Saturday, November 9, 2013

लघुकथा : एक परिचय

लघुकथा :  एक परिचय 

संजीव वर्मा 'सलिल' 

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हिंदी साहित्य की लोकप्रिय विधा है. हिंदी साहित्य की अन्य विधाओं की तरह लघुकथा का मूल भी संस्कृत साहित्य में हैं जहाँ बोध कथा, दृष्टान्त कथा, उपदेश कथा के रूप में वैदिक-पौराणिक-औपनिषदिक काल में इसका उपयोग एक अथवा अनेक व्यक्तियों के मानस को दिशा देने के लिये सफलतापूर्वक किया गया. हितोपदेश तथा पंचतंत्र की कहानियां, बौद्ध साहित्य की जातक कथाएँ आधुनिक लघुकथा का पूर्व रूप कही जा सकती है. लोक आश्रित्य में लघुकथा का अनगढ़ रूप मिलता है. भारतीय पर्वों में महिलाएँ पूजन अथवा वृत्त का समापन करते हुए बहुधा कहानियाँ कहतीं है जिनमें लोक हितैषी सन्देश अन्तर्निहित होता है. साहित्यिक दृष्टि से लघुकथा न होते हुए भी ये आमजन के नज़रिये से लघु कथा के निकट कही जा सकती हैं. 

आधुनिक लघु कथा: 

हिंदी के आधुनिक साहित्य ने लघुकथा को पश्चिम से ग्रहण किया है. आधुनिक  लघुकथा में किसी अनुभव अथवा घटना से उपजी टीस और कचोट को गहराई से अनावृत्त अथवा उद्घाटित किया जाता है. पारिस्थितिक वैषम्य, विडम्बना और विसंगति वर्त्तमान लघुकथा को मर्मवेधी बनाती है. लघुकथा में संक्षिप्तता, सरलता तथा मारकता अपरिहार्य है. लघुकथा हास्य नहीं व्यंग्य को पोषित करती है. अभिव्यंजना में प्रतीक और सटीक बिम्बात्मकता लघुकथा को प्रभावी बनाती है. 

लघुकथा का इष्ट नकारात्मक आलोचना मात्र नहीं होता, वह सकारात्मक उद्वेलन से यथार्थ का विवेचनकर परोक्ष मार्गदर्शन करती है. विसंगति को इंगित करने का उद्देश्य बिना उपदेश दिए पाठक के अंतर्मन में विसंगति से मुक्त होने का मनोभाव उत्पन्न करना होता है. यहीं लघुकथा उपदेश कथा, बोध कथा अथवा दृष्टान्त कथा से अलग है.

लघुकथा की  सहज-सरल किन्तु तन-बना गसा हुआ होना आवश्यक है. एक भी अनावश्यक शब्द लघुकथा के कथ्य को कमजोर बना देता है. लघुकथा जीवन के अल्प कालखंड का अप्रगटित सत्यांश सामने लाती है. लघुकथा की कसूती लघुता, तीक्ष्णता, लाक्षणिकता, प्रतीकात्मकता, कलात्मकता, गहनता, तेवर तथाव्यंजना है. लघुकथा मनोरंजन नहीं मनोमंथन के लिये लिखी जाती है. लघुकथा रुचिपूर्ण हो सकती है, रोचक नहीं। 

वर्त्तमान लघुकथा का कथ्य वर्णात्मक, संवादात्मक, व्यंग्यात्मक, व्याख्यात्मक, विश्लेषणात्मक, संस्मरणात्मक हो सकता है किन्तु उसका लाघवकारी और मारक होना आवश्यक है. लघुकथा यथार्थ से जुड़कर चिंतन को धार देती है. लघुकथा प्रखर संवेदना की कथात्मक और कलात्मक अभिव्यक्ति है. लघुकथा यथार्थ के सामान्य-कटु, श्लील-अश्लील, छिपे-नग्न, दारुण-निर्मम किसी रूप से परहेज नहीं करती। 

लघुकथा में विषयवस्तु से अधिक महत्त्व प्रस्तुति का होता है. विषयवस्तु पहले से उपस्थित और पाठक को विदित होने पर भी उसकी प्रस्तुति ही पाठक को उद्वेलित करती है. प्रस्तुति को विशिष्ट बनती है लघुकथाकार की शैली और कथ्य का शिल्प। लघुकथा की रचना में शीर्षक भी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है. शीर्षक ही पाठक के मन में कौतूहल उत्पन्न करता है. शिल्प को प्लेटो ने और कार्य के चरित का योग (total of structure, meaning and character of the work as a whole) कहा है. लघुकथा विसंगति को पहचानती-इंगित करती है, उसका उपचार नहीं करती। 

कहानी के आवश्यक तत्व कथोपकथन, चरित्रचित्रण, पृष्भूमि, संवाद आदि लघुकथा में नहीं होते। 

हिंदी की लघुकथा में अंग्रेजी की 'शॉर्ट स्टोरी' और 'सैटायर' के तत्व देखे जा सकते हैं किन्तु उसे 'कहानी का सार तत्व' नहीं कहा जा सकता। लघुकथा एक प्रयोगधर्मी विधा है किन्तु असामाजिक अनुभवों की अभिव्यक्ति का साधन नहीं। लघुकथा किसी के उपहास का माध्यम भी नहीं है. 

सशक्त लघुकथा अधिक शब्दों कि नहीं बात को सामने रखने के सही तरीके की मांग करती है. आनंद लें कुछ अच्छी लघुकथाओं का- 

१. काजी का घर 

एक गरीब भूखा काजी के घर गया, कहने लगा: 'मैं भूखा हूँ, मुझे कुछ दो तो मैं खाऊँ।' 
काजी ने कहा: 'यह काजी का घर है, कसम खा और चला जा.' 

२. मुँह तोड़ जवाब 
- भारतेन्दु हरिश्चंद्र 

एक ने कहा: ' न जेन इस लड़के में इतनी बुरी आदतें कहाँ से आयीं? हमें यकीन है इसने कोइ बुरी बात हमसे नहीं सीखी।'
लड़का चाट से बोल उठा: 'बहुत ठीक है क्योंकि हमने आपसे बुरी आदतें पाई होतीं तो आपमें बहुत सी कम हो जातीं।' 

३. तोता-मैना   
- प्रज्ञा पाठक 

तोता और मैना प्रेम-वार्ता में तल्लीन थे. मैना मान भरे स्वर में बोली: 'शादी के बाद मुझे बड़ा स्स घर बनवा दोगे ना?' 
तोते ने मनुहार के स्वर में कहा: 'प्रिये! हम छोटे से घर को अपने असीम प्रेम से बड़ा बना देंगे।'
यह सुनते ही मैना फुर्र से उड़कर दूसरे तोते की बगल में जा बैठी।

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