Saturday, October 18, 2008

कविता



बेटियाँ
- डॉ. बशीर, चेन्नै

ये गुल नहीं, गुलज़ार हैं
हर घर में बेटियाँ
ख़ुदा का उपहार हैं
महकती बसंत बहार हैं
परिवार का दुलार हैं
मोहब्बत का इज़हार हैं

ये ममता का पारावार हैं
सेवा का अवतार हैं
सुख-दुःख में भागीदार हैं
बेटियाँ हो तो...
हर घर में, हर दिन त्यौहार है
खेलती-कूदती, मचलती-महकती
ख़ुशबू की बयार हैं

हमारी संपत्ति और प्यार की
हमेशा हकदार हैं
बेटियाँ...
घर घर का सुख-सागर हैं

बेटियाँ कहीं लक्ष्मी बनकर
दौलत लाती हैं
कहीं सरस्वती बनकर
विद्या फैलाती हैं
कहीं मीरा बनकर
विष पाती हैं
कहीं हीरा बनकर
मुकुट धारण करती हैं

बेटियाँ देश की लाज़ हैं
इतिहास का साज़ हैं
गरिमामय वक़्त का राज़ हैं
गौरवशाली देश की आवाज़ हैं ।

5 comments:

Asha Joglekar said...

हर घर में बेटियाँ
ख़ुदा का उपहार हैं
महकती बसंत बहार हैं
परिवार का दुलार हैं
बहुत सुंदर पंक्तियाँ । कविता भी सारी बहुत भावभरी ।

Reetesh Gupta said...

बहुत सही ..अच्छा लगा...बधाई

Reetesh Gupta said...

बहुत सही ..अच्छा लगा...बधाई

Sherfraz said...

Bahut Khoobsurat hai. Bhavnayen lajavab hai.


Sherfraz Nawaz.

Unknown said...

Poem betiyaan is very nice. It shows the affection, respect for a girl child. Need of the hour.I wish this reaches the remotest of villages where girls are considered a burden even today.

N.Padmavathi