शोध-आलेख
मन्नू भण्डारी की कहानियों में नारी भावना
इ. जयलक्ष्मी*
नारी शक्ति स्वरूपिणी है। वह पुरुष प्रधान समाज में रहकर अपनी शक्ति और साहस
को प्रमाणित करने के लिए हरदम प्रयास करती रहती है। उनमें कुछ एक स्त्रियों ने
सफलता पा ली हैं। लेकिन आज भी कई जगह स्त्रियाँ आत्मनिर्भर नहीं हैं। अपनी
इच्छानुसार कोई काम या निर्णय नहीं ले सकती है। इसको हमेशा पिता, पति या पुत्र के
अधीन रहना पड़ता है। उनको सचेत करने में कई साहित्यकारों ने अपनी तूलिका चलायी
हैं।
सर्वप्रथम प्रेमचन्द ने सभ्यता के आवरणों को चीरती हुई ग्रामीण नारी के निश्छल
सहज एवं संत्रस्त रूपों को पाठकों के समक्ष रखा। प्रेमचन्द ने सामाजिक दृष्टि से
उपेक्षिता, प्रताड़िता, अपमानिता नारी को उनके प्राप्त अधिकारों के प्रति जागरूक
किया।
प्रसाद के नारी-पात्रों में कुछ अतीत गौरव और प्राचीन आदर्शों के प्रतीक हैं।
प्रेमचन्द्रीय युग के कहानिकारों में कौशिक, उग्र, चतुरसेन शास्त्री, वृन्दावनलाल
वर्मा आदि उल्लेखनीय हैं।
जैनेन्द्र, अज्ञेय, इलाचन्द्र जोशी ने नारी-मन में अवस्थित कुण्ठाओं,
आकांक्षाओं, कामजन्य विकृतियों एवं ग्रन्थियों का प्रत्यक्षीकरण कराया है। यशपाल
जैन ने पुरुषों के शोषणचक्र में पिसती-कराहती नारी के यथार्थ रूप को उद्घाटित किया
है।
उनके मार्ग का अनुसरण करते हुए महिला साहित्यकारों ने भी नारी के उन्नमन के
लिए कदम उठाये हैं। इन नारी-कथाकारों में मन्नू भण्डारी, उषा प्रियंवदा, कृष्णा
सोबती, निरूपमा सोबती आदि ने प्रेम के बदलते स्वरूप, परिवर्तित दाम्पत्य संबंधों को
नए नैतिक मानदण्डों और नव्यतम प्रतिमानों की अनेक कहानियाँ लिखीं। उनमें श्रीमती
मन्नू भण्डारी जी का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
मन्नू भण्डारी ने आधुनिक नारी को पारिवारिक दायित्व निर्वाह के लिए संघर्षशील
प्रदर्शित किया है। उनकी ‘क्षय’ कहानी की कुन्ती घर
का समस्त बोझ ढ़ोती है जिसे वहन करते हुए उसका प्रखर व्यक्तित्व और स्वतंत्र
चिन्तन कुंठित होकर रह गया है। घर में हृदय-रोग से पीड़ित पिता है, आठवीं कक्षा
में पढ़नेवाला छोटा भाई है और अशिक्षित माँ। यह पिछले कई वर्षों से बीमार पिता की
औषधियों, भाई की पुस्तकों और घरेलू चीज़ों के लिए मरती-खपती आई है, लेकिन उसकी
ज़िम्मेदारी का समापन यहीं नहीं होता, उसे सावित्री नाम की एक गैरज़िम्मेदार लड़की
को ट्यूशन पढ़ाना पड़ता है, न चाहते हुए भी विवश होकर पढ़ाना पड़ता है। आख़िर
पारिवारिक सदस्यों के भविष्य को सुरक्षित बनाते-बनाते उसे लगने लगता है कि उसे भी
रुग्ण पिता की तरह क्षय ने दबोच लिया है। लेखिका ने महानगरीय जीवन में उद्भूत
