तेलुगु भाषा एवं साहित्य
अंतरजाल पर तेलुगु भाषा एवं साहित्य पर हिंदी में अपेक्षित मात्रा में सामग्री उपलब्ध न होने के कारण अपने पाठकों के लिए युग मानस की ओर से तेलुगु भाषा एवं साहित्य पर धारावाहिक लेखमाला का प्रकाशन आरंभ किया जा रहा है । तेलुगु के युवा कवि उप्पलधडियम वेंकटेश्वरा अपने लेखों के माध्यम से तेलुगु भाषा एवं साहित्य के विविध आयामों पर प्रकाश डाल रहे हैं । इस क्रम में तीसरा लेख यहाँ प्रस्तुत है । - सं.
तेलुगु भाषा की प्राचीनता
- उप्पलधडियम वेंकटेश्वरा
तेलुगु विश्व की अत्यंत प्राचीन भाषाओं में से एक है। तेलुगु भाषा की प्राचीनता के अनेक प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष प्रमाण मिलते हैं।
आंध्र-प्रांत में प्रचलित एक दंत-कथा के अनुसार तेलुगु भाषा का प्रथम व्याकरण ग्रंथ तेत्रायुग में रावण द्वारा रचा गया। हालांकि यह मात्र दंत-कथा है, फिर भी इससे तेलुगु भाषा की प्राचीनता का आभास मिलता हे।
1. नई खोजों के अनुसार, आंध्र प्रदेश के कर्नूल जिले में स्थित 'ज्वालापुरम्' नामक गाँव को भारत में मानव-जाति का प्रथम आवास-स्थल माना जाता है। वैज्ञानिकों की राय है कि करीब अस्सी हजार वर्ष पूर्व अफ्रीका से एक मानव समूह द्वारा निर्मित एक कुआ प्रकाश में आया है, जो 77,000 वर्ष पुराना है। जाहिर है कि यहां की प्रजा और उनकी भाषा अत्यंत प्राचीन हो।
2. 'गोंड' प्रजाति की उद्भव-गाथा में 'तेलिंग' नामक देव का उल्लेख है। कुछ विद्वान 'तेलिंग' को तेलुगु प्रजाति का मूलपुरुष मानते हैं। तेलुगु प्रजाति की प्राचीनता के आकलन में गोंड प्रजाति की उद्भव-गाथा उपयोगी है।
3. प्रख्यात इतिहासकार डी.डी. कोशांबी ने अपनी पुस्तक ‘Combined methods in Indology and other writings’ (Oxford University Press, 2002, P. 391) में लिखा है कि ”The puranas inform us that Krishna’s father was Vasudeva, mother Devaki, Sister to a tyrant of Madhura named Kamsa. The people were the Andhaka – Vrishni branch of the Yadavs”. इससे स्पष्ट होता है कि श्रीकृष्ण 'अंधक वृष्णी' शाखा के थे। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व निदेशक डॉ. वी.वी. कृष्ण शास्त्री का मानना है कि चूंकि प्राचीन ग्रंथों में 'अंधक' शब्द से आंध्र-प्रजाति अभिप्रेत है । श्रीकृष्ण की प्रतिमा आंध्र-प्रदेश के गुंटूरु जिले के 'कोंडमोटु' गाँव में जो प्राप्त हुई, वह ई.200 की मानी जाती है। यहां इस तथ्य को भी ध्यान में रखना समीचीन होगा कि श्रीकृष्ण से लड़ने वाले चाणूर और मुष्टिक भी आंध्र-प्रजाति के थे, जिसका स्पष्ट उल्लेख महाभारत में किया गया। यह भी तेलुगु प्रजाति की प्राचीनता का द्योतक है।
4. अनेक विद्वानों का मत है कि सुमेरी सभ्यता के साथ तेलुगु प्रजाति का घनिष्ठ संबंध है।
5. इतिहासकार एच.आर. हॉल के अनुसार प्राचीन सुमेरी मानव आकार में दक्कन के मानव-सा था।
6. सुमेरी लोगों ने पूर्वी दिशा में स्थित 'तेलमन' क्षेत्र को अपनी उद्भव-भूमि कहा था। तेलुगु के प्रकांड पंडित डॉ. संगनभट्ल नरसय्या मानते हैं कि यह 'तेलमन' शब्द तेलि (याने सफेद) और मन्नु (मिट्टी), इन तेलुगु शब्दों का स्रोत है। वे यह भी मानते हैं कि उपरोक्त 'तेलमन क्षेत्र' से तेलुगु भाषा-क्षेत्र अभिप्रेत है।
7. सुमेरी सभ्यता के प्रख्यात शहर 'निप्पूर' के नाम में 'निप्पु' (याने आग) और 'ऊरु' (याने स्थल) नामक तेलुगु शब्द पाए जाते हैं।
8. सुमेरी लोगों की प्रधान देवता 'अंकि' थी। आंध्र-प्रांत में व्यक्तिवाचक संज्ञा के रूप में अंकय्य, अंकिनीडु, अंकम्म, अंकालम्म आदि शब्दों का प्रचलित होना तेलुगु और सुमेरी सभ्यताओं के संबंध का द्योतक है।
