलती है ।

एवमेव इहराज विषयेषु यवन कंभोजेषु
नाभके नाभ पंक्तिषु, भोजपति निवयेषु
अंध्र पुलिन्देषु सर्वत्र देवानां प्रियस्य
धर्मानुशिष्ठि मनुवर्तने ।

xii) इसके अलावा मत्स्य पुराण, वायु पुराण, ब्रहम् पुराण आदि ग्रंथों में जाति वाचक संज्ञा के रूप में अंध्र, आंध्र, अंधक और आंध्रक शब्दों का प्रयोग मिलता है । ये शब्द एक ही प्रजाति को सूचित करते हैं ।

xiii) प्राचीन द्रविड़ भाषाओं में से तेलुगु भाषा ही संस्कृत के साथ अधिक निकटता रखती है । भाषाविद डॉ. जी.वी. पूर्णचंद मानते हैं कि तेलुगु और संस्कृत भाषाओं के बीच के गहरे संबंध हज़ारों वर्ष पूर्व स्थापित हुए थे, जो तेलुगु भाषा की प्राचीनता का प्रमाण है । संस्कृत और तेलुगु भाषाओं की आपसी घनिष्ठता और सादृश्य को डॉ. भोलानाथ तिवारी के इन शब्दों के आलोक में परखना उपयुक्त होगा कि जिस समय संस्कृत का व्यापक प्रयोग हो रहा था, मध्य प्रदेश की संस्कृत की मानक और अनुकरणीय मानी जाती थी (राजभाषा हिंदी , पृ.66), क्योंकि आंध्र-भूमि मध्य प्रदेश के निकट स्थित है ।

इन तमाम आधारों से तेलुगु भाषा की प्राचीनता प्रमाणित है ।

तेलुगु के कई महत्वपूर्ण आयामों में इसी स्तंभ के अंतर्गत प्रकाशित होनेवाले धारावाहित लेखों के माध्यम से आप नियमित रूप से पढ़ सकते हैं ।

राजभाषा कर्मियों को

छठे वेतन आयोग की

सिफारिशों का लाभ... यहाँ पढ़ें

తెలుగు భాష మరియు సాహిత్యము

TELUGU LANGUAGE AND LITERATURE

Monday, November 17, 2008

राजभाषा कर्मियों को छठे वेतन आयोग की सिफारिशों का लाभ...

राजभाषा कर्मियों को छठे वेतन आयोग की सिफारिशों का लाभ...


इसी शीर्षक से युग मानस में की गई प्रविष्टियों पर कई पाठकों की दूरभाष पर प्रतिक्रियाएँ मिली हैं । कुछ खबरें ऐसी भी मिली हैं कि यहाँ प्रकाशित जानकारी एवं व्यय विभाग के आदेश के आधार पर प्रयास करने के पर भी कई जगह उचित कार्रवाई न करके इस संबंध में अलग से व्यय विभाग की ओर से ज्ञापन की माँग कर रहे हैं । यह हिंदी संवर्ग के प्रति उपेक्षा की पराकाष्ठा है । खैर, जब व्यय विभाग ने स्पष्ट कर ही दिया है, माँग करने पर आगे जाकर एक् सार्वजनिक स्पष्टीकरण भी जारी कर सकता है । इस संबंध में हिंदी संवर्ग के प्रति जारी उपेक्षा को समाप्त करने के लिए व्यय विभाग को चाहिए कि वह वेतन आयोग की साइट पर ही स्पष्टीकरण प्रकाशित कर दे ।

Tuesday, November 11, 2008

राजभाषा कर्मियों को छठे वेतन आयोग की सिफारिशों का लाभ

सूचना अधिकार अधिनियम के सही प्रयोग ने किया राजभाषा कर्मियों का उद्धार

राजभाषा कर्मियों को छठे वेतन आयोग की सिफारिशों का लाभ...

