Sunday, January 31, 2010

कविता

भले और दीपक जलाओं नहीं तुम
-डॉ. गिरीश कुमार वर्मा

भले और दीपक जलाओं नहीं तुम ।
जला दीप लेकिन बुझाओ नहीं तुम।।

सहारा न दो लडखडा़ते हुओं को,
मगर ग़र्त में तो गिराओ नहीं तुम।

लिखो नाम दिल में किसी का खुशी से,
लिखा नाम लेकिन मिटाओ नहीं तुम।

भुला दो सभी कसमें - वादे भुला दो,
मगर आदमीयत भुलाओ नहीं तुम।

तुम्हारे लिए आइना बन गया जो,
उसे सामने से हटाओ नहीं तुम।

अग़र ख़ौफ़ इतना तुम्हें बिजलियों का,
कभी आशियाना बनाओ नहीं तुम।

जिसे राज़ मालूम सारे जहाँ का,
उसे राजे़ उल्फत बताओ नहीं तुम,

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