कविता
नव-वर्ष
- संपत देवी मुरारका
नये वर्ष की नई कल्पना,
करनी है साकार हमें |
नये वर्ष में नव भारत के,
देना है आकार हमें ||
आओ प्रेम राग हम गायें,
घृणा द्वेष को दूर भगाएं |
सब में हो एकता,
अलख का मन्त्र जगाएं ||
दूर भगायें आतंकवाद को,
समता का संसार बसायें |
नव बिहान की नव बेला में,
नवल प्रेम की धार बहायें ||
जो शोषित कुचले दबले हैं,
उन सब को हम गले लगायें |
खींचे इस धरती को सुख से,
नव भविष्य की आस जगाएं ||
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद
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