ग़ज़ल
- एस.एन. सक्सेना, अशोक नगर (म.प्र.)
कोई मारे तो न मरे कोई
सिर्फ इतनी दुआ करे कोई ।
मौत आने तलक तो जी लें हम ।
इतनी मोहलत अता करे कोई ।
अपने हाथों में आइना लेकर
जो भी चाहे ख़ता करे कोई ।
हादसों में तो आंख भर आए
हमसे इतनी वफ़ा करे कोई ।
खूं की रंगत कभी नहीं बदले
अब तो ऐसी दवा करे कोई ।
चंद लम्हे खुलूस उल्फ़त के
हंसते-हंसते विदा करे कोई ।
(GAZAL – A Hindi GAZAL by S.N. SAXENA for YUGMANAS)
Friday, August 1, 2008
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1 comment:
खूं की रंगत कभी नहीं बदले
अब तो ऐसी दवा करे कोई ।
namskaar
bhaut khub likha hai apne...
lekin kya yaisi dawa banayee ja sakti hai jo badle khoon ke rang ko sahi kar de????
khyaal acha hai...aur gazal umdaa likhi
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