Friday, July 15, 2011

संस्कृत ग्रँथों का हिन्दी पद्यानुवाद


प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव"विदग्ध" ने किया

संस्कृत ग्रँथों का हिन्दी पद्यानुवाद


जबलपुर. नि.प्र. ,श्रीमद्भगवत्गीता विश्व ग्रंथ के रूप में मान्यता अर्जित कर चुका है , गीता में भगवान कृष्ण के अर्जुन को रणभूमि में दिये गये उपदेश हैं , जिनसे धर्म , जाति से परे प्रत्येक व्यक्ति को जीवन की चुनौतियो से सामना करने की प्रेरणा मिलती है . परमात्मा को समझने का अवसर मिलता है . जीवन मैनेजमेंट की शिक्षा गीता से मिलती है .
भारतीय संस्कृति में आत्म प्रशंसा को शालीनता के विपरीत आचरण माना गया है , यही कारण है कि जहाँ विदेशी लेखकों के आत्म परिचय सहज सुलभ हैं ,वहीं कवि कुल शिरोमणी महाकवि कालिदास जैसे भारतीय मनीषीयों के ग्रँथ तो सुलभ हैं किन्तु इनकी जीवनी दुर्लभ हैं ! महाकवि कालिदास की विश्व प्रसिद्ध कृतियों मेघदूतम् , रघुवंशम् , कुमारसंभवम् , अभिग्यानशाकुन्तलम् आदि ग्रंथों में संस्कृत न जानने वाले पाठको की भी गहन रुचि है ! ऐसे पाठक अनुवाद पढ़कर ही इन महान ग्रंथों को समझने का प्रयत्न करते हैं ! किन्तु अनुवाद की सीमायें होती हैं ! अनुवाद में काव्य का शिल्प सौन्दर्य नष्ट हो जाता है ! पर यदि काव्यानुवाद शंलोकशः भावानुवाद हो तो वह आनंद यथावत बना रहता है , और यही कर दिखाया है प्रो सी बी श्रीवास्तव ने .नयी पीढ़ी संस्कृत नही पढ़ रही है , और ये सारे विश्व ग्रंथ मूल संस्कृत काव्य में हैं , अतः ऐसे महान दिशा दर्शक ग्रंथो के रसामृत से आज की पीढ़ी वंचित है . प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ने श्रीमद्भगवत गीता , रघुवंशम्, मेघदूतम् जैसी महान रचनाओ का श्लोकशः हिन्दी भाव पद्यानुवाद का महान कार्य करके काव्य की उसी मूल भावना तथा सौंदर्य के आनंद के साथ हमारे सांस्कृतिक ज्ञान ,व प्राचीन साहित्य को हिन्दी जानने वाले पाठको के लिये सुलभ करा दिया है . यह कार्य ८४ वर्षीय प्रो. श्रीवास्तव के सुदीर्घ संस्कृत , हिन्दी तथा काव्यगत अनुभव व ज्ञान से ही संभव हो पाया है . यद्यपि प्रो श्रीवास्तव इसे ईश्वरीय प्रेरणा , व कृपा बताते हैं . मण्डला के प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव "विदग्ध" जी ने महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम् के समस्त १२१ मूल संस्कृत श्लोकों का एवं रघुवंश के सभी १९ सर्गों के लगभग १८०० मूल संस्कृत श्लोकों का तथा श्रीमद्भगवत गीता के समस्त १८ अध्यायो के सारे श्लोको का श्लोकशः हिन्दी गेय छंद बद्ध भाव पद्यानुवाद कर हिन्दी के पाठको के लिये अद्वितीय कार्य किया है !शासन हर वर्ष कालिदास समारोह , तथा संस्कृत के नाम पर करोंडों रूपये व्यय कर रहा है ! जन हित में इन अप्रतिम अनुदित कृतियों को आम आदमी के लिये संस्कृत में रुचि पैदा करने हेतु इन पुस्तकों को इलेक्र्टानिक माध्यमों से प्रस्तुत किया जाना चाहिये , जिससे यह विश्व स्तरीय कार्य समुचित सराहना पा सकेगा !प्रो श्रीवास्तव ने अपने ब्लाग http://vikasprakashan.blogspot.com पर अनुवाद के कुछ अंश सुलभ करवाये हैं . ई बुक्स के इस समय में भी प्रकाशित पुस्तकों को पढ़ने का आनंद अलग ही है ,उन्होने बताया कि इन ग्रंथो के पुस्तकाकार प्रकाशन के लिये उन्हें प्रकाशको की तलाश है . उनका पता हैप्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तवओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर . म.प्र. भारत पिन ४८२००८फोन ०७६१२६६२०५२ , मोबाइल ०९४२५८०६२५२email vivekranjan.vinamra@gmail.com
-विवेक रंजन श्रीवास्तव

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