प्रतीति
- श्यामल सुमन
गीत वही और राग वही है,
वही सुर, सब साज़ वही है,
गाने का अंदाज़ वही पर,
गायक ही तो बदल गये हैं।
लोग वही और देश वही है,
नाम नया, परिवेश वही है,
वही तंत्र का मंत्र अभी तक,
शासक ही तो बदल गये हैं।
शिष्य वही और ज्ञान वही है,
तेजस्वी का मान वही है,
ज्ञान स्वार्थ से लिपट गया क्यों?
शिक्षक भी तो बदल गये हैं।
धर्म वही और ध्यान वही है,
वही सुमन भगवान वही है,
जो है अधर्मी, मौज उसी की,
जगपालक क्या बदल गये हैं?
वही सुर, सब साज़ वही है,
गाने का अंदाज़ वही पर,
गायक ही तो बदल गये हैं।
लोग वही और देश वही है,
नाम नया, परिवेश वही है,
वही तंत्र का मंत्र अभी तक,
शासक ही तो बदल गये हैं।
शिष्य वही और ज्ञान वही है,
तेजस्वी का मान वही है,
ज्ञान स्वार्थ से लिपट गया क्यों?
शिक्षक भी तो बदल गये हैं।
धर्म वही और ध्यान वही है,
वही सुमन भगवान वही है,
जो है अधर्मी, मौज उसी की,
जगपालक क्या बदल गये हैं?
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