राजभाषा-कर्मी त्रिशंकु में...
छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के लाभ पाने से सैकडों राजभाषा कर्मी वंचित
- डॉ. सी. जय शंकर बाबु
“राष्ट्र की पहचान मानी जानी वाली हिंदी, जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ की अधिकारिक भाषा भी बनाने की कोशिशों भी जारी हैं, ऐसी भाषा को भारत सरकार के कार्यालयों में सरकारी कामकाज में प्रयोग को बढ़ावा देने एवं प्रचार-प्रसार कार्य में पूरी निष्ठा के साथ संलग्न हिंदी कर्मियों को न्याय नहीं मिलना तथा बराबर उपेक्षा के शिकार होना पड़ना निश्चय चिंताजनक है । उपेक्षा, अवहेलना के शिकार इन हिंदी कर्मियों के हित में सोचकर न्यायमूर्ति श्री कृष्ण की अध्यक्षता वाला छठा वेतन आयोग ने इस भांति इस वर्ग का हित करने की कोशिश की है जैसे द्रौपदी के चीर हरण के समय श्रीकृष्ण ने उनकी रक्षा की थी । आयोग ने सचिवालयों तथा अधीनस्थ कार्यालयों के हिंदी कर्मियों को समान वेतना की सिफारिश की है । इससे वेतनमानों में बराबरी की संभावना का रास्ता खुल गया है । पदोन्नतियों के संबंध में या मंत्रालयों, विभागों में अलग हिंदी कैडर के गठन के संबंध में अभी कार्यवाही शेष रह गई है । सरकार की नीतियाँ सदा अपने कर्मचारियों को समानता का अवसर देने की ही रही हैं । हिंदी कर्मियों को पदोन्नतियों के अवसर उपलब्ध कराने के संबंध में प्रधान मंत्री की अध्यक्षता वाली केंद्रीय हिंदी समिति तथा गृह मंत्री की अध्यक्षता वाली संसदीय राजभाषा समिति की सिफारिशों के आधार माननीय राष्ट्रपति महोदय की स्वीकृति के बाद भी इतने समय से कोई उचित कार्रवाही नहीं होना अफ़सोस की की बात है ।
लंबी अवधि से हो रही इस उपेक्षा को समाप्त करने की दिशा में सचिवालय के हिंदी कर्मियों तथा अधीनस्थ कार्यालयों के हिंदी कर्मियों के वेतनमानों में बराबरी की तरफ़दारी करने की सिफारिशों के द्वारा छठे वेतन आयोग ने तो शरुआती पहल की है । इस अनुकूल परिणाम का स्वागत करने के साथ-साथ अब होना यह चाहिए कि इन सिफ़ारिशों को लागू करने का प्रयास करने के साथ-साथ लंबी अवधि की इस समस्या को हल करने के लिए समन्वित उपाय भी ढूंढ़ने की आवश्यकता है । अखिल भारतीय स्तर पर राजभाषा संवर्ग बनाने का प्रयास अवश्य किया जाना चाहिए । इस कार्रवाई को अलग-अलग मंत्रालयों एवं विभागों के भरोसे छोड़ने से यों तो यथास्थिति बनी रहने का अथवा किन्हीं एकाध मंत्रालयों में ही ऐसा कैडर का गठन होकर अन्य मंत्रालयों, विभागों में नहीं होने से पुनः विसंगतियों खतरा उत्पन्न होगा । इस समस्या का समाधान इस संवर्ग के गठन के लिए एक अलग स्वतंत्र मंत्रालय या विभाग के नियंत्रण में समूचे काडर को संरक्षण देना की योजना बनाना समय की मांग है । हिंदी की श्रीवृद्ध हेतु किए जाने वाले प्रयासों के अंतर्गत हिंदी से जुड़े अधिकारियों तथा कर्मचारियों के हितों को भी ध्यान में रखना परम आवश्यक है । आज सूचना-क्रांति की उपस्थिति में कोई भी कार्य असंभव या असाध्य नहीं रह गया है । अतः अखिल भारत स्तर पर हिदी कर्मियों के लिए एक संवर्ग का गठन करके इनकी पदोन्नतियों के समुचित अवसर सुनिश्चित करना तथा राजभाषा कार्यान्वयन कार्य को प्रभावी बनाने हेतु अपेक्षित सुविधाएँ एवं साधन उपलब्ध कराने के प्रयास तुरंत किया जाना भी अपेक्षित है । ऐसे प्रयासों के बाद ही संयुक्त राष्ट्र संघ की अधिकारिक भाषाओं की सूची में हिंदी को प्रतिष्ठित करने के सपने साकार होने के रास्ते साफ नज़र आ पाएंगे ।”
इन पंक्तियों को युग मानस में यहाँ प्रकाशित लेख में आप सब पढ़ चुके हैं । इस बीच छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को सरकार द्वारा स्वीकृत किए जाने के परिणाम स्वरूप केंद्र सरकार के कर्मियों के वेतनमानों में वृद्धि हुई है । मगर हिंदी कर्मियों को तो त्रिशंकु में ही रहना पड़ा है । छठे वेतन आयोग द्वारा संस्तुत वेतनमान अधिकांश विभागों में हिंदी कर्मियों को अभी तक नहीं दिए गए हैं । विगत 21 वर्षों से अन्याय एवं असंतोष के शिकार राजभाषा हिंदी कर्मियों का उद्धार छठे वेतन आयोग ने अपनी सिफारिशों के अंतर्गत किसी रूप में किया था । मगर उन सिफारिशों को लागू करते समय उपेक्षित वर्ग के रूप में पुनः राजभाषा संवर्ग उभर आया है । हिंदी कर्मियों के असंतोष को दूर करने तथा उनके न्यायोचित वेतन से उन्हें और अधिक समय तक वंचित न रखने के लिए तुरंत कदम उठाने की आवश्यकता है । आशा है, शीघ्र ही राजभाषा हिंदी कर्मियों की आवाज सही जगह तक पहुँचकर उन्हें उचित न्याय मिल पाएगा ।
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