Saturday, July 30, 2011

बोध-कथा

बोध-कथा

जय श्री राधेय

- रचना गोयल

एक बार की बात है, एक गांव में एक पंडित रहता था, वो बहुत ही विद्वान था, दूर दूर से लोग उसके पास अपनी समस्या लेकर आते और वो सबका उचित समाधान कर देता था लोग उससे बहुत सम्मान दिया करते थे . मगर उसकी खुद की स्थिति बहुत ही खराब थी उसकी पत्नी बहुत ही कर्कशा थी नित्य उसकी जान से रासे किया करती थी हर समय झगडा करती मगर पंडितजी हँस कर सब सह लेते थे . एक बार एक दूसरे गाँव का आदमी उन की प्रशंसा सुनकर उनके पास अपनी समस्या लेकर आया, तब उसने देखा कि पंडितजी की तो बड़ी ही फजीहत हो रही है उन्ही के पत्नी उन्हें बुरा भला कह रही है तो वो वापस जाने लगा कि जो अपना भाग्य नहीं सवार सका वो मेरी क्या मदद करेगा मगर जो उसको वह लेकर आया था वो बोला जब हम इतनी दूर आये हैं तो क्यो न आजमा कर देखे कि लोग इनकी इतनी तारीफ़ क्यों करते हैं और वो अंदर चले गये पंडितजी अपने शांत भाव से ही बैठे थे . उन्होंने पंडितजी को अभिवादन किया और पास में ही बैठ गये अब जो अपनी संशय लेकर आया था उसने कहा पंडितजी मैं आपसे मदद लेने आया था पर मेरे मन में एक संशय है यदि आप मेरे उस संशय को दूर करें तो मैं अपनी समस्या आप से कहूँ . पंडितजी ने कहा आप बिना हिचक मुझ से जो चाहे पूछो, मैं आपकी हर बात का समाधान करने की पूरी कोशिश करूँगा . तब वह व्यक्ति कहने लगा पंडितजी जब हम यहाँ आये तो जो देखा उससे लगता है जब आप अपनी समस्या का समाधान नहीं कर सकते तो हमारी कैसे करेंगे . तब पंडितजी मुस्कुराते हुए कहने लगे, यदि ये इस जन्म में मुझे नहीं पकडती तो हो सकता है ये मुझे किसी और जन्म में पकडती . तब वो कहने लगा ऐसा क्यों पंडितजी आप हमें खुल कर बताये . तब पंडितजी कहने लगे ये पहले जन्म में एक ऊँटनी थी और अपने दल के साथ जा रही थी तब इसका पाँव दलदल में चला गया अब ये जितना कोशिश करती उतना ही अंदर चली जाती . धीरे-धीरे रात घिरने लगी और इसके साथी भी हर प्रयास में असफल रहे तब वो इसे छोड़ कर चले गये. ये वहाँ असहाय होकर छटपटाने लगी उस जन्म में मै एक गिद्ध था और गिद्ध का ये सवभाव जगजाहिर है कि ये एकमात्र ही ऐसा जीव है जो जिन्दा आदमी का माँस खाता है . तब मैं इसका माँस नोंच-२ कर खाने लगा और ये असहाय अवस्था में मुझे हटा न सकी और मुझसे बदला लेने की भावना मन में लिये लिये ही इसने प्राण त्याग दिए उस जन्म में मैंने जैसे इससे नोंच-नोंच कर खाया ये इस जन्म में मुझे इसी तरह कचोटती है यदि मैं अपना भाग्य संवारने के चक्कर में इससे विवाह न करता तो ये मुझे किसी और जन्म में पकडती, इसलिए मैं इसकी इन बातों का बुरा नहीं मानता हूँ......इसलिए हमें इस जन्म में ऐसे कर्म नहीं करने चाहिये कि कोई हमसे बदले की भावना लिये संसार से जाये और हमें किसी न किसी जन्म में पकड़े ।

No comments: