एक साक्षात्कार
:
कवि महेंद्रभटनागर
से
*प्रश्नकर्त्ता : बी. आर.
बेनीवाल [‘अपनी हिंदी]
— लेखन में आपको क्या
कठिनाइयाँ आयीं?
हर कोई
सर्वकालिक लेखक / रचनाकार नहीं
होता। आजीविका के लिए संघर्ष करना पड़ता है। जिस काम से रोटी-रोज़ी चलती है; उस काम को प्राथमिकता देनी पड़ती है। वहाँ शिथिलता नहीं बरती जा सकती। प्राध्यापक रहा। अधिकांश समय महाविद्यालयों
में गुज़रा — अध्यापन एवं अन्य
दायित्वों के निर्वाह में। पारिवारिक ज़िम्मेदारियाँ
रहीं। स्वयं के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना पड़ा। सामाजिकता
की उपेक्षा भी नहीं की जा सकती। गरज़ यह कि लेखन-कर्म को अधिक समय नहीं मिल पाता। रात-रात भर जगकर पढ़ना-लिखना स्वास्थ्य को क्षति पहुँचाना है। माना कि अनेक लेखक
ऐसा करते हैं। जहाँ तक मेरा संबंध है, लेखन में सर्वाधिक बाधाएँ पारिवारिक परेशानियों के कारण आयीं। त्रस्त
मन:स्थितियों में सुचारू रूप से पढ़ना-लिखना सम्भव नहीं।
— कविताएँ लिखते समय क्या कोई
ख़ास वातावरण पसंद करते है या कोई ख़ास वस्तु (जैसे ख़ास
टेबल, कलम या कुर्सी इत्यादि)?
नहीं, ऐसा कुछ नहीं। लेकिन लिखने / रचना करने के लिए अवकाश-सुविधा के अतिरिक्त,
मन भी बनाना पड़ता है। किसी आन्तरिक प्रेरणावश लघु-विस्तारी
कविता-सृष्टि करना अवश्य सहज है।
मेरी प्रमुख विधा कविता ही रही। काव्य-रचना मेरे
लिए यातना से गुज़रना नहीं है। रचना-सृष्टि के पश्चात् अपूर्व तोष की अनुभूति होती है।
— आपकी पसंदीदा रचनाएँ कौन-कौन-सी हैं?
बताना
कठिन है। अप्रिय रचना के अस्तित्व का प्रश्न ही नहीं।
अधिक
प्रिय रचनाएँ हो सकती हैं। सुविधा से उनका चयन करना होगा। माना, यह कार्य भी इतना आसान नहीं!
— अन्य लेखकों की पसंदीदा
रचनाएँ?
‘श्रीरामचरित
मानस’, प्रेमचंद का अधिकांश साहित्य,
आधुनिक कवियों में प्रसाद, पंत, निराला,
दिनकर, सुमन, विवेकानंद-साहित्य, आदि।
— आपके प्रेरणास्रोत ?,
गौतम
बुद्ध, गांधी, मार्क्स, विवेकानंद, तुलसीदास,
प्रेमचंद।
—हिंदी के बारे में आपके विचार?
हिंदी मेरी मातृभाषा है। उसे अधिकाधिक समृद्ध और सक्षम बनाना-देखना चाहता
हूँ।
— भारत के बारे में आपके विचार?
भारत मेरी मातृभूमि है। मुझे भारत में रहना सुखद लगता है।
विदेश
में कहीं भी गया नहीं। दुनिया देखने की इच्छा ज़रूर है।
—वर्तमान हिंदी साहित्य के बारे में आपके
विचार ?
वर्तमान
में भारत में और वह भी हिंदी में उत्कृष्ट साहित्य- रचना हो रही है।
—हिंदी
और हिंदी साहित्य का भविष्य क्या है?
हर प्रकार से उज्ज्वल दीखता है।
—आपकी
दृष्टि में हिंदी कितनी उपयोगी है ?
हिंदी भारत की अधिकांश जनता की मातृभाषा है। हिंदी भारत की सम्पर्क
भाषा है। प्राचीन काल से वह अनायास भारत की राष्ट्रभाषा चली आ रही है। हिंदी भारत के साधुओं-संतों की भाषा चिरकाल से रही है। रामेश्वरम् से बद्रीनाथ — द्वारिकापुरी से जगन्नाथपुरी।
भारत की भावनात्मक एवं राष्ट्रीय एकता उसके प्रचार- प्रसार पर निर्भर है।
—हिंदी
साहित्य का सरंक्षण और प्रचार - प्रसार किस प्रकार हो?
आज जब देश स्वतंत्र है तब मात्र हिंदी भाषा और साहित्य के संरक्षण और प्रचार-प्रसार का
दायित्व ही नहीं; भारत की प्रत्येक भाषा और उसके साहित्य का संरक्षण एवं उसके प्रचार- प्रसार
का दायित्व केन्द्रीय और राज्य-सरकारों
का है; जिसे वे समझदारी से निभा रही हैं।
—हिंदी
से आपकी उम्मीदें ?
हिंदी में आधुनिक ज्ञान-विज्ञान
से सम्बद्ध साहित्य-सामग्री आसानी से उपलब्ध हो। हमें नये शब्दों
के गढ़ने के स्थान पर अंतर्राष्ट्रीय शब्दों को ही अपना बना लेना चाहिए। विश्व की
किसी भी भाषा के शब्दों से हमें परहेज़ न हो।
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