Thursday, November 4, 2010

कविता - इलेक्ट्रॉनिक दिवाली

इलेक्ट्रॉनिक दिवाली

राकेश ‘नवीन’

इसे महंगाई की मार कहें, अथवा फैशन की बहार
मिट्टी के दीये पर देखें, बिजली कैसे छा गई,
अब इलेक्ट्रॉनिक दिवाली आगई !


हलवाई की मिठाई पर, हल्दीराम का प्रभाव भा गया
शुभ कामनाओं की जगह, पैकेटिया सिस्टम छा गई ।
अब इलेक्ट्रॉनिक दिवाली आगई !


लक्ष्मी की पूजा धन, धान्य, वैभव समृद्धि
मतलब झूठी निष्ठा, मिथ्वा विश्वास आडंबर को दिखला गई ।
अब इलेक्ट्रॉनिक दिवाली आगई !


घर की लक्ष्मी क्लबों में, रेस्तरा और बीयर बारों में
नाच-नाच कर, झूम-झूम कर सशक्तिकरण का असर दिखला गई ।
अब इलेक्ट्रॉनिक दिवाली आगई !


कभी बंधुत्व सौहार्द्र का यह पर्व हुआ करता था,
आज अमीर और गरीब का स्पष्ट स्पष्ट फर्क दिखला गई
अब इलेक्ट्रॉनिक दिवाली आगई !

जमींदार, महाजन सूद लेकर खून चूसा करते थे
क्रेडिट कार्ड तो उससे बढ़कर अपनी उपस्थिति दिखा गई
अब इलेक्ट्रॉनिक दिवाली आगई !

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