हाइकू
-        डॉ. एस. बशीर, चेन्नै ।
सब लहरें
समाहित सागर
दिल है वही
झंडे को देख           
पक्षी ने मुस्कुराया       
मैं स्वतंत्र हूं।           
जलता सूर्य     
मुस्कुराता बादल    
इंद्र धनुष।
भरा तलाब         
खिला मधु कमल    
भवरों की झुंड।    
लघु दीपक
कोसों उजा़ला फैला
मार्ग दर्शाता
काटों के साथ
फूलों का मुस्कुराना
जीवन रीत।
किसे सुनाऊं        
गमे-दिले-दास्तान   
सब बहरे।         
सफलता ही          
आदमी के जीने का   
प्रेरणा श्रोत।         
झूठी बस्ती में
सत्य हरिश्चन्द्र का
जीवन मृत्यु ।
 
 

 
1 comment:
झंडे को देख
पक्षी ने मुस्कुराया
मैं स्वतंत्र हूं।
-बहुत सुंदर हाइकू!
-सुधीर सक्सेना 'सुधि',जयपुर
e-mail: sudhir.sudhi8@gmail.com
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