Sunday, September 5, 2010

श्यामल सुमन की एक कविता - अक्स

अक्स


साथी सुख में बन जाते सब दुख में कौन ठहरता है।
मेरे आँगन का बादल भी जाने कहाँ विचरता है।।

कैसे हो पहचान जगत में असली नकली चेहरे की।
अगर पसीने की रोटी हो चेहरा खूब निखरता है।।

फर्क नहीं पड़ता शासन को जब किसान भूखे मरते।
शेयर के बढ़ने घटने से सत्ता-खेल बिगड़ता है।।

इस हद से उस हद की बातें करते जो आसानी से।
और मुसीबत के आते ही पहले वही मुकरता है।।

बड़ी खबर बन जाती चटपट बड़े लोग की खाँसी भी।
बेबस के मरने पर चुप्पी, कैसी यहाँ मुखरता है।।

अनजाने लोगों में अक्सर कुछ अपने मिल जाते हैं।
खून के रिश्तों के चक्कर में जीवन कहाँ सँवरता है।।

करते हैं श्रृंगार प्रभु का समय से पहले तोड़ सुमन।
जो बदबू फैलाये सड़कर मुझको बहुत अखरता है।।

1 comment:

गुड्डोदादी said...

अनजाने लोगों में अक्सर अपने कुछ मिल जाते हैं
खून के रिश्तों के चक्कर में जीवन कहाँ सँवरता है
बहुत ठोस और सटीक
और लिखा
मेरे आँगन का बादल भी जाने कहाँ विचरता है
पानी में अक्स देख कर जी रहा थी मै
अपनों ने पत्थर मारा तो मंजर ही बदल गया