Saturday, May 7, 2011

कविता - तुम...



तुम...




- कुमार शिवा



तुझे देख के दिल को लगा ऐसा. .
कुछ ऐसा ही दिखता होगा वो. .
मक्मली सा. . खूबसूरत . .!
ज़िन्दगी जीने की जरुरत. . !


तुझे देख के दिल को लगा ऐसा. .
कुछ ऐसा ही दिखता होगा वो. .


आँखें नियत छिपा न सकी. . कई बार गुनाह इसने किये. .
हम ही गुनाह - गार हुए. . और फिर शिकार हम ही हुए. .
आँखें नियत छिपा न सकी. . कई बार गुनाह इसने किये. . !!


हवा भी तेरी जुल्फों से बराबर शरारत करती रही. .
और बन्दे की शराफत मरती रही. . हाय! मरती रही. .


दिल ने पलकों से यूँ कहा अब मत छेड़ना आईने को. .
तुझे देख के दिल को लगा ऐसा. . कुछ ऐसा ही दिखता होगा वो !!

3 comments:

dr s. basheer said...

kavitaa padnese isaa lagaa zindagee khoobsurat hai jiko sonchnekaa andaaz bhee khub surat hai ummeed hai kee bhaavaatmak ke saath saath practical/ kriyaatmak kavitaaye bhee likhege

subh kaamanaaye

Anamikaghatak said...

ati sundar post

डॉ० डंडा लखनवी said...

भगवान राम ने शिव-धनुष तोड़ा, सचिन ने क्रिकेट में रिकार्ड तोड़ा, अन्ना हजारे ने अनशन तोड़ा, प्रदर्शन-कारियों रेलवे-ट्रैक तोड़ा, विकास-प्राधिकरण ने झुग्गी झोपड़ियों को तोड़ा। लोगों ने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए अपने-अपने तरीके से बहुत कुछ तोड़ा है। तोड़ा-तोड़ी की परंपरा हमारे देश में सदियों पुरानी है। आपने कुछ तोड़ा नहीं अपितु अपनी रचनात्मकता से दिलों को जोड़ा है। इस प्रेम, करुणा और ममत्व को बनाए रखिए। भद्रजनों के जीवन की यह पतवार है। साधुवाद!
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सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी