Friday, August 1, 2008

अपनी बात


Yug Manas য়ুগ মানস યુગ માનસ युग मानस ಯುಗ್ ಮಾನಸ್



യുഗ് മാനസ് யுக் மாநஸ் యుగ్ మానస్ ਯੁਗ੍ ਮਾਨਸ੍

अंतरजाल पर सर्जनात्मक साहित्यिक अनुष्ठान के रूप में ...
युग मानस का पुनर्जन्म


मानवीय मूल्यों के लिए प्रतिबद्ध सर्जनात्मक साहित्यिक अनुष्ठान के रूप में युग मानस ने अपनी यात्रा 1994 में शुरू की थी और 2 अक्तूबर, 1996 को युग मानस त्रैमासिकी का प्रवेशांक का लोकार्पण प्रमुख विचारक विमला ठकार के करकमलों से नई दिल्ली में हुआ था ।


हिंदीतर प्रदेश गुंतकल (आंध्र प्रदेश, दक्षिण भारत) से प्रकाशित युग मानस पत्रिका निरंतर सर्जनात्मक साहित्य को संबल देने में तथा मूल्यों की प्रतिष्ठा की दिशा में अपनी अनूठी भूमिका सुनिश्चित करती रही है । देश के सभी राज्यों में इसके सक्रिय पाठक एवं लेखक थे, इसका प्रसार देश के लगभग सभी राज्यों के सभी जिलों में होता रहा । विडंबनात्मक स्थितियों में 2004 के बाद कुछ समय इसे स्थगित भी करना पड़ा था । अब विकसित सूचना प्रौद्योगिकी का लाभ उठाते हुए विश्वभर के हिंदी पाठकों के लिए उपलब्ध कराने के उद्देश्य से वेब पत्रिका के रूप में युग मानस का आज पुनर्जन्म हो रहा है । आज से इसमें आपकी सबकी रचनाएँ प्रकाशित होंगी । आप अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ yugmanas@gmail.com पते पर ई-मेल द्वारा भेज सकते हैं ।

मुक्त ज्ञान के युग में भारत की सर्वाधिक प्रचलित भाषा हिंदी में एक हिंदीतर प्रदेश से सक्रिय इस अनुष्ठान के लिए आप सबकी आत्मीयता के कारण इसे जो लोकप्रियता मिली है, उसका श्रेय आप सबको जाता है । सर्जनात्मक को संबल देने में युग मानस सदा तत्पर रहेगा ।


विभिन्न विधाओं की कुछ रचनाओं से आज इसका इस रूप में श्रीगणेश हो रहा है । रचनाओं के प्रकाशन में निरंतरता बनी रहेगी । यह अनुरोध है, रचनाकारों को प्रेरित एवं प्रोत्साहित करने हेतु रचनाओं के अंत में Comments कॉलम में रचनाओं के संबंध में आप अपनी प्रतिक्रियाएँ अवश्य दीजिए ।

वेब पत्रिका के रूप में युग मानस के शुभारंभ के उपलक्ष्य में शुभकामनाएँ ज्ञापित करने वाले समस्त आत्मीयजनों के प्रति आभार ज्ञापन सहित....


डॉ. सी. जय शंकर बाबु

(APNI BAAT – An editorial note by Dr. C. JAYA SANKAR BABU for YUGMANAS)

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