सीता महाकाव्य का धारावाहिक प्रकाशन
(डॉ. नंदिनी साहू जी कृत महाकाव्य सीता का हिंदी अनुवाद श्री दिनेश कुमार माली जी ने किया है । इस अनूदित महाकाव्य को युग मानस में धारावाहिक प्रकाशन दि.18 जुलाई, 2020 से किया जा रहा है । 25 सर्गों के इस महाकाव्य की प्रस्तावना और प्रथम सर्ग के प्रकाशन के बाद इसी क्रम में आज द्वितीय सर्ग का प्रकाशन किया गया है । आशा है, 'युग मानस' के सुधी पाठक वर्ग इस महाकाव्य पर अपनी आत्मीय प्रतिक्रिया देने की कृपा अवश्य करेंगे । - डॉ. सी. जय शंकर बाबु)
सीता (महाकाव्य)
द्वितीय सर्ग
जनक-नंदिनी-जानकी- मेरा नाम सीता
मैं
इकलौती पुत्री, राजा जनक मेरे पिता
यज्ञ-पूजिता पावन धरती मेरी माता ।
पूरी तरह
निर्विवादित
प्रिया
पक्के
इरादों वाली संतोष हिया
भगवान राम
की सुंदर भार्या
।
पितृसत्तात्मक
समाज की प्रचलित धारा
बनी “सीताय चरितम् महत:”- का मुहावरा
और मेरे
सिर का आकर्षक जेवर ।
उर्मिला, मांडवी और श्रुतिकीर्ति-मेरी तीन बहन
जिनका हुआ
पाणिग्रहण सम्पन्न
राम के भाई लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न ।
क्या मैं
इसे 'बहिनापा' कहूँ? या कुछ और कथन ?
उनकी नियति भी मेरे जितनी जटिल,लिए अधूरापन
अनेक प्रभावशाली
महिलाओं से हुए मेरे कथोपकथन :
ऋषि अत्रि
की पत्नी अनसूया,
प्रसिद्ध
गार्गी, मैत्रेयी,
कात्यायनी, अरुंधति, लोपामुद्रा, अहल्या ।
फिर असुर और वानर रानी,
मंदोदरी और तारा
इन महिलाओं के दुनिया की कहानी
।
उन नारियों
का बंधन
उनके अविश्वसनीय संस्मरण
उनकी
चमत्कारी कहानी-किस्सों के निष्कर्षण।
मेरी कहानी का आधार है अनुभव
शोध कर सकते हो तुम जब-तब
या दे
सकते हैं अपने तार्किक विभव ।
मेरा अपहरणकर्ता दस सिर वाला रावण
लघिमा-गरिमा
में सिद्धहस्त हनुमान
दीर्घ निद्रालु
पेटू दानव कुम्भकर्ण ।
राम-सेतु बना मेरे खातिर समुद्र के धरातल
"यह संभव है?" मत पूछना यह सवाल
भौहें चढ़ाकर, निकालना मत मेरी नकल ।
मेरी कहानी
में जो भी है थोड़ा-बहुत
कथानक
वह है सीता का सीधा-सादा सीतापन,
पवित्र, निष्पक्ष और सती महिला का वर्णन।
मेरा
अनुग्रह और चारित्रिक बल
अलंकारिक
तर्कों के बावजूद हुआ सफल
और किया
जन-मानस का काया-पटल ।
मैंने अपने जीवन में देखे अनेक जीवन,
काली-विद्या
का घनघोर कालापन
जिससे हुआ
मेरी महाकाव्यिक भूमिका में अधोपतन।
स्वर्ण-हिरण,
राक्षस, साँप-सँपेरे, माया सीता
काली-विद्या
ने कभी नहीं पहुंचाया आघात
और नहीं
किया बुरे भाग्य को आमंत्रित ।
मगर प्यार और पवित्रता के नाम
बार-बार धकेला
गया मुझे चौराहे पर खुले-आम
मेरे महाकाव्यिक भूमिका को किया गया बदनाम ।
मेरे पति मेरे प्रभु राम एक ओर
बाकी अदृश्य गतिशील संघर्ष दूसरी ओर
तान रहे
थे मेरे विवेक और
स्वतंत्र इच्छा की डोर ।
हां, मैं सीता हूँ निरपराध
स्वेच्छा से
निर्वासित नारी
बिना किसी
अपवाद ।
फिर भी, मानव-मन का आवारापन,
ज्ञान-शक्ति
का
उर्ध्वीकरण ,
पर्यावरण-नारीवादियों
का सशक्तिकरण ।
और सबसे महत्वपूर्ण मानव-मस्तिष्क
प्रौद्योगिकी
से होगा
प्रदूषित
लगेगा उस
पर खतरनाक कलंक।
मेरा
महाकाव्य है- मेरी आत्मा का द्वार और मेरे सर्जन का कुंजी-पटल
मेरा
महाकाव्य दर्शाता
है- नाट्य-मंच बनाम वनस्पतियों और जीवों का संबंध अटल
धीरे-धीरे
तुम्हारे सामने लाता है पार्थिव और ब्रह्मांडीय जगत-जंजाल !
पेड़-पौधे, नदी-नाले, आकाश-बादल, सूरज, चाँद, सितारे,धूमकेतु,नर-नारी !
मैं हूँ अमर, कालजयी, दयालु और हितकारी
मैं हूँ मृत्युहीन देवी हूँ, अधिवास मेरा प्रत्येक जीवित-नारी ।
यह सत्य है, मैं भूमिजा,कैसे बताऊँ मेरी व्यथा ?
नहीं मिटा
सकती थी अपनी संप्रभुता,
राम ने जब कहा,रचूँगा दूसरी अग्नि-परीक्षा की
गाथा।
तब तक
निभा चुकी थी मैं पुत्री, पत्नी और माता के
दायित्व,
सारे पारिवारिक
कर्त्तव्य
पितृसत्तात्मक
जोड़-घटाव और घरेलू कलंक से परे निर्भय।
मेरा हृदयस्पर्शी इतिहास हर पल याद
दिलाता राम-रावण
मैं दोहराने को विवश हो जाती अपना परिकल्पन
इस
कवितायन का अपूर्व शानदार वर्णन ।
अंग्रेज़ी मूल - डॉ. नंदिनी साहू
हिंदी अनुवाद - दिनेश कुमार माली
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