विसंगतियों से बचने के लिए ‘क्षणबोध’ को महत्त्व दिया है।
उनकी ‘यही सच है’ की दीपा उसी क्षण को सच
स्वीकारती है, जिसे उसने निर्बन्ध या मुक्त भाव से भोगा हो। ‘ऊँचाई’ की कहानी की नायिका शिवानी भी प्रेम के क्षणों में जीती
है। वह अपने पति शिशिर को मन और प्रेमी अतुल को तन समर्पित करती है। यह अलग है कि
उनका तन-समर्पण उसके पति शिशिर को स्वीकार नहीं है। शिवानी महसूस करती है कि अगर
वह यह नहीं करेगी तो उसे दुःख होगा। उसका यह प्रेम आत्मपीड़िन में उजागर नहीं होता,
आत्माभिव्यक्ति में होता है।[1]
मन्नू जी की नारियों के नवीन दृष्टिकोण को सामाजिक दृष्टि से स्वीकारा जाए या
नहीं, पर एक बात अवश्य है कि उनके पात्रों में एक स्वतन्त्र वैचारिकता का
साक्षात्कार अवश्य होता है।
मन्नू भण्डारी के नारी-पात्र सामाजिक अन्याय एवं अमानवीय शोषण के विरुद्ध
आवाज़ बुलन्द करते हैं। आधुनिकबोध की दृष्टि से उन्हें धर्म के पूज्य अनैतिक मूल्य
स्वीकार्य नहीं है और न वे धार्मिकता की आड़ में होनेवाले अमानवीय शोषण के समक्ष
नतमस्तक होते हैं। वे बौद्धिक दृष्टि से जागरूक एवं चिन्तनशील नारियाँ हैं।
लेखिका की ‘ईसा के घर इन्सान’ नामक कहानी में
युवा अध्यापिकाओं द्वार पादरियों के दिग्भ्रमित करनेवाले सिद्धान्तों का विरोध
इसका प्रमाण है। सिस्टर एंजिला फ़ादर के मानसिक परिष्कार के प्रयोग को चुनौती देती
हुई स्पष्ट शब्दों में कहती है— ‘मुझे कोई नहीं रोक सकता,
जहाँ मेरा मन होगा, मैं जाऊँगी। मैंने तुम्हारे फ़ादर ... अब वे कभी ऐसी बात नहीं
करेंगे।’[2] एंजला की विजय अंधविश्वास, अनैतिकता एवं बाह्य आडम्बर पर आधुनिक नारी के
जागरुक व्यक्तित्व की विजय है।
मन्नू भण्डारी के नारी-पात्रों ने रूढ़िगत सामाजिक नैतिकता का विरोध अवश्य
किया है लेकिन इन पात्रों में वैयक्तिक नैतिकता के प्रति प्रतिबद्धता अवश्य मिलती
है। ये सभी पात्र वैयक्तिक नैतिकता का प्रश्रय लेकर ही परिवेशग्त या मानसिक बोझ से
मुक्त होने के प्रयत्नशील दृष्टिगत होते हैं। ‘गीत का चुम्बन’ की कनिका, ‘दीवार, बच्चे और बरसात’ की किरायेदारिनी, ‘तीन निगाहों की एक तस्वीर’ की दर्शना, ‘ऊँचाई’ की शिवानी आदि
नारी-पात्र सामाजिक रूढ़िगत नैतिकता को नकार कर वैयक्तिक आवश्यकताओं को महत्त्व
देते हैं।
मन्नू की नारियाँ चिन्तनशील है, जागरूक है, आधुनिकबोध से सम्पन्न है लेकिन
इतना होते हुए भी उनके बहुत से नारी-पात्र परिस्थितियों के समक्ष विवश दृष्टिगत
होते हैं। ‘शायद’ कहानी की माला, ‘नई नौकरी’ की रमा ‘अकेली’ कहानी की सोमा बुआ परिस्थितियों के कारण अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व खो बैठती
