Sunday, August 31, 2008

कविता


भावना

- डी.अर्चना, हिंदूस्‍तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लि.,चेन्नै ।

भावना
अभिव्‍यक्ति,
व्‍यक्ति की अज़ादी,
पहचान,
मान और सम्‍मान ।
दुनियां में हर एक को,
अपने तरीके से जीने का ही नहीं,
बल्कि बोलने का भी अधिकार है।
भावना, अखिर कार्य व प्रेरणा शब्‍द का पर्याय ही है
यही व्‍यक्ति का जीता जागता फलसफा है।
भावना व्‍यक्ति की दशा और दिशा को बदलती है,
जीवन में नव स्‍फूर्ती को उजागर करती है,
सही रास्‍ते पर चलाती है,
मानवता से जीने का पाठ सिखलाती है।
भावना धर्म है
कर्म है
मर्म है
इसी में दया, माया व ममता समाहित है
जड़ को चेतन में परिवर्तित करती है
इच्‍छा को दिलासा दिलाती है,
और कर्म का धर्म बताती है
भावना नहीं तो आदमी नहीं,
यह दुनिया भी नहीं, ये रिश्ते नहीं,
ये नाते नहीं,
यही भावना पशु पक्षियों में नहीं..................
इस लिए प्राणियों में
मानव ही, सर्व श्रेष्‍ठ प्राणि कहलता है।
इस लिए
सभीको
नियंत्रित
करता
है।

5 comments:

S Sadiq said...

aapne ek achi kavitha likhi hai,congratulations,and best of luck,keep continuing

manmohan said...

bhavoaon ka itna achhe tarhase pesh karna ek badi baat hain. Apne bahvnaon ko isi tharah behne dena. Appko achi tarakii mile yehi kaamna...

Smart Indian said...

अच्छी कविता है - धन्यवाद!

gyaneshwaari singh said...

शब्दों का चयन और अर्थ अच्छा है.

Sherfraz said...

Poetry is OK. but still you can improve a lot. your future is bright.