Thursday, August 26, 2010

मिट्टी के बर्तन - डॉ. एस. बशीर की सोलह मिनी कविताएँ

मिट्टी के बर्तन

यदि आपका,
हर काम होना है आसान।
तो बेच डालो अपना ईमान,
दिया करो कुछ न कुछ ईनाम।
नहीं तो कम से कम दो, एक मुस्कान (1)
***
यारी फूल है, फिज़ा में खुशबू बिखेरता।
चमन के लिए,
चराग मयस्सर है।
जीवन के लिए,
अंधेरे को चीर रोशनी को लाता,
हवा-सी थोड़ी भी, भूल हो तो।
फूल मुरझाता, चराग बुझ जाता। (2)

***
जो जिंदगी से,
करते है जितना प्या़र। उससे भी ज्यादा,
मौत से करते हैं इनकार। जिंदगी तो रहम खाती,
लेकिन मौत बेरहम हो जाती। (3)
***
अगर गुस्से को, न करें रिफ्यूज
दिमागी बल्ब हो जायेगा फ़्यूज।
वक्त का करें हमेशा यूज,
रिश्तों का न करें मिस्यूज (4)

***
इस दुनिया में,
सभी के दोस्त हैं आंसू। सिर्फ ग़म में ही नहीं,
खुशी में भी साथ देते।
हमेशा दवा और दुआ बनकर,
काम आते, जीने की प्रेरणा देते। (5)
***
सूखे पत्ते,
बहार के राज़ !
बुजर्ग ........
जिंदगी के साज़ हैं । (6)
***
मेरी दुआ है तुझी से
अय! खुदा..... ! दुश्मदनों से बचा सदा,
तारीफ करने वाले दोस्तों से कर जुदा।
मतलब के लिए जो हो जाते हैं फिदा,
कभी मंजूर न हो उनकी अदा । (7)
***
बादलों की तरह, फूलों पर ही नहीं
काटों पर भी बरसों, सदा प्यास से तरसों।
प्यार बरसाना, दिलवालों का खेल है
यही जीवन का मेल है, मंजिल की रेल है। (8)
***
‘तम’ में ही
सितारें नज़र आते, ‘गम’ में ही रिश्तें काम आते।
आते जाते ये सिल‍-सिले,
जीवन का मिसाल बताते। (9)
***
सोना सब के लिए
बराबर...... लेकिन
सपनों के है रंग हजार। (10)
***
किसी की आंसुओं पर
तरस न खाना,
क्यों कि .......... मगरमच्छ भी,
बहाया करते........ (11)
***
‘हार’ को
‘जीत’ में बदलना ही,
जिंदगी का मकसद ।
कायर को शायर बनाना ही,
महफिल की कसरत । (12)
***
सागर व शायरी
जिनकी नहीं कोई गहराई।
जितना डूबोगे,
उतना पाओगे।
क्योंकि..............
किनारे वालों को,
इसका अंदाज नहीं होता। (13)
***

यदि इस दुनिया में कांटे न होते तो,
फूलों की हिफाज़त कौन करता ?
आंसू न होते तो,
मुस्कान की चाहत कौन करता ?
मौत न होती तो,
कौन पहचानता कुदुरत ?
यदि तुम न होती तो, मैं जी सकता ? (14)
***
मुहब्बत एक
सागर! जिसकी कोई गहराई नहीं ।
जिंदगी एक
जहर!
जिसकी कोई
रिहाई नहीं । (15)
***
जीवन पलते हैं,
सिगरेट जलते हैं,
रिश्ते बदलते हैं,
हम हाथ मलते हैं,
कोसों दूर चलते हैं,
आखि‍र........ राख में बदलते हैं,
पानी में मिलते हैं। (16)

