Monday, November 3, 2008

कविता



तब घर सोना था अब सूना है


- शर्फराज़ नवाज़, चेन्नै



हमारा घर बड़ा प्‍यारा था
जहां रिश्ते - नाते, प्यार - यार की
लहरों की महक
परिंदों की चहक
दीपों की चमक
साज़ - सिंगार की झलक रंग रंगों की ललक से
सारा आलाम सुशोभित था
सब कुछ था लेकिन आज
मां न होने के कारण
दहकता है...

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