- डॉ. सी. जय शंकर बाबु

छठे वेतन आयोग आयोग ने सचिवालयों तथा अधीनस्थ कार्यालयों के हिंदी कर्मियों को समान वेतना की सिफारिश की थी । इसकी जानकारी देते हुए राजभाषा कर्मियों की समग्र स्थिति के संबंध विस्तृत जानकारी युग मानस ने यहाँ दी थी । इसके बाद जब वेतनमान लागू हो ही गए, अधिकांश कार्यालयों में राजभाषा हिंदी कर्मी इससे वंचित रह गए थे । इस पर भी युग मानस ने यहाँ जिक्र किया था ।

आखिर अब राजभाषा कर्मियों की आशा पूरी होने वाली है । अब उन्हें न्यायोचित वेतन देने का मार्ग खुल गया सूचना अधिकार अधिनियम, 2005 के सही प्रयोग से ।
भारत सरकार, वित्त मंत्रालय, व्यय विभाग के संयुक्त सचिव (कार्मिक) एवं अपील अधिकारी (सूचना अधिकार अधिनियम) मधुलिका पी. सुकुल द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण के अनुसार – “सरकार ने व्यय विभाग संकल्प क्रमांक.1/1/2008-आईसी, दि.29.8.2008 में दिए गए आशोधन के अधीन छठे वेतन आयोग की रिपोर्ट को एक पैकेज के रूप में स्वीकृति दी है । तदनुसार, केंद्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा संवर्ग के बाहर विभिन्न अधीनस्थ कार्यालयों में वर्तमान सदृश पदनाम वाले पदों के लिए भी केंद्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा संवर्ग के अनुरूप वेतनमान की स्वीकृति दी गई है ।” श्री रवि अग्रवाल बनाम केंद्रीय जन सूचना अधिकारी, व्यय विभाग, वित्त मंत्रालय के मामले (मामला सं.एए/65/2008) में अपील अधिकारी की हैसियत से उन्होंने उक्त सूचना दी है ।

सूचना की छायाप्रति युग मानस के पाठकों की सूचना हेतु यहाँ प्रस्तुत है ।






प्रत्येक लोक प्राधिकारी के कार्यकरण में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व के संवर्धन के लिए लोक प्राधिकारियों के नियंत्रणाधीन सूचना तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिए नागरिकों के सूचना के अधिकार की व्यावहारिक शासन पद्धति स्थापित करने के लिए भारत सरकार द्वारा अधिनियमित सूचना अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत श्री रवि अग्रवाल ने उक्त सूचना प्राप्त की है । युग मानस की तरफ से उन्हें बधाई । लोकतंत्रात्मक गणराज्य भारत में शिक्षित बुद्धिजीवी वर्ग को सरकार द्वारा दिए गए अधिकारों का बेहिचक प्रयोग करना चाहिए । उन्हें स्वयं सचेत रहते हुए निरक्षरों को भी सरकारी अधिनियमों, नियमों की जानकारी देते रहें ताकि सबको न्याय का फल सुलभ हो सके । सूचना अधिकार अधिनियम, 2005 के संबंध में अधिक जानकारी आप यहाँ से हासिल कर सकते हैं ।

New Pay Scales to Official Language Staff

Thanks to RTI...

Official Language Staff shall now enjoy the scales as recommended by the Sixth Central Pay Commission… thanks to the awareness and right use of the Right to Information Act, 2005.


For further details just click
here.

Sunday, November 9, 2008

कविता



दोस्ती का तराना


- सुश्री डी. अर्चना, चेन्नै ।

दोस्त, दोस्ती, दोस्ताना
गले मिलाकर, खुले दिल से
बुलंदी आवाज़ में गाए
ख़ुशियों का नया तराना
भूल जाएं ग़म पुराना
याद आए सरगम का
नया तराना
मिल के गाएं
साज सिंगार का फ़साना
सबको याद आए जीवन का नया अफ़साना
बीत गया जो कल पुराना
पल पल याद आए
ख़ुशियों का सज़ाना
रहे या न रहे ये ठिकाना
बस चंद अल्फ़ाज का
रहे ज़माना ।
सदियों तक याद रहे यार ये याराना
दिलों में जमा रहे अनमोल ख़जाना
अय! यार यारी ये याराना
बन गया ज़िंदादिली का घराना
कभी अलबिदा हो...दूर वादियों में...
ग़मों से कभी न घबराना
काटों से बेफ़िजूल न आंसू बहाना
अगर ज़रूरत हो तो, हमें भी याद करना
मन के आँगन में खुशी के फूल खिलाना
दिल के द्वारा दीवाली के दीप जलाना
अंधेरों को चीरकर रोशनी फैलाना
वीरानों को दूर कर
सरगम के गीत सजाना
बहे जीवन-मरण के बीच एक मधुर झरना
सभी को इन्सानियत का मूल्‍य बताना
समर्पण व एकता की अर्चना करना
भावात्मक एकता को जगाना
सदा तुम देश प्रेमी बनकर
देश के विकास में हाथ बढ़ाना ।

