‘रामचरित मानस' पर कांचीपुरम् में राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न
कांचीपुरम् में स्थित श्री चंद्रशेखरेंद्रसरस्वती मानित
विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग की ओर से 24 एवं 25 अप्रैल 2018 को "रामचरित
मानस और समाज'' विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन अत्यंत सफलतापूर्वक किया गया
है। इस संगोष्ठी के पहले दिन विश्वविद्यालय के कुलसचिव आचार्य जि. श्रीनिवासु की
अध्यक्षता में आरंभिक सत्र संपन्न हुआ। संगोष्ठी के संयोजक और हिन्दी विभाग के
सहायक आचार्य डॉ. दण्डिभोट्ला नागेश्वर राव ने संगोष्ठी के उद्देश्य पर प्रकाश डालते
हुए कहा कि रामचरित मानस पर सामाजिक दृष्टिकोण से विचार करना इस संगोष्ठी का मुख्य
आशय है। सत्राध्यक्ष प्रोफेसर श्रीनिवासु जी ने ‘रामचरित मानस' ग्रंथ के महत्व पर प्रकाश डालते हुए इस ग्रंथ को ‘भारतीय संस्कृति की धरोहर’ कहा। इस सत्र के मुख्य अतिथि के रूप में पधारे तमिलनाडु केंद्रीय
विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष आचार्य एस.वि.एस.एस. नारायण राजु जी ने
संगोष्ठी का बीज-व्याख्यान दिया। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि रामचरित मानस
का भारतीय समाज पर अपार प्रभाव है और नैतिक एवं पारिवारिक मूल्यों की दृष्टि से आज
भी रामचरित मानस प्रासंगिक है। मुख्य अतिथियों के करकमलों के द्वारा संगोष्ठी के
शोध-पत्रों के सार-संग्रह का लोकार्पण ‘इलैक्ट्रानिक पुस्तक'
(सी.डी.) के रूप में किया
गया। इस सत्र में संस्कृत एवं भारतीयसंस्कृति विभाग के अध्यक्ष डॉ. देबज्योति जेना
ने स्वागत वचन कहे और संस्कृत विभाग के सहायक आचार्य डॉ. ग. शंकर नारायणन जी ने
धन्यवाद ज्ञापित किये।
हैदराबाद विश्वविद्यालय की आचार्या प्रोफेसर चेर्ला
अन्नपूर्णा जी ने प्रथम तकनीकी सत्र की अध्यक्षता का भार-वहन किया। उन्होंने अपने
व्याख्यान के दौरान संस्कृत के वाल्मीकि रामायण की तुलना मानस के साथ की। दक्षिण
भारत हिन्दी प्रचार सभा-चेन्नै, कोयंबत्तूर, तिरुचिरापल्लि इत्यादि प्रदेशों से लगभग 50 हिन्दी
प्राध्यापक, अध्यापक एवं हिन्दी प्रेमियों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया। पहले दिन दो
तकनीकी सत्रों का संचालन किया गया जिनमें कुल 12 प्रपत्रों का वाचन किया गया। ‘रामचरित मानस की ऐतिहासिकता',
‘रामचरित मानस और फादर कामिल
बुलके',
‘रामचरित मानस और तेलुगु
मोल्ला-रामायण की तुलना', ‘रामचरित मानस और कम्ब रामायण' इत्यादि रोचक विषयों पर सारगर्भित प्रपत्रों का वाचन संपन्न
हुआ। तकनीकी सत्रों के पश्चात् डॉ. श्रीधर और संस्कृत के शोध-छात्र शुभचंद्र झा के
द्वारा रामचरित मानस के सुंदरकाण्ड का विशेष-पाठ किया गया जिससे सभागार में
उपस्थित श्रोताओं के मन में भावभीनी श्रद्धा और भक्ति का संचार हुआ।
दूसरे दिन के कार्यक्रम में तीन तकनीकी सत्रों का आयोजन किया
गया। पुदुच्चेरी केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष (प्रभारी) डॉ.
जयशंकर बाबूजी एवं तिरुवण्णामलै के मनोन्मणियन सुंदरनार विश्वविद्यालय की भूतपूर्व
संकायाध्यक्षा डॉ. भवानी ने तकनीकी सत्रों की अध्यक्षता की जिम्मेदारी ली। डॉ.
भवानी जी ने कहा कि तमिल में वाल्मीकि से भी पूर्व ‘अगस्त्य रामायण' का प्रस्ताव है। डॉ. जयशंकर बाबूजी ने मानस में प्रस्तावित
पर्यावरणीय मूल्य-चेतना पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज के माहोल में मानस का
पठन-पाठन पर्यावरणीय चेतना के नज़रिये से करने की आवश्यकता है। इन दो सत्रों में तिरुवनंतपुरम्,
तिरुचिरापल्लि, पेरम्बलूर, मधुरांतकम्, पांडिचेरी, हैदराबाद, विशाखपट्टणम्, तिरुपति इत्यादि क्षेत्रों से पधारे कुल 16 प्रतिभागियों ने
अपने प्रपत्रों का समर्पण किया जिनमें ‘रामचरित मानस और वर्तमान समाज',
‘रामचरित मानस की प्रासंगिकता',
‘रामचरित मानस और मलयालम रामकाव्य की तुलना'
इत्यादि महत्वपूर्ण विषयों का प्रतिपादन हुआ। दूसरे दिन के
अंतिम तकनीकी सत्र के अध्यक्ष रहे कांची विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के
वरिष्ठतम आचार्य प्रोफेसर नारायणजी झा, जिन्होंने प्राकृत भाषा-विज्ञान की पृष्ठभूमि में रामचरित
मानस की भाषा-शैली पर अत्यंत अमूल विचार व्यक्त किये। इस सत्र में संपूर्णतया
संस्कृत में ही प्रपत्रों का वाचन किया गया जो कि विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इस
सत्र में संस्कृत वाल्मीकि रामायण और रामचरित मानस की तुलना अनेक प्रसंगों की
पृष्ठभूमि में की गयी। संगोष्ठी के समापन सत्र में हैदराबाद विश्वविद्यालय के
हिन्दी विभाग की प्रोफेसर चेर्ला अन्नपूर्णा जी ने मुख्य अतिथि के रूप में भाग
लिया। संयोजक डॉ. नागेश्वर राव के द्वारा संगोष्ठी-प्रतिवेदन एवं धन्यवाद-ज्ञापन
से संगोष्ठी का समापन हुआ। इस दो दिवसीय संगोष्ठी में देश के विभिन्न प्रदेशों-
विशेषकर दक्षिण भारत के सभी राज्यों से एक सौ से अधिक प्रतिभागियों ने भागीदारी
ली। कागज का कम उपयोग करते हुए यह सेमिनार पर्यावरण-हित भी सिद्ध हुई,
जो कि काबिले तारीफ है। कुल मिलाकर हिन्दी विभाग के द्वारा
कांची विश्वविद्यालय में आयोजित राष्ट्रीय स्तर की यह पहली संगोष्ठी अत्यंत सफल
एवं विचारोत्तेजक सिद्ध हुई।
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