शुभाकांक्षा :
- आचार्य संजीव वर्मा सलिल
विनय यही है आपसे सुनिए हे सलिलेश!
रहें आपके द्वार पर खुशियाँ अगिन हमेश..
नये वर्ष में कट सकें भव-बाधा के पाश.
अँगना में फूलें 'सलिल' यश के पुष्प पलाश..
बिदाई गीत:
अलविदा दो हजार दस...
संजीव 'सलिल'
*
अलविदा दो हजार दस
स्थितियों पर
कभी चला बस
कभी हुए बेबस.
अलविदा दो हजार दस...
तंत्र ने लोक को कुचल
लोभ को आराधा.
गण पर गन का
आतंक रहा अबाधा.
सियासत ने सिर्फ
स्वार्थ को साधा.
होकर भी आउट न हुआ
भ्रष्टाचार पगबाधा.
बहुत कस लिया
अब और न कस.
अलविदा दो हजार दस...
लगता ही नहीं, यही है
वीर शहीदों और
सत्याग्रहियों की नसल.
आम्र के बीज से
बबूल की फसल.
मंहगाई-चीटी ने दिया
आवश्यकता-हाथी को मसल.
आतंकी-तिनका रहा है
सुरक्षा-पर्वत को कुचल.
कितना धंसेगा?
अब और न धंस.
अलविदा दो हजार दस...
***
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