युग मानस की अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि
डॉ. गणेशदत्त सारस्वत
(१० दिसम्बर १९३६--२६ जनवरी २०१०)
डॉ. गणेशदत्त सारस्वत युग मानस के पाठकों के लिए सुपरिचित नाम, आज उनके हमारे बीच न रहने का दुःखद समाचार से युग मानस परिवार विक्षुब्ध है । रचनाकार के रूप में, युग मानस द्वारा आयोजित प्रतियोगिताओं के निर्णायक के रूप में उन्होंने बड़ी श्रद्धापूर्वक युग मानस के साथ जुड़े रहे । उनके आकस्मिक निधन से युग मानस ने एक अनन्य सहयोगी को खो दिया है । रामभक्ति पूर्ण साहित्य के विकास में, मानस के मंथन में एक समर्पित व्यक्ति के रूप में डॉ. सारस्वत जी की सेवाएँ अविस्मरणीय है । ईश्वर उनकी आत्मा को असीम शांति प्रदान करें । वे भौतिक रूप से आज हमारे साथ भले ही न हो, मगर उनका कृतित्व और उनके विचार हमारे साथ जीवित है ।
- डॉ. सी. जय शंकर बाबु, संपादक, युग मानस
हिन्दी साहित्य के पुरोधा विद्वता व विनम्रता की प्रतिमूर्ति सरस्वतीपुत्र, डा० गणेश दत्त सारस्वत २६ जनवरी २०१० को हमारे बीच नहीं रहे। शिक्षा : एम ए, हिन्दी तथा संस्कृत में पी० एच० डी०प्राप्त सम्मान: उ० प्र० हिंदी संस्थान से अनुशंसा पुरुस्कार, हिंदी साहित्य सम्मेलन इलाहाबाद से साहित्य महोपाध्याय की उपाधि सहित अन्य बहुत से पुरुस्कार।पूर्व धारित पद: पूर्व विभागाध्यक्ष हिंदी विभाग आर० एम० पी० पी० जी० कालेज सीतापुर आप ’हिन्दी सभा’ के अध्यक्ष तथा’ ’मानस चन्दन’ के प्रमुख सम्पादक रहे हैं। सारस्वत कुल में जनम, हिरदय में आवास..उमादत्त इनके पिता, सीतापुर में वास. श्यामल तन झुकते नयन, हिन्दी के विद्वान .वाहन रखते साइकिल, साधारण परिधान..कोमल स्वर मधुरिम वचन, करते सबसे प्रीति.सरल सौम्य व्यवहार से, जगत लिया है जीत..कर्म साधना में रमे, भगिनी गीता साथ.मानस चन्दन दे रहे, जनमानस के हाथ..तजी देह गणतन्त्र दिन, छूट गये सब काज. हुए जगत में अब अमर, सारस्वत महाराज हिंदी की सारी सभा, हुई आज बेहाल..रमारमणजी हैं विकल, साथ निरन्जन लाल.. आपस में हो एकता, अपनी ये आवाज. आओ मिल पूरित करें, इनके छूटे काज..अम्बरीष नैना सजल, कहते ये ही बात.आपस में सहयोग हो, हो हाथों में हाथ..--अम्बरीष श्रीवास्तव
सारस्वत जी नहीं रहे...
श्री सारस्वत जी नहीं रहे, सुनकर होता विश्वास नहीं.लगता है कर सृजन रहे, मौन बैठकर यहीं कहीं....
मूर्ति सरलता के अनुपम,जीवंत बिम्ब थे शुचिता के. बाधक बन पाए कभी नहीं-पथ में आडम्बर निजता के. वे राम भक्त, भारत के सुत,हिंदी के अनुपम चिन्तक-कवि.मानस पर अब तक अंकित हैसादगीपूर्ण वह निर्मल छवि. प्रभु को क्या कविता सुनना है?या गीत कोई लिखवाना है? पत्रिका कोई छपवाना है -या भजन नया रचवाना है?
क्यों उन्हें बुलाया? प्रभु बोलो, हम खोज रहे हैं उन्हें यहीं. श्री सारस्वत जी नहीं रहे, सुनकर होता विश्वास नहीं...
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आइये! हम उन्हें कुछ श्रद्धा सुमन समर्पित करते हैं।
प्रस्तुति - आचार्य संजीव सलिल
सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम">सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम / दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
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