Tuesday, August 14, 2012

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं सहित... श्यामल सुमन की पाँच काव्य-रचनाएँ


 

श्यामल सुमन की पाँच काव्य-रचनाएँ

संदेश


भारत है वीरों की धरती, अगणित हुए नरेश।
मीरा, तुलसी, सूर, कबीरा, योगी और दरवेश।
एक हमारी राष्ट्र की भाषा, एक रहेगा देश।
कागा! ले जा यह संदेश, घर-घर दे जा यह संदेश।।



सोच की धरती भले अलग हों, राष्ट्र की धारा एक।
जैसे गंगा में मिल नदियाँ, हो जातीं हैं नेक।
रीति-नीति का भेद मिटाना, नूतन हो परिवेश।
कागा! ले जा यह संदेश, घर-घर दे जा यह संदेश।।



शासन का मन्दिर संसद है, क्यों बिल्कुल लाचार।
ख़ुद का हित करते, पर दिखते, जनहित को तैयार।
रंगे सियारों को पहचाने, बदला जिसने वेष।
कागा! ले जा यह संदेश, घर-घर दे जा यह संदेश।।



वीर शहीदों के भारत का, सपना आज उदास।
कर्ज चुकाना है धरती का, मिल सब करें प्रयास।
घर-घर सुमन खिले खुशियों की, कहना नहीं बिशेष।
कागा! ले जा यह संदेश, घर-घर दे जा यह संदेश।।

कैसे बचेगा भारत देश?


है कुदाल सी नीयत प्रायः, बदल रहा परिवेश।
कैसे बचेगा भारत देश?



बड़े हुए लिख, पढ़ते, सुनते, यह धरती है पावन।
जहां पे कचड़े चुन चुन करके, चलता लाखों जीवन।
दिल्ली में नित होली दिवाली, नहीं गाँव का क्लेश।
कैसे बचेगा भारत देश?



है रक्षक से डर ऐसा कि, जन जन चौंक रहे हैं।
बहस कहाँ संसद में होती, लगता भौंक रहे हैं।
लोकतंत्र के इस मंदिर से, यह कैसा सन्देश?
कैसे बचेगा भारत देश?



बूढा एक तपस्वी आकर, बहुत दिनों पर बोला।
सत्ता-दल संग सभी विपक्षी, का सिंहासन डोला।
है गरीब भारत फिर कैसे, पैसा गया विदेश?
कैसे बचेगा भारत देश?



सजग सुमन हों अगर चमन के, होगा तभी निदान।
भाई भी हो भ्रष्ट अगर तो, क्यों उसका सम्मान?
आजादी के नव-विहान का, निकले तभी दिनेश।
ऐसे बचेगा भारत देश।।


चेतना


कहीं बस्ती गरीबों की कहीं धनवान बसते हैं
सभी मजहब के मिलजुल के यहाँ इन्सान बसते हैं
भला नफरत की चिन्गारी कहाँ से आ टपकती है,
जहाँ पर राम बसते हैं वहीं रहमान बसते हैं



करे ईमान की बातें बहुत नादान होता है
मिले प्रायः उसे आदर बहुत बेईमान होता है
यही क्या कम है अचरज कि अभीतक तंत्र जिन्दा है,
बुजुर्गों के विचारों का बहुत अपमान होता है



सभी कहते भला जिसको बहुत सहता है बेचारा
दया का भाव गर दिल में तो कहलाता है बेचारा
है शोहरत आज उसकी जो नियम को तोड़ के चलते,
नियम पे चलने वाला क्यों बना रहता है बेचारा



अलग रंगों की ये दुनिया बहुत न्यारी सी लगती है
बसी जो आँख में सूरत बहुत प्यारी सी लगती है
अलग होते सुमन लेकिन सभी का एक उपवन है,
कई मजहब की ये दुनिया अलग क्यारी सी लगती है

उलझन


सभी संतों ने सिखलाया, प्रभु का नाम है जपना
सुनहरे कल भी आयेंगे, दिखाते रोज एक सपना
वतन आजाद वर्षों से बढ़ी जनता की बदहाली,
भले छत हो न हो सर पे, ये सारा देश है अपना



कोई सुनता नहीं मेरी, तो गाकर फिर सुनाऊँ क्या?
सभी मदहोश अपने में, तमाशा कर दिखाऊँ क्या?
बहुत पहले भगत ने कर दिखाया था जो संसद में,
ये सत्ता हो गयी बहरी, धमाका कर दिखाऊँ क्या?



मचलना चाहता है मन, नहीं फिर भी मचल पाता
जमाने की है जो हालत, कि मेरा दिल दहल जाता
समन्दर डर गया है देखकर आँखों के ये आँसू,
कलम की स्याह धारा बनके, शब्दों में बदल जाता



लिखूँ जन-गीत मैं प्रतिदिन, ये साँसें चल रहीं जबतक
कठिन संकल्प है देखूँ, निभा पाऊँगा मैं कबतक
उपाधि और शोहरत की ललक में फँस गयी कविता,
जिया हूँ बेचकर श्रम को, कलम बेची नहीं अबतक



खुशी आते ही बाँहों से, न जाने क्यों छिटक जाती?
मिलन की कल्पना भी क्यों, विरह बनकर सिमट जाती?
सभी सपने सदा शीशे के जैसे टूट जाते क्यों?
अजब है बेल काँटों की सुमन से क्यों लिपट जाती?

दृष्टि


वतन से प्यार मुझको भी वतन के गीत गाता हूँ
नये निर्माण की खातिर पसीना भी बहाता हूँ
जमीं पर आयी आफत का हवा में उड़ के सर्वेक्षण,
मिले भाषण में जब राहत खरी खोटी सुनाता हूँ



तहे दिल से तमन्ना है तिरंगा के तरानों का
सभी लोगों को मिल पाते नये अवसर उड़ानों का
मगर अफसोस कितने घर में चूल्हे भी नहीं जलते,
वतन सबका बराबर है नहीं बस कुछ घरानों का



जहाँ पर देश की बातें सुजन करते हैं वो संसद
विरोधों में भी शिष्टाचार की पहचान है संसद
कई दशकों के अनुभव से क्या हमने ये नहीं सीखा,
अशिष्टों की लड़ाई का, अखाडा बन गया संसद



हमारी भिन्नता में एकता का मूल है भारत
समन्दर में पहाड़ों में है बसता गाँव में भारत
मगर मशहूर शहरों की खबर मिलती सदा हमको,
भला हम कब ये समझेंगे कि बस दिल्ली नहीं भारत



नमन मेरा है वीरों को चमन को भी नमन मेरा
सभी प्रहरी जो सीमा पर है उनको भी नमन मेरा
नहीं लगते हैं क्यों मेले शहीदों की चिताओं पर,
सुमन श्रद्धा के हैं अर्पण उन्हें शत शत नमन मेरा 



श्यामल सुमन
09955373288

 


2 comments:

dr s. basheer said...

sree suman jee 5 kavitaaye behad pasand aayee desh bhaktee ke saath saath teekhaa vyangy be misaal Drushtee badee achhee lagee

shubh kaamanaaye

dr s. basheer said...

sree suman jee 5 kavitaaye behad pasand aayee desh bhaktee ke saath saath teekhaa vyangy be misaal Drushtee badee achhee lagee

shubh kaamanaaye