9. सुमेरी जनता ने आकाश देव को 'अनु' तथा पृथ्वी देव को 'एंकि' की संज्ञा दी थी । आंध्र-प्रांत में अन्नय्या, अन्नमय्या, अन्नम्मा, अन्नंभट्टु आदि नाम पाए जाते हैं, जो संभवत: 'अनु' देव के नाम पर रखे गए हैं। 'एंकि' नाम भी आंध्र-प्रांत में काफी प्रचलित है और कुछ विद्वानों का मत है कि एंकि से वेंकि और वेंकि से वेंकटेश्वर (याने बालाजी) रूप विकसित हुए हैं।
10. सुमेरी जनता ने चांद्रमान को अपनाया और तेलुगु जनता भी चांद्रमान का अनुसरण करती है।
11. प्राचीन सुमेरी भाषा में चांद के लिए 'नन्न' शब्द का प्रयोग मिलता है। तेलुगु के नन्नय्य, नन्नेचोडुडु जैसे प्राचीन कवियों के नाम में भी यह शब्द मिलता है। साथ ही, आंध्र-प्रदेश के तेलंगाणा इलाके के लोग 'नल्लपोचम्मा' नामक देवता की पूजा करते हैं। तेलुगु में यदा-कदा 'न' और 'ल' वर्णों का अभेद होता है। अत: यह शब्द वस्तुत: 'नन्नपोचम्मा' है, जिससे चंद्रकला अभिप्रेत है।
12. सुमेरी सभ्यता के 'निप्पूर' शहर में 'एकूरु' नामक मंदिर था। आंध्र-प्रांत में व्यक्तिवाचक संज्ञ के रूप में 'एकूरय्या' (जिसका अर्थ-बनता है, एकूरु में रहने वाला आदमी) शब्द पाया जाता है। 'निप्पूर' शहर में 'तुम्मल' नामक देवता का मंदिर था, तो आंध्र-प्रदेश में इस नाम से एक गाँव है।
13. सुमेरी सभ्यता के जलप्रलय की गाथा में 'एंकिडु' नामक पात्र आता है। तेलुगु जनता में 'एंकि' शब्द नामवाचक संज्ञा के रूप में काफी प्रचलित है और 'डु' प्रत्यय के साथ दर्जनों नाम मिलते हैं, जैसे रामुडु, कृष्णडु, रंगडु, वेंकडु इत्यादि।
14. प्रख्यात इतिहासकार डी.डी. कोशांबी के अनुसार प्राचीन काल में दक्षिण भारत और सुमेरु के बीच व्यापारिक संबंध थे और दक्षिण भारत से कुछ व्यापारी जाकर सुमेरु में बस गए। सुमेरी सभ्यता के सैकड़ों मिट्टी के फलक (Clay Tablets) प्राप्त हुए हैं और कुछ विद्वानों का मानना है कि इनमें प्राचीन तेलुगु भाषा का प्रयोग हुआ था। डॉ. संगनभट्ल नरसय्य ने नान्नि और इया नाज़िरा नामक दो व्यापारियों के बीच के पत्राचार का उल्लेख किया है। उन्होंने इन पत्रों में से - अनु (याने), चेरि (ठीक), इस्कुंटि (आधुनिक रूप है 'इच्चुकुंटि', जिसका मतलब है मैंने दिया था), 'अय्या' (जी) 'अदि' (वह), 'तूसि इम्मनि माकि' (आधुनिक रूप है 'तूचि इम्मनि माकु', जिसका मतलब है, तोलकर हमें देने के लिए), 'मरि आ वेलकि इम्मनेदि' (तो उस दर पर देने के लिए कहना) आदि तेलुगु शब्दों तथा वाक्यों का उदाहरण देकर सुमेरी भाषा को तेलुगु भाषा का पूर्वरूप् माना है। यहां यह कहना समीचीन होगा कि 'बहराइन थ्रू द एजेस' नामक ग्रंथ में 'अलिक दिलमुन पाठ' का उल्लेख है, जो उपरोक्त कथन को बल देता है। यह भी ध्यान देने का विषय है कि आज भी तेलुगु जनता में नामवाचक संज्ञा के रूप् में 'नानि' शब्द का प्रचलन है।
15. डॉ. संगनभट्ल नरसय्य की धारणा है कि बलूचिस्तान में बोली जाने वाली द्रविड भाषा 'ब्राहुई' अन्य द्रविड भाषाओं की अपेक्षा तेलुगु के निकट है। उनका मानना है कि व्यापार हेतु तिलमुन याने तेलुगु-प्रांत से सुमेरु जाते-जाते बीच में जो व्यापारी रह गए थे, उनकी भाषा 'ब्राहुई' है और इसी कारण तेलुगु एवं ब्राहुई में निकटता पाई जाती है।
16. डॉ. जी.वी. पूर्णचंद ने सुमेरी और तेलुगु भाषाओं के ऐसे शब्दों का विश्लेषण किया, जो समानार्थी और समान रूपी हैं। कुछेक उदाहरण निम्नप्रकार हैं-
सुमेरी शब्द तेलुगु शब्द हिंदी में अर्थ
अबा अवतला के बाद
अका अकटा अय्यो!
अला एल्ल सभी
अर अरक हल
बाद बादु पीटना
बिर विरुचु तोड़ना
बुर पुरुगु कीडा
दिब दिब्ब कूड़ा-ख़ाना
दार दारमु धागा
दिरिग तिरुगु फिरना
फिरिक पिरिकि डरपोक
17. उपरोक्त प्रमाणों से सुमेरी सभ्यता और तेलुगु प्रजाति के बीच का घनिष्ट संबंध स्पष्ट हो जाता है और इससे तेलुगु प्रजाति की प्राचीनता का अनुमान लगाया जा सकता है।
(शेष अगले अंक में)