Tuesday, August 19, 2008

कविता





चलो फिर से आज़ादी की मशाल जलाएंगे हम




- मनमोहन बी. करकेरा, एच.पी.सी.एल., चेन्नई ।




चलो फिर से आज़ादी की मशाल जलाएंगे हम
भारत की प्रगति की नई राह बनाते हैं हम
हमारे देश के हर उतार चढ़ाव को झेलते हैं हम
चलो फिर से आज़ादी की मशाल जलाते हैं हम
झूठे वादों से जूझते हैं
एक नया राजनेता चुनते हैं हम......
भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस और एक नए
चंद्रशेखर आज़ाद को ढूंढते हैं हम
चलो फिर से आज़ादी की मशाल जलाएंगे हम ।
हर एक बच्‍चे के सपनों को सज़ाते हैं हम
हर युवा के लक्ष्‍य को सींचते हैं हम,
हर बहन के प्‍यार को पाते हैं हम
हर मां की लोरी को सुनते हैं हम
चलो फिर से आज़ादी की मशाल जलाएंगे हम ।
हर एक घर में रोटी,
हर घर में पानी पहुँचाते हैं हम,
हर घर में बिजली सजाते हैं हम,
हर गाँव को शहर बनाते हैं हम
चलो फिर से आज़ादी की मशाल जलाएंगे हम ।
हर एक आतंक को जड़ से उखाड़ते हैं हम,
राम और रहीम के बीच एक सेतु बांधते हैं हम,
हर घर में एक अभिनव बिंद्रा को बनाते हैं हम
चलो फिर से आज़ादी की मशाल जलाएंगे हम ।

3 comments:

chitti said...

आज़ादी नई चेतना जगाने में आपकी कविता सक्षम है ।
- राधिका

राजीव said...

आज़ादी से आज तक के परिदृशय को समेटे मोहन की कविता मनमोहक बन पड़ी है, बधाई

gyaneshwaari singh said...

मर्म को समझना और अमल करना अच्छा रहेगा