प्रेरणा
- रुक्माजी अमर, चेन्नै
मिलती है मुझे प्रेरणा
सुरम्य प्रकृति से,
विभिन्न स्थिति, परिस्थितियों से,
घटनाओं, दुर्घटनाओं से,
लोगों से
लोगों की प्रवृत्तियों से
लोगों के व्यवहार से
तत्काल रच देता हूँ मैं रचना
लौटा देता हूँ मैं आखिर
उन्हीं की रचना उन्हीं को
अपने ही पास रखना
समझता हूँ मैं अक्षम्य अपराध ।
(PRERANA – A Hindi Poem by Rukamaji Amar for YUGMANAS)
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Friday, August 1, 2008
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1 comment:
bhaut sahi kaha,...logo ki rachna shando mein dhal aap unko hi lauta deti hai...acha likha hai
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