Monday, August 23, 2010

कविता - मेरा सफ़र


मेरा सफ़र

- डॉ. एस. बशीर, उप प्रबंधक, राजभाषा, एच.पी.सी.एल, चेन्नै

सदियों से सफ़र मेरा जारी है
कोई हमसफ़र मिले या न मिले
मेरा सफ़र तो चलता ही रहेगा
सूर्योदय से सूर्यास्त तक
दिन से रात तक, सुबह से शाम तक
इस पार से, उस पार तक
पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण तक
कई सदियों से सफ़र मेरा जारी है
अंधेरों में, उजालों में
विभीषिकाओं में, संघर्षों में
फूल व कांटों में, आँसूं व मुस्कान में
मकसद का ये मशाल जलता ही रहेगा
अंधेरों को चीर, मंजिल की ओर बढ़ता ही रहेगा
जीवन नदी बन
कल-कल नाद करता चलता हूं
पल पल नये रंग में बदलता हूं
मौसम व माहौल से नहीं घबराता
जैसे वक्त है उस रूप में बदलता हूं
कर्त्तव्य को निभाना मेरी इबादत है
इन्सानियात को कायम रखना मेरी आदत है।
नव चेतना को जागृत कर
नव स्फूर्ति को फैलाता हूं
जड़ समाज में परिवर्तन कर
नव समाज के निर्माण में हाथ बढ़ाता हूं
कण कण जीवन में
क्षण क्षण नव ऊर्जा का सृजन करता हूं
नव उमंग, नव उत्साह का
नव गीत गुनगुनाता हूं
परिवर्तन ही जीवन है
यही बात दुहराता हूं
मैं अपने राह पर चलता हूं
आगे बढ़ता हूं
मंजिल मिले या न मिले
परवाह नहीं मुझे
अपना सफ़र हमेशा जारी रखता हूं।

Saturday, August 21, 2010

सेलुलर जेल भी पहुँची क्वींस बैटन रिले



भारत इस वर्ष 19 वें राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन कर रहा है। परंपरानुसार इसकी शुरूआत 29 अक्तूबर, 2009 को बकिंघम पैलेस, लंदन में महारानी एलिजाबेथ द्वितीय द्वारा भारत की राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल को क्वीन्स बैटन हस्तांतरित करके हुई। इसके बाद ओलम्पिक एयर राइफल चैंपियन, अभिनव बिंद्रा ने क्वीन विक्टोरिया मान्युमेंट के चारों ओर रिले करते हुए क्वीन्स बैटन की यात्रा शुरू की। क्वीन्स बैटन सभी 71 राष्ट्रमंडल देशों में घूमने के बाद 25 जून, 2010 को पाकिस्तान से बाघा बार्डर द्वारा भारत में पहुँच गई और उसे पूरे देश में 100 दिनों तक घुमाया जाएगा। इस बीच यह जिस भी शहर से गुजर रही है, वहाँ इसका रंगारंग कार्यक्रमों द्वारा स्वागत किया जा रहा है। गौरतलब है कि आस्ट्रेलिया के बाद भारत दूसरा देश है, जहाँ इसके सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में बैटन रिले ले जाया जा रहा है.

19 अगस्त 2010 को राष्ट्रमंडल खेलों की क्वींस बैटन रिले भारत के दक्षिणतम क्षोर अण्डमान निकोबार द्वीप समूह की राजधानी पोर्टब्लेयर में भी चेन्नई से पहुंची, जहाँ सवेरे 7.45 बजे पोर्टब्लेयर हवाई अड्डे पर बैटन रिले का भव्य स्वागत किया गया. रिले औपचारिक रूप से शाम को 3 बजे ऐतिहासिक राष्ट्रीय स्मारक सेलुलर जेल परिसर में उपराज्यपाल (अवकाश प्राप्त ले0 जनरल) भूपेंद्र सिंह द्वारा प्रथम धावक के रूप में मुख्य सचिव विवेक रे को क्वींस बैटन रिले सौंप कर की गई. सेल्युलर जेल से शुरू होकर क्वींस बैटन रिले पोर्टब्लेयर के विभिन्न भागों से होते हुए ऐतिहासिक नेताजी स्टेडियम पहुँचकर सम्पन्न हुई. जहाँ सांसद श्री विष्णुपद राय ने बैटन को प्राप्त कर अधिकारियों को सौंपा. बैटन रिले को यादगार बनाने के लिए जहाँ प्रमुख स्थलों पर तोरण द्वार स्थापित किये गए, वहीँ पोर्टब्लेयर के डा0 बी. आर. अम्बेडकर सभागार में सांस्कृतिक संध्या का भी आयोजन किया गया. यही नहीं अबर्दीन जेटी और रास द्वीपों के बीच जहाजों को रोशनियों से सजाया भी गया. रिले के दौरान भारी संख्या में स्कूली विद्यार्थी इसका स्वागत करते दिखे. रिले के दौरान द्वीपों के राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त खिलाड़ियों के अलावा करीब 30 लोग बैटन धारक के रूप में इसे लेकर आगे बढ़ते रहे. इसे करीब से देखना वाकई एक सुखद अनुभव रहा.

