Friday, January 27, 2012

कविता



कोख़ का क़त्ल

- दीपक शर्मा

"ज़मीं के सीने से लिपटा ये कफ़न किसका है

कफ़न में लिपटा ये मासूम बदन किसका है

कफ़न नया नहीं पुरानी धोती का टुकड़ा है

और इस टुकड़े में लिपटा प्यारा सा मुखड़ा है

बड़ी बेदर्दी से दफनाया गया मिटटी में इसे

पाँव पेट से लगे हैं , सिर छाती में सिकुड़ा है



मिटटी तक गीली है ले देख मिटटी की हालत

खाक तक पूरी न मयस्सर हुई कब्र को इसकी

और ऊपर से रख दिए फिर पत्थर तमाम

ताकि जान न पायें निगाहें कब्र है किसकी



प्यारी-प्यारी सी हथेली, मखमली-मखमली नाख़ून

कच्चे गुलाब से होंठ और निबोरी - सी निगाहें

गुलाब जिस्म, परी से पाँव, दिल - फरेब मुस्कान

जिसको देखकर खुद - ब - खुद उठ जाए बाहें



एक परी ने कहीं शक्ल एक बच्ची की लेकर

किसीके सुने चमन में खिलना चाहा था

उसने सोचा चलो ; जी लूँ इंसान की तरह

माँ की छाती से चिपककर पलना चाहा था



उसे मालूम न था कि पहली किलकारी ही उसकी

चीख़ बनकर रह जाएगी गले के ही भीतर

निगाहें देख भी ना पाएंगी दुनिया नज़र पहली

और दुनिया ही सिमट जायेगी नज़र के भीतर



क़त्ल कर देंगे माँ - बाप इस ख़ातिर क्योंकि

उसकी आवाज़ से आई है शहनाई की सदा

उनकी उम्मीदें थीं डोलियाँ ओथाने की कहीं

न की दहलीज़ से हो उनके कोई लड़की विदा



झूटी शान की ख़ातिर ,पुरानी रस्मों के कारण

लोग नन्हीं- नन्हीं बेटियों की काट देते हैं बोटियाँ

ताकि सिर ना झुके कहीं गैर पाँव के आगे

बेटी देती नहीं हैं मोक्ष, वंश और रोटियां



और बड़ी कमतर सी बात ये जो माँ अपना

लहू पिलाती है सुबह - शाम महीनों तक

जिसकी धड़कन के संग धड़कती एक धड़कन

जिसकी साँसों से लेती कोई सांस महीनो तक



जब वही अहसास एक शक्ल बच्ची की लेकर

कोख से आता है तो माएं क्यों आंसू बहाती हैं

क्यों निगाहें फेर लेतीं फिर पत्थर - दिल बनकर

जब ख़ुद दाइयां इन मासूमों का गला दबाती हैं



क्यों रातों की स्याही और दिल के उजाले में

लोग रौशिनी को अँधेरे कमरों की बुझा देते हैं

दबा कर नर्म गला, हिस्से कर मासूम बदन

घर की चौखट पर एक दिया जला देते हैं



याद रखो ! कि आसमान की बिसात है तब तक

जब तलक पाँव ज़मीन पे हैं और जहाँ तक

जहाँ पर धरती ख़त्म, आसमान वहीँ ख़त्म

इन झूटी ख्वाहिशों की फकत दुनिया है वहां तक

3 comments:

Dr. Mahendra Bhatnagar said...

हृदय-मस्तिष्क को झकझोरने वाली सशक्त मार्मिक रचना! प्रभावित हुआ।
*महेंद्रभटनागर
drmahendra02@gmail.com

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
Unknown said...

बेहद हृदय स्पर्शी और संदेश्जनक कविता थी....सुन्दर.

http://shona91.blogspot.in/