बचपन
याद बहुत आती बचपन की।
उमर हुई है जब पचपन की।।
बरगद, पीपल, छोटा पाखर।
जहाँ बैठकर सीखा आखर।।
संभव न था बिजली मिलना।
बहुत सुखद पत्तों का हिलना।।
नहीं बेंच, था फर्श भी कच्चा।
खुशी खुशी पढ़ता था बच्चा।।
खेल कूद और रगड़म रगड़ा।
प्यारा जो था उसी से झगड़ा।।
बोझ नहीं था सर पर कोई।
पुलकित मन रूई की लोई।।
बालू का घर होता अपना।
घर का शेष अभीतक सपना।।
रोज बदलता मौसम जैसे।
क्यों न आता बचपन वैसे।।
बचपन की यादों में खोया।
सु-मन सुमन का फिर से रोया।।
***
प्रियतम होते पास अगर
प्रियतम होते पास अगर
मिट जाती है प्यास जिगर
ढ़ूँढ़ रहा हूँ मैं बर्षों से
प्यार भरी वो खास नजर
टूटे दिल की तस्वीरों का
देता है आभास अधर
गिरकर रोज सम्भल जाएं तो
बढ़ता है विश्वास मगर
तंत्र कैद है शीतल घर में
जारी है संत्रास इधर
लोगों को छुटकारा दे दो
बन्द करो बकवास खबर
टूटे सपने सच हो जाएं
सुमन हृदय एहसास अगर
***
प्रियतम होते पास अगर
मिट जाती है प्यास जिगर
ढ़ूँढ़ रहा हूँ मैं बर्षों से
प्यार भरी वो खास नजर
टूटे दिल की तस्वीरों का
देता है आभास अधर
गिरकर रोज सम्भल जाएं तो
बढ़ता है विश्वास मगर
तंत्र कैद है शीतल घर में
जारी है संत्रास इधर
लोगों को छुटकारा दे दो
बन्द करो बकवास खबर
टूटे सपने सच हो जाएं
सुमन हृदय एहसास अगर
***
ज़िंदगी
आग लग जाये जहाँ में फिर से फट जाये ज़मीं।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।
आँधी आये या तूफ़ान बर्फ गिरे या फिर चट्टान।
उत्तरकाशी भुज लातूर सुनामी और पाकिस्तान।।
मौत का ताण्डव रौद्र रूप में फँसी ज़िंदगी अंधकूप में।
लाख झमेले आने पर भी बढ़ी ज़िंदगी छाँव धूप में।।
दहशतों के बीच चलकर खिल उठी है ज़िंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।
कुदरत के इस कहर को देखो और प्रलय की लहर को देखो।
हम विकास के नाम पे पीते धीमा धीमा ज़हर तो देखो।।
प्रकृति को हमने क्यों छेड़ा इस कारण ही मिला थपेड़ा।
नियति नियम को भंग करेंगे रोज़ बढ़ेगा और बखेड़ा।।
लक्ष्य नियति के साथ चलना और सजाना ज़िंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।
युद्धों की एक अलग कहानी बच्चे बूढ़े मरी जवानी।
कुरुक्षेत्र से अब इराक़ तक रक्तपात की शेष निशानी।।
स्वार्थ घना जब जब होता है जीवन मूल्य तभी खोता है।
करुणभाव से मुक्त हृदय भी विपदा में संग संग रोता है।।
साथ मिलकर जब बढ़ेंगे दूर होगी गंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।
जीवन है चलने का नाम रुकने से नहीं बनता काम।
एक की मौत कहीं आ जाये दूजा झंडा लेते थाम।।
हाहाकार से लड़ना होगा किलकारी से भरना होगा।
सुमन चाहिए अगर आपको काँटों बीच गुज़रना होगा।।
प्यार करे मानव मानव को यही करें मिल बंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।
आँधी आये या तूफ़ान बर्फ गिरे या फिर चट्टान।
उत्तरकाशी भुज लातूर सुनामी और पाकिस्तान।।
मौत का ताण्डव रौद्र रूप में फँसी ज़िंदगी अंधकूप में।
लाख झमेले आने पर भी बढ़ी ज़िंदगी छाँव धूप में।।
दहशतों के बीच चलकर खिल उठी है ज़िंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।
कुदरत के इस कहर को देखो और प्रलय की लहर को देखो।
हम विकास के नाम पे पीते धीमा धीमा ज़हर तो देखो।।
प्रकृति को हमने क्यों छेड़ा इस कारण ही मिला थपेड़ा।
नियति नियम को भंग करेंगे रोज़ बढ़ेगा और बखेड़ा।।
लक्ष्य नियति के साथ चलना और सजाना ज़िंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।
युद्धों की एक अलग कहानी बच्चे बूढ़े मरी जवानी।
कुरुक्षेत्र से अब इराक़ तक रक्तपात की शेष निशानी।।
स्वार्थ घना जब जब होता है जीवन मूल्य तभी खोता है।
करुणभाव से मुक्त हृदय भी विपदा में संग संग रोता है।।
साथ मिलकर जब बढ़ेंगे दूर होगी गंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।
जीवन है चलने का नाम रुकने से नहीं बनता काम।
एक की मौत कहीं आ जाये दूजा झंडा लेते थाम।।
हाहाकार से लड़ना होगा किलकारी से भरना होगा।
सुमन चाहिए अगर आपको काँटों बीच गुज़रना होगा।।
प्यार करे मानव मानव को यही करें मिल बंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।
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1 comment:
ताजगी और मासूमियत भरा 'बचपन'.
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