आकांक्षा यादव

Wednesday, August 18, 2010

दि ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, क्षेत्रीय कार्यालय, कोयंबत्तूर में हिंदी कार्यशाला संपन्न



दि ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, क्षेत्रीय कार्यालय, कोयंबत्तूर में हिंदी कार्यशाला संपन्न

दि ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, क्षेत्रीय कार्यालय, कोयंबत्तूर के तत्वावधान में कंपनी के कोयंबत्तूर क्षेत्र के अधीन सभी मंडल एवं शाखा कार्यालयों के प्रतिनिधियों के लिए दिनांक 18 अगस्त 2010 को होटल पार्क प्लाजा में एक दिवसीय हिंदी कार्यशाला का आयोजन किया गया । हिंदी अधिकारी श्री प्रवीन कुमार ने सभी का स्वागत किया । कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए डॉ. एम.जॉनसन, मुख्य क्षेत्रीय प्रबंधक ने सभी प्रतिभागियों को हिंदी में कार्य करने हेतु प्रेरित किया । कार्यशाला में व्याख्यान देने हेतु पधारे नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, कोयम्बत्तूर के सदस्य सचिव डॉ. सी. जय शंकर बाबु, सहायक निदेशक (राजभाषा), कर्मचारी भविष्य निधि संगठन ने अपने व्याख्यान के दौरान विस्तृत रूप से भाषाई कम्प्यूटिंग के लिए उपलब्ध संसाधनों की चर्चा की । डॉ. जय शंकर बाबु ने बताया कि यूनिकोड के द्वारा कम्प्यूटर पर हिंदी में काम करने में आने वाली फोन्टस और सॉफ्टवेयर संबंधी समस्याओं का निराकरण हो गया है । भोजनोपरांत सत्र में श्री सूर्य प्रकाश, ( प्र.अ.) ने बीमा क्षेत्र में राजभाषा कार्यान्वयन के विषय पर प्रकाश डाला । श्री डी. राम मोहन रेड्डी ( शा.प्र.) न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड ने राजभाषा नीति के कार्यान्वयन हेतु निर्धारित लक्ष्य के विषय में विस्तृत चर्चा की । अंत में राजभाषा अधिकारी श्री प्रवीन कुमार के द्वारा धन्यवाद ज्ञापन एवं राष्ट्रगान के साथ साथ ही कार्यशाला सुसंपन्न हुई ।

Sunday, August 15, 2010

स्वाधीनता दिवस पर विशेष रचना:


भारत माँ को नमन करें....

संजीव 'सलिल'
*
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें.
ध्वजा तिरंगी मिल फहराएँ
इस धरती को चमन करें.....
*
नेह नर्मदा अवगाहन कर
राष्ट्र-देव का आवाहन कर
बलिदानी फागुन पावन कर
अरमानी सावन भावन कर
राग-द्वेष को दूर हटायें
एक-नेक बन, अमन करें.
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें......
*
अंतर में अब रहे न अंतर
एक्य कथा लिख दे मन्वन्तर
श्रम-ताबीज़, लगन का मन्तर
भेद मिटाने मरें मंतर
सद्भावों की करें साधन
सारे जग को स्वजन करें.
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें......
*
काम करें निष्काम भाव से
श्रृद्धा-निष्ठा, प्रेम-चाव से
रुके न पग अवसर अभाव से
बैर-द्वेष तज दें स्वभाव से
'जन-गण-मन' गा नभ गुंजा दें
निर्मल पर्यावरण करें.
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें......
*
जल-रक्षण कर पुण्य कमायें
पौध लगायें, वृक्ष बचाएं
नदियाँ-झरने गान सुनाएँ
पंछी कलरव कर इठलायें
भवन-सेतु-पथ सुदृढ़ बनाकर
सबसे आगे वतन करें.
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें......
*
शेष न अपना काम रखेंगे
साध्य न केवल दाम रखेंगे
मन-मन्दिर निष्काम रखेंगे
अपना नाम अनाम रखेंगे
सुख हो भू पर अधिक स्वर्ग से
'सलिल' समर्पित जतन करें.
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें......
*******

