Saturday, October 18, 2008

कविता

मैं मजदूर


- मनीष जैन

मैं मजदूर, मजदूर ही मुझको रहना है
श्रम से जी दुनिया लाख चुराएं, श्रम मुझको करते रहना है, श्रम ही मेरा गहना है
मैं ही अन्न उपजाता हूँ, सत्ता का भाग्य विधाता हूँ
श्रम नियोजन ही ध्येय मेरा, सुख साधन एक सपना है, श्रम ही मेरा गहना है
वज्र से मेरे ये हाथ बने, श्रम से मेरे कुछ नाथ बने
पर निर्धनता ही मेरी नियति, चुपचाप ही सहते रहना है, श्रम ही मेरा गहना है
मिट्टी से मैं महल बनाऊं, सृजन में जी जान लगाऊं
श्रम ही है मेरा ईश्वर, श्रम की पूजा करना है, श्रम ही मेरा गहना है
सबको सुख साधन उपलब्ध कराऊँ, दरिद्रता में जीता जाऊं
श्रम ही है मेरी पूँजी, श्रम साधन संजोये रखना है, श्रम ही मेरा गहना है
वन और पशु हैं मेरे मीत, सृजन में ही मेरी जीत
मिटाकर तृष्णा और लालसा, संतोषी बनकर रहना है, श्रम ही मेरा गहना है
श्रम से मुझको कष्ट नहीं, कल की मुझको फिक्र नहीं
छोड़ भूत, छोड़ भविष्य, वर्तमान की चिंता करना है, श्रम ही मेरा गहना है
मैं राष्ट्र का कल संवारू, राष्ट्र विकास की राह बुहारु
मरते दम तक श्रम पूर्वक, राष्ट्र की सेवा करना है, श्रम ही मेरा गहना है
वर दो प्रभु! भव भव में मजदूर बनूँ,
करूं सेवा जग भर की, छोड़ विलास श्रम को चुनूँ,
श्रम संग पलना बढ़ना है, श्रम ही मेरा गहना है
मैं मजदूर, मजदूर ही मुझको रहना है ।

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