हैं। मन्नू के नारी पात्र भौतिक दृष्टि से सुविधासम्पन्न होकर भी एक अतृप्ति,
छटपटाहट, टीस से आक्रान्त हैं। इस अतृप्ति का कारण कहीं असफल प्रेम है, कहीं असफल
वैवाहिक जीवन और कहीं कुंठित यौन लालसाएँ।
मन्नू भण्डारी अत्यन्त तीव्र एवं सूक्ष्म पारखी हैं। उन्होंने दाम्पत्य – जीवन
की विसंगतियों को झेलती हुई, पति के डुप्लीकेट केरेक्टर को सहती हुई, प्रतिपल
अपमान और तिरस्कार के कड़वे घूंट पीती हुई नारी के अन्तर्मन की कुंठाओं को पाठकों
के समक्ष रखा है। उनकी कील और कसक, तीन निगाहों की एक तस्वीर, बाँहों का घेरा आदि
कहानियों में कुंठितहृदया नारियों के सजीव एवं मुखरित चित्र मिलते हैं।
मन्नू की नारियों में जागरूकता है, सूझ-बूझ है और अपने अधिकारों के प्रति
सजगता है। वे अगर पुरुष के हथकण्डों की कहीं शिकार भी हैं तो विषम परिस्थियों में
पड़कर, उनमें ज़िन्दगी को सहज-सामान्य तरीके से जीने की ललक है।
मन्नू भण्डारी ने ऐसी नारियों का उल्लेख भी किया है, जो पुरुषों की धोखे-बाजी,
धूर्तता एवं फ़रेबी प्रकृति से संकटग्रस्त हुई हैं। विवाह एवं प्रेम के संबंध में
लेखिका ने नारी-स्वातंत्रय को स्वीकारा है।
मन्नू भण्डारी ने कहीं भी खुलेतौर पर विवाह को ग़ैर-ज़रूरी या ढकोसला नहीं
कहा, पर उन्होंने ऐसे वैवाहिक जीवन को त्याज्य माना है जहाँ पारस्परिक विश्वास,
मैत्रीभाव या सद्भावना का माहौल न हो।
मन्नू भण्डारी ने नारी के मातृत्व को अत्यन्त श्रद्धा रूप में देखा है। उनकी
नारियाँ कितनी भी शिक्षित हों, चाहे वैवाहिक जीवन को व्यक्तित्व का विक्रय मानती
हों, सामाजिक ढाँचे में क्रान्ति का आह्वान करती हों, लेकिन वे भी नारी की पूर्णता
मातृत्व में स्वीकारती हैं।
मन्नू भण्डारी ने अपने नारी-पात्रों के माध्यम से निरूपित किया है। ‘यही सच है’ की दीपा, ‘ऊँचाई’ की शिवानी, ‘बन्द दराज़ों का साथ’ की मंजरी, ‘तीन निगाहों की एक तस्वीर’ की दर्शना जैसे नारी-पात्र लेखिका की चिन्तन, क्रान्तिकारी चेतना, प्रगतिगामी
दृष्टि के द्योतक हैं।
संदर्भ-ग्रंथ सूची:
डॉ. षीना ईप्पन : मन्नू भण्डारी का रचना संसार मध्यवर्गीय
जीवन परिप्रेक्ष्य में, जवाहर पुस्तकालय, मधुरा
मीनाक्षी निशांत
सिंह : महिला सशक्तीकरण का सच, ओमेगा पब्लिकेशन्स,
नई दिल्ली
डॉ. शोभा
निंबालकर-पवार : हिन्दी कहानी और नारी विमर्श मानसी पब्लिकेशन्स,
नई दिल्ली
डॉ. अमरनाथ : नारी की मुक्ति का संघर्ष, रेमाधव
पब्लिकेशन्स प्राइवेट लिमिटेड, गाजियाबाद-2
3 comments:
अच्छा आलेख । मन्नू भण्डारी जी ने कम लिखा है, किन्तु जो भी लिखा है वह स्तरीय है।
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