Friday, August 1, 2008

गीत

रुग्न पृथ्वी (हाइकु गीत)
- नलिनी कांत, अंडाल, प.बं.
पृथ्व को चढ़ा
ग्लोबल वार्मिंग
नामक ज्वर ।
घुटन से तो
बंद होता जा रहा
धरा का स्वर ।
जीव जंतु का
जीना होता जा रहा
यहां दूभर ।
पशु पक्षी की
प्रजाति प्रतिपल
रही है मर ।
शेर व्याघ्र भी
हो रहे पसीने से
तर बतर ।
विज्ञान का तो
टें बोल रहा अब
सारा असर ।
प्रकृति क्रुद्ध
है, रक्षा करो भू की
हे प्रभुवर !

(RUGN PRITHVI – A Hindi Lyric (Haikoo Lyric) by NALINI KANTH for YUGMANAS)

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