Friday, August 10, 2012

गीत - जो जितना देता है जग में ....


गीत  
जो जितना देता है जग में ... 
सम्पत देवी मुरारका

जो जितना देता है जग में ,
उतना ही वह पाता है |
यह संसार बहुत सुंदर है ,
यह अपना सपनों का घर है ,
यहाँ कन्हैया रास रचाता ,
यहाँ गूंजता वंशी- स्वर है |
सत्यम् ,शिवम् , सुंदरम वाली ,
यह धरती सबकी माता है |
गंगा- यमुना के प्रवाह में ,
पाप सभी के धुल जाते है ,
यहाँ धर्म- मजहब के नाते ,
हँसी खुशी से निभ जाते है |
अनुपम यहाँ प्रकृति की शोभा ,
सबके ह्रदय विरम जाते है ,
ढाई आखर प्रेम की भाषा ,
बन जाती अपनी परिभाषा |
यहाँ निराशा नहीं फटकती ,
यहाँ रंगोली रचती आशा |
सुन्दर उपवन जैसा भारत ,
सबके मन को हर्षाता है |
सावन में हैं झूले पड़ते ,
होली में मृदंग हैं बजाते |
तुलसी यहाँ राम गुण गाते ,
और कबीरा निर्गुण कहते |
इस माटी का तिलक लगाओ ,
माटी से सबका नाता है |
जो जितना देता है जग में ,
उतना ही वह पाता है | 

           

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