Friday, October 17, 2008

कविता

बारहवाँ खिलाड़ी

- संजीव जैन, हैदराबाद


खुशनुमा मौसम में
अनगिनत तमाशायी
आते हैं अपने ग्यारह की
टीम का हौसला बढ़ाने को
दिलों जान से चाहते हैं जिसको
उन सब से अलग मैं धतकारा लगाता हूँ
बारहवें खिलाड़ी को
क्या अजब खिलाड़ी है
क्या गजब खिलाड़ी है
दो ओवरो के बीच
जब इसका मौका आता है
हाथ में पानी की बोतल
कंधे पर तौलिया लिये
वो दौड पड़ता है
टीवी का कैमरा तक इससे मुहँ मोड़ लेता है
तेज हुडदंग के बीच औरों से अलग
ये उस लम्हे का इंतजार करता रहता है
जब कोई बलवा हो जाए
काई गर्मी से गश खा जाए
उसे खेलने का बस एक मौका मिल जाए
उसे भी तमाशायियों की तालियाँ मिल जाए
उसका नाम भी कहीं टी वी पर दिख जाए
जब टीम जश्न बनाती है
बारहवाँ खिलाड़ी भी नाचता है, गाता है
मन कौंधता है उसका
तौलिया उठा कर
तू क्यों खुश है इतना
काश
कोई हादसा हो जाए
मुझे अगले मैच में एक मौका मिल जाए
मेरा भी फोटो अखबार में छप जाए
मुझे भी टीम में शामिल कर लिया जाए
मैच दर मैच
बारहवा खिलाड़ी
ऐसा ही खेल दिखाता है
कभी मौका मिले तो कैच लपक जाता है
संजीव तू अपना जश्न
दूसरों के गम से ही क्यों बना

1 comment:

ईश्वर करुण said...

I have gone through the poetries of various poets and appreciate the theme and text of Mr. Harihar Jha and Mrs.Swarna Jothi. I have previleged to read other poetries of Madam Swarna Jothi, Mr. Sanjeev Jain after a long gap has given two beautiful poems. Congrats. We request to select poems which represents the modern era of Hindi literature. Thank you.
Ishwar Chandra Jha, Udhagamandalam, Nilgiris. Tamilnadu, India