हम किसी से कम नहीं कहकर
ज़माने को दिखाना
पूरे विश्‍व में भारत का नाम उजा़गर करना
हम रहें या न रहें देश आबाद रखना
अय दोस्त !
ये दोस्ती को यादगार बनाना
दुवा है कि ख़ुदा हमेशा सलामत रखे ।

Tuesday, November 4, 2008

बाल मानस



विजेता


- सादिक, चेन्नै


पप्पा‍ कहते हैं कि -
जो मेहनतकश
समय का पाबंद
अपने कर्तव्य के प्रति सचेत
दैनिक व्यवहार में शालीन
कार्य के प्रति समर्पित
पढ़ाई व खेल-कूद में ‍अव्वल रहेगा
वही इस दुनिया में
‘विजेता’ कहलाएगा

Monday, November 3, 2008

कविता

मैं हिंदी हूँ

- रमेश प्रभु, कोच्चिन ।


मैं हूँ हिंदी
सबकी प्यारी हिंदी
मैं सिर्फ एक भाषा नहीं हूँ
जन– जन की धड़कन हूँ
वीरों की वाणी हूँ
रण भूमि में अमर गीत हूँ
शत्रु की नींद को उड़ाती हूँ ।

मैं हूँ हिंदी
सबकी प्यारी हिंदी
देखो मैं सिर्फ़ एक भाषा नहीं
मेरा नाम केवल हिंदी ही नहीं
मैं इस देश की बिंदी भी हूँ
माँ भारती के ललाट का सिंदूर हूँ ।

मैं हूँ हिंदी
सबकी प्यारी हिंदी
चाहे बोलो हिंदी या बिंदी
बूंद बूंद से बनता है सागर
लेकिन दिल दिल से बनती भाषा
मैं भारत की आत्मा हूँ,
मुझे जन–जन के मन में बसाओ
सबके मन में प्रेरणा जगाओ
प्यार की बोली हूँ मैं
मुझे पहचानो और मानो
मैं तेरी इज्जत हूँ,
इस देश का गौरव हूँ ।

मैं हूँ हिंदी
सबकी प्यारी हिंदी
हे राष्ट्र के सपूत
मुझे राष्ट्रभाषा या राजभाषा के रूप में
भले ही न पहचानो, मगर
दिल की भाषा ज़रूर बनाओ
बनाए रखो मुझे राष्ट्र के ईमान के रूप में
न ताक पे रखो देश के सम्मान को ।

मैं सिर्फ़ नलंदा में ही नहीं
ओक्सफोर्ड तक पहुँच चुकी हूँ
मैं विश्व भाषा बनकर इठलाती नहीं
मैं हूँ हिंदी
सबकी प्यारी हिंदी ।

कविता


हाइकू


- डॉ. एस. बशीर, चेन्नै ।

सब लहरें
समाहित सागर
दिल है वही

झंडे को देख
पक्षी ने मुस्‍कुराया
मैं स्‍वतंत्र हूं।

जलता सूर्य
मुस्‍कुराता बादल
इंद्र धनुष।

भरा तलाब
खिला मधु कमल
भवरों की झुंड।

लघु दीपक
कोसों उजा़ला फैला
मार्ग दर्शाता

काटों के साथ
फूलों का मुस्‍कुराना
जीवन रीत।

किसे सुनाऊं
गमे-दिले-दास्‍तान
सब बहरे।

सफलता ही
आदमी के जीने का
प्रेरणा श्रोत।

झूठी बस्‍ती में
सत्‍य हरिश्‍चन्‍द्र का
जीवन मृत्‍यु ।

कविता



तब घर सोना था अब सूना है


- शर्फराज़ नवाज़, चेन्नै



हमारा घर बड़ा प्‍यारा था
जहां रिश्ते - नाते, प्यार - यार की
लहरों की महक
परिंदों की चहक
दीपों की चमक
साज़ - सिंगार की झलक रंग रंगों की ललक से
सारा आलाम सुशोभित था
सब कुछ था लेकिन आज
मां न होने के कारण
दहकता है...