Wednesday, August 11, 2010

द्वितीय प्रमोद वर्मा स्मृति समारोह-2010 सुसंपन्न






मधुरेश, ज्योतिष जोशी और डॉ.शोभाकांत झा को प्रमोद वर्मा सम्मान
वाणी परमार को प्रथम शोध वृति

अज्ञेय और शमशेर पर राष्ट्रीय संगोष्ठी

रायपुर । प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान द्वारा हिन्दी आलोचना में उल्लेखनीय योगदान के लिए 2010 प्रमोद वर्मा सम्मान प्रख्यात कथा-आलोचक मधुरेश और युवा आलोचक ज्योतिष जोशी को प्रदान किया गया । इसके अलावा प्रमोद वर्मा रचना सम्मान से वरिष्ठ ललित निबंधकार डॉ. शोभाकांत झा को अंलकृत किया गया तथा वाणी परमार को एक वर्ष की शोधवृत्ति प्रदान की गई । प्रेमंचद जयंती के अवसर पर आयोजित समारोह में प्रतिष्ठित रचनाकार-आलोचक द्वय डॉ. धनंजय वर्मा और नंदकिशोर आचार्य ने क्रमश- 21, 11 व 7 हज़ार रुपये की नगद राशि, स्मृति चिन्ह, अलंकरण पत्र प्रदान कर रचनाकारों का सम्मान किया । इस प्रतिष्ठित सम्मान के चयन समिति के सदस्य थे – केदार नाथ सिंह, विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, विजय बहादुर सिंह, डॉ. धनंजय वर्मा व विश्वरंजन । इसके पूर्व यह सम्मान श्रीभगवान सिंह और कृष्ण मोहन को मिल चुका है । 1965 से आलोचना कर्म में सक्रिय श्री मधुरेश ने कहा कि उनकी सोच साहित्य में सकारात्मकता से है । रचना और आलोचना में ईमानदारी पर बल दिये बग़ैर जो कार्य होता है वह स्थायी नहीं होता । समय उसका नोटिस नहीं लेता । युवा आलोचक श्री जोशी ने अपने वक्तव्य में कहा कि संस्कृति आलोचना साहित्य तक ही सीमित नहीं होती । रचना की समीक्षा भावप्रक्रिया की उपज है । आलोचना पाठक को मार्ग दिखाता है । आज हम बाज़ारवाद की राजनीतिक समस्या से घिरे हुए हैं, इसीलिए भाषा की गति बुरी हो रही है । मुख्य अतिथि श्री आचार्य ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि साहित्य ज्ञानार्जन है । साहित्य, कला में अनुभूति की अहमियत होती है । साहित्य को जानने के लिए अनुभूति के साथ विचार भी आवश्यक है ।
अलंकरण समारोह में 20 से अधिक किताबों का विमोचन भी विभिन्न विद्वान साहित्यकारों के हाथों संपन्न हुआ जिसमें नई त्रैमासिकी पांडुलिपि, अज्ञेय पर केंद्रित कृति ‘कठिन प्रस्तर में अगिन सुराख’ (विश्वरंजन), शमशेर पर केंद्रित कृति ‘ठंडी धुली सुनहरी धूप’ (विश्वरंजन), ‘शिलाओं पर तराशे मज़मून’ (डॉ. धनंजय वर्मा पर एकाग्र), मीडिया : नये दौर,नयी चुनौतियाँ (संजय द्विवेदी, भोपाल),‘पक्षी-वास’ (अनुवादक-दिनेश माली, उड़ीसा), झरोखा (पंकज त्रिवेदी, अहमदाबाद),विष्णु की पाती – राम के नाम (विष्णु प्रभाकर के पत्र- जयप्रकाश मानस), ‘कहानी जो मैं नहीं लिख पायी’ (कुमुद अधिकारी, नेपाल), डॉ. के. के. झा, बस्तर की 11 किताबें और लघु पत्रिका ‘देशज’ (अरुण शीतांश, आरा) प्रमुख हैं ।
अंलकरण समारोह के पश्चात अज्ञेय और शमशेर की जन्मशताब्दी वर्ष के परिप्रेक्ष्य में ‘अज्ञेय की शास्त्रीयता’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में डॉ. कमल कुमार,दिल्ली डॉ. आनंदप्रकाश त्रिपाठी-सागर, डॉ.देवेन्द्र दीपक-भोपाल, डॉ. रति सक्सेना-त्रिवेंन्द्रम, डॉ. सुशील त्रिवेदी-रायपुर, बुद्धिनाथ मिश्र-देहरादून, महेन्द्र गगन-भोपाल श्री प्रकाश मिश्र-इलाहाबाद, माताचरण मिश्र-भोपाल,श्री संतोष श्रेयांस-आरा आदि ने अपने आलेखों का पाठ किया । संगोष्ठी के अध्यक्ष मंडल में थे नंदकिशोर आचार्य, डॉ. धंनजय वर्मा व श्री मधुरेश । द्वितीय सत्र केंद्रित था–‘शमशेर का कविता-संसार’ विषय पर । वक्ता थे डॉ. रोहिताश्व-गोवा, प्रभुनाथ आजमी-भोपाल, ज्योतिष जोशी-दिल्ली, नरेन्द्र पुंडरीक-बांदा, बक्सर, संतोष श्रीवास्तव-मुंबई, दिवाकर भट्ट-हलद्वानी, मुकेश वर्मा-भोपाल, कुमार नयन-बक्सर, डॉ. सुधीर सक्सेना-दिल्ली । सत्र को अपनी अध्यक्षीय गरिमा प्रदान की दिविक रमेश, डॉ. त्रिभुवन नाथ शुक्ल, डॉ. धनंजय वर्मा ने ।
अलंकरण समारोह की पूर्व संध्या 30 जुलाई को कविता पाठ से दो दिवसीय राष्ट्रीय समारोह का प्रारंभ हुआ जिसमें देश के प्रतिष्ठित कवि- सर्वश्री नंदकिशोर आचार्य, दिविक रमेश, बुद्धिनाथ मिश्र, श्रीप्रकाश मिश्र, नरेंद्र पुंडरीक, अनिल विभाकर, रति सक्सेना सुधीर सक्सेना अरुण शीतांश, संतोष श्रेयांश, शशांक शेखर, कुमुद अधिकारी(नेपाल), कुमार नयन, जयशंकर बाबु आदि ने अपनी श्रेष्ठ कविताओं का पाठ किया । इस अवसर पर टैगोर, शमशेर, अज्ञेय, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ एवं प्रमोद वर्मा की कविताओं की प्रदर्शनी भी आयोजित की गई । आयोजन में देश एवं राज्य के लगभग 500 साहित्यकारों, लेखकों, पत्रकारों एवं शिक्षाविदों ने अपनी भागीदारी रेखांकित की ।

