ग़ज़ल
-कमलप्रीत सिंह
न बात कोई हवा से की
न गुफ़्तगू खिजां से की
सुबहु को हम खामोश थे
शाम ऐ ग़ज़ल जुबां से की
कई और भी हम ख़याल थे
पर बात मेहरबां से की
है मिली हकीकत ऐ ज़िंदगी
शुरुआत दास्ताँ से की
वहां रौशनी की कमीं न थी
पर बात कहकशां से की
ज़िक्र ऐ शिकायत क्या किए
जब बात राजदान से की
न बात कोई हवा से की
न गुफ़्तगू खिजां से की
सुबहु को हम खामोश थे
शाम ऐ ग़ज़ल जुबां से की
1 comment:
आपकी ग़ज़ल है बेमिसाल आपकी पेशकश लाजवाब/ उम्मीद है किऔर भी शानदार ग़ज़लों की वर्ष होगी। शुभ कम्नाये।
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