Thursday, August 5, 2010

कविता - खिलौना

खिलौना

-श्यामल सुमन


देख के नए खिलौने खुश हो जाता था बचपन में।
बना खिलौना आज देखिये अपने ही जीवन में।।

चाबी से गुड़िया चलती थी बिन चाबी अब मैं चलता।
भाव खुशी के न हो फिर भी मुस्काकर सबको छलता।।
सभी काम का समय बँटा है अपने खातिर समय कहाँ।
रिश्ते नाते संबंधों के बुनते हैं नित जाल यहाँ।।
खोज रहा हूँ चेहरा अपना जा जाकर दर्पण में।
बना खिलौना आज देखिये अपने ही जीवन में।।

अलग थे रंग खिलौने के पर ढंग तो निश्चित था उनका।
रंग ढंग बदला यूँ अपना लगता है जीवन तिनका।।
मेरे होने का मतलब क्या अबतक समझ न पाया हूँ।
रोटी से ज्यादा दुनियाँ में ठोकर ही तो खाया हूँ।।
बिन चाहत की खड़ी हो रहीं दीवारें आँगन में।
बना खिलौना आज देखिये अपने ही जीवन में।।

फेंक दिया करता था बाहर टूटे हुए खिलौने।
सक्षम हूँ पर बाहर बैठा बिखरे स्वप्न सलोने।।
अपनापन बाँटा था जैसा वैसा ना मिल पाता है।
अब बगिया से नहीं सुमन का बाजारों से नाता है ।।
खुशबू से ज्यादा बदबू अब फैल रही मधुबन में।
बना खिलौना आज देखिये अपने ही जीवन में।।

Wednesday, August 4, 2010

पोर्टब्लेयर में प्रेमचन्द जयंती पर संगोष्ठी सुसंपन्न





भूमंडलीकरण के दौर में भी प्रासंगिक है प्रेमचन्द का साहित्य



कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द जी की 131 वीं जयंती पर अंडमान-निकोबार द्वीप समूह की राजधानी पोर्टब्लेयर में हिंदी साहित्य कला परिषद् के तत्वाधान में संगोष्ठी का आयोजन किया गया. संगोष्ठी का विषय था- ''भूमंडलीकरण का वर्तमान सन्दर्भ और प्रेमचन्द का कथा साहित्य'' . संगोष्ठी का शुभारम्भ द्वीप-प्रज्वलन और प्रेमचन्द जी के चित्र पर माल्यार्पण द्वारा हुआ. मुख्या अतिथि के रूप में संगोष्ठी को संबोधित करते हुए चर्चित साहित्यकार और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के डाक निदेशक कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि- प्रेमचन्द के साहित्य और सामाजिक विमर्श आज भूमंडलीकरण के दौर में भी उतने ही प्रासंगिक हैं और उनकी रचनाओं के पात्र आज भी समाज में कहीं न कहीं जिन्दा हैं। प्रेमचन्द जब अपनी रचनाओं में समाज के उपेक्षित व शोषित वर्ग को प्रतिनिधित्व देते हैं तो निश्चिततः इस माध्यम से वे एक युद्ध लड़ते हैं और गहरी नींद सोये इस वर्ग को जगाने का उपक्रम करते हैं। श्री यादव ने कहा कि प्रेमचन्द ने जिस दौर में सक्रिय रूप से लिखना शुरू किया, वह छायावाद का दौर था। निराला, पंत, प्रसाद और महादेवी जैसे रचनाकार उस समय चरम पर थे पर प्रेमचन्द ने अपने को किसी वाद से जोड़ने की बजाय तत्कालीन समाज में व्याप्त ज्वलंत मुद्दों से जोड़ा। राष्ट्र आज भी उन्हीं समस्याओं से जूझ रहा है जिन्हें प्रेमचन्द ने काफी पहले रेखांकित कर दिया था, चाहे वह जातिवाद या साम्प्रदायिकता का जहर हो, चाहे कर्ज की गिरफ्त में आकर आत्महत्या करता किसान हो, चाहे नारी की पीड़ा हो, चाहे शोषण और समाजिक भेद-भाव हो। कृष्ण कुमार यादव ने जोर देकर कहा कि आज प्रेमचन्द की प्रासंगिकता इसलिये और भी बढ़ जाती है कि आधुनिक साहित्य के स्थापित नारी-विमर्श एवं दलित-विमर्श जैसे तकिया-कलामों के बाद भी अन्ततः लोग इनके सूत्र किसी न किसी रूप में प्रेमचन्द की रचनाओं में ढूंढते नजर आते हैं.

परिषद् के अध्यक्ष आर० पी0 सिंह ने संगोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए कहा कि, प्रेमचंद से पहले हिंदी साहित्य राजा-रानी के किस्सों, रहस्य-रोमांच में उलझा हुआ था। प्रेमचंद ने साहित्य को सच्चाई के धरातल पर उतारा। आज भी भूमंडलीकरण के इस दौर में इस सच्चाई को पहचानने की जरुरत है. डा० राम कृपाल तिवारी ने कहा कि प्रेमचन्द की रचनाओं में किसान, मजदूर को लेकर जो भी कहा गया, वह आज भी प्रासंगिक है. उनका साहित्य शाश्वत है और यथार्थ के करीब रहकर वह समय से होड़ लेती नजर आती हैं. जयबहादुर शर्मा ने प्रेमचन्द के जीवन पर संक्षिप्त प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्होंने जीवन और कालखंड की सच्चाई को पन्ने पर उतारा। वे सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार, जमींदारी, कर्जखोरी, गरीबी, उपनिवेशवाद पर आजीवन लिखते रहे। डी0 एम0 सावित्री ने कहा कि प्रेमचन्द का लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी का विकास संभव ही नहीं था। उन्होंने दूसरा विवाह अपनी प्रगतिशील परंपरा के अनुरूप बाल-विधवा शिवरानी देवी से करके एक नजीर गढ़ी. जगदीश नारायण राय ने प्रेमचन्द की कहानियों पर जोर देते हुए बताया कि वे उर्दू का संस्कार लेकर हिन्दी में आए थे और हिन्दी के महान लेखक बने। उनकी तुलना विश्व स्तर पर मैक्सिम गोर्की जैसे साहित्यकार से की जाती है. वे युग परिवर्तक के साथ-साथ युग निर्माता भी थे और आज भी ड्राइंग रूमी बुद्धिजीवियों की बजाय प्रेमचन्द की परम्परा के लेखकों की जरुरत है. संत प्रसाद राय ने कहा कि प्रेमचन्द भूमंडलीकरण के दौर में इसलिए भी प्रासंगिक हैं, क्योंकि वर्षों पूर्व उन्होंने जिस समाज, गरीबी प्रथा के बारे में लिखा था वह आज भी देखने को प्राय: मिलती हैं.

द्वीप लहरी के संपादक और परिषद् के साहित्य सचिव डा0 व्यासमणि त्रिपाठी ने कहा कि वे आम भारतीय के रचनाकार थे। उनकी रचनाओं में वे नायक हुए, जिसे भारतीय समाज अछूत और घृणित समझा था. उन्होंने सरल, सहज और आम बोल-चाल की भाषा का उपयोग किया और अपने प्रगतिशील विचारों को दृढ़ता से तर्क देते हुए समाज के सामने प्रस्तुत किया। इस ग्लैमर और उपभोक्तावादी संस्कृति में प्रेमचन्द की रचनाएँ आज भी जीवंत हैं क्योंकि वे आम आदमी की बाते करती हैं. अनिरुद्ध त्रिपाठी ने कहा कि प्रेमचन्द ने गांवों का जो खाका खिंचा, वह वैसा ही है. उनके चरित्र होरी, गोबर, धनिया आज भी समाज में दिख जाते हैं. भूमंडलीकरण की चकाचौंध से भी इनका उद्धार नहीं हुआ. परिषद् के प्रधान सचिव सदानंद राय ने कहा कि गोदान, गबन, निर्मला, प्रेमाश्रम जैसी उनकी रचनाएँ आज के समाज को भी उतना ही प्रतिबिंबित करती हैं. प्रेमचंद के कई साहित्यिक कृतियों का अंग्रेज़ी, रूसी, जर्मन सहित अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ। यह उनकी विश्वस्तर पर लोकप्रियता का परिचायक है. कार्यक्रम का सञ्चालन डा0 व्यासमणि त्रिपाठी व धन्यवाद परिषद् के उपाध्यक्ष शम्भूनाथ तिवारी द्वारा किया गया.


प्रस्तुति -

डा0 व्यासमणि त्रिपाठी
संपादक- द्वीप लहरी
साहित्य सचिव-हिंदी साहित्य कला परिषद्, पोर्टब्लेयर
अंडमान-निकोबार द्वीप समूह

Monday, August 2, 2010

आपकी रचनाएँ आमंत्रित

अंतर्जाल पर हम सहयोग आधारित दो ब्लाग्स का सञ्चालन कर रहे हैं- 'सप्तरंगी प्रेम' और 'बाल-दुनिया'. इनमें क्रमश: प्रेम की अनुभूतियों को समेटती रचनाएँ और बच्चों से सम्बंधित रचनाएँ प्रकाशित की जाती हैं. यदि आप भी अपनी रचनाएँ इन दोनों विषयों पर भेजना चाहें तो आपका स्वागत है. अपनी रचनाएँ hindi.literature@yahoo.com पर भेज सकते हैं. दोनों ब्लाग्स को यहाँ देख सकते हैं-
http://www.saptrangiprem.blogspot.com/
http://www.balduniya.blogspot.com/
सादर,
आकांक्षा यादव
http://www.shabdshikhar.blogspot.com/ (शब्द-शिखर)


सप्तरंगी-प्रेम में आगामी रचनाएँ-

सप्तरंगी-प्रेम में आगामी रचनाएँ-
मुकेश सिन्हा- 2 अगस्त
शिखा वार्ष्णेय- 7 अगस्त
वंदना गुप्ता- 12 अगस्त
नीलम पुरी- 18 अगस्त
सुमन मीत-24 अगस्त
संजीव वर्मा